"कहते हैं साहित्यकारों, लेखकों, खिलाड़ियों, वैज्ञानिकों और डॉक्टरों का कोई धर्म या मज़हब नहीं होता!" युवा दोस्तों के समूह में से एक ने कहा।
"शिक्षकों, छात्रों, और राजनेताओं का भी तो क़ायदे से कोई धर्म या मज़हब नहीं होता!" दूसरे दोस्त ने अपना किताबी ज्ञान झाड़ा।
"अबे, तो क्या ड्राइवरों, पुलिस, सैनिकों और वकील-जजों का भी कोई धर्म या मज़हब नहीं होता?" तीसरे साथी ने झुंझलाकर कहा।
"हां कहा तो यही जाता है कि किसी भी तरह के कलाकारों का भी इसी तरह न कोई धर्म होता…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 21, 2018 at 2:34pm — No Comments
2122---1212---22
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जो भी सोचूँ, उसी पे निर्भर है
मेरी दुनिया तो मेरे भीतर है
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इक फ़रिश्ता है मेहरबाँ मुझ पर
स्वर्ग से ख़ूब-तर मेरा घर है
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जिसमें जज़्बा है काम करने का
कामयाबी उसे मयस्सर है
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जीत कैसे मिली, है बेमानी
जो भी जीता, वही सिकन्दर है
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कोई क़तरा भी भीक में माँगे
और हासिल किसी को सागर है
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ज़ह्र-आलूदा इन हवाओं में
साँस लेना भी कितना दूभर है
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हाँ, ये जादूगरी है लफ़्ज़ों की
( हाँ,…
Added by दिनेश कुमार on May 21, 2018 at 10:00am — 7 Comments
डिजिटल ग़ुलामी है बहुआयामी
शारीरिक नुमाइश हुई बहुआयामी
हैरत है, कहें किसको नामी और नाकामी
अनपढ़, ग़रीब, शिक्षित या असामी।
योग ग़ज़ब के हो रहे वैश्वीकरण में
मकड़जाले छाते रहे सशक्तिकरण में
छाले पड़े आहारनलिकाओं में
ताले संस्कृति और संस्कारों में
अधोगति, पतन सतत् रहे बहुआयामी
हैरत है, कहें किसमें खामी और नाकामी
अनपढ़, ग़रीब, शिक्षित या असामी।
शिक्षा, भिक्षा, रक्षा सभी बहुआयामी
लेन-देन, करता-धरता, कर्ज़दाता भी…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 20, 2018 at 9:00pm — 4 Comments
2122 2122 212
आँख मुद्दत से चुराती जिंदगी ।
लग रही थोड़ी ख़फ़ा सी जिंदगी ।।
तोड़ती अक्सर हमारी ख्वाहिशें ।
हो गयी कितनी सियासी जिंदगी ।।
सिर्फ मतलब पर किया सज़दा उसे ।
जी रहे हम बेनमाज़ी जिंदगी ।।
रोटियों के फेर में कुछ इस तरह ।
मुद्दतों तक तिलमिलाई जिंदगी ।।
हम जमीं पर पैर पड़ते रो पड़े ।
दे…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 20, 2018 at 8:28pm — 1 Comment
1212--1122--1212--22
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मैं अपने काम अगर वक़्त पर नहीं करता
तो कामयाबी का पर्वत भी सर नहीं करता
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हसीन ख़्वाब अगर दिल में घर नहीं करता
तवील रात से मैं दर-गुज़र नहीं करता
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हरेक मोड़ पे ख़ुशियों तो कम हैं,दर्द बहुत
कहानी वो मेरी क्यों मुख़्तसर नहीं करता
..
सिखा दिया है मुझे ग़म ने ज़िन्दगी का हुनर
किसी भी हाल, मैं अब आँख तर नहीं करता
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मैं अपने अज़्म की पतवार साथ रखता हूँ
मेरे सफ़ीने पे तूफ़ाँ असर नहीं करता
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ग़ुरूर साथ…
Added by दिनेश कुमार on May 20, 2018 at 6:00pm — 3 Comments
"अपने पुत्र को समझाओ गांधारी। वासुदेव कृष्ण की माँग सर्वथा उचित है। 'पांडवो के लिये पाँच गाँव!' भला इससे कम और क्या हो सकता है?’’
"नहीं आर्यपुत्र, अब वह समझाने की सीमा में नहीं रहा। पानी सिर से ऊपर बहने लगा है।" गांधारी की आवाज सदैव की भांति स्थिर थी। 'मैंने आप से अनगिनित बार उसे समझाने के लिये कहा लेकिन आप के 'पुत्र-मोह' ने उसे कभी समझाना ही नहीं चाहा। परिणामतः हम जहां आ चुके है, वहां से लौटना संभव नहीँ।"
........... युद्ध की कालिमा छंट चुकी थी लेकिन सभी पुत्रों को खो चुके…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 20, 2018 at 5:17pm — 5 Comments
"बिटिया, कितनी बार कहा है कि अॉनलाइन शॉपिंग वग़ैरह के अॉफरों और प्रलोभनों में अपना समय और पैसा यूं मत ख़र्च करो!" अशासकीय शिक्षक ने अपनी कमाऊ शादी योग्य बेटी से कहा ही था कि उनकी पत्नी बीच में टपकीं और बोलीं- "तुम अपने काम से काम रखो। बिटिया तुम से ज़्यादा कमा कर अपने दम पर अपना दहेज़ जोड़ रही है और पैसे भी! ... और रिश्ता भी!"
"आप लोग यूं परेशान न हों! ...मम्मी तुम्हें पापा से इस तरह नहीं बोलना चाहिए। मुझे पता है प्राइवेट नौकरी में क्या-क्या और कैसे सब कर पाते हैं!" बिटिया ने…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on May 20, 2018 at 6:31am — 5 Comments
1222 1222 1222 1222
मुख़ालिफ़ होअगर मौसम तो कुछ अच्छा नहीं रहता
बदलते वक्त में कोई कभी अपना नहीं रहता
कोई इंसान रिश्तों के बिना जिंदा नहीं रहता
मुहब्बत के बिना पक्का कोई रिश्ता नहीं रहता
बुजुर्गों को दुखी करने से पहले सोच ये लेना
शज़र जब सूख जाता है कोई पत्ता नहीं रहता
जहाँ पर मुफलिसी बच्चों से बचपन छीन लेती है
किसी बच्चे के दिल में भी वहाँ बच्चा नहीं रहता
ज़रूरत ज़िस्म की जिनको मशीनों सा बना…
Added by rajesh kumari on May 19, 2018 at 10:46pm — 15 Comments
2122 2122 212
छेड़ कर उसकी कहानी देखना ।
फिर तबाही आंसुओं की देखना ।।
यूँ ग़ज़ल लिक्खी बहुत उनके लिए ।
लिख रहा हूँ अब रुबाई देखना ।।
अब नुमाइश बन्द कर दो हुस्न की ।
हैं कई शातिर शिकारी देखना ।।
हिज्र ने हंसकर कहा मुझसे यही ।
वस्ल की तुम बेकरारी देखना ।।
वह बहक जाएगा इतना मान लो ।
एक दिन फिर जग हँसाई देखना ।।
तिश्नगी झुक कर बुझा देती है वो ।
बा…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 19, 2018 at 10:30pm — 3 Comments
स्कूल की छत और कुछ दरख़्तों पर कुछ बंदर अपनी शैली में आनंद ले रहे थे। कक्षा में छात्रों ने उनके 'उत्पात' देखने हेतु आगे पढ़ने से मना कर दिया। दरअसल मॉरल साइंस (नैतिक शिक्षा) के शिक्षक इत्तेफ़ाकन गांधी जी के 'तीन बंदरों' की प्रतीकात्मकता की व्याख्या करते हुए 'सादा जीवन उच्च विचार' के बारे में उन्हें समझा रहे थे!
"ये मज़बूर और परेशान बंदर हैं! किसी तलाश में राह भटक गये हैं!" अपनी बत्तीसी निपोरते एक बंदर की ओर इशारा करते हुए शिक्षक ने कहा।
"नहीं, सर! ये हमारी तरह…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 19, 2018 at 7:02pm — 3 Comments
(फाइला तुन _फ इलातुन _फ इ ला तुन _फेलुन)
दोस्तों वक़्त के रहबर का तमाशा देखो |
कोई तकलीफ में, खुश कोई है फिरक़ा देखो |
कोई पत्थर की तरह आपकी ठोकर में है
मेरे महबूब ज़रा गौर से कूचा देखो |
आपको करना है दीदार गरीबी का अगर
जाके फुट पाथ का रातों में नज़ारा देखो |
हर किसी शख्स के हाथों में नहीं यूँ पत्थर
फ़िर कोई आ गया कूचे में दिवाना देखो |
गिडगिडाने से कभी हक़ नहीं मिल पाएगा
कर के तब्दील ज़रा…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 19, 2018 at 10:30am — 8 Comments
Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on May 18, 2018 at 4:27pm — 4 Comments
221 2121 1221 212
आया सँवर के चाँद चमन में उजास है ।
बारिश ख़ुशी की हो गयी भीगा लिबास है ।।
कसिए न आप तंज यहां सच के नाम पर ।
लहजा बता रहा है कि दिल में खटास है ।।
मिलता नशे में चूर वो कंगाल आदमी ।
शायद खुदा ही जाम से भरता गिलास है ।।
उल्फत में हो गए हैं फ़ना मत कहें हुजूर ।
जिन्दा अभी तो आपका होशो हवास है ।
पीकर तमाम रिन्द मिले तिश्नगी के साथ ।
साकी तेरी शराब में कुछ बात…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 17, 2018 at 11:24pm — 2 Comments
मुझे देख उनको लगा,हुआ मुझे उन्माद।।
नयनों से वाचन किया,अधरों से अनुवाद।।1
अभी पुराने खत पढ़े,वही सवाल जवाब।
देख देख हँसता रहा,सूखा हुआ गुलाब।।2
मन को दुर्बल क्यों करें,क्षणिक दीन अवसाद।
आगे देखो है खड़ा,आशा का आह्लाद।।3
विविध रंग से हो भरा,भावों के अनुरूप।।
स्नेह इसी अनुपात में ,मैं प्यासा तुम कूप।।4
करुणा प्यार दुलार औ,इक प्यारी सी थाप।
माँ ही पूजा साथ में,है मन्त्रों का जाप।।5
स्वाभिमान को…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on May 17, 2018 at 3:01pm — 2 Comments
Added by Sushil Sarna on May 17, 2018 at 1:01pm — No Comments
मुंह अँधेरे ही भजन की जगह,फोन की घंटी घनघना उठी,
घंटी सुन फुर्ती आ गई,नही तो,उठाने वाले की शामत आ गई,
ड्राईंग रूम की शोभा बढाने वाला,कचड़े का सामान बन गया,
जरूरत अगर हैं इसकी,तो बदले में कार्डलेस रख गया,
उठते ही चार्जिंग पर लगाते,तत्पश्चात मात-पिता को पानी पिलाते,…
ContinueAdded by babitagupta on May 17, 2018 at 12:00pm — No Comments
2122--1122--1122--22
बाद मरने के भी दुनिया में हो चर्चा मेरा
ऐसी शोहरत की बुलन्दी हो ठिकाना मेरा
मैं हूँ इक प्रेम पुजारी ऐ मेरी जाने-हयात
तू ही मन्दिर, तू कलीसा, तू ही का'बा मेरा
मेरे बेटे की निगाहों में हैं कुछ ख़्वाब मेरे
ज़िन्दगी उसकी है जीने का सहारा मेरा
मौत भी चैन से आती है कहाँ इन्सां को
ज़ेह्न में गूँजता ही रहता है मेरा मेरा
अब भी रातों को मेरी नींद उचट जाती है
आह इक चाँद को छूने का वो सपना मेरा
अनकही बात मेरी क्या वो…
ContinueAdded by दिनेश कुमार on May 17, 2018 at 5:31am — 3 Comments
मधुर अप्राकृत प्यार ...
करी थी जिसकी इन्तज़ार
ज़िन्दगी भर ... ज़ार-ज़ार
आया है स्वयं अब वसन्त बन
निकटतम आस-पास, इतना पास
ज़िन्दगी के इस पढ़ाव पर
तुम आई रवि-रश्मि बन प्रिय
तुम्हारे अप्रतिम स्नेह में मानो
मैं हूँ विराजा राज-सिहाँसन पर
परी-सी आई हो किस निद्रा के द्वार
झूम रहे स्नेह के हल्के-हल्के उदगार
उपवन में गा रहे कोयल, फूल, और धूप
हर्षित है संग उनके यह खुला…
ContinueAdded by vijay nikore on May 16, 2018 at 11:00pm — 3 Comments
छोटा-सा,साधारण-सा,प्यारा मध्यमवर्गीय हमारा परिवार,
अपने पन की मिठास घोलता,खुशहाल परिवार का आधार,
परिवार के वो दो,मजबूत स्तम्भ बावा-दादी,
आदर्श गृहणी माँ,पिता कुशल व्यवसायी,
बुआ-चाचा साथ रहते,एक अनमोल रिश्ते में बंधते,
बुजुर्गों की नसीहत…
ContinueAdded by babitagupta on May 16, 2018 at 6:48pm — 1 Comment
"सुना है कि आपके मुल्क में तो विधायकों की खरीद-फरोख्त सी चल रही है!" परदेसी ने देसी दोस्त से फोन पर कहा।
" नहीं ऐसा तो कुछ विशेष नहीं, पहले भी ऐसी परंपरा रही है । मेरा लोकतंत्र बदल रहा है; तोड़-मरोड़ कर देश चल रहा है! यह समझो कि बेईमानी का कारोबार फल-फूल रहा है, बस!" दोस्त ने टेलीविजन अॉफ़ कर अंगड़ाई लेते हुए कहा।
"आप सभी खुश तो हैं न?"
"हां, सभी ख़ुश हैं! कभी उनके दल में, तो कभी हमारे दल में ऐसा हो जाता है! जनता सब जानती है, समझदार हो गई है; मीडिया के मज़े…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 16, 2018 at 6:31pm — 2 Comments
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2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
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