जल रही दिलों में आग हम बुझाएँ किसलिए
और सब्र बार बार आजमाएँ किसलिए
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तोड़ता सुकून-ओ-चैन की हदें अगर कोई
लोग हिन्द देश के सितम उठाएँ किसलिए
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क़त्ल जो करे यक़ीन का हबीब भी अगर
फिर यक़ीँ उसी पे आज हम दिखाएँ किसलिए
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बार बार हो चुके ग़लत वतन के फ़ैसले
फिर अदू की चाल में हम आज आएँ…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 21, 2019 at 1:30am — 8 Comments
2122 2122 2122
जख्म हम अपने छिपाने में लगे है,
खुद को’ हम पत्थर बनाने में लगे है।
पूछ मत हमको हुआ क्या आजकल ये,
दर्द दिल का हम भुलाने में लगे है।
कौन देता है सहारा अब यहां पर,
बोझ अपना खुद उठाने में लगे है।
दिल जगत का बेरहम चट्टान जैसा,
फिर भी’ पत्थर को मनाने में लगे है।
देश हित की बात ‘‘मेठानी’’ करे क्या,
द्रोहियों को हम बचाने में लगे है।
( मौलिक एवं अप्रकाशित)
- दयाराम…
Added by Dayaram Methani on February 19, 2019 at 10:00pm — 8 Comments
गुंजित सब धरती गगन, जन-जन में उल्लास l
दिग्दिगन्त झंकृत हुआ, जन्म लिए रविदास ll1
दर्शनविद कवि सन्त को, नमन करूँ कर जोर l
कीर्ति ध्वजा लहरा रही, कण-कण में चहुँ ओर ll2
कर्मनिष्ठ प्रतिभा कुशल, सन्त श्रेष्ठ रविदास l
ज्ञानदीप ज्योतित किये, पूर्ण किये विश्वास ll3
सकल सृष्टि वाहक बने, सन्त शान्ति के दूत l
मुखमण्डल रवि तेज से, मिटा छूत का भूत ll4
दुरित दैन्य अस्पृश्यता, जड़ से किए विनाश l
सत्कर्मों के बल सदा , काटे…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on February 19, 2019 at 5:07pm — 4 Comments
"न बाबा, तुम भले इसे बस्ता या स्कूल-बैग कह लो; लेकिन मेरी नज़र में यह बालक के कंधे पर समय का बोझ है! समय-चक्र की मार!" सड़क पर स्कूल से घर लौटते एक बालक के बोझिल झुके कंधे देखकर मिर्ज़ा जी ने अपने दोस्त राजवीर मासाब से कहा।
"भाईजान, समय के साथ हमें और विद्यार्थियों को चलना ही पड़ेगा। हमारे, उनके और मुल्क के हालात अपनी जगह और ज़माने के साथ हमारी लय-ताल अपनी जगह!"
"हा हा हा.. लय-ताल! ... या पाठ्यक्रमों का सुनियोजित बवाल! नई आयातित शिक्षण-पद्धतियों के सागर या सुर-ताल। न तैराक…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on February 18, 2019 at 8:00pm — 4 Comments
कल से ही खबर आ रही थी कि क्षेत्र में कुछ संदिग्ध लोग देखे गए हैं और रात में चौकसी बढ़ा दी गयी थी. हमेशा की तरह रमेश और रोशन एक साथ ही नाईट ड्यूटी पर थे. जैसे जैसे रात आगे बढ़ रही थी, चारो तरफ अँधेरा कुछ यूँ गहरा रहा था मानो इस रात की सुबह होगी ही नहीं. अचानक एक खटका हुआ और रोशन ने अपनी राइफल आवाज़ की तरफ तान दी. कुछ मिनट तक सन्नाटा रहा और उनको लग गया कि कोई खतरा नहीं है.
"तू तो निरा डरपोक ही है रोशन, जरा सी आहट हुई नहीं कि घबरा जाता है", रमेश ने उसे छेड़ते हुए कहा.
"अच्छा तो पंडित, तू…
Added by विनय कुमार on February 18, 2019 at 7:20pm — 2 Comments
ग़ज़ल (पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि)
देके सर हम हो गए दुनिया से रुखसत दोस्तो l
तुम को करनी है वतन की अब हिफाज़त दोस्तो l
बाँध कर बैठो कफ़न अपने सरों पर हर घड़ी
सामने ना जाने कब आ जाए आफ़त दोस्तो l
उन दरिंदों का मिटा दें दुनिया से नामो निशां
मुल्क में फैला रहे हैं जो भी दहशत दोस्तो l
उसको मत देना मुआफ़ी मौत देना है उसे
जिसने पुलवामा में की है नीच हरकत दोस्तो l
हम को उनकी ईंट का पत्थर से देना…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on February 18, 2019 at 7:01pm — 12 Comments
अपने वतन में बेघर का दर्द क्या जानो
जिन्होने लूटा है खसूटा उनको पहचानो
मेहनत मज़दूरी की तो जी गये बच्चे
संस्कार मिले थे बुजुर्गो से हमें भी अच्छे
लुट गये लेकिन हथियार उठाया ना कभी
वतन पे जान देने का है इरादा अब भी…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on February 18, 2019 at 6:00pm — 2 Comments
जाने हम किसके मोहताज़ हैं,
जज्बात वो कल ना रहेंगे, जो आज हैं।
इतने मशरूफ़ भी ना रहो मेरे हमदम,
इस उम्र के बड़े लंबे परवाज़ है।
नजर भर कर देखो, हसरतों की बात है,
एक पल का नहीं, उम्र भर का साथ है।
बेरुखी जहर बन जाएगी आहिस्ता-आहिस्ता,
सुनो सरगोशी से ये बात, राज की बात है।
सम्हलने के लिए इबरत ही काफी है,
अंजाम पर तो माफी तलाफ़ी है।
मर जाती है जब सारी ख्वाहिशें तो,
फिर अहसास की सांस भी ना काफी…
Added by Rahila on February 18, 2019 at 5:00pm — 4 Comments
व्यर्थ नहीं जाने देंगे हम ,वीरों की कुर्बानी को
चढ़ सीने पर चूर करेंगे,दुश्मन की मनमानी को
माफ नहीं हरगिज करना है, भीतर के गद्दारों को
बनें विभीषण वैरी हित में,बुलन्द करते नारों को ll
अन्न देश का खाने वाले, दुर्जन के गुण गाते हैं
जिस माटी में पले बढ़े हैं, उस पर बज्र गिराते हैं
छिपे हुए कुलघाती जब ये, मिट्टी में मिल जाएंगे
बचे सुधर्मी सरफरोश सब,राग वतन के गाएंगे ll
देश कुकर्मी हठधर्मी को, कर देना बोटी बोटी
उस भुजंग को कुचल मसल…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on February 18, 2019 at 12:00pm — 2 Comments
बड़ी खामोशी से वो कर रहें हैं गुफ्तगू
मगर सब सुन रहे हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!
मोहब्बत के खिलें हैं फूल जिनके दर्मियाँ
वो काँटे चुन रहे हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!
यूँ शब भर जागकर सौदाई बन तन्हाई का
गलीचा बुन रहे हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!
किये हैं ज़ब्त, वादों में जो रिश्ते प्यार के
वो रिश्ते घुन रहें हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!
वो हमसे पूंछते हैं इश्क करने की वज़ह
मोहब्बत बेवज़ह है ये उन्हें मालूम नहीं…
Added by रक्षिता सिंह on February 18, 2019 at 9:49am — 2 Comments
मुझको भारत माँ कहते थे , करते थे मेरी जयकार।
पुलवामा में बेटे मेरे , षडयंत्रों का हुए शिकार।
विकल ह्रदय जननी हूँ मैं , पुत्रों मेरी सुनो पुकार।
विकल्प एक ही है, प्रतिशोध, सत्य यही है करो स्वीकार।
कायरता के कृत्य घिघौने , छद्मयुद्ध की माया को।
चिथड़े-चिथड़े उड़ते देखा, मैंने पुत्रों की काया को।
इस छद्मयुद्ध के जख्मों में , टीस भयानक उठती है।
फ़फ़क-फ़फ़क कर रोते-रोते ही, रीस भयानक उठती है।
समय नहीं है अब केवल वक्तव्यों और…
ContinueAdded by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on February 17, 2019 at 9:00pm — 3 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२
तेरी हर शै मुझे भाए, तो क्या वो इश्क़ होगा
मुझे तू देख शरमाए, तो क्या वो इश्क़ होगा
कभी हो इश्क़ तो रुन-झुन कहीं महसूस होगी
इशारे कर के समझाए तो क्या वो इश्क़ होगा
पिए ना जो कभी झूठा, मगर मिलने पे अकसर
गटक जाए मेरी चाए, तो क्या वो इश्क़ होगा
सभी से हँस के बोले, पीठ पीछे मुंह चिढ़ाए
मेरे नज़दीक इतराए, तो क्या वो इश्क़ होगा
हज़ारों बार हाए, बाय, उनको बोलने पर
पलट के बोल दे…
ContinueAdded by दिगंबर नासवा on February 17, 2019 at 2:28pm — 7 Comments
(प्रति चरण 8+8+8+7 वर्णों की रचना)
देखा अजब तमाशा, छायी दिल में निराशा,
चार गीदड़ ले गये, मूँछ तेरी नोच के।
सोये हुए शेर तुम, भूतकाल में हो गुम,
पुरखों पे नाचते हो, नाक नीची सोच के।।
पूर्वजों ने घी था खाया, नाम तूने वो गमाया,
सूंघाने से हाथ अब, कोई नहीं फायदा।
ताव झूठे दिखलाते, गाल खूब हो बजाते,
मुँह से काम हाथ का, होने का ना कायदा।।
हाथ धरे बैठे रहो, आँख मीच सब सहो,
पानी पार सर से हो, मुँह तब फाड़ते।…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 16, 2019 at 5:00pm — 3 Comments
जिस मुल्क में ग़रीब के लब पर हँसी नहीं
तो मान कर चलें कि तरक़्क़ी हुई नहीं
**
जुम्लों के दम पे जीत की आशा न कीजिये
चलती है बार बार ये बाज़ीगरी नहीं
**
तहज़ीब क़त्ल-ओ-ख़ून की परवान चढ़ रही
लगता है आदमी रहा अब आदमी नहीं
**
उम्मीद रहगुज़र कोई मिलने की मत करें
मंज़िल के वास्ते है अगर तिश्नगी नहीं
**
चाहें…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 16, 2019 at 4:30pm — 5 Comments
9 फ़रवरी 2019
प्रिय डायरी
आज साईट पर कनक अम्मा की हालत देखकर मन भारी हो गया। तुम तो जानती ही हो, कनक अम्मा बाऊजी के समय से अपनी कम्पनी से जुड़ी है। बाऊजी को यह अन्ना दादा कहती थी। बाऊजी को तो तुमने भी देखा है, नहीँ तुम न थी उस वक़्त मेरे साथ तुम्हारी बड़ी बहन थी, मैं उससे अपनी बातें साझा किया करता था, जैसे मैं आज तुमसे करता हूँ। यह क्या मैं भटक गया... हाँ तो मैं कहाँ था। हाँ, कनक अम्मा की बात बता रहा था न मैं। आज वह रोज़ की तरह सीमेंट की तगाड़ी लेकर सीढ़ियों पर चढ़ रही थी कि वह फिसल…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 16, 2019 at 9:48am — 4 Comments
शहीदों को ख़िराजे अक़ीदत
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वो तिरंगे में लिपट गांव जब आया होगा |
तो हर इक शख़्स ने चुल्हा न जलाया होगा |
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क्या न गुज़रेगी किसी दिल पे बयाँ हो कैसे
आख़री फूल तिरे सर पे चढ़ाया होगा |
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जब गए दोस्त उसे आज सलामी देने
याद गुज़रा उसे बचपन भी फिर आया होगा |…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 15, 2019 at 1:00pm — 5 Comments
मारे पाकिस्तान ने, अपने वीर जवान। जिसकी निंदा कर रहा, सारा हिंदुस्तान।। सारा हिंदुस्तान, हुआ है हतप्रभ भारी। धरी रह गयी आज, चौकसी सभी हमारी।। हुए जवान शहीद, बयालिस आज हमारे। जन-जन की यह माँग, पाँच सौ भारत मारे।। (मौलिक व अप्रकाशित) **हरिओम श्रीवास्तव**
Added by Hariom Shrivastava on February 15, 2019 at 10:48am — 4 Comments
एक ग़ज़ल।
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बँध गई हैं एक दिन से प्रेम की अनुभूतियाँ
बिक रही रैपर लपेटे प्रेम की अनुभूतियाँ
शाश्वत से हो गई नश्वर विदेशी चाल में
भूल बैठी स्वयं को ऐसे प्रेम की अनुभूतियाँ
प्रेम पथ पर अब विकल्पों के बिना जीवन नहीं
आज मुझ से, कल किसी से, प्रेम की अनुभूतियाँ
पाप से और पुण्य से हो कर पृथक ये सोचिए
लज्जा में लिपटी हैं क्यों ये प्रेम की अनुभूतियाँ
परवरिश बंधन में हो तो दोष किसको दीजिये
कैसे पहचानेंगे…
Added by अजय गुप्ता 'अजेय on February 14, 2019 at 1:54pm — 4 Comments
(२२१ २१२१ १२२१ २१२ )
जब आपकी नज़र में वफ़ा सुर्ख़रू नहीं
दिल में हमारे इश्क़ की अब आरजू नहीं
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रुसवा किये बिना किसी को हों जुदा जुदा
गलती से प्यार को करें बे-आबरू नहीं
**
रिश्तों की सीवनों पे ज़रा ग़ौर कीजिये
उधड़ीं जो एक बार तो होतीं रफ़ू नहीं
**
उस मुल्क की अवाम के बढ़ने हैं रंज-ओ-ग़म
जिस मुल्क में मुहब्बतों की आबजू…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 14, 2019 at 2:00am — 5 Comments
121-22-121-22
नये ज़माने का खून हूँ मैं।।
पुराने स्वेटर का ऊन हूँ मैं।।
मुझे न पढ़ना न पढ़ सकोगे।
मैं अहदे उल्फ़त* जुनून हूँ मैं। time of love
अजब! सिफारिश मेरी करोगे।
अभी भी शक है कि कौन हूं मैं।।
करोगे क्या मेरे ज़ख्म सी कर।
यूँ इश्क का इक सुकून हूँ मैं।।
मकान मेरा नहीं है गुम सा।
पुराने घर से दरून* हूँ मैं।। (दिल,मध्य कोर)
के हिज्र हो या विसाल तेरा।
हूँ दोनों शय में…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on February 13, 2019 at 11:52pm — 3 Comments
2024
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