धीरे धीरे आओ चन्दा
धीरे धीरे आओ
होंठों पर मुस्कान सजाये
सोया है मृग छौना
आहट से तेरी टूटेगा
उसका ख्वाब सलोना
बात समझ भी जाओ चन्दा
धीरे धीरे आओ
तुम चलते हो पीछे पीछे
चलते हैं सब तारे
और तुम्हारी सुंदरता पर
इठलाते हैं सारे
तुम तो मत इतराओ चन्दा
धीरे धीरे आओ
ऐसे भी कुछ घर आँगन हैं
बसते जहाँ अँधेरे
भूख वहाँ करताल बजाये
संध्या और सबेरे
उस दर भी मुस्काओ चन्दा
धीरे…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 8, 2018 at 6:30pm — 18 Comments
उम्र के पन्नों पर....
उम्र के पन्नों पर
कितनी दास्तानें उभर आयी हैं
पुरानी शराब सी ये दास्तानें
अजब सा नशा देती हैं
हर कतरा अश्क का
दास्ताने मोहब्बत में
इक मील का पत्थर
नज़र आता है
रुकते ही
वक़्त
ज़हन को
हिज़्र का वो लम्हा
नज़्र कर जाता है
जब
किसी अफ़साने ने
मंज़िल से पहले
किसी मोड़ पर
अलविदा कह दिया
नगमें
दर्द की झील में नहाने लगे
किसी के अक्स
आँखों के समंदर
सुखाने…
Added by Sushil Sarna on June 8, 2018 at 6:24pm — 10 Comments
हाँ , हमें अभी और देखना है
टूटते शहर का मंज़र
रिश्तों में उलझी संवेदनहीनता का दंश
अपनों के बीच परायेपन का अहसास
घुट घुटकर रोज़ मरना
पीढ़ियों के अंतर की गहरी खाई में गिरना
निर्मम व्यवस्था का शिकार होना
हाँ, हमें अभी और देखना है
लालच का उफनता समुद्र
अकेलेपन के चुभते काँटें
बीमार बाप के लरजते हाथ
झुर्रियों की ख़ामोशियाँ
बेचैन माँ की प्रतीक्षा
कर्कश तरंगों का शोर
विघटन की शैतानी लकीरें
भरोसे में लालच के दैत्य
ठहरा…
Added by Mohammed Arif on June 8, 2018 at 10:00am — 14 Comments
122 122 122 122
जरूरत नहीं अब तेरी रहमतों की ।
हमें भी पता है डगर मंजिलों की ।।
है फ़ितरत हमारी बुलन्दी पे जाना ।
बहुत नींव गहरी यहाँ हौसलों की ।।
अदालत में अर्जी लगी थी हमारी ।
मग़र खो गयी इल्तिज़ा फैसलों की ।।
भटकती रहीं ख़्वाहिशें उम्र भर तक ।
दुआ कुछ रही इस तरह रहबरों की ।।
उन्हें जब हरम से मुहब्बत हुई तो ।
सदाएं बुलाती रहीं घुघरुओं की ।।
न उम्मीद रखिये वो गम बाँट लेंगे…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on June 7, 2018 at 9:45pm — 14 Comments
‘‘बिटिया की उम्र निकली जा रही है, तुम उसकी कहीं शादी क्यों नहीं करते?’’ हर कोई उससे यही सवाल करता। कल तो सुपरवाइजर ने भी टोक दिया, ‘‘कलेक्टर ढूँढ रहे हो क्या?’’
मिल में काम करने वाले उस मजदूर का सपना कोई कलेक्टर नहीं बस एक अच्छा सा लड़का था जिसे वह अपनी बेटी के लिए ढूँढ रहा था। बीमारी से बीवी के गुज़र जाने के बाद बस एक बेटी ही थी जो उसका सबकुछ थी। बीते सालों में उसने रात-दिन एक कर के कई रिश्ते देखे मगर बात कहीं बनी नहीं। आज भी वह एक ऐसी ही जगह से निराश हो कर लौटा था। ‘‘बेटी!’’…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on June 7, 2018 at 5:30pm — 16 Comments
है अँधेर नगरी चौपट का राज है.
हंसों को काला पानी, कौवों को ताज है.
आईन का मसौदा ऐसा बुना बुजन नें.
घोड़ों की दुर्गति खच्चर पे नाज है.
माज़ी के जो गुलाम हुक्काम हो गए.
शाहाना आज देखो उनके मिज़ाज है.
अंगुश्त-कशी का मुजरिम वो बादशाहे इश्क.
मुमताज जिसकी जिन्दा जमुना का ताज है.
‘हिन्दुस्तान’ कहता हरदम खरी-खरी.
लफ्जे-दलालती बस ग़ज़ल का रिवाज है.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on June 7, 2018 at 3:30pm — 5 Comments
मुद्दतों बाद जब देखा उन्हें तो,
कुछ हुआ ऐसा-
जो रखने राज थे,
उनका भी हम इज़हार कर बैठे।।
तमाम उम्र से ज़ुल्मत भरी,
आँखों में थी लेकिन-
वो होकर रूबरू,
दीदा-ए-नम बेदार कर बैठे।।
अभी तक जो किया करते थे,
बस तक्ज़ीब उल्फत को-
पशेमाँ हो गये अब,
वो जो हमसे प्यार कर बैठे ।।
मुसलसल खुद हमें ताका किये,
वो शोख नज़रों से-
जो खोले लव,
फकत एक बोस पर तकरार बैठे ।।
बेसबब तोहबतें हम पर लगाकर,
हो गये…
Added by रक्षिता सिंह on June 7, 2018 at 2:18pm — 9 Comments
अंतिम दर्शन हेतु उसके चेहरे पर रखा कपड़ा हटाते ही वहाँ खड़े लोग चौंक उठे। शव को पसीना आ रहा था और होंठ बुदबुदा रहे थे। यह देखकर अधिकतर लोग भयभीत हो भाग निकले, लेकिन परिवारजनों के साथ कुछ बहादुर लोग वहीँ रुके रहे। हालाँकि उनमें से भी किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि शव के पास जा सकें। वहाँ दो वर्दीधारी पुलिस वाले भी खड़े थे, उनमें से एक बोला, "डॉक्टर ने चेक तो ठीक किया था? फांसी के इतने वक्त के बाद भी ज़िन्दा है क्या?"
दूसरा धीमे कदमों से शव के पास गया, उसकी नाक पर अंगुली रखी और…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 6, 2018 at 6:00pm — 17 Comments
२२२२ २२२२ २२२२ २२२
पोथा पढ़ना पंडित भूले शुभ मंगल में आग लगी
जो माथे को शीतल करता उस संदल में आग लगी।१।
जहर भरा है खूब हवा में हर मौसम दमघोटू है
पंछी अब क्या घर लौटेंगे जिस जंगल में आग लगी।२।
कैसी नफरत फैल गयी है बस्ती बस्ती देखो तो
जिसकी छाँव तले सब खेले उस पीपल में आग लगी।३।
धन दौलत की यार पिपासा इच्छाओं का कत्ल करे
चढ़ते यौवन जिसकी चाहत उस आँचल में आग लगी।४।
किस्मत फूटी है हलधर की नदिया पोखर सब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 6, 2018 at 4:55pm — 19 Comments
2122 2122 212
लोग कब दिल से यहाँ बेहतर मिले ।
जब मिले तब फ़ासला रखकर मिले ।।
है अजब बस्ती अमीरों की यहां ।
हर मकाँ में लोग तो बेघर मिले ।।
तज्रिबा मुझको है सापों का बहुत ।
डस गये जो नाग सब झुककर मिले ।।
कर गए खारिज़ मेरी पहचान को ।
जो तसव्वुर में मुझे शबभर मिले ।।
मैं शराफ़त की डगर पर जब चला ।
हर कदम पर उम्र भर पत्थर मिले ।।
मौत से डरना मुनासिब है नहीं…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on June 6, 2018 at 3:38pm — 20 Comments
मफ ऊल _फाइलात_ मफाईल _फाइलुन
उलफत की गर नहीं तो अदावत की बात कर |
मेरे हबीब सिर्फ़ तू क़ुरबत की बात कर |
दीदार कर के आया हूँ मैं एक हसीन का
मुझ से न यार आज क़यामत की बात कर |
लोगों के बीच होने लगीं ख़त्म उलफतें
मज़हब के नाम पर न सियासत की बात कर |
तदबीर पर है सिर्फ नजूमी मुझे यकीं
तू देख कर लकीर न क़िस्मत की बात कर |
ईमान बेचता नहीं मैं हूँ सुखन सरा
मुझ से मेरे अज़ीज़ न दौलत की बात कर…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on June 6, 2018 at 3:30pm — 19 Comments
इन आँसुओं का कर्ज चुकाने आजा,
बिखरी हूँ मैं यूँ टूटकर उठाने आजा...
दिल से लगाके मुझको, यूँ न दूर कर तू
इक बार फिर तू मुझको सताने आजा....
अब लौट आ तू फिर से, इश्क की गली में
करके गया जो वादे निभाने आजा...
जो वेबजह है दर्मियाँ, उसको भुला दे
इक बार फिर से दिल को चुराने आजा...
सोती नहीं अब रात भर, तेरी फिकर में
इक चैन की तू नींद सुलाने आजा...
थमने लगीं साँसे मेरी, तेरे बिना अब
अरमान है तू दिल से लगाने…
Added by रक्षिता सिंह on June 6, 2018 at 12:39pm — 8 Comments
अंतर्मन में जाने कितने,
ज्वालामुखी फटे.
दूरी रही सुखों से अपनी,
दुख ही रहे सटे.
झोंपड़ियों में बुलडोजर के,
जब-तब घाव सहे.
अरमानों की जली चिताएँ,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 6, 2018 at 9:29am — 9 Comments
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
बहुत दिनों था मुन्तज़िर फिर इन्तिज़ार जल गया।
मेरे तवील हिज्र में विसाल-ए-यार जल गया।
मेरी शिकस्त की ख़बर नफ़स नफ़स में रच गई,
था जिसमें ज़िक्र फ़तह का वो इश्तेहार जल गया।
मैं इंतिख़ाब-ए-शमअ में ज़रा सा मुख़्तलिफ़ सा हूँ,
मेरे ज़रा से नुक़्स से मेरा दयार जल गया।
मुझे ये पैकर-ए-शरर दिया था कैसे चाक ने,
मुझे तो सोज़ ही मिला मेरा कुम्हार जल गया।
पनाह दी थी जिसने कितने रहरवों को…
ContinueAdded by रोहिताश्व मिश्रा on June 5, 2018 at 1:00pm — 10 Comments
जूठन - लघुकथा –
रघुबीर लगभग चालीस का होने जा रहा था पर अभी तक कुँआरा था। इकलौता बेटा था इसलिये माँ को शादी की बहुत चिंता रहती थी। बाप दो साल पहले मर चुका था| माँ अपने स्तर पर बहुत कोशिश कर चुकी थी लेकिन बेटे की छोटी सी नौकरी के कारण बात नहीं बनती थी।
उसकी पड़ोसन ने बताया कि आज अपनी जाति वालों का सामूहिक विवाह सम्मेलन हो रहा है, अतः बेटे को बुला लो,शायद बात बन जाये।
माँ बेटा समय पर तैयार होकर सम्मेलन में शामिल हो गये। रघुबीर देखने में गोरा चिट्टा स्मार्ट बंदा था। इसलिये…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 5, 2018 at 11:33am — 22 Comments
मैं इस देश का नेता हूँ, आपसे कुछ ना लेता हूं।
ख्वाब चाँद के दिखलाता हूँ, विभु स्वप्न भेंट कर देता हूं
मैं इस देश का नेता हूँ, आपसे कुछ ना लेता हूं।
पंचवर्ष सेवा में रहकर, सौ वर्ष के ख्वाब दिखाता हूँ
मैं इस देश का नेता हूँ, आपसे कुछ ना लेता हूं।…
Added by Rohit Dubey "योद्धा " on June 5, 2018 at 11:00am — 4 Comments
2122 2122 2122 212
मुद्दतों के बाद उल्फ़त में इज़ाफ़त सी लगी
। आज फिर उसकी अदा मुझको इनायत सी लगी ।।
हुस्न में बसता है रब यह बात राहत सी लगी ।
आप पर ठहरी नज़र कुछ तो इबादत सी लगी ।।
क़त्ल का तंजीम से जारी हुआ फ़तवा मगर
। हौसलों से जिंदगी अब तक सलामत सी लगी ।।
बारहा लिखता रहा जो ख़त में सारी तुहमतें ।
उम्र भर की आशिक़ी उसको शिक़ायत सी लगी ।।
मुस्कुरा कर और फिर परदे में जाना आपका ।
बस यही हरकत…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on June 4, 2018 at 11:03pm — 8 Comments
क्या बरखा जब कृषि सुखानी।
ना जाने कब धरती हिल जानी।।
सूख न जाए आंखों का पानी।,
सपने हो गए अच्छे दिन,
याद आ रही नानी.
अबहूँ न आए, कब आएंगे
या करते प्रतीक्षा खप जाएँगे?
इन्तजार करते करते, हो गई कितनी देर
कब आएँगे पता नहीं, कैसे दिनन के फेर?
रामराज सपना हुआ, वादे अभी हैं बाकी
कह अमृत अब पानी भी, नहीं पिलावे साकी!
अब तक तो रखी सब ने, इस सिक्के की टेक
चलनी जितनी चली चवन्नी, फेंक…
ContinueAdded by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on June 4, 2018 at 5:00pm — No Comments
जल्दी चलो माँ,जल्दी चलो बावा,
देर होती हैं,चलो ना,बुआ-चाचा,
बन ठनकर हंसते-मुस्कराते जाते,
परीक्षा फल सुनने को अकुलाते,
मैदान में परिजन संग बच्चों का तांता कतार बद्ध थे,
विराजमान शिक्षकों के माथे पर बल पड़े हुए थे,…
ContinueAdded by babitagupta on June 3, 2018 at 7:33pm — 5 Comments
कलावती से आज मैं पहली बार अकेले नेहरु पार्क में मिल रहा था |इससे पहले उससे विज्ञान मेले में मिला था |वहीं पर उससे मुलकात हुई थी |उसका माडल मेरे माडल के साथ ही था |वह हमेशा खोई-खोई और उदास लगती थी |मैंने ही उससे बात शुरू की और पत्नी द्वारा बनाया गया टिफ़िन शेयर किया |लाख कोशिशों के बाद वह ज़्यादा नहीं खुली पर बात-बात में पता चला की वह अपने पति से अलग अपने बेटे को लेकर मायके में रहती है |उसकी नौकरी पक्की नहीं है और वह अपने और बेटे के भविष्य को लेकर काफ़ी परेशान है |विज्ञान मेले के आखिरी दिन मैंने…
ContinueAdded by somesh kumar on June 3, 2018 at 5:30pm — No Comments
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