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क्या सबब था...संतोष

अरकान फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

क्या सबब था,किसलिये दुनिया से मैं डरता रहा

सर झुका कर जिसने जो भी कह दिया करता रहा



सी दिया था मेरे होटों को ज़माने ने मगर

ज़िक्र सुब्ह-ओ-शाम तेरा फिर भी मैं करता रहा



ज़िन्दगी के रास्ते में ज़ख़्म जो मुझको मिले

चुपके चुपके प्यार के मरहम से वो भरता रहा



जाते जाते वो मुझे कह कर गये थे इसलिये

लम्हा लम्हा ज़िन्दगी जीता रहा मरता रहा



सादगी की मैंने ये क़ीमत चुकाई उम्र…

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Added by santosh khirwadkar on June 3, 2018 at 4:34pm — 12 Comments

अधूरी जिंदगी(लघु कथा)

कुछ लोग दार जी के पास चुपचाप बैठे,अफ़सोस जता रहे थे। छोटी बहू हर आने वाले को चाय पानी प्रदान कर रही थी। इस मोहल्ले में दार जी ही पुराने रहने वाले हैं,बाकी लोग यहाँ दंगों के बाद आ कर अस्थाई तौर से रह रहे हैं। मगर मानवता के रिश्ते से अब ये लोग यहाँ आ कर बैठे हैं।

"बाऊ जी अब कैसा महसूस कर रहे हो" राम प्रकाश ने पास बैठते हुए कहा।

“किस के बारे”, दार जी ने कहा।…

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Added by Mohan Begowal on June 3, 2018 at 12:00am — 4 Comments

एलियंस /लघुकथा

पहाड़ की चोटी पर बैठा हुआ वह युवक अभी भी एंटीने से जूझ रहा था।

आज से कई साल पहले जब गाँव का सबसे ज़्यादा पढ़ा-लिखा युवक शहर से पहली बार टीवी लेकर आया था तो सब लोग बेहद ख़ुश थे। नारियल, अगरबत्ती और फूल-माला से स्वागत किया था सबने उसका। मगर जल्द ही, ‘‘ये टीवी ख़राब है क्या? इसमें हमारी ख़बर तो आती ही नहीं।’’ बुज़ुर्ग की बात से उस युवक के साथ-साथ बाकी गाँव वालों का भी माथा ठनका। ‘‘अरे हाँ! इसमें तो सिर्फ़ शहरों की ही ख़बरें आती हैं, गाँव का तो कहीं कोई नाम ही नहीं।’’ सबने तय किया कि शहर…

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Added by Mahendra Kumar on June 2, 2018 at 6:00pm — 6 Comments

एक गजल- अगर रात है रात कहूँगा

चाहत की परवाज अलग है

उसका हर अंदाज अलग है

ताजमहल की क्या है’ जरूरत  

अपनी ये मुमताज अलग है

 

सुन पाते हैं केवल हम ही

अपने दिल का साज अलग है

 

मन की बातें मन में…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on June 2, 2018 at 4:00pm — 9 Comments

अँधेरे का डर (लघुकथा )



जब भी सुरेन्द्र बात करता हौसला उसकी बातों से अकसर झलकता, काम करवाने के लिए जब भी कोई उसके दफ्तर में आता उसी का हो कर रह जाता |

मुश्किल पलों में भी वह मजाक को साथ नहीं छोड़ने देता, और जिन्दगी का हिस्सा बना लिया |

जब सुरेन्द्र सफर में होता तो ऐसा कभी न होता कि सफर करते हुए कोई आकह्त महसूस होती हो उसे, वह तो साथ बैठे से ऐसी बात शुरू करता कि सफर खत्म होने तक वह  शख्स उसी का हो जाता |

मगर आज ऐसा नहीं था, बस उस के लिए अनजान सफर में जा रही थी, जिस पर वह सवार था |

जो कुछ…

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Added by Mohan Begowal on June 1, 2018 at 8:00pm — 2 Comments

अम्बर को पाती भिजवाई -एक गीत

अम्बर को पाती भिजवाई,

व्याकुल होकर धरती ने.

 

सभी जरूरी संसाधन दे,

नर को जीना सिखलाया.

मर्यादा का पालन लेकिन,

कभी कहाँ वह कर पाया.

 

अपने मन की बात बताई,…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on June 1, 2018 at 4:01pm — 14 Comments

आख़िर कब तक?

श्री लता को अचानक ऑय सी यू में भर्ती कराने की ख़बर सुन रानी अपने दफ़्तर से निकल, आनन् फ़ानन में कुछ इस तरह गाड़ी चलाते हुए अस्पताल की तरफ लपकी, जैसे वो अपनी बहन को आखिरी बार देखने जा रही हो। श्री लता कमरा नंबर १० जो की ऑय सी यू वार्ड था में भर्ती थी। दर और घबराहट के साथ रीना रिसेप्शन पर पहुंची और पहुँचते ही उसने डॉक्टर की सुध ली।

मैडम, डॉक्टर साहेब तो जा चुके हैं, आप कल आइएगा। 

ये सुनना था कि रानी का कलेजा मुँह को आ गया। मेरी बहन अभी कुछ समय पहले ही ऑय सी यू में भर्ती हुई है, श्री…

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Added by Usha on June 1, 2018 at 9:34am — 8 Comments

ग़ज़ल

2122 1212 22

यूँ    दुपट्टा    बहुत    उड़ा   कोई ।

जाने   कैसी   चली   हवा   कोई ।।

उम्र  भर  हुस्न  की सियासत से ।

बे   मुरव्वत   छला  गया   कोई ।।

याद उसकी चुभा  गयी  नस्तर ।

दर्द   से   रात भर  जगा  कोई।।

ख़्वाहिशें इस क़दर थीं बेक़ाबू ।

फिर  नज़र  से उतर  गया  कोई ।।

वो सँवर कर गली से निकला है ।…

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Added by Naveen Mani Tripathi on May 31, 2018 at 8:20pm — 4 Comments

गुंजन या हुंकार (लघुकथा)

... और अब वे वहां भी पहुंच गये! भव्य आदर-सत्कार के बाद उन्हें उनकी पसंद की जगह पहुंचाने पर एक वरिष्ठ मेजबान ने कहा - "सुना है ... टीवी पर देखा भी है कि जिस मुल्क में आप जाते हैं, कोई न कोई वाद्य-यंत्र ज़रूर बजाते हैंं!"



"क्या कहा? कौन सा तंत्र?"



"लोकतंत्र नहीं कहा मैंने! वाद्ययंत्र कहा .. वा..द्ययंत्र!"



"हे हे हे! दोनों अय..कही.. बात हय! यंत्र में मंत्र और तंत्र हय! वाद्ययंत्र कह लो या लोकतंत्र; बजाने में ग़ज़ब की अनुभूति होती है, हे हे हे! बताइए इसे भी बजा…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 31, 2018 at 6:06pm — 4 Comments

ग़ज़ल -- ख़ुशी का पल तो मयस्सर नहीं, हैं दर्द हज़ार / दिनेश कुमार

1212--1122--1212--112

.

ख़ुशी का पल तो मयस्सर नहीं, हैं दर्द हज़ार

हमारे हिस्से में क्यों है बस इंतिज़ारे-बहार

.

कि रफ़्ता रफ़्ता थकावट बदन में आएगी

उतर ही जाएगा आख़िर में ज़िन्दगी का ख़ुमार

.

मिलेगी आख़िरी ख़ाने में मौत ही सबको

बिसाते-दह्र पे पैदल हो या हो फिर वो सवार

.

इधर जनाज़ा किसी का बस उठने वाला है

उधर दुल्हन की चले पालकी उठाए कहार

.

ग़मों की धूप भी हमको सुखों की छाँव लगे

हमारा नाम भी कर लो कलन्दरों में…

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Added by दिनेश कुमार on May 30, 2018 at 6:00pm — 5 Comments

नई सदी के बहुरुपिये कार्टून (लघुकथा)

"अबे, कहां जा रहा है?"

"कामिक्स वाले कार्टून नेता आये हैं स्टेडियम वाले ग्राउण्ड पर; तू भी चल मज़ा आयेगा उनकी एक्टिंग देख कर!"

"खाना खा लिया कि नहीं?"

"अम्मा को जो भीख में या प्रसाद में मिलेगा, बाद में खालूंगा!"

"आज फिर स्कूल नहीं गया, आज तो तेरी अम्मा से शिक़ायत कर ही दूंगा!"

"अम्मा कुछ न कहेगी!  आज मैंने कल से ज़्यादा मजूरी कमा ली है!"

नौ साल का बच्चा यह कहता हुआ तेज़ क़दमों से स्टेडियम मैदान में घुस गया।

(मौलिक व…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 29, 2018 at 7:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल(2122 1212 22)

जो तेरे आस पास बिखरे हैं।।

वो मेरे दिल के सूखे पत्ते हैं।।

काग़ज़ी फूल थे मगर जानम।।

तेरे आने से महके महके हैं।।

याद आती है उनकी जब यारों।

मुझमे मुझसे ही बात करते हैं।।

बदली किस्मत ज़रा सी क्या उनकी।।

वो ज़मीं से हवा में उड़ते है।।

जिनके ईमान ओ अना हैं गिरवी।।

वो भी इज़्ज़त की बात करते है।।

'राम' बच के रहा करो इनसे।

ये जो कातिल हसीन चेहरे है।।

मौलिक/अप्रकाशित

राम शिरोमणि…

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Added by ram shiromani pathak on May 29, 2018 at 11:48am — 8 Comments

नन्हीं चींटी

 नन्हीं चींटी

श्रमजीवी नन्हीं चींटी को 

दीवारों पर चढ़ते देखा

रेखाओं सी तरल सरल को

बाधाओं से लड़ते देखा ll

श्रमित न होती भ्रमित न होती

आशाओं की लड़ी पिरोती

कभी फिसलती कभी लुढ़कती

गिर गिर कर पग आगे रखती ll

सहोत्साह नित प्रणत भाव से

दुर्धर पथ पर बढ़ते देखा ll

मन में नहीं हार का भय है

साहस धैर्य भरा निर्णय है

लाख गमों को दरकिनार कर

एक लक्ष्य जाना है ऊपर…

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Added by डॉ छोटेलाल सिंह on May 29, 2018 at 8:51am — 6 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : धनवान (गणेश जी बाग़ी)

नर्स अनिता उदास होकर अपनी सहकर्मी से बोली, "आज का दिन ही खराब है, बेड नंबर चार को भी लड़की हुई है । याद है जो सुबह में बेटी पैदा हुई थी ?"

"कौन ! वही क्या, जो लोग बड़ी गाड़ी से आये थे"

"हाँ रि वही, बख्शीस माँगा, तो कुछ दिया भी नही और गुस्से से बोला कि एक तो बेटी हुई है और तुम्हे बख्शीस की पड़ी है"

खैर ....

"मालती देवी के घर से कौन है ?"

"जी बहन जी, मैं हूँ, बताइए न, मालती कैसी है और ...."

रघुआ घबराते हुए बोला ।

जी, आपके घर लक्ष्मी आयी है ।

रघुआ खुशी से झूम उठा और…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 28, 2018 at 8:27pm — 10 Comments

आ नहीं पाऊँगा

आ नहीं पाऊँगा फ़ोन काटकर राजबीर कुर्सी पर बैठ गया |हालाँकि समय ऐसा नहीं था की वो बैठे |घर में ढेरों काम बाकी थे और वक्त बहुत कम |मामा जी अभी-अभी कानपुर से आए हैं |ताऊ दो घंटे में पहुँच जाएँगे |मौसी कल ही दीपक के साथ आ चुकी हैं |सभी लोगों के नाश्ते का प्रबंध करना है और हलवाई का अता-पता नहीं है |

रिश्तेदारों के लिए शहर नया है और पड़ोसियों से कोई उम्मीद बेकार |कुल मिलाकर अमित ही था जो उसकी मदद कर सकता था पर अब !

“फ़िक्र ना कर मैं और तेरी भाभी एक रोज़ पहले पहुँच जाएँगे और तेरी…

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Added by somesh kumar on May 28, 2018 at 5:41pm — 2 Comments

क्षण क्या हैं?????? [कविता]

क्षण क्या हैं??????

एक बार पलक झपकने भर का समय....

पल-प्रति-पल घटते क्षण में,

क्षणिक पल अद्वितीय,अद्भुत,बेशुमार होते,

स्मृति बन जेहन में उभर आये,वो बीते पल,

बचपन का गलियारा,बेसिर - पैर भागते जाते थे,…

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Added by babitagupta on May 28, 2018 at 4:17pm — No Comments

ग़ज़ल

2121 2122 2122 212

आंसुओं के साथ कोई हादसा दे जाएगा ।

वह हमें भी हिज़्र का इक सिलसिला दे जाएगा ।



जिस शज़र को हमने सींचा था लहू की बूँद से ।

क्या खबर थी वो हमें ही फ़ासला दे जाएगा ।।

बेवफाई ,तुहमतें , इल्जाम कुछ शिकवे गिले ।

और उसके पास क्या है जो नया दे जाएगा ।।

क्या सितम वो कर गया मत बेवफा से पूछिए ।

वो बड़ी ही शान से मेरी ख़ता दे जाएगा ।।

फुरसतों में जी रहा है आजकल…

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Added by Naveen Mani Tripathi on May 28, 2018 at 2:00pm — 3 Comments

मरज़ जुदाई का (अतुकांत)

जुदाई है महरुमी-ए-मरज़ क्या, जुदाई कहे क्या

हो ज़िन्दगी में खुशी का मौसम या मातम इन्तिहा

कर देती है दिल को बेहाल हर हाल में यह

रातें मेरी हैं बार-ए-गुनाह अब जुदाई में तेरी

किस्सा: है  कुश्त-ए-ग़म, यह तसव्वुर है कैसा

कहीं आकर पास  दबे पाँव न लौट जाओ तुम

नींद तो क्या यह रातें अंगड़ाई तक हैं लेती नहीं

अंजाम के दिन बुला कर आख़िर में पूछेगा जो

आलम अफ़्रोज़ खुदा उसूलन पास बुला कर मुझे

यूँ मायूस हो क्यूँ? मलाल है? आरिज़: है…

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Added by vijay nikore on May 28, 2018 at 1:30pm — 10 Comments

पार्टियां चलती रहीं (लघुकथा)

"पलट! तेरा ध्यान किधर है? शराब, कबाब और हैदराबादी बिरयानी इधर है!" अपनी उपलब्धियों का जश्न मनाती पार्टी की दी हुई पार्टी में सदस्यों में से एक ने टीवी देख रहे दूसरे साथी से कहा।



"जुमले कैच कर रहा होगा, जुमलेदार भाषण या कथा रचने के लिए!" दूसरा बोला।



"कथा, कविता कह ले या भाषण, लघुकथा! किसी पर तेरी कलम कोई कमाल नहीं कर पायेगी! सभी मतदाता सम्मोहित कर लिये गए हैं अपनी लहर में, ख़ास तौर से महिलायें और स्टूडेंट्स!" कुछ पैग नमकीन के बाद हलक में गुटकने के बाद पहला झूमते हुए…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 27, 2018 at 6:02pm — 4 Comments

मेरी आँखों में कभी अक्स ये अपना देखो

मेरी आँखों में कभी अक्स ये अपना देखो

इस बहाने ही सही प्यार का सहरा देखो

बेखबर गुल के लवों को छुआ ज्यों भँवरे ने

ले के अंगड़ाई कहा गुल ने ये पहरा देखो

वो नजाकत से मिले फिर उतर गये दिल में

अब कहे दिल की सदा हुस्न का जलवा देखो

मौला पंडित की लकीरों पे यहाँ सब चलते

तुम लकीरों से हटे हो तो ये फतवा देखो

वो भिखारी का भेष धरके बनेगा मालिक

अब सियासत में यूं ही रोज तमाशा देखो

साइकिल हाथ के हाथी के हैं जलवे देखे

अब कमल खिलने…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on May 27, 2018 at 5:30pm — No Comments

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