कुछ क्षणिकाएं :
शर्मिन्दा हो गई
कुर्सी
बैठ गया
एक
नंगा इंसान
चुनावी साल में
वादों की गठरी लिए
.....................
शरमा गया
इंद्रधनुष
देखकर
धरा पर
इतनी
सफेदपोश
गिरगिटों को
..........................
सफ़ेद भिखारी
मांग रहे
भीख
छोटे भिखारी से
दिखा के
आश्वासनों की
चुपड़ी रोटी
.......................
आ गया
फिर से सावन
टरटराने लगे हैं…
Added by Sushil Sarna on June 13, 2018 at 6:46pm — 5 Comments
‘‘फ़ायर!’’ जनरल के कहते ही सैकड़ों बन्दूकें गरजने लगीं। उस जंगल में आदिवासी चारों तरफ़ से घिर चुके थे। उनकी लाशें ऐसे गिर रही थीं जैसे ताश के पत्ते। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या जवान, कोई भी ऐसा नहीं नहीं था जो बच सका हो। कुछ ने पेड़ों के पीछे छिपने की कोशिश की तो कुछ ने पोखर के अन्दर मगर बचा कोई भी नहीं। देखते ही देखते हरा-भरा जंगल लाल हो गया।
‘‘आगे बढ़ो!’’ जनरल ने आदेश दिया। सेना लाशों के बीच से होते हुए जंगल के भीतर बढ़ने लगी। वहाँ कोई भी ज़िन्दा नज़र नहीं आ रहा था सिवाय उस छोटी सी…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on June 13, 2018 at 12:00pm — 13 Comments
(मफऊल _ फाइलात _ मफाईल _फाइलुन)
तक़दीर आज़माने की ज़हमत न कीजिए |
उस बे वफ़ा को पाने की हसरत न कीजिए |
बढ़ने लगी हैं नफरतें लोगों के दरमियाँ
मज़हब की आड़ ले के सियासत न कीजिए |
जलवे किसी हसीन के आया हूँ देख कर
महफ़िल में आज ज़िक्रे कियामत न कीजिए |
आवाज़ तो उठाइए हक़ के लिए मगर
इसके लिए वतन में बग़ावत न कीजिए |
बैठा है चोट खाके हसीनों से दिल पे वो
जो कह रहा था मुझ से मुहब्बत न कीजिए…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on June 12, 2018 at 10:30pm — 19 Comments
जिन्दगी थोड़ा ठहर जाओ
जरा धीरे चलो
तेज इस रफ्तार से
घात से प्रतिघात से
वक्त रहते , सम्भल जाओ
जरा धीरे चलो
जिन्दगी - - - -
कामना के ज्वार में
मान के अधिभार में
डूबने से बच , उबर जाओ
जरा धीरे चलो
जिन्दगी - - - -
शब्दाडम्बरों के
उत्तरों प्रत्युत्तरों के
जाल से बच कर , निकल जाओ
जरा धीरे चलो
जिन्दगी - - - -
(मौलिक एवम अप्रकाशित)
Added by Usha Awasthi on June 12, 2018 at 10:27pm — 11 Comments
मापनी - 2122 2122 2122
आपसे इतनी मुहब्बत हो गई है
लोग कहते हैं कि आफत हो गई है
नींद मेरी हो न पायी थी मुकम्मल
फिर कोई मीठी शरारत हो गई है
ढूँढता है रोज मिलने का बहाना…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 12, 2018 at 5:00pm — 20 Comments
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन
हूँ बहुत हैरान पिछले कुछ दिनों से
ज़ीस्त है हलकान पिछले कुछ दिनों से
चाँद भी है आजकल कुछ खोया खोया
रातें हैं वीरान पिछले कुछ दिनों से
आदमी हूँ आदमी के काम आऊँ
है यही अरमान पिछले कुछ दिनों से
कौड़ियों के भाव बिकती हैं अनाएं
मर गया ईमान पिछले कुछ दिनों से
जोश में है भीड़ 'ब्रज' आक्रोश भी है
बस नहीं है जान पिछले कुछ दिनों से
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 12, 2018 at 5:00pm — 13 Comments
विदेश से लौटे मांगीलाल की मांग पर चांदनी रौशनी में खुली हवा में उन्हें गांव की सड़क पर सैर कराई गई बैलगाड़ी में एक लालटेन लटका कर, जो उनके छात्र जीवन की निशानी थी। बैलगाड़ी चालक बब्बा जी अतीत की बातें सुनाकर छात्र रूपी मांगीलाल की तारीफ़ों के पुल बांधते हुए उनके दिलचस्प सवालों के जवाब देते जा रहे थे।
"बड़ा मज़ा आया बेलगाड़ी में घूम कर!" सिगरेट का कश लेते हुए गांव की कुछ अल्हड़ नवयौवनाओं को घूरते हुए मांगीलाल ने अपनी अगली मांग इशारों में ज़ाहिर कर दी!
"बब्बा ज़रा लालटेन उस तरफ़…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 12, 2018 at 2:00am — 5 Comments
रोशनी का कोई सुराख़ न सही
बेरुखी ही प्यार का अंदाज़ सही
कोई गिला नहीं कोई शिकवा नहीं
यह माना कि जिगर में तुम्हारे
कोई तीखी ख़राश है आज
तल्खी है, कसक है बहुत
है कशमकश भी बेशुमार
इस पर भी परीशां न हो
खालीपन को तुम
बहरहाल खाली न समझो
आएँगे लम्हें जब कलम से तुम्हारी
अश्कों के मोती गिर-गिर कर
किसी गज़ल के अश’आर बनेंगे
तब तरन्नुम से पढ़ना उनको
लाज़िमी है…
ContinueAdded by vijay nikore on June 12, 2018 at 1:30am — 20 Comments
2122 1212 22/112/211
कुछ नहीं सूझता कई दिन से
जाने क्या हो रहा कई दिन से?
है अलग ये जुबाँ निगाहें अलग
क्यों नहीं राबता कई दिन से।
हो लबों पे हँसी भले कितनी
मन रहा डगमगा कई दिन से।
जल रहा दिल कोई सही में कहीं
गर्म लगती हवा कई दिन से।
खुद पे खुद का नहीं रहा काबू
यूँ चढ़ा है नशा, कई दिन से।
मौलिक अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on June 11, 2018 at 11:00pm — 13 Comments
और प्रधानमंत्री जी गायब हो गये। ‘‘क्या? प्रधानमंत्री जी गायब हो गये? यह कैसे हो सकता है?’’ हर किसी के जे़हन में यही सवाल था।
उस दिन जब रसोई में प्रधानमंत्री जी बच्चों के लिए पापड़ तल रहे थे तो पापड़ तलते-तलते न जाने कहाँ अचानक गायब हो गये। जैसे ही यह ख़बर न्यूज़ चैनल्स पर फ़्लैश हुई तो सारा देश सकते में आ गया।
‘‘हम लोग जी जान से लगे हैं और बहुत जल्द ही प्रधानमंत्री जी का पता लगा लेंगे। आप लोग निश्चिन्त रहिए।’’ जाँच समिति के प्रमुख ने देश को आश्वस्त करते हुए…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on June 11, 2018 at 6:30pm — 4 Comments
1222 1222 1222 1222
शिकायत है बहुत खुद से कि मैं क्यों कर नहीं जाता
मुझे जिससे मुहब्बत है, उसी के घर नहीं जाता
अगर मिलना है’ उससे तो, तुम्हें जाना पड़ेगा खुद
चला करता है दरिया ही, कहीं सागर नहीं जाता
मधुर…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 11, 2018 at 3:30pm — 11 Comments
बड़े ही तैश में आकर'
उसने मेरे खत लौटा दिये...
वो अँगूठी !
वो अँगूठी भी उतार फेंकी-
जिसे आजीवन,
पास रखने का वादा किया था उसने!
कभी ईश्वर को साक्षी मानकर-
एक काला धागा,
पहनाया था उसने मुझे-
"अब तुम मेरी हो चुकी हो "
फिर ये कहकर,
बाहों मे भर लिया था...
आज,फर्श पर कुछ मोती-
औंधे पड़े हैं....
उस काले धागे के साथ !
एक तस्वीर थी जो,
साथ में -
आज उसे भी,
माँग बैठा था…
Added by रक्षिता सिंह on June 11, 2018 at 7:45am — 12 Comments
बहुत बेचैन वो पाये गए हैं ।
जिन्हें कुछ ख्वाब दिखलाये गये हैं ।।
यकीं सरकार पर जिसने किया था ।
वही मक़तल में अब लाये गए हैं।।
चुनावों का अजब मौसम है यारों ।
ख़ज़ाने फिर से खुलवाए गए हैं ।।
करप्शन पर नहीं ऊँगली उठाना ।
बहुत से लोग लोग उठवाए गये हैं ।।
तरक्की गांव में सड़कों पे देखी ।
फ़क़त गड्ढ़े ही भरवाए गये हैं ।।
पकौड़े बेच लेंगे खूब आलिम ।
नये व्यापार सिखलाये…
Added by Naveen Mani Tripathi on June 10, 2018 at 11:04pm — 13 Comments
कोई शिकवा गिला नहीं होता ।
तू अगर बावफ़ा नहीं होता ।।
रंग तुम भी बदल लिए होते ।
तो ज़माना ख़फ़ा नहीं होता ।।
आजमाकर तू देख ले उसको ।
हर कोई रहनुमा नहीं होता ।।
जिंदगी जश्न मान लेता तो ।
कोई लम्हा बुरा नहीं होता ।।
कुछ तो गफ़लत हुई है फिर तुझ से।
दूर इतना खुदा नहीं होता ।।
देख तुझको मिला सुकूँ मुझको ।
कैसे कह दूं नफ़ा नहीं होता ।।
दिल जलाने की बात छुप जाती ।
गर धुंआ कुछ उठा नहीं होता ।।
गर इशारा ही आप कर देते ।
मैं कसम…
Added by Naveen Mani Tripathi on June 10, 2018 at 2:15pm — 11 Comments
अकुलायी थाहें
कटी-पिटी काली-स्याह आधी रात
पिघल रहा है मोमबती से मोम
काँपती लौ-सा अकुलाता
कमरे में कैद प्रकाश
आँखों में चिन्ता की छाया
ऐसे में समाए हैं मुझमें
हमारे कितने सूर्योदय
कितने ही सूर्यास्त
और उनमें मेरे प्रति
आत्मीयता की उष्मा में
आँसुओं से डबडबाई तेरी आँखें
तैर-तैर आती है रुँधे हुए विवरों में
तेरी-मेरी-अपनी वह आख़री शाम
पास होते हुए भी मुख पर…
ContinueAdded by vijay nikore on June 10, 2018 at 12:13pm — 18 Comments
"स्कूल में दीदी की तरह मुझे भी मेरी मम्मी और टीचर ने सिखाया था कि कब क्या करना है और कब क्या नहीं? लेकिन मम्मी की तरह शायद दीदी भी न बच पायी!" मौक़ा पाते ही पीछे के छोटे से खपरैल वाले कमरे में लालटेन की रौशनी में अपनी आंसुओं को पीती सी हुई उसने बड़ी हिम्मत के साथ आगे लिखा -"मम्मी पर तो पूरे परिवार की ज़िम्मेदारियाँ हैं, सो वह साहब की सब सहती रही, पैसों की जुगाड़ करती रही! लेकिन जब मेरी दीदी ने साहब के 'बेड-टच' की शिक़ायत मम्मी से की, तो यही जवाब मिला था कि "किसी से कुछ मत कहना, अब तो वैसा भी आम…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on June 10, 2018 at 10:44am — 5 Comments
बिजली – लघुकथा -
"गुड्डो बेटा, क्यों इस लालटेन की रोशनी में आँखें फ़ोड़ रही है। थोड़ा इंतज़ार करले, बिजली का"।
गुड्डो के कुछ बोलने से पहले ही उसकी माँ बोल पड़ी," तुम्हारी बिजली ना आज आयेगी ना कल। छोरी को लालटेन से ही पढ़ने दो"।
"अरे भाग्यवान, मैं तो इसके भले की बात कर रहा हूँ। लड़की जात है। चश्मा लग गया तो शादी में भी अड़चन पड़ेगी"।
"कुछ ना होता।बबली इसी लालटेन से पढ़कर डाक्टर बन गयी और आँखें भी सही सलामत हैं।इस बिजली के भरोसे कब तक बैठे रहो"।
"आज पंचायत में विधायक…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 9, 2018 at 10:33pm — 14 Comments
है अगर कोई मुसीबत,
हम तुम्हारे साथ हैं।
है अगर कोई फजीहत, हम तुम्हारे साथ हैं॥
गूँजती हैं तूतियाँ,
नक़्क़ारखानों में मगर।
शहनाईओं की हो ज़रूरत, हम तुम्हारे साथ हैं॥
पाँव में छाले लिए वह
दूर से आया बहुत।
उठ उसे देदो नसीहत, हम तुम्हारे साथ हैं॥
आँधी औ तूफान से वह
रुक न पाएगा कभी।
संघर्ष ने की थी वसीयत, हम तुम्हारे साथ हैं॥
लौट कर आई…
ContinueAdded by SudhenduOjha on June 9, 2018 at 9:00pm — No Comments
1212 1212 1212 12
बहक गया अगर समां ख़ुदा न ख़्वास्ता
बिखर गया अगर जहाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
चिराग़ हम लिये खड़े यही तो सोचकर
भटक गया जो कारवाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
उठाना मत सनम निकाब मुझको देखकर
मचल उठा जो दिल जवां ख़ुदा न ख़्वास्ता
पता चमन का तुम उसे न देना दोस्तों
इधर मुड़ी अगर खिजाँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
किया क्या इंतज़ाम आग को बुझाने का
अगर उठा कहीं धुआँ ख़ुदा न ख़्वास्ता
उड़ी हुई मेरी है नींद इस ख़याल से
बढ़ी जो…
Added by rajesh kumari on June 9, 2018 at 12:42pm — 22 Comments
2122 1122 1122 22
तम की रातों में कहीं दूर उजाला देखो
डूबती नाव को तिनके का सहारा देखो।१।
दिन जो तपता हो तो रोओ न उसे तुम ऐसे
धूप कोमल सी हो जिसमें वो सवेरा देखो।२।
कहने वालों ने कहा है कि ये दुनिया घर है
हो मयस्सर तो कभी घूम के दुनिया देखो।३।
आप हाकिम हो रहो दूर तरफदारी से
न्याय के हक में न अपना न पराया देखो।४।
सिर्फ कुर्सी की सियासत में रहो मत डूबे
कैसे करता है ये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2018 at 7:00pm — 18 Comments
2025
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
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