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ग़ज़ल - क्यों भला दंड वत हुआ जाये ( गिरिराज भंडारी )

2122   1212   22/112

अब यहाँ पर विगत हुआ जाये

या, जहाँ से विरत हुआ जाये

 

खूब दीवार बन जिये यारो

चन्द लम्हे तो छत हुआ जाये

 

कोई खोले तो बस खला पाये

प्याज़ की सी परत हुआ जाये

 

ताब रख कर भी सर उठाने की

क्यों भला दंड वत हुआ जाये

 

आग, पानी , हवा की ले फित्रत 

हैं जहाँ, जाँ सिफत हुआ जाये

 

खूबी ए  आइना बचाने को 

क्यूँ न पत्थर फ़कत हुआ…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 6, 2017 at 6:00pm — 24 Comments

चलो फिर यादों के सफ़र पर......संतोष

चलो फिर यादों के सफ़र पर हो आते हैं ,

तन्हाई का ये दौर कुछ देर को भूल आते है



बिखरे हमारे ख़्वाबों को ग़र सवाँरना हो तो,

चलो आज फिर उनसे मुलाक़ात कर आते हैं



ख़्वाबों में ही सही मगर थे हमसफ़र कभी,

यही ऐहसास को फिर पैकर किये आते है



ये कैसा मरज है कि दिलों से जाता ही नहीं,

दिल अफ़्सुर्दा है क्यूँ तुम्हारा ये भी जान आते है



सोचा नहीं था कि फिर सामना होगा तुमसे,

बिखरे ख़्वाबों का एक नया आईना बना आते हैं



उम्मीद आज भी फ़क़त… Continue

Added by santosh khirwadkar on August 6, 2017 at 12:40pm — 9 Comments

लकीरों में तो कुछ रक्खा नहीं है(गजल) /सतविन्द्र कुमार राणा

गजल

बह्र 1222 1222 122



फरेबी तू जो बन पाया नहीं है

तभी सिक्का तेरा चलता नहीं है



नहीं नीयत में ही जब काम करना

कहे क्यों तू, मिला मौका नहीं है



ज़ुबाँ में सादगी उसकी झलकती

भले देहात में रहता नहीं है



जिया था तू वतन के वास्ते पर

शहादत का तेरी चर्चा नहीं है



सरे बाज़ार देखो झूठ बिकता

जो' बिक जाए वो' फिर सच्चा नहीं है



लिखी तकदीर हाथों से ही जाती

लकीरों में तो कुछ रक्खा नहीं है



मौलिक एवं… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 6, 2017 at 12:30pm — 6 Comments

एक ग़ज़ल/सतविन्द्र राणा

बह्र:1222 1222 122

नहीं पहले-सी चेहरे पे चमक है
हँसी में आपकी गम की झलक है

नहीँ आमाल में जिसकी है नीयत
उसी की क़ामयाबी पे भी शक है

कोई तो खेल में पानी बहाता
कहीं पर प्यासा मरने की धमक है

पहुँचना उसका ही होगा फलक तक
नज़र जिसकी बहुत आगे तलक है

रहेगी रात तन्हा, दिन अकेला
हमारा साथ कुछ ही देर तक है

उसे बंदिश भला क्या रोक पाए?
नजर में जिसकी ये सारा फलक है

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 6, 2017 at 11:00am — 14 Comments

लघुकथा --बंधन

"सुशील , शालिनी को लेने कब जाएगा ?" माँ ने चिंतित स्वर में कहा ।
" कब है रक्षा-बंधन ?"
"बस ! आज से ठीक चार दिन बाद ।
"मगर...मगर...।"
" क्या मगर , मगर ।'
" कुछ नहीं माँ.....।"
अब सुशील माँ से कैसे कहे कि उसने शालिनी की मोटी उधार की रकम आज तक नहीं चुकाई जो माँ के बग़ैर पूछे ले आया था ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on August 6, 2017 at 12:17am — 9 Comments

यह चक्र धारी तिरंगे में ही नज़ाफ़त है-----पंकज मिश्र

1212 1122 1212 22

मेरे वतन की फ़िज़ाओं में जो मुहब्बत है
इसे बचाऊँ मैं हर हाल, मेरी चाहत है

हिमालया से लगायत महान सागर तक
परम पिता ने लिखी हिन्द की ये आयत है

तमाम लोगों ने कोशिश करी बदलने की
मगर वो हारे, विविधता में इसकी ताकत है

सफ़ेद पगड़ी हरा कुर्ता केसरी धोती
ये चक्र धारी तिरंगे में ही नज़ाफ़त है

अज़ान भी है भजन भी है चर्च की घण्टी
इसी वजह से वतन अपना खूबसूरत है

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 6, 2017 at 12:00am — 14 Comments

ग़ज़ल - इक जलतरंग दिल में बजाकर चले गए

221 / 2121 / 1221 / 212



इक जलतरंग दिल में बजाकर चले गए

वो रंगे इश्क मुझपे चढ़ाकर चले गए



जैसे गुलाब की कली हो जाए संदली

ख़ुशबू फिज़ा में ऐसी मिलाकर चले गए



बादल उड़े फ़लक पे बने नक़्श वो हसीं

उस नाज़नीं की याद दिलाकर चले गए



मुस्कान दे गए मुझे बचपन के यार कुछ

मेरी उदासियों को चुराकर चले गए



जुगनू ही बनके रह गए सूरज कई यहाँ

कोरस में गीत कितने ही गाकर चले गए



क्यूं शम्स के उजाले ये नींदों के फूलों से

ख्वाबों की… Continue

Added by Gajendra shrotriya on August 5, 2017 at 9:30pm — 21 Comments

गहरी पहचान

(इस वर्ष आ रही ४५ वीं वर्षगाँठ के लिए

जीवन-संगिनी प्रिय नीरा जी को सप्रेम समर्पित)

                      ------

हो विश्वव्यापी सूर्य

या हों व्योम की तारिकाएँ

गहन आत्मीयता की उष्मा प्रज्ज्वलित

तुम्हारा स्वर्णिम सुगंधित साथ

काल्पनिक शून्य में भी हो मानो

तुम यहीं-कहीं आस-पास ...

सम्मोहित

शनै:-शनै: सहला देती हूँ तुम्हारा हाथ

संकुलित कटे-छंटे शब्द हमारे

मन्द्र मौन में रीत जाते

और कुछ और…

Continue

Added by vijay nikore on August 5, 2017 at 4:00pm — 14 Comments

शर्मीले लब ……….

शर्मीले लब ……….

ये मोहब्बत भी

अज़ब शै है ज़माने में

उम्र गुज़र जाती है

समझने

और समझाने में

हो जाती हैं

सांसें चोरी

खबर नहीं होती

नींद नहीं आती बरसों

उनके इक बार मुस्कुराने में

डूबे रहते हैं पहरों

इक दूजे के ख़्यालों में

गुज़र जाती शब्

इक दूजे से बतियाने में



राहे मोहब्बत में

जाने ये कैसे मुक़ाम आते हैं

दो ज़िस्म

इक जान हो जाते हैं

मैं और तुम के अहसास

कहीं फ़ना हो जाते हैं

मख़मली लम्हे…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 5, 2017 at 3:39pm — 8 Comments

लाल सलाम: लघुकथा : हरि प्रकाश दुबे

घने जंगलों के बीच जगह जगह लाल झंडे लगे हुए थे. सैनिकों की जैसी वर्दी में कुछ लोग आदिवासियों को समझा रहे थे, “सुनो इस जंगल, जमीन और सारे संसाधनों पर सिर्फ तुम्हारा और तुम्हारा ही हक़ है, इन पूंजीपतियों के और इनकी रखैल सरकार के खिलाफ, हम तुम्हारे लिए ही लड़ रहें है, इनको तो हम नेस्तनाबूद कर देंगें !”

“पर कामरेड अब तो सरकार हम पर ध्यान दे रही है, सड़क पानी उद्योग की व्यवस्था भी कर रही है, क्यों न इस लड़ाई को छोड़ दिया जाए, वैसे भी सालों से कितना खून बह रहा…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on August 4, 2017 at 11:43pm — 3 Comments

ग़ज़ल -- ज़िन्दगी की ग़ज़ल हो रही है ( दिनेश कुमार )

212___212___212___2



बे-ख़ुदी के हसीं मरहले में

चैन दिल को मिला मयकदे में



हौसला जब मिटा हादसे में

मुश्किलें बढ़ गईं रास्ते में



हमसफ़र मेरा कोई नहीं था

यूँ बहुत लोग थे क़ाफ़िले में



इश्क़ में डूब जाओ तुम इतना

क़ुर्ब महसूस हो फ़ासले में



ग़ौर से मेरे चेहरे को पढ़िए

है उदासी निहाँ क़हक़हे में



बोल कर सच मैं तकलीफ़ में हूँ

वो झूठा है देखो मज़े में



ज़िन्दगी की ग़ज़ल हो रही है

बँध रहे दर्दो-ग़म… Continue

Added by दिनेश कुमार on August 4, 2017 at 10:21pm — 10 Comments

ग़ज़ल

221 2121 1221 212

इतनी जफ़ा शबाब पे लाया न कीजिये ।

मुझको मेरा वजूद बताया न कीजिये ।।



भूखें हैं नौजवान कटोरा है हाथ में ।

थाली किसी के हक़ की हटाया न कीजिये ।।



बेटा पढा लिखा के वो नीलाम हो गया ।

कोटे की राजनीति कराया न कीजिये ।।



अब न्याय क्या करेंगे कभी आप मुल्क से ।

झूठी तसल्लियों को दिलाया न कीजिये ।।



कुर्सी पे जात ढूढ के चेहरा दिखा दिया ।

गन्दा है जातिवाद सिखाया न कीजिये ।।



वो जल रहा है आज भी मण्डल की आग से… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 4, 2017 at 7:53pm — 3 Comments

डुगडुगी बजती रही.......

डुगडुगी बजती रही.......

1.

गरजे घन घनघोर

प्रलय चहुँ ओर

तृण बहे

तन बहे

करके

सब को अशांत

फिर 

वृष्टि का तांडव

हो गया

शांत



2

बुझ गयी

कुछ क्षण जल कर

माचिस की तीली सी

जंग लड़ती

साँसों से

असहाय काया

अस्थि कलश में

सिमट गयी

मुट्ठी भर राख में

साँसों की

माया

3

तालियों के शोर

चिलचिलाती धूप

करतब दिखाती बच्ची

रस्सी से गिर पड़ी

साँसों से संघर्ष…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 4, 2017 at 5:26pm — 4 Comments

ग़ज़ल....यार तुम भी कमाल करते हो-बृजेश कुमार 'ब्रज

2122 1212 22
रहबरों से सवाल करते हो
तौबा ये क्या मजाल करते हो

रस्मे उल्फत की बात कर बैठे
काम सब बेमिसाल करते हो

हीर समझा हुई ग़लतफ़हमी
खुद क्यों रांझे सा हाल करते हो

आइने में ये किसकी सूरत है
किसपे दिल ये निहाल करते हो

किसने साये को साथ रक्खा है
किस लिये 'ब्रज' मलाल करते हो
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 4, 2017 at 4:30pm — 14 Comments

तो क्या हुआ (लघुकथा)

घर के बाहर खुले आंगन में चेहरा लटका कर बैठे देख उसकी माँ ने उसके पास जाकर उसके सिर पर हाथ रखा और कहा, "परेशान मत हो, अगली बार बेटा ही होगा।"

 

"नहीं माँ, अब बस। दो बच्चे हो गए हैं, तीसरा होने पर इन दोनों बच्चियों की परवरिश भी अच्छी तरह नहीं कर पाऊंगा।" वहीँ पालने में सो रही अपनी नवजात बेटी को देखते हुए उसने उत्तर दिया।

 

माँ के पीछे-पीछे तब तक आज ही हस्पताल से लौटी अंदर आराम कर रही उसकी पत्नी को तरह-तरह के निर्देश देकर कुछ और महिलायें भी बाहर आ गयीं थीं। उनमें से…

Continue

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 4, 2017 at 12:27pm — 5 Comments

यूँ तो सावन जाने को है, फिर भी ...

यूँ तो सावन जाने को है, फिर भी ...

आया सावन मास सखी री

हरी हो गई घास सखी री

हरी चूड़ियाँ बिंदी साड़ी

हाथों में मेहँदी रंग गाढ़ी

झूले हो गए खास सखी री

गहराई है आस सखी री

श्वेत श्याम बादल उड़ आते

प्रियतम का संदेशा लाते

भरें कुलाँचे साँस सखी री

आया सावन मास सखी री

रंग गेरुआ घर घर डोले

जिसको देखो बम बम भोले

मन में है उल्लास सखी री

सुंदर वर की आस सखी री

ज्यों ज्यों सावन बीता जाए

मन उछाह से भर भर जाए

रक्षा…

Continue

Added by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 4, 2017 at 12:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल (दिल सितमगर के नाम कर बैठे )

ग़ज़ल

(फ़ाइलातुन-मफ़ाइलुंन-फेलुंन)

ज़िन्दगी हम तमाम कर बैठे।

दिल सितमगर के नाम कर बैठे।



हो गई सिर्फ हम से यह गलती

राजे उल्फत को आम कर बैठे।



यक बयक क्या निगाह उनसे लड़ी

नींद अपनी हराम कर बैठे।



जो सियासत को लाया मज़हब में

उसका हम एहतराम कर बैठे।



जो न अब तक ज़बान कर पाई

वह निगाहों से काम कर बैठे।



वह किसी संग दिल का है कूचा

तुम जहां पर क़याम कर बैठे।



वह न तस्दीक़ आये फिर भी हम

बज़्म का इहतिमाम कर… Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on August 4, 2017 at 8:13am — 12 Comments

द ब्लू व्हेल

मोबाईल पर खेला जाने वाला वह खेल युवाओं का पसंदीदा खेल बन गया था। युवाओं को दीवानगी की हद तक पहुंचाने वाले इस खेल में खिलाडी को हाथ पर मछली का चित्र गुदवाना और हर स्टेप जीतने पर गुदी हुई मछली पर एक कट मारकर किसी बहुमंजिला इमारत की पहली, दूसरी,तीसरी छत पर पहुंचनाऔर अंत में छटवीं मंज़िल से कूद कर आत्महत्या करना,सारे टास्क पूरे करके विजेता के लिये यह पुरस्कार था।दुनियाँ मेंअनेक स्थानों पर इस खेल के कारण हादसे हो रहे थे।आखिर पुलिस ने ऐसा खतरनाक खेल  बनानेवाले उसआदमी को धर दबोचा।

"तुमने ऐसा…

Continue

Added by VASUDHA GADGIL on August 3, 2017 at 1:00pm — 4 Comments

एक गीत--

दिल जिन्हें ढूंढे, वो हालात कहाँ

खाली दिल में वो है जज्बात कहाँ

बस एक रस्म निभा देते हैं

अब वो पहले सी मुलाक़ात कहाँ

लॉन शहरों में खूबसूरत हैं

गांव की उसमें मगर बात कहाँ

वक़्त बस यूँ ही गुजर जाता है

अब वो दिन और अब वो रात कहाँ

कभी शामिल थे जिनकी हर शै में

उनके अब ऐसे, खयालात कहाँ !!

मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by विनय कुमार on August 3, 2017 at 12:30pm — 12 Comments

ग़ज़ल "दिखाना ख़्वाब यूँ अच्छा नहीं है"

1222 1222 122

दिखाना ख़्वाब यूँ अच्छा नहीं है।

फ़क़त बातों से कुछ होता नहीं है।।



***

बुरा अंजाम होता है बुरे का।

ख़ुदा से कुछ भी तो छुपता नहीं है।।



***

कई धोख़े मिले हैं जिंदगी में।

किसी पर अब यकीं होता नहीं है।।



***

मुहब्बत में मुझे इक बेवफा ने।

दिया वो जख़्म जो भरता नहीं है।।



***

यकीं कोई न अब उस पर करेगा।

वो अपनी बात पर टिकता नहीं है।।



***

उसे है याद बातें सब पुरानी।

मगर अब गाँव वो… Continue

Added by surender insan on August 3, 2017 at 9:54am — 21 Comments

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