For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,998)

ग़ज़ल

२१२२,२१२२,२१२२,२१२

दिल मुहब्बत,लब ख़ुशी,चेह्रा हसीं,क्या शान है

लग रहा है मुझको तेरा नाम हिंदुस्तान है |

छत टपकती ,फर्श मिट्टी का ,मकाँ कच्चा सही

आज़मा ले तू ,बहुत पक्का मेरा ईमान है |

चाँद कल गुमसुम खड़ा था ,देख कर…

Continue

Added by Md. Anis arman on January 5, 2019 at 4:30pm — 8 Comments

ग़ज़ल: यही सवाल मेरे ज़ेह्न में उभरता है

1212,1122, 1212, 22/112

यही सवाल मेरे ज़ेह्न में उभरता है

वो ज़िंदगी के लिए कैसे रोज़ मरता है//१

चली है सर्द हवा पूस के महीने में

किसान खेत में रातों को आह भरता है//२

वो धीरे धीरे मेरे दिल मे यूँ उतर आया

कि जैसे चाँद किसी झील में उतरता है//३

अक़ीदा जोड़ के देखो किसी की उल्फ़त से

जहान सारा नई शक्ल में निखरता है//४

नया ज़माना है फ़ैशन का दौर है यारों

चमन में भौंर भी तितली सा अब सँवरता…

Continue

Added by क़मर जौनपुरी on January 5, 2019 at 1:00pm — 2 Comments

ग़ज़ल (यूँ ही धुआँ न अचानक उठा है गुलशन में)

(मफा इलुन _फ़ इ ला तुन _मफा इलुन _फ़े लुन)

यूँ ही धुआँ न अचानक उठा है गुलशन में l

लगी है आग यक़ी नन किसी नशे मन में l

मुझे है ग़म यही उन पर शबाब आते ही

मिलें न वैसे वो मिलते थे जैसे बचपन में l

न मैं सुकून से हूँ और न चैन से हो तुम

ये कैसी खींच ली दीवार हम ने आँगन में l

सितम भी ढाए तो वो मुस्कुरा के ही ढाए

यही तो ख़ास है फितरत हमारे दुश्मन में l

रखें या तोड़ दें बोलें ही सच हमेशा ये

मिले ये…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on January 5, 2019 at 1:00pm — 12 Comments

गज़ल : जाम का मौजज़ा दिखा साक़ी

2122 1212 22

ग़ज़ल

*****

जाम आंखों से अब पिला साक़ी

होश मेरे तू अब उड़ा साक़ी//१

ज़िन्दगी भर रहा हूँ मैं काफ़िर

अपना कलमा तू अब पढ़ा साक़ी//२

इल्म के बोझ से परेशां हूँ

इल्म सारे मेरे भुला साक़ी//३

रंग मेरा उतर गया अब तो

रंग अपना तू अब चढ़ा साक़ी//४

बेख़ुदी ज़ीस्त में समा जाए

जाम ऐसा कोई पिला साक़ी//५

ख़्वाब आएं तो सिर्फ तेरे हों

ख़्वाब से ख़्वाब तू मिला साक़ी//६

हो गया मैं फ़ना…

Continue

Added by क़मर जौनपुरी on January 4, 2019 at 9:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल : वो ज़हर का प्याला है, उठाना ही नहीं था

बह्र : 221   1221   1221   122

वो ज़हर का प्याला है, उठाना ही नहीं था

दुनिया की तरफ़ आपको जाना ही नहीं था

कानों में यहाँ रूई सभी बैठे हैं रख के

ऐसे में तुम्हें शोर मचाना ही नहीं था

खेतों में लहू देख के करते हो शिकायत

हथियार ज़मीनों में उगाना ही नहीं था

ये कौन जगह है कि जहाँ होश में सब हैं

हम रिन्द हैं हमको यहाँ लाना ही नहीं था

ताउम्र उसी शहर में ही भटका किया मैं

रहने को जहाँ कोई ठिकाना ही नहीं…

Continue

Added by Mahendra Kumar on January 4, 2019 at 8:00pm — 12 Comments

नए वर्ष की भोर ....

नए वर्ष की भोर  ....

क्षण

दिन, महीने

सब को बांधे

चल दिया

पुराना वर्ष

तम के गहन सागर को पार कर

दूर क्षितिज पर

नव वर्ष के गर्भ से

अंकुरित होते

सूरज की अगवानी करने



अच्छा बीता

बुरा बीता

जैसा भी बीता बीत गया

एक स्वप्न

स्वप्न रहा

एक यथार्थ जीत गया

नए वर्ष की भोर हुई

वर्ष पुराना बीत गया

जीती ख़ुशी

या दर्द जीता

जो भी जीता जीत गया

दर्द पुराना रीत गया

नए वर्ष की…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 4, 2019 at 7:49pm — 7 Comments

ग़ज़ल: लगता है इस साल सनम कटनी तन्हाई मुश्किल है  ... (१० )

( २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २ )

.

लगता है इस साल सनम कटनी तन्हाई मुश्किल है 

बीते लम्हों के सहरा से हैफ़* ! रिहाई मुश्किल है (*हाय-हाय ,अफ़सोस  )

***

ख्वाब तसव्वुर ख़त मौसम ये चाँद बहाने कितने हैं 

तेरी यादों के लश्कर से यार जुदाई मुश्किल है 

***

माना ग़म की मार पड़ी है चारों खाने चित्त हुआ 

कैसे भी हों मेरे अब हालात गदाई* मुश्किल…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 4, 2019 at 3:30pm — 7 Comments

"अज़ीम शख़्स की दास्तां"

जब वो कहता है तो वो कहता है 

रोक पाता नहीं उसे कोई , 

उसके आगे ना रंक, राजा है , 

कंठ में कोयल सा उसके वासा है ॥ 

जब भी कहता है सच ही कहता है 

जैसे बच्चा हृदय में रहता है , 

उसके…

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 4, 2019 at 1:00pm — 8 Comments

प्रिय

तेरी मीठी बातों से ही

भरता मेरा पेट प्रिय,

जिस दिन तू गुमसुम रहती है-

भूखा मैं सो जाता हूँ !!

मैखाना, ये आँखें तेरी

पीने दे मत रोक प्रिय,

जब जब ये छलका करती हैं-

और बहक मैं जाता हूँ !!

रहता हूँ तेरे दिल में मैं

बनकर तेरा दास प्रिय,

जब भी टूटा है दिल तेरा-

तब मैं बेघर हो जाता हूँ !!

मदहोश सा कुछ हो जाता हूँ

जब होती हो तुम साथ प्रिय,

छू कर निकलूँ जो लव तेरे तो-

ज़ुल्फ़ों में खो जाता हूँ…

Continue

Added by रक्षिता सिंह on January 3, 2019 at 6:41pm — 4 Comments

एक वीर, ऐसा जन्मा था

इस भारत माँ की, धरती पर,

एक वीर, ऐसा जन्मा था, सोचा था तब, किसी ने

“ऐसा” कारनामा, उसे करना था

इस भारत माँ की, धरती पर,

एक वीर, ऐसा जन्मा था ||

 

जीवन के संघर्षो से, ना उसे कभी

डरना था, रूढ़िवादी धारा को भी,

उसे, आगे जा बदलना था

इस भारत माँ की, धरती पर,

एक वीर, ऐसा जन्मा था ||

 

सती हो जाती थी, जो नारी,

सुहाग गंवाने पर, “पुर्नविवाह”,

का अधिकार, उसे दिलाना था

महिलाओं के उत्पीड़न की…

Continue

Added by PHOOL SINGH on January 3, 2019 at 4:34pm — 2 Comments

गज़ल: चले भीआओ मेरे यार दिल बुलाता है

1212, 1122, 1212,22/112

*****

चले भी आओ मेरे यार दिल बुलाता है

यूँ रूठकर भी भला अपना कोई जाता है//1

सज़ा भी दे दो मुझे अब मेरे गुनाहों की

उदास चेहरा तुम्हारा नहीं सुहाता है//२

उदास तुम जो हुए ज़िंदगी उदास हुई

कोई भी जश्न मुझे अब नहीं हंसाता है//३

तुम्हारे दम से ही हर सुब्ह मेरी ज़िंदा थी

हर एक शाम का मंज़र मुझे रुलाता है//४

नज़र फिराई जो तुमने वो एक लम्हे में

हर एक लम्हा ही ठोकर लगा के जाता…

Continue

Added by क़मर जौनपुरी on January 3, 2019 at 2:30pm — 3 Comments

ग़ज़ल... जिस रास्ते पे उनकी मन्ज़िलें नहीं

बह्र ए मीर
अब तक रहे भटकते उजड़े दयार में
अब कौन बसा आन दिले बेक़रार में

जिस रास्ते पे  उनकी मन्ज़िलें  नहीं
उस  राह में  खड़े  हैं  इन्तज़ार  में

बेकार  हर सदा है कितना पुकारता
ये कौन सो रहा है गुमसुम मज़ार में

उस फूल को ख़िज़ायें ले के कहाँ गईं
जिस फूल को चुना था लाखों हजार में

ऐ मीत इस कदर भी मत आज़मा मुझे
आ जाये न कमी 'ब्रज' के ऐतबार में
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 3, 2019 at 2:30pm — 4 Comments

ग़ज़ल: बना हूँ ज़ीस्त में मर्ज़ी से मेरी आबिर भी .......(९ )

(1212 1122 1212 22 /112 )

.

बना हूँ ज़ीस्त में मर्ज़ी से मेरी आबिर* भी (*राहगीर )

फ़क़ीर मीर कभी और कभी मुसाफ़िर भी 

*

किया शुरू'अ जहाँ से सफ़र न सोचा था

उसी जगह पे सफर होगा मेरा आखिर भी 

*

ये दौड़भाग तो पीछा कभी न छोड़ेगी 

ज़रा सा वक़्त निकालो ना ख़ुद की ख़ातिर भी 

*

किसी ग़रीब की हालत का ज़िक़्र क्या…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 3, 2019 at 10:00am — 10 Comments

ग़ज़ल: सुहानी शाम का मंज़र अजीब होता है

1212 1122 1212 22/112

.

सुहानी शाम का मंज़र अजीब होता है

भुला दिया था जिसे वो क़रीब होता है//१

वो पाक जाम मिटा दे जो प्यास सदियों की

किसी किसी के लबों को नसीब होता है//२

मिली जहाँ में जिसे भी दुआ ग़रीबों की

नहीं वो शख़्स कभी बदनसीब होता है//३

वफ़ा से दे न सका जो सिला वफ़ाओं का

वही जहान में सबसे ग़रीब होता है//४

करे मुआफ़ जो छोटी बड़ी ख़ताओं को

वही तो जीस्त में सच्चा हबीब होता है//५

क़लम की…

Continue

Added by क़मर जौनपुरी on January 3, 2019 at 7:00am — 4 Comments

ग़ज़ल

पास  रखना है भला जो।
छोड़ देेेेना दिल जला  जो।

क्या मनाये वो  खुशी को,
खुद मनाने  दिल चला जो।

रौशनी हम तब  मिली है ,
रात भर  दीया जला जो।

आम का   बन  खास  जाना,
कुछ तो अच्छा दिन ढला जो।

रोज़   कहता   मुझ  बता दे
राज़  उस  खोला  भला जो।

मौलिक व अप्रकाशित

Added by मोहन बेगोवाल on January 2, 2019 at 5:00pm — 3 Comments

रक्तसिक्त हाथ (लघुकथा)

*रक्तसिक्त हाथ* (लघुकथा)

हवालाती कैदी के रूप में तीसरा दिन। किसी से मुलाक़ात के लिए उसे भी पुकारा गया। मुलाकात कक्ष में पहुँचते ही सींखचों के पार एक मुस्कुराता चेहरा नज़र आया।

काजू कतली का डिब्बा आगे बढ़ाते हुए जिसने कहा, ''रजिस्ट्री हो गई साहब! मुँह मीठा करवाने आया हूँ।"

कुछ ही समय पहले जो बिलकुल अंजान था, वही चेहरा अहर्निशं अब उसकी आंखों और दिमाग़ में तैरता रहता है।

सत्यवीर भान का चेहरा। आज दूसरी बार इस चेहरे पर भयानक मुस्कुराहट देख पा रहा था। जिसे देखकर उसे स्मरण हो…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 2, 2019 at 9:26am — 14 Comments

कैसा होगा नया साल यह, कहना शायद मुश्किल है ......... (८ )

कैसा होगा नया साल यह, कहना शायद मुश्किल है 

मनोकामना सम्भव है पर , अच्छी हो सबकी ख़ातिर | 

***

लिखा नियति ने जो इस पर है निर्भर क्या हो अगले पल | 

कृपा बरस जाये प्रभु की या जीवन से हो जाये छल | 

लेकिन अच्छा सोचोगे तो होगा जीवन में अच्छा 

बुरा अगर सोचा तो वैसा सम्भव है हो जाये कल | 

ज्योतिष-ज्ञान सभी की ख़ातिर रखना शायद मुश्किल…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 1, 2019 at 10:00pm — 8 Comments

नववर्ष की शुभकामनाएं प्रेषित करती कविता (पञ्चचामर छंद)

नवीन वर्ष को लिए, नया प्रभात आ गया

प्रभा सुनीति की दिखी, विराट हर्ष छा गया

विचार रूढ़ त्याग के, जगी नवीन चेतना

प्रसार सौख्य का करो, रहे कहीं न वेदना।।1।।

मिटे कि अंधकार ये, मशाल प्यार की जले

न क्लेश हो न द्वेष हो, हरेक से मिलो गले

प्रबुद्ध-बुद्ध हों सभी, न हो सुषुप्त भावना

हँसी खुशी रहें सदा, यही 'सुरेन्द्र' कामना।।2।।

न लक्ष्य न्यून हो कभी, सही दिशा प्रमाण हो

न पाँव सत्य से डिगें, अधोमुखी न प्राण हो

विवेकशीलता लिए,…

Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 1, 2019 at 8:30pm — 8 Comments

एक क्षणिका :

एक क्षणिका :

कल
फिर एक कल होगा
भूख के साथ
छल होगा
आसमान होगा
फुटपाथ होगा
आस गर्भ में

बिलखता
कोई पल
विकल होगा

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on January 1, 2019 at 7:32pm — 6 Comments

नव् वर्ष

समय की होती अद्भुत चाल I गया कुछ लेकर-देकर साल II

बिछाकर पलक पांवड़े द्वार I किया हमने जिसका सत्कार II

वर्ष नव यह आया अभिराम I लिए सुन्दर सपने अविराम II

पूर्ण होंगे संभावित कार्य I कृपा बरसाएंगे सब आर्य II

सभी को शुभ हो नूतन वर्ष I सभी का मंगल, हो उत्कर्ष II

सभी के सपने हों साकार I सभी का हुलसित हो संसार II

सभी का मुखरित हो उल्लास I सभी के अधरों पर हो हास II

वर्ष भर हो जय-जय का शोर I वर्ष भर हो आँगन में रोर II

वर्ष भर उत्सव रहे वदान्य I वर्ष भर पूरित हो…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2019 at 4:56pm — 3 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"श्रवण भये चंगाराम? (लघुकथा): गंगाराम कुछ दिन से चिंतित नज़र आ रहे थे। तोताराम उनके आसपास मंडराता…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई जैफ जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद।"
12 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
15 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ेफ जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
15 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"//जिस्म जलने पर राख रह जाती है// शुक्रिया अमित जी, मुझे ये जानकारी नहीं थी। "
15 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी, आपकी टिप्पणी से सीखने को मिला। इसके लिए हार्दिक आभार। भविष्य में भी मार्ग दर्शन…"
15 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"शुक्रिया ज़ैफ़ जी, टिप्पणी में गिरह का शे'र भी डाल देंगे तो उम्मीद करता हूँ कि ग़ज़ल मान्य हो…"
15 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। आ. अमित जी की इस्लाह महत्वपूर्ण है।"
15 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. अमित, ग़ज़ल पर आपकी बेहतरीन इस्लाह व हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
15 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी, समयाभाव के चलते निदान न कर सकने का खेद है, लेकिन आदरणीय अमित जी ने बेहतर…"
15 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. ऋचा जी, ग़ज़ल पर आपकी हौसला-अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
15 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service