2122 1122 1122 22
दे गया दर्द कोई साथ निभाने वाला ।
याद आएगा बहुत रूठ के जाने वाला ।।
जाने कैसा है हुनर ज़ख्म नया देता है ।
खूब शातिर है कोई तीर चलाने वाला ।।
उम्र पे ढल ही गयी मैकशी की बेताबी ।
अब तो मिलता ही नहीं पीने पिलाने वाला ।।
अब मुहब्बत पे यकीं कौन करेग़ा साहब ।
यार मिलता है यहां भूँख मिटाने वाला ।।
उसके चेहरे की ये खामोश अदा कहती है ।
कोई तूफ़ान बहुत जोर से आने वाला ।।
गम भी…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on June 19, 2018 at 3:56am — 11 Comments
थाहों में टटोलती कुछ, कहती थी
जाकर वहाँ फूलों की सुगन्ध में
नकली-कागज़ी मुस्कानों की उमंग में
क्या याद भी करोगे मुझको
बताओ न
स्मरण में सहज दोड़ती आऊँगी क्या ?
या, जाते ही वहाँ बन जाओगे वहाँ के
पराय-से अजीब अस्पष्ट परदेशी-बाबू तुम
नई मुख-आकृतियों के बीच देखोगे भी क्या
मुढ़कर, मद्धम हो रही इस पुरानी पहचान को
या सरका दोगे इसे स्मृतिपटल से
तुम मात्र मिथ्या कहला कर इसे
माना कि टूटा है हमारा वह…
ContinueAdded by vijay nikore on June 18, 2018 at 9:00pm — 8 Comments
कुछ क्षणिकाएं(6) :
1
नैनों का मौन
आमंत्रण
परिणाम
अभ्यंतर में
हुआ आभूषित
मौन
समर्पण
...................
2
पलकों के घरौंदों में
स्वप्न बोलते हैं
नैन
प्रभात में
यथार्थ
तौलते हैं
........................
3
चलो
हो गई मुलाकात
स्पर्शों की आंधी में
बीत गयी रात
हो गई प्रभात
............................
4
प्रेम
मौन अभिव्यक्ति…
Added by Sushil Sarna on June 18, 2018 at 4:30pm — 9 Comments
Added by Sushil Sarna on June 18, 2018 at 3:30pm — 10 Comments
कलम को चुप-चाप और उदास बैठे देख बारूद ने पूछा," क्या बात है बहन?"
"कुछ नहीँ! तुम फिर आ गए? चले क्यों नहीं जाते... कह तो दिया तुमसे अब मैं तुम्हे स्वीकार नहीं करूंगी।" गुस्से से कलम बड़बड़ाई।
" मेरे बिना तुम्हारा कोई अस्तित्व ही नहीं हैं, समझीं ! तुम्हें मेरा स्वीकार करना ही होगा।" अट्टहास लेते हुए बारूद ने अपनी अहमियत जतायी।
" नहीं कभी नहीँ ! तुम बदल गए हो अब वो बात नहीं रही, याद करो एक समय वो था जब बिस्मिल की कलम से तुमने यह लिखवाया था : सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 18, 2018 at 1:30pm — 5 Comments
2122 1212 22
नाम दिल से तेरा हटा क्या है ।
पूछते लोग माजरा क्या है ।।
नफ़रतें और बेसबब दंगे ।
आपने मुल्क को दिया क्या है ।।
अब तो कुर्सी का जिक्र मत करिए ।
आपकी बात में रखा क्या है ।।
सब उमीदें उड़ीं हवाओं में ।
अब तलक आप से मिला क्या है ।।
है गुजारिश कि आज कहिये तो ।
आपके दिल में और क्या क्या है ।।
दिल की बस्ती तबाह कर डाली ।
क्या बताऊँ तेरी ख़ता क्या…
Added by Naveen Mani Tripathi on June 18, 2018 at 12:22pm — 14 Comments
जीवन की सूनी राहों में,
मधु बरसाने जैसा हो.
अबकी बार तुम्हारा आना
सचमुच आने जैसा हो.
धूप कुनकुनी खिले माघ में,
भीगा-भीगा हो सावन.
बादल गरजें जिसकी छत पर,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 18, 2018 at 10:00am — 20 Comments
जिसकी चाहत है
उसे हूर औ जन्नत देदे।
मेरे मौला मुझे बस अपनी अक़ीदत देदे॥
उतार फेंकें पैरहने -
शहंशाही दिल से।
हो सके तो हमें, तू ऐसी तबीयत देदे॥
रुक, मेरे किस्से में
तू क्योंकर नहीं शामिल।
तेरे किस्से में रहूँ मैं, ऐसी नीयत देदे॥
रात मेरी वस्ल की हो,
और साथ तेरा हो।
मेरे मौला इस रात को क़यामत देदे॥
वो मजबूरन जो सजदे पे
ईमान लेके आता है।
ऐसे मुसलमानों को भी अपनी नसीहत…
Added by SudhenduOjha on June 18, 2018 at 6:30am — No Comments
चट्टान की तरह दिखने वाले पाषाण ह्रदय पिता नारियल के समान होते हैं पर उनका एहसास मोम की तरह होता हैं.सख्त,खुरदुरे,अनुशासन प्रिय पर अंतर्मन सरलतम पिता उस संस्कारी गहरी जड़ों वाले वट वृक्ष की तरह होते हैं जिसकी विशालतम स्नेह्सिल छाया तले हम बच्चे और हमारी माँ पलती हैं.क्योकि वह पारिवारिक जिम्मेदारी का वह सारथी हैं जिस पर सभी अपनी उम्मीदों को पूरा करने का सपना संजोते हैं.और वह एक महानायक की तरह सभी को बराबर का हक देकर,अपने नाम से पहचान दिलाता हैं.जीवन की रह दिखाने…
ContinueAdded by babitagupta on June 17, 2018 at 10:04pm — 5 Comments
"नहीं कमली! हम नहीं जायेंगे वहां!" इकलौती बिटिया केमहानगरीय जीवन के दीदार कर लौटी बीवी से उसकी बदली हुई सी बोली में संस्मरण सुन कर हरिया ने कहा - "हमें ऐसा मालूम होता, तो बिटिया को बेटे की तरह न पालता... आठवीं तक ही पढ़ाता! अपना खेत न बेचता! फंस गई न वो दुनिया के झमेले में, हमें यहां अकेले छोड़के!"
बेहद दुखी पति की बातें वह चुपचाप सुनती रही। हरिया ने अपने आंसू पौंछते हुए आगे कहा - "पुरखों ने जो सब कुछ हमें सिखाया था, बिटिया को भी हमने सिखा दिया था। अरे, खेत में हर किसम के सांप,…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 17, 2018 at 8:26pm — 7 Comments
जीवन की पतंग
पापा थे डोर
उड़ान हरदम
आकाश की ओर
पापा सूरज की किरण
प्यार का सागर
दुःख के हर कोने में
खड़ा उनको पाया
छोटी ऊँगली पकड़
चलना मुझको सिखलाया
हर उलझन को पापा
तुमने ही सुलझाया
हर मुश्किल में पापा
प्यार हम पर बरसाया
मेरे हर आंसू ने
तुम्हारी आँखों को भिगोया
मेरे कमजोर पलों में
मेरा विश्वास बढ़ाया
तुम से बढ़कर पापा
प्यार न कोई पाया
प्यार न कोई पाया।
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on June 17, 2018 at 6:05pm — 15 Comments
कश्मीर अभी ज़िंदा है
झेलम के ख़ून में
केसर के रक्त में नहाया
बेवाओं की चीख पुकार में
दहााड़ेंं मारती माँओं में
पत्थरबाज़ी में
कश्मीर अभी ज़िंदा है भटके नौजवानों में
कश्मीर अभी ज़िंदा है शहीदों के जनाज़ोंं में
डरे सहमे शिकारों में
ख़ूूून से सनी पतवारों में
दया के लिए भीख माँगते हाथों में
धमकी भरे पत्रों में
हैण्ड ग्रेनेड में
मोर्टार और एके फोर्टी सेवन में
असंख्य हथियारों के ज़खीरों में
बरामद पाकिस्तानी हथियारों में…
Added by Mohammed Arif on June 17, 2018 at 8:30am — 16 Comments
22 22 22 22
गाता जाए एक दिवाना
दुनिया यारो पागलखाना
परदेश बनाया घर लेकिन
घर मे कम है एक सयाना
इससे आगे सोच ना पाऊं
बीबी बच्चे और ठिकाना
केक खिलाया साल बढ़ाए
भूल गया पर उम्र घटाना
एक शिगूफा छोड़ेगा फिर
अबके राजा भौत सयाना
मौलिक व अप्रकाशित
Added by gumnaam pithoragarhi on June 16, 2018 at 5:52pm — 10 Comments
(मफाइलुन _फ इलातुन_मफाइलुन_फ इलुन)
न मुँह को फेर के यूं आप जाएं ईद के दिन |
मेरे गले से लगें या लगाएँ ईद के दिन |
अकेले हम ख़ुशी कैसे मनाएँ ईद के दिन |
ख़ुदा क़सम वो बहुत याद आएँ ईद के दिन |
जो पिछले साल थाशामिल हमारी खुशियों में
उसी हसीन की यादें सताएँ ईद के दिन |
गरज़ है क्या भला हम साया ग़ैर मुस्लिम है
उसे बुलाके सिवइयाँ खिलाएँ ईद के दिन |
ख़ुदा ने अर्श से भेजा है तुहफा फरहत का
न दिल…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on June 15, 2018 at 8:30pm — 17 Comments
बरसात ....
मेघों की गर्जना
चपला की अटखेलियां
फुहारों में भीगी तेज हवाएँ
वातायन के पटों का शोर
करवटों की रात
लो फिर आ गई
वस्ल की यादें लिए
फिर
आज बरसात
वो चेहरे से उसका
बूंदे हटाना
लटें सुलझाना
हौले से मुस्कुराना
सच कहाँ भूलेगी
वो शर्मीली सी बात
कि याद ले आई
फिर
आज बरसात
बारिश की बूंदों की
अजब सी अगन
स्पर्शों की आहट से
घबराया मन
न और हां की हो गयी…
Added by Sushil Sarna on June 15, 2018 at 7:19pm — 9 Comments
मैं संग चल दी उनके,
मेरा मन यहीं रह गया...
उन्होंने दिखाये होंगे हजारों ख्वाब,
पर इन आँखों में रौशनी कहाँ थी !!
कितने ही गीत सुनाये होंगे उन्होंने,
पर इन कानों के पट तो बंद हो चुके थे !!
उनके सबालों का,
जबाब भी ना दे पायी थी मैं....
क्योंकी इन होठों पे, तुम्हारा ही नाम रखा था!!
कितना आक्रोश था उनके ह्रदय में,
जब उन्होंने,
मेरे केशों को पकड़कर खींचा था...
और मैं पत्थर सी हो गयी थी,
किसी भी आघात की पीड़ा ना हुई…
Added by रक्षिता सिंह on June 15, 2018 at 5:12pm — 10 Comments
"ठीक है, तुम भी मेरी उपेक्षा कर आगे बढ़ जाओ, मुझे कुछ फ़र्क नहीं पड़ता! बहुत सब्र है मुझमें!" सुबह की चहलक़दमी करते एक तंदुरुस्त आदमी से पतझड़ से गुज़रे सूखे दरख़्त ने कहा।
"पर उसमें भी अपने अन्य साथियों की तरह ज़रा भी सब्र नहीं है! क्या फ़ायदा उससे कुछ कहने से? उसे भी इस काम के बाद रोज़ाना की तरह दूसरे काम भी तो पूरे करना है न!" दूसरे साथी पेड़ ने उस से कहा।
"सही कहा तुमने। आज का ख़ुुुदग़र्ज़ आदमी धन-दौलत, फैशन और तरक़्क़ी की होड़ में न तो कोई रिश्ते सही तरह से निभा पा रहा है, न ही…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 15, 2018 at 9:50am — 8 Comments
पतझड़ - लघुकथा –
केशव ने जैसे ही अपने घर के बाहर लगे पेड़ के नीचे से अपना साईकिल रिक्शा उठाया, उसके पड़ोसी रहमान ने उसका हाथ पकड़ लिया,
"यह क्या कर रहे हो केशव? कल तुम्हारे पिता का देहांत हुआ है और आज तुम रिक्शा लेकर काम पर चल दिये"?
"भाई, मेरे रिक्शा ना चलाने से जाने वाला तो वापस नहीं आयेगा। लेकिन भूख प्यास से मेरे बच्चे भी मेरे पिता की तरह मुरझा जायेंगे"|
" हम लोग क्या मर गये हैं? इतने बेगैरत नहीं कि दो चार दिन अपने पड़ोसी के बच्चों को खाना भी ना दे…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 14, 2018 at 7:08pm — 18 Comments
माता की ममता की तुलना , कभी कोई कर सकता नहीं | |
जग में जो खुशी माँ से मिले , कोई और दे सकता नहीं | |
हर कोई माँ से ही आया , मां बिना कोई आया नहीं | |
ये ज़िंदगी जो माँ से मिली , कोई कर्ज भर पाया नहीं | |
प्रसव में जो पीड़ा माँ सहे , पिता उसे कहाँ बाँट पाये | |
सटा कर रखे जो सीने से , ये मजा शिशु को कहाँ आये | |
अपने गीले में… |
Added by Shyam Narain Verma on June 14, 2018 at 3:51pm — No Comments
झरता रहा
माँ के आशीर्वाद सा
हरसिंगार
उषा की लाली
रेशम का आँचल
वात्सल्य माँ का
.
पुलक तन
शाश्वत है बंधन
नमन मन
स्नेहिल स्पर्श
वात्सल्य का कंबल
संबल मन
…
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on June 14, 2018 at 12:30pm — 10 Comments
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2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
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2016
2015
2014
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2010
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