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मैंने देखी आज रंगोली

मैंने देखी आज रंगोली..

टी० वी० पर दूरदर्शन वाली

पहले भी देखा है कई बार

इसके अनेकों रूप कई प्रकार

कभी स्कूल के प्रांगण में सजी

कभी घर की देहली पर,

कभी दिवाली में तो कभी ब्याह–शादी में

रंग-बिरंगी, अनोखी-अलबेली

जब बनती तो अनोखा उत्साह होता

पहले धीरे-धीरे आकार लेती

उत्सुकता का कारण बनती

फिर अलग-अलग रंगों से

सजती-सँवरती, बनती-बिगड़ती

जब बन कर तैयार हो जाती

बच्चे खुश हो तालियाँ बजाते

युवा सेल्फी…

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Added by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 3, 2017 at 7:28am — 2 Comments

फिर भी :कविता :हरि प्रकाश दुबे

कितनी  सहज हो तुम

कोई रिश्ता नही

मेरा ओर तुम्हारा

फिर भी

अनगिनत पढ़ी जा रही हो,मुझे

बिन कुछ कहे

बस मुस्कुरा कर

अनवरत सुनी जा रही हो ,मुझे

बस यही अहसास काफी है

संपूर्ण होने का,मेरे लिए !!

"मौलिक व अप्रकाशित"

© हरि प्रकाश दुबे

Added by Hari Prakash Dubey on August 2, 2017 at 11:30pm — 2 Comments

लघुकथा-- बर्थ-डे गिफ्ट

राहुल और साक्षी के जीवन में तनाव उस समय उत्पन्न हो गया जब साक्षी ने अपने सात वर्षीय बेटे अंशुल की ज़िम्मेदारी उठाने की अर्ज़ी कोर्ट में लगा दी । दर असल राहुल काम के संबंध में लंदन जाना चाहता था । साक्षी को सतारा में ससुराल में रहने को कहा । मगर साक्षी को पुणे में रहकर ही जॉब करना था । विवाद यहीं से पैदा हुआ । एक दिन राहुल अंशुल को लेकर सतारा आ गया और उसकी पढ़ाई लिखाई की व्यवस्था करने लगा । साक्षी को बस यही नगवारा लगा ।

अंशुल के बर्थ-डे वाले दिन ही दोनों ने अलग होने का निर्णय ले लिया… Continue

Added by Mohammed Arif on August 2, 2017 at 11:13pm — 10 Comments

कौन है ......... संतोष

कहाँ है,कौन है, कैसा नज़र आता है ,

वो ख़ुद में कम ,अब मुझ में ज़ियादा नज़र आता है

ये कैसी इबादत है ख़ुदा को मिरी,

माँगू ख़ुदा को भी ,तो वो ही नज़र आता है

वो धड़कन है,साँस है, ज़िंदगी भी है मिरी

करूँ आँखें बंद भी तो ,चेहरा उसी का नज़र आता है



अश्क़ ,ग़म,ख़ुशी ,मौसम,सभी तो है शामिल उसमें,

वो मुझे अब मिरी, ग़ज़ल नज़र आता है



चाहता तो वजूद ही मिटा देता उसका मगर,

वो ऐसा ज़ख़्म है दिल का ,जो फिर उभर आता…

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Added by santosh khirwadkar on August 2, 2017 at 9:30pm — No Comments

कुण्डलिया/सतविन्द्र राणा

सारे दादुर मोर खुश ,सावन जो घिर आय।
कारे बादल जलभरे ,नभ में जाते छाय।
नभ में जाते छाय, प्यास धरती की हरते।
नीर सुधा बरसाय,सुहागन इसको करते।
सतविन्दर कविराय, लगाओ पौधे प्यारे
मिट्टी उगले अन्न,सुखी हों प्राणी सारे।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 2, 2017 at 8:30pm — 8 Comments

चले आना...संतोष

चले आ बस एक बार फिर तू ,

अब ये इंतज़ार और नहीं होता



नज़रों के फ़ासलों में है तू दूर,

दिलों के फ़ासलों से तू दूर नहीं होता



चाहते हो आज़माना मुझको तो ,आज़माओ

मगर ये दिल है ,सबका एक सा नहीं होता



तू आ जा मेरे ख़्वाबों में ही सही ,

फिर देखना दुनियाँ में क्या नहीं होता



तलाश मेरी वही है जो वो समझे तो "संतोष"

लेकिन अब मेरी मिन्नतों का भी असर उस पर नहीं होता



#संतोष खिरवड़कर

9826052771

(मौलिक एवं… Continue

Added by santosh khirwadkar on August 2, 2017 at 8:24pm — 2 Comments

इश्क़ की ज़ुबाँ....संतोष

इश्क़ की ज़ुबाँ को तूने किस क़दर आसां कर दिया,

कह न सका कभी, वो निगाहों से बयाँ कर दिया.



दिल में मुरझाये से अरमां थे मिरे,

निगाहों ने तिरे उन्हें फिर जवाँ कर दिया.



अब तो हवाओं में भी आती है ख़ुशबू तिरी,

बंजर था ये दिल मेरा,तूने गुलिस्ताँ कर दिया.



पाना था तुझे जो रुका भी नहीं मंज़िल तलक मैं,

चाहतों ने तिरे इस दुश्वार सफ़र को और आसां कर दिया.



फ़ैसला जब था मेरा तुम्हारा, तो फिर ये ऐतराज़ कैसा,

दुनियाँ वालों ने फिर क्यूँ जीना मेरा… Continue

Added by santosh khirwadkar on August 2, 2017 at 8:02pm — 6 Comments

आज कुछ यूँ हुआ कि ...

आज कुछ यूँ हुआ कि ...

घोंसला टूटा गिरा था पेड़ के नीचे

एक नन्ही जान बैठी आँखें थी मींचे

उसकी माँ मुँह में दबाए थी कोई चारा

ढूँढती फिरती थीं नजरें आँख का तारा

हाथ मैंने जब बढाया मदद की खातिर

उसने समझा ये शिकारी है कोई शातिर

माँ हो चाहे जिसकी भी वो एक सी बनी

आज नन्हे पंछी की इंसान से ठनी

उसी टूटे नीड़ को रखा उठा फिर पेड़ पर

पंछी बनाते घोंसले इंसान तो बस घर..

सुबह आकर देखा तो हालात कल से थे

बारिश हुई थी और तिनके…

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Added by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 2, 2017 at 7:30pm — 6 Comments

तरही ग़ज़ल नम्बर 2

नोट :-"तरही मुशायरे में जितनी ग़ज़लें शामिल हुईं, इस ग़ज़ल के क़वाफ़ी उन सबसे अलग हैं"



मफ़ऊल फ़ाइलातु मुफ़ाईल फ़ाइलुन



लेकर गई है हमको जिहालत कहाँ कहाँ

मांगी है तेरे वास्ते मन्नत कहाँ कहाँ



ये आज तेरे पास जो दौलत के ढेर हैं

सच बोल तूने की है ख़ियानत कहाँ कहाँ



अब तक भरी हुई थी जो तेरे दिमाग़ में

फैलाई है वो तूने ग़िलाज़त कहाँ कहाँ



तूने वतन को बेचा है अपने मफ़ाद में

होती है देखें तेरी मज़म्मत कहाँ कहाँ



फ़हरिस्त इसकी अब तो बताना… Continue

Added by Samar kabeer on August 2, 2017 at 3:00pm — 27 Comments

लघुकथा दोहरा सुख

दोहरा सुख   

“सरकारी नौकरी में रखा क्या है”

“क्यों बहुत परेशान लग रहे हो| इस नौकरी ने तुम्हें क्या नहीं दिया है? अच्छी तन्खवाह ,सरकारी घर, काम करने के तय घंटे, और क्या चाहिये |”

“बंधीबंधाई तनखा से गुजारा कहाँ ?”

“और जो बंगले की ज़मीन, हर मौसम की सब्जी ,फल ----ताज़े का मज़ा ही और है|”

“अपने पोती पोतियों को इन्हीं साग-भाजी की फोटो दिखाना और तो कुछ कमाई तो की नहीं जीवन में|”

“दादा जी आम तोड़ दीजीये ना, मेरा हाथ नहीं पहुँच रहा है|”

“पेड़ पर चढ़ कर…

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Added by Manisha Saxena on August 2, 2017 at 12:11pm — 8 Comments

ग़ज़ल नूर की - हैरान क्या करेगा कोई मोजज़ा मुझे

२२१/ २१२१/ १२२१/ २१२



हैरान क्या करेगा कोई मोजज़ा मुझे,

दुनिया का हर तमाशा लगे ख़्वाब सा मुझे.

.

हालाँकि ख़ुशबू इल्म-ओ-अदब की नहीं हूँ मैं,

लेकिन बिख़रने का है बहुत तज़रिबा मुझे.

.

इक रोज़ मैं ही तेरे किसी काम आऊँगा,

गरचे तू मानता ही नहीं काम का मुझे.

.

तेरे कहे पे चल पड़ा हूँ आँखें मूँदकर

ठोकर लगे तो मौला मेरे थामना मुझे.

.

ये कौन मेरे हिज्र को करता है और तवील,

जीने की फिर ये कौन दुआ दे गया…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on August 2, 2017 at 9:37am — 19 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
छंद – विजया घनाक्षरी(मापनीमुक्त वर्णिक)

छंद – विजया घनाक्षरी(मापनीमुक्त वर्णिक) 

विधान 32 वर्णों के चार समतुकांत चरण, 16 16 वर्णों यति अनिवार्य

8,8,8,8 पर यति उत्तम अंत में ललल अर्थात लघु लघु लघु या नगण अनिवार्य ।

 

सूखे कूप हैं इधर ,गंदे स्रोत हैं उधर,प्यासे वक़्त के अधर,मीठा नीर है किधर|

मैली गंग है उधर,देखें नेत्र ये जिधर,रोयें धरा ये अधर,जाए शीघ्र ये सुधर|

कोई भाव है न रस,कैसे शुष्क हैं उरस,वाणी नहीं है सरस,शोले रहे हैं बरस|   

बातों बात ये…

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Added by rajesh kumari on August 1, 2017 at 10:44pm — 4 Comments

रूंधी हुई आवाज़ : लघुकथा : हरि प्रकाश दुबे

 

“बेटा एक बात कहूं क्या?”

 

“हाँ बोल न माँ, पर अपनी बहू के बारे में नहीं।“   

 

माँ चुप हो गयी, फिर बोली “बेटा, अपने से जुड़े हुए लोगों का महत्व समझना चाहिये, हमे देखना चाहिये की वो हमसे कितना प्यार करते हैं, हमे भी उनको उतना ही स्नेह और महत्व देना चाहिये, कभी-कभी हम अपने से स्नेह करने वालों से, चाहे वो कोई भी क्यों न हों, इस तरह का व्यवहार करने लग जाते हैं, जैसे ‘घर की मुर्गी दाल बराबर’ ।“

बेटा हो सकता है वो आपको, आपके इस तरह के उपेक्षापूर्ण…

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Added by Hari Prakash Dubey on August 1, 2017 at 9:02pm — 9 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
पहला क़दम ज़रूरी है .....

देखो मंज़िल से क़दमों की बस इतनी सी दूरी है

माना मुश्किल होता है पर पहला क़दम ज़रूरी है



पग-पग पर हम सही ग़लत चुन

अपना जीवन गढ़ते हैं

छोटे-छोटे लक्ष्य भेद कर

उसमें ख़ुशियाँ मढ़ते हैं

झूठा है हर एक बहाना झूठी हर मजबूरी है



आधे मन से अगर बड़े तो

बस भटकन ही पाएँगे

नहीं छँटेगा कभी धुँधलका

राहों में खो जाएँगे

जीत हार की बात व्यर्थ है कोशिश अगर अधूरी है



लक्ष्य अगर तय कर लें तो फिर

सच्ची लगन लगानी होगी

जिसमें मन दिन… Continue

Added by Dr.Prachi Singh on August 1, 2017 at 2:52pm — 3 Comments

ग़ज़ल -कायम रहा रुतबा तेरा

2212 2212 2212 2212



बस रात भर की बात थी , फिर भी रहा पहरा तेरा ।

ऐ चाँद तेरी बज़्म में कायम रहा रुतबा तेरा ।।



वो तीरगी जाती रही रोशन लगी हर शब मुझे ।

मेरे तसव्वुर में कभी जब अक्स ये उभरा तेरा ।।



टूटा हुआ तारा था इक हँसता रहा क्यूँ कहकशां ।

यूँ ही जमीं से देखता मैं रह गया लहज़ा तेरा ।।



देकर गई है मुफ़लिसी ,कुछ तज्रिबा भी कीमती ।

मुझको अभी तक याद है ,बख़्शा हुआ सदक़ा तेरा।।



है जिक्र तेरे हुस्न का बाकी कोई चर्चा नहीं ।

है… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 1, 2017 at 2:00pm — 10 Comments

दोहे

दोहे 
राजनीति   दलदल   यहाँ, मिट्टी  हुई पलीद।

मजहब  मजहब लड़ रहे, कहाँ  दिवाली ईद।।1।।



कहने   को  करवा  रहे,  ये  रोजा   इफ्तार।

मगर  दृष्टि  में  तैरता, वोटों  का  व्यापार।।2।।



बादल  अब  बरसे वहाँ, जहाँ बहुत सा नीर।

सूखी भू  तरसे  कृषक, बढ़ी  जा  रही  पीर।।3।।



सरकारी घन छा गए, रिमझिम पड़े…
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Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on August 1, 2017 at 1:00pm — 8 Comments

वर्षा ( सार छंद)

छन्न पकैया छन्न पकैया,काले बादल छाये
सूखी प्यासी धरती की अब,सावन प्यास बुझाये

छन्न पकैया छन्न पकैया,इंद्रधनुष है आया
जल्दी होगी बारिश देखो,ख़ास ख़बर यह लाया

छन्न पकैया छन्न पकैया,छाता भी उड़ जाये
तेज़ हवा के कारण भाई,हमसे सँभल न पाये

छन्न पकैया छन्न पकैया,छम छम बरसे पानी
हरे रंग में धरती देखो,लगती बहुत सुहानी ।।
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 31, 2017 at 11:30pm — 12 Comments

"दो घडी का सुख"

उसने सिला गये बेसन  को थाली में फैलाकर चूल्हे  की गरम राख को थोडा सार कर उस  पर रख दिया था ताकि पसीजन से आई बदबू  खत्म हो जाए. आज पहली बार रमेश्या ने उसे ढाई सौ ग्राम तेल लाकर दिया था घर में. वरना तो वह अपनी सारी कमाई शराब में ही फूक देता था. वह  भी काम से आते वक्त बीबी जी से दो प्याज माँगकर ले आई थी.

बाहर आसमान भी आज उसके घर में खुशी बरसाने के भाव मे था. चाँद का उजाला ना सही इस छोटे से सुख में  घुमडते बादलों सा उसका मन झूम-झूम उठा  था.

"आज ही तो तू आई थी मेरे जीवन में…

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Added by नयना(आरती)कानिटकर on July 31, 2017 at 7:45pm — 11 Comments

ग़ज़ल...नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे-बृजेश कुमार 'ब्रज'

22 22 22 22
फिरते हैं बन वन बंजारे
नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे

जब भी होंट खुले तो पाया
नाम तुम्हारा साँझ सकारे

जाने वाले आ भी जा अब
तुझको मेरी आह पुकारे

दर्द जुदाई आहें आँसू
जीवन है या कोइ सजा रे

कितने अरसे बाद मिले हो
ओ मेघा मनमीत सखा रे
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 31, 2017 at 8:51am — 14 Comments

ग़ज़ल --2122--1122--1122--112(22)

2122--1122--1122--112



फैसले के लिए सिक्का न उछाला जाए

जान माँगे जो वतन वक़्त न टाला जाए



हाँ मैं हूँ मुल्क़ तुम्हारा न उछालो मिट्टी

नौज़वानों मुझे गड्डे से निकाला जाए



अच्छे अच्छों के किये होश ठिकाने लेकिन

होश में हो जो उसे कैसे सँभाला जाए



आपने कह दिया झट से कि मैं, मैं हूँ ही नहीं

मेरे भीतर मुझे थोड़ा तो खँगाला जाए



ज़ह्र के दाँत उखाड़ो कि कुचल डालो फन

आस्तीनों में यूँ नागों को न पाला जाए



मुफ़लिसी ने मिरी…

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Added by khursheed khairadi on July 30, 2017 at 11:00pm — 7 Comments

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