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आख़िर ये इश्क़ क्या है - सलीम रज़ा रीवा

मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन

_____________

आख़िर ये इश्क़ क्या है जादू है या नशा है

जिसको भी हो गया है पागल बना दिया है

oo

हाथो में तेरे हमदम जादू नहीं तो क्या है

मिट्टी को तू ने छूकर सोना बना दिया है

oo

उस दिन से जाने कितनी नज़रें लगी हैं मुझपर

जिस दिन से तूने मुझको अपना बना लिया है

oo

खिलता हुआ ये चेहरा यूँ ही रहे सलामत

तू ख़ुश रहे हमेशा मेरी यही…

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Added by SALIM RAZA REWA on April 4, 2019 at 9:13am — 6 Comments

एक ग़ज़ल मनोज अहसास

221   2121   1221   212

फरियाद कोई उनसे सुनाई नहीं जाती ।

आंखों से मगर ,बात छुपाई नहीं जाती ।

मैं जानता हूं ,तू मेरे हक में नहीं है पर

दिल से तेरी तस्वीर मिटाई नहीं जाती ।

जो बात जला देती है दिल को मेरे अक्सर

वो बात किसी से भी बताई नहीं जाती।

तुझपे न असर होगा किसी बात का मेरी

फिर भी मेरे होठों से दुहाई नहीं जाती ।

बारिश में बिखर जाते हैं जिनके सभी खुश रंग

तस्वीर वो अश्कों से सजाई नहीं…

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Added by मनोज अहसास on April 3, 2019 at 5:06pm — 3 Comments

ग़ज़ल

ग़ज़ल 

मिलन की रात का लम्हा छुपा है

नज़र में बस तेरा चेहरा छुपा है

 दुआ लेकर निकलना रोज़ घर से 

यहाँ हर मोड़ पर ख़तरा छुपा है

लबों पर प्यास लेकर फिरने वाले

तेरे अंदर भी इक दरिया छुपा है

महकती है हमेशा ज़ीस्त यूँ भी

कि सांसों में तेरा गजरा छुपा है

सनम मत जा अभी ख़्वाबों से मेरे

अभी तो चाँद भी आधा छुपा है

'अहद' लिखना न होगा बंद मेरा

अभी दिल में बहुत लावा छुपा है !

मौलिक और…

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Added by AMIT on April 3, 2019 at 2:06pm — 7 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
दरवाज़े पर आँधी आके ठहर गई (नवगीत )

 

तिनका तिनका जोड़ बनाया एक घरौंदा 

दरवाजे पर आँधी आके ठहर गई

 

बर्बादी की धीमे-धीमे

आहट पाकर 

स्वप्नकपोतों की

आँखों में भय के साये 

सहमे सहमे भीरु 

कातर बुनकर देखो 

कोने में जा बैठे 

दुबके सकुचाये 

 …

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Added by rajesh kumari on April 3, 2019 at 12:00pm — 7 Comments

कुण्डलिया छंद -

दिखलाते हैं जो सदा, व्हाट्सएप पर ओज।
गुडमार्निंग गुडनाइट जो, करें नियम से रोज।।
करें नियम से रोज, किंतु जब सम्मुख मिलते।
तब फिर इनके होंठ, नहीं रत्तीभर हिलते।।
आगे बढ़कर हाथ, नहीं यह कभी मिलाते।
वटसिपिया व्यवहार, नैट पर ये दिखलाते।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

Added by Hariom Shrivastava on April 3, 2019 at 11:06am — 2 Comments

ग़ज़ल

122 122 122 122

वो मक़तल में कैसी फ़ज़ा माँगते हैं ।।

जो क़ातिल से उसकी अदा माँगते हैं ।।

जुनूने शलभ की हिमाकत तो देखो ।

चरागों से अपनी क़ज़ा माँगते हैं।।

उन्हें भी मिला रब सुना कुफ्र में है ।

जो अक्सर खुदा से जफ़ा माँगते हैं ।।

असर हो रहा क्या जमाने का उन पर ।

वो क्यूँ बारहा आईना माँगते हैं ।।

अजब कसमकश है मैं किससे कहूँ अब ।

यहां बेवफ़ा ही वफ़ा माँगते हैं…

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Added by Naveen Mani Tripathi on April 2, 2019 at 6:42pm — 8 Comments

पथ के पथगामी-

नारी तो केवल है नारी है    

नर भी तो केवल है नर      

दोनोँ के विचार अलग हैं

दोनोँ के किरदार अलग

ना इसका कुछ हिस्सा ज्यादा

ना ही उसका है कुछ कम

 

कभी…

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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on April 2, 2019 at 6:30pm — 4 Comments

वह निगाहें- लघुकथा

"अरे पागल हो गए हो क्या, उस ऑटो को क्यों जाने दिया. इतना टेंशन हैं चारोतरफ और हम लोग यहाँ फंसे हुए हैं जहाँ तीन दिन पहले ही दंगे हुए थे", राजेश एकदम बौखला गया.

"चिंता मत करो, अब स्थिति कुछ ठीक हैं, दूसरा आ जायेगा", उसने इत्मीनान से कहा और सामने सड़क पर देखने लगा.

तभी एक दूसरा ऑटो आता दिखाई पड़ा, ऑटो ड्राइवर को देखकर ही राजेश को समझ आ गया कि यह गैर मज़हबी है और वह थोड़ा पीछे हो गया.

"आ जाओ, चलना नहीं हैं क्या", कहते हुए वह राजेश का हाथ खींचते हुए ऑटो में बैठ गया.

कुछ समय बाद…

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Added by विनय कुमार on April 2, 2019 at 5:36pm — 10 Comments

ओ बी ओ को 9वीं सालगिरह की सौगात

ओ बी ओ को 9वीं सालगिरह की सौगात

ग़ज़ल (फाइलुन _फाइलुन _फाइलुन _फाइलुन /फाइलात)

मेरा दिल दे रहा है दुआ ओ बी ओ l

तू फले फूले यूँ ही सदा ओ बी ओ l

कोई सीखे कथा, छंद या शायरी

इन सभी का है तू रहनुमा ओ बी ओ l

भाई सौरभ हों राना या मिथलेश हों

इनके दम से तू आगे बढ़ा ओ बी ओ l

सीखने का दिया मंच तूने हमें

क्यूँ न तेरा करूँ शुक्रिया ओ बी ओ l

आज ख़ुश हैं बहुत यूँ नहीं योगराज

गोद में इनकी फूला फला ओ बी…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 2, 2019 at 12:01pm — 10 Comments

जिंदगी को गुनगुना कर चल दिए-सलीम रज़ा रीवा

ओबीओ को समर्पित एक क़त'आ  

----------------------------------

जब से तेरी मेहरबानी हो गई

ख़ूबसूरत ज़िन्दगानी हो गई

हम हुए तेरे दिवाने इस तरह

जिस तरह 'मीरा' दिवानी हो गई

...........

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़

--------

जिंदगी को गुनगुना कर चल दिए

मौत को अपना बना कर चल दिए

oo

उम्र भर की दोस्ती जाती रही

आप ये क्या गुल खिलाकर चल…

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Added by SALIM RAZA REWA on April 2, 2019 at 10:00am — 6 Comments

कुण्डलिया छंद-

मतदाता को फाँसने, डाल रहे हैं जाल।
नेता आपस में सभी, कीचड़ रहे उछाल।।
कीचड़ रहे उछाल, मची है ता ता थैया।
नागनाथ हैं एक, दूसरे साँप नथैया।।
हर नेता ही रोज, निराले ख्वाब दिखाता।
सारे नटवरलाल, करे अब क्या मतदाता।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

Added by Hariom Shrivastava on April 1, 2019 at 11:31pm — 8 Comments

मौज ख़ुद आपको साहिल पे लगाने से रही (४१)



मौज ख़ुद आपको साहिल पे लगाने से रही 

और क़ुदरत भी कोई जादू दिखाने से रही 

***

हौसला आपका दे साथ करम हो रब का 

फिर किसी सिम्त बला कोई सताने से रही 

***

हो सके जितना हक़ीक़त ये समझ लो सारे 

मौत मर्ज़ी से कभी आपकी आने से रही 

***

इम्तिहाँ रोज़ ही देने हैं यहाँ जीने को 

रोने धोने से तरस ज़िंदगी खाने से रही 

***

हो…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 1, 2019 at 11:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल (यही ज़माने को खल रहा है )

ग़ज़ल (यही ज़माने को खल रहा है )

(मफा इलातुन _मफा इलातुन)

यही ज़माने को खल रहा हैl

वो मेरे हम राह चल रहा है l

वो हैं मुखातिब तो मुझसे लेकिन

कलेजा यारों का जल रहा है l

नज़र में है सिर्फ उसके मंज़िल

जो गिरते गिरते संभल रहा है l

रखें निगाहों पे कैसे काबू

वो सामने से निकल रहा है l

बदल के शीशा है फायदा क्या

तेरा भी अब हुस्न ढल रहा है l

खयाल में आ रहा है दिलबर

न यूँ…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 1, 2019 at 8:25pm — 4 Comments

ओ बी ओ मंच को समर्पित ग़ज़ल (1222*4)

तुझे इस वर्ष नौवें की ओ बी ओ बधाई है,

हमारे दिल में चाहत बस तेरी ही रहती छाई है।

मिला इक मंच तुझ जैसा हमें अभिमान है इसका,

हमारी इस जहाँ में ओ बी ओ से ही बड़ाई है।

सभी इक दूसरे से सीखते हैं और सिखाते हैं,

हमारी एकता की ओ बी ओ ही बस इकाई है।

सभी झूमें, सभी गायें यहाँ ओ बी ओ में मिल के,

सभी हम भक्त तेरे हैं तू ही प्यारा कन्हाई है।

लगा जो मर्ज लिखने का, दिखाते ओ बी ओ को ही,

उसी के पास इसकी क्यों कि इकलौती दवाई…

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Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 1, 2019 at 12:00pm — 6 Comments

ओ.बी.ओ.की 9 वी सालगिरह का तुहफ़ा

है उजागर ये हक़ीक़त ओ बी ओ

मुझको है तुझसे महब्बत ओ बी ओ

तेरे आयोजन सभी हैं बेमिसाल

तू अदब की एक जन्नत ओ बी ओ

कहते हैं अक्सर ,ये भाई योगराज

तू है इक छोटा सा भारत ओ बी ओ

सीखने वाले यही कहते सदा…

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Added by Samar kabeer on April 1, 2019 at 11:00am — 40 Comments

इति सिद्धम (लघुकथा)

डियर संस्कार,

चौंक तो गये होगे! मोबाइल एप्स से, सोशल मीडिया पर या ऑनलाइन अपनी बात कहने के बजाय इस ख़त से ही अपने अंजाम से वाक़िफ़ करा रहा हूं तुम्हें। आख़िर तुमने ही तो सुसाइड के लिए मज़बूर कर दिया! ख़ूब घमंड था मुझे अपनी ऑनलाइन पढ़ाई पर! माडर्न अपडेटिड छात्र समझने लगा था मैं अपने आपको। स्कूल की पढ़ाई, ट्यूशनों की पढ़ाई और फिर सोशल मीडिया, मोबाइल गेम, आधुनिक दोस्त-यारी, फ़ोटो-वीडियोग्राफ़ी इन सब में मशगूल रहते हुए ऑनलाइन अपने हसीन करियर की हसीन रणनीति बनाया करता था मैं! रात भर…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 31, 2019 at 11:00am — 4 Comments

"रिश्तोँ की घुटन"

 

भीड भरे रस्ते पे एक दिन,

बरसोँ पुराना दोस्त मिला । 

चेहरे से मुस्कान थी गायब,

स्वर भी कुछ रुखा सा मिला । । 

 

मैंने पूछा कैसे हो तुम,

वो बोला कुछ ठीक नहीं । 

मैंने पूछा और हाल-ए-इश्क,

सोच के बोला ली भीख नही । । 

 

उसके इस उत्तर से अचम्भित,

ठिठक  गया  मैं  चलते-चलते । 

फिर काँधे पे हाथ रख पूछा,

किसी से नहीं क्या मिलते-जुलते…

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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on March 30, 2019 at 7:00pm — 6 Comments

"श्याम-रत्न-धन" (संस्मरण) :

कुछ वर्ष पूर्व की बात है। लम्बी गंभीर बीमारी के बाद मेरी अम्मीजान का इंतकाल हो गया था। पूरे संयुक्त परिवार के साथ मैं भी बहुत दुखी था। मुझे सबसे ज़्यादा चाहने और मेरे भविष्य की सबसे ज़्यादा फ़िक्र और देखभाल करने वाली मेरी मां के चले जाने पर मुझे अहसास हुआ कि स्वयं उनको बहुत चाहते हुए और उनकी चिंता करते हुए भी मैं उनकी न तो समुचित देखभाल कर पाया था और न ही उनकी अपेक्षित सेवा। हां, उनके इंतकाल के बाद सब कुछ याद करते हुए उनके प्रति प्यार इतना ज़्यादा बढ़ गया था कि शुरुआत में हफ़्ते…
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Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 29, 2019 at 10:04pm — No Comments

शहीदों का युवाओँ से संवाद- 23 मार्च शहीदी दिवस पर विशेष

हम तो कहीँ और नहीँ गये हैं बच्चोँ,

अभी भी मौज़ूद हैं ह्म तुम्हारे अंदर   

ज़ुल्म को देखकर भी चुपचाप कैसे बैठे हो,

क्या धधकता नहीं है ज्वाला तुम्हरे अंदर । ।

 

 हर इक शय में सियासत भरी हुई है…

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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on March 29, 2019 at 3:00pm — 1 Comment

सार छंद -

1-

अर्थ धर्म या काम मोक्ष में, अर्थ प्रथम है आता।

फिर भी पैसा मैल हाथ का,क्योंकर है कहलाता।।

सब कुछ भले न हो यह पैसा, पर कुछ तो है ऐसा।

जिस कारण जीवनभर मानव,करता पैसा-पैसा।।

2-

बिना अर्थ सब व्यर्थ जगत में,क्या होता बिन पैसा।

निर्धन से वर्ताव यहाँ पर, होता कैसा-कैसा।।

धनाभाव ने हरिश्चंद्र को,समय दिखाया कैसा।

बेटे के ही क्रिया-कर्म को, पास नहीं था पैसा।।

3-

इसी धरा पर पग-पग दिखती,पैसे की ही माया।

पैसा-पैसा करते भटके, पंचतत्व की…

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Added by Hariom Shrivastava on March 29, 2019 at 12:21pm — 2 Comments

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