Added by Manan Kumar singh on June 23, 2017 at 8:53am — 3 Comments
अनकहा ...
कुछ तो
रहने दिया होता
मन की कंदराओं में
करवटें लेता
कोई भाव
अनकहा
क्या
ज़रूरी था
स्मृति पृष्ठ की
यादों को
नयन तीरों का
पता देना
आखिर
पता लग गया न
ज़माने को
सब कुछ
जो दबा के रखा था
दिल में
इक दूजे से
बांटने के लिए
सांझा दर्द
अनकहा
सांझ
कब तलक
तिमिर को रोकती
प्रतीक्षा की रेशमी डोरी
प्रभात की तीक्षण रश्मियों से…
Added by Sushil Sarna on June 21, 2017 at 3:25pm — 8 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on June 21, 2017 at 1:49pm — 15 Comments
Added by Barkha Shukla on June 21, 2017 at 1:13pm — 3 Comments
लल्ला गया विदेश
© बसंत कुमार शर्मा
जाने क्यों अपनी धरती का,
जमा नहीं परिवेश.
ताक रही दरवाजा अम्मा,
लल्ला गया विदेश.
खेत मढैया बिका सभी कुछ,
हैं जेबें खाली.
बैठी चकिया पीस रही है,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 20, 2017 at 6:55pm — 4 Comments
विरासत (लघुकथा )
सुबह पढ़ी कहानी से महेंद्र बहुत प्रभावित हुए |
वह चाहते थे कि घर का हर सदस्य भी इसे पढ़ें क्यूंकि इस कहानी में लेखक ने जो बताने की कोशिश की है |
वे आज के दौर के बारे में है जो हमारी आने वाली जिंदगी को कैसे प्रभावित करेगी के बारे में है |
घर के सदस्य टेलीविज़न देख रहे हैं |
मगर सब से छोटी लड़की सौफे पे बैठी पढ़ रही है |
महेंद्र इस कहानी को पढ़ने के लिए, उसे देना चाह रहा है |
क्यूंकि के उसकी लाइब्रेरी में कई किताबें हैं, मगर वे सब…
Added by मोहन बेगोवाल on June 19, 2017 at 3:30pm — No Comments
पश्चिम की आँधी
पश्चिम की आँधी शहरों से,
गाँवों तक आई.
देख सड़क को पगडंडी ने,
ली है अँगड़ाई.
बग्गी, घोड़ी छोड़ कार में,
बैठा है दूल्हा.
नई बहुरिया माँग रही है,
तुरत गैस चूल्हा.…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 18, 2017 at 4:30pm — 2 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on June 18, 2017 at 12:00am — 4 Comments
Added by Mohammed Arif on June 17, 2017 at 10:58pm — 4 Comments
Added by दिनेश कुमार on June 17, 2017 at 1:34pm — 4 Comments
Added by suresh jadav 'Binaganjvi' on June 17, 2017 at 2:00am — 4 Comments
Added by suresh jadav 'Binaganjvi' on June 17, 2017 at 1:57am — 3 Comments
“यार अच्छी-खासी नौकरी है तुम्हारी ये दिन रात इंटरनेट और मोबाइल पर क्या खेल खेलते रहते हो, थोड़ा हम लोगों के पास भी बैठा करो, पिता ने बड़ी ही मित्रतापूर्वक भाव से ‘आनंद’ से पूछा !
आनंद ने अपना लैपटॉप बंद करते हुए बड़े ही सहज भाव से कहा “कुछ नहीं पिताजी आपकी समझ से बाहर है यह सब, जब मैं बड़ा आदमी बन जाऊँगा तब आपको अपने आप पता चल जाएगा !”
पिता अपना सा मुहँ लेकर खामोश हो गए तभी आनंद की माँ आ गईं और उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, बेटा सबकुछ तो ठीक चल रहा है, अच्छी खासी तन्खाव्ह है…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on June 16, 2017 at 3:30pm — 10 Comments
मछली और दाँत
अचानक ! बरसात आती है
सड़क चलती लड़की
भीग जाती है |
एक्वेरियम की छोटी रंगीन
मछली तैर-तैर के
मन रीझ जाती है ||
x x x x x x x x
देखता हूँ टकटकी लगाए
जब तक ना होती ओझल |
“दाना-दाना-दाना-दाना”
उकसाता पुरुष मन चंचल ||
x x x x x x x x x x
बेटी सहसा आ,छेड़ देती बात
हमले से,काँप उठता है गात |
और मैं देखता हूँ छोटी मछली
और बढ़ते हुए बड़े-बड़े दाँत ||
सोमेश कुमार(मौलिक…
ContinueAdded by somesh kumar on June 16, 2017 at 2:48pm — 1 Comment
Added by Naveen Mani Tripathi on June 16, 2017 at 2:01pm — 2 Comments
Added by दिनेश कुमार on June 15, 2017 at 11:55pm — 2 Comments
तुम्हारी कसम ...
सच
तुम्हारी कसम
उस वक़्त
तुम बहुत याद आये थे
जब
सावन की फुहारों ने
मेरे जिस्म को
भिगोया था
जब
सुर्ख़ आरिज़ों से
फिसलती हुई
कोई बूँद
ठोडी पर
किसी के इंतज़ार में
देर तक रुकी रही
जब
तुम्हारे लबों के लम्स
देर तक
मेरे लबों से
बतियाते रहे
जब
घटाओं की
कड़कती बिजली में
मैं काँप जाती
जब
बरसाती तुन्द हवाओं से…
Added by Sushil Sarna on June 15, 2017 at 9:35pm — 6 Comments
गाँव जबसे कस्बे - - - -
गाँव जबसे कस्बे
होने लगे |
बीज अर्थों के,रिश्तों में
बोने लगे |
गाँव जबसे कस्बे- - - -
पेपसी,ममोज़ चाऊमीन से
कद बढ़ गया |
सतुआ-घुघुरी-चना-गुड़ से
बौने लगे |
पातियों का संगठन
खतम हो गया
बफ़र का बोझ अकेले ही
ढोने लगे |
गाँव जबसे कस्बे- - - -
पत्तलों कुल्ल्हडो की
खेतियाँ चुक गईं |
थर्माकोल-प्लास्टिक से
खेत बोने लगे…
ContinueAdded by somesh kumar on June 15, 2017 at 9:30am — 3 Comments
Added by दिनेश कुमार on June 15, 2017 at 4:28am — 6 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on June 15, 2017 at 1:00am — No Comments
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