भूल गया जो मै खुद को तुझको पाकर
ये क्या कर बैठा दिल मेरा तुझपे आकर,
बस गये जो तुम मेरे इस दिल में आकर
मर न जाऊँ कहीँ मै इतनी ख़ुशी पाकर,
तूने ये क्या कर दिया दिल में मेरे आकर
अब तोड़ो ना दिल इस तरह से जाकर,
ख़ुदा मिल गया था जैसे तुझको पाकर
बता अब क्या कहूँ में ख़ुदा के घर जाकर,
पूछे जो क्यों भूल गया था किसी को पाकर
तू ही कुछ राह सूझा जा वापिस आकर,
कैसे बताऊँ मिल गया था क्या तुझको पाकर
ख़ुदा ही रूठ गया मेरा तो जैसे…
ContinueAdded by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on April 29, 2017 at 6:26am — 3 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on April 28, 2017 at 5:26pm — 22 Comments
गर्व ....
रोक सको तो
रोक लो
अपने हाथों से
बहते लहू को
मुझे तुम
कोमल पौधा समझ
जड़ से उखाड़
फेंक देना चाहते थे
मेरे जिस्म के
काँटों में उलझ
तुमने स्वयं ही
अपने हाथ
लहू से रंग डाले
बदलते समय को
तुम नहीं पहचान पाए
शर्म आती है
तुम्हारे पुरुषत्व पर
वो अबला तो
कब की सबला
बन चुकी ही
जिसे कल का पुरुष
अपनी दासी
भोग्या का नाम देता था
देखो
तुम्हारे…
Added by Sushil Sarna on April 28, 2017 at 5:00pm — 6 Comments
यकीं के बाम पे ...
हो जाता है
सब कुछ फ़ना
जब जिस्म
ख़ाक नशीं
हो जाता है
गलत है
मेरे नदीम
न मैं वहम हूँ
न तुम वहम हो
बावज़ूद
ज़िस्मानी हस्ती के
खाकनशीं होने पर भी
वज़ूद रूह का
क़ायनात के
ज़र्रे ज़र्रे में
ज़िंदा रहता है
ज़िंदगी तो
उन्स का नाम है
बे-जिस्म होने के बाद भी
रूहों में
इश्क का अलाव
फ़िज़ाओं की धड़कनों में
ज़िंदा रहता है
लम्हे मुहब्बत…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 28, 2017 at 2:05pm — 7 Comments
Added by Vivek Kumar on April 28, 2017 at 1:23pm — 3 Comments
माना तेरा परिचय रूप है श्रंगार है.. पर,
मत भूल तुझमें रक्त का दौड़ता उबाल है |
सब पीर हैं तुझसे तृषित संसार की..
पर कैद सीने मे तेरे भी सहन का भण्डार है |
तू मूर्त है अभिमान की और गर्व भी अपार है,
तोड़ पैरों की बेड़ियाँ ये तेरा भी संसार है |
प्रेम की ओढ़े चुनरिया तू त्याग का गुबार है,
मत भूल तुझमें रक्त का दौड़ता उबाल है ||
गर जमीर तेरा साफ है तो जरूरत नही प्रमाण की,
कि दर्द तेरा हार और परिस्थिति श्रंगार है |
दुनिया ने देखी है तेरी सौंदर्य की…
Added by Vivek Kumar on April 27, 2017 at 10:30pm — 2 Comments
Added by Manan Kumar singh on April 26, 2017 at 7:31pm — 3 Comments
ग़ज़ल
फ ऊलन -फ ऊलन- फ ऊलन- फ ऊलन
.
ये हसरत मुकम्मल कभी हो न पाई।
मिले वह मगर दोस्ती हो न पाई ।
मुलाक़ात का सिलसिला तो है जारी
मगर इब्तदा प्यार की हो न पाई ।
त अज्जुब है बदले हैं महबूब कितने
मगर काम रां आशिक़ी हो न पाई।
गए वह तसव्वुर से जब से निकल कर
खुदा की क़सम शायरी हो न पाई ।
करें नफ़रतें भूल कर सब मुहब्बत
अभी तक ये जादूगरी हो न पाई ।
मुसलसल वो करते रहे बे…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 26, 2017 at 7:30pm — 8 Comments
Added by Arpana Sharma on April 26, 2017 at 5:39pm — 4 Comments
लिस्ट में से नाम और पता लेकर अमर ने खुद को विजट पर जाने के लिए तैयार कर लिया मोटर साइकल स्टार्ट कर वो सलेमपुर की तरफ निकल पड़ा।
अपना प्रोग्राम उसने ऐसे तैयार किया था कि कम से कम तीन कैंसर पीड़ित मैंबर के किसी फैमली मैंबर से वह मिल सके ।
चलने से पहले लिस्ट क्रम में इक नंबर पर महिंद्र कौर के घर वालों की तरफ से दिए गए नंबर पर उसने फौन लगाया ऐसा करना इस लिए भी जरूरी था कि कोई घर मिल जाए खास करके वह आदमी…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on April 25, 2017 at 5:13pm — 1 Comment
क़ैद रहा ...
वादा
अल्फ़ाज़ की क़बा में
क़ैद रहा
किरदार
लम्हों की क़बा में
क़ैद रहा
प्यार
नज़र की क़बा में
क़ैद रहा
इश्क
धड़कनों की क़बा में
क़ैद रहा
कश्ती
ढूंढती रही
किनारों को
तूफ़ां
शब् की क़बा में
क़ैद रहा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 25, 2017 at 5:00pm — 11 Comments
2122 1122 1122 22/112
कितने अच्छे थे मेरा ऐब बताने वाले
वो मेरे दोस्त मुझे रस्ता दिखाने वाले
वक्त ने, काश! उन्हें रुकने दिया होता ज़रा
साथ ही छोड़ गए साथ निभाने वाले
मुफ़लिसी मक्र की छाई है सियाही अब भी
पर बताओ हैं कहाँ शम्अ जलाने वाले
अपने क़ातिल से शिकायत नहीं कोई मुझको
कर गए ग़र्क मेरी कश्ती, बचाने वाले
खूब तासीर नज़र आई मुहब्बत की यूँ
रो पड़े जाँ को मेरी फ़ैज़ उठाने वाले
एकता टूटने पाए न कभी, मसनद पर
आके बैठे…
Added by शिज्जु "शकूर" on April 25, 2017 at 11:30am — 19 Comments
एक पौधा हमने रोपा था
सात वर्ष पहले
सोचा था वह
बढेंगा , फूलेगा, फलेगा।
धीरे-धीरे
उसमें आया विकास का
बवंडर
जो हिला गया
चूल-चूल उस वृक्ष के
जिसके लिए हम सोच रहे थे
कि कैसे उसे जड़ से
उखाड़ फेंके
एक ही झटके से उखड़ कर
धराशायी हो गया
हमने चैन की सांस ली
उस तरफ देखा तो
हमारा पौधा जो
अभी नाबालिग बच्चा था
अपनी हरियाली लिए
धीरे-धीरे झूम रहा था
हमें यह देख कर प्रसन्नता हुयी
उससे आशा की…
Added by indravidyavachaspatitiwari on April 25, 2017 at 7:30am — 2 Comments
टिपर-टिपर-टिप
टिपर-टिपर-टिप
पानी की इक बूँद झूम कर
मुस्काई फिर ये बोली...
मैं अलमस्त फकीर
टिपर-टिप
मैं अलमस्त फकीर...
चंचलता जब ओस ढली तो
पत्तों नें भी जोग लिया,
उनके हिस्से जितना मद था
सब का सब ही भोग लिया,
बाँध सकी पर बूँदों को कब
कोई भी ज़ंजीर...
टिपर-टिप
मैं अलमस्त फकीर...
रिमझिम-रिमझिम जब बरसी तो
जीवन के अंकुर फूटे,
अम्बर की सौंधी पाती ने
जोड़े सब रिश्ते टूटे,
बूँदें ही…
Added by Dr.Prachi Singh on April 24, 2017 at 10:00pm — 8 Comments
2122/1122/1122/22
.
ऐसा लगता है फ़क़त ख़ार सँभाले हुए हैं,
शाख़ें, पतझड़ में भी क़िरदार सँभाले हुए हैं.
.
जिस्म क्या है मेरे बचपन की कोई गुल्लक है
ज़ह’न-ओ-दिल आज भी कलदार सँभाले हुए हैं.
.
आँधियाँ ऐसी कि सर ही न रहे शानों पर,
और हम ऐसे में दस्तार सँभाले हुए हैं.
.
वक़्त वो और था; तब जान से प्यारे थे ख़ुतूत
अब ये लगता है कि बेकार सँभाले हुए हैं.
.
टूटी कश्ती का सफ़र बीच में कुछ छोड़ गए,
और कुछ आज भी पतवार सँभाले हुए…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 24, 2017 at 8:59pm — 20 Comments
तेरा मेरा साथ अगर हो जाये
तो जीना मेरा पुख़्ता हो जाये
धूप कभी गर लगे जो मुझको
छांव तेरी जुल्फों का हो जाये
ना कोई वादा ना कोई कसमें
निभाते चलें बस प्यार की रस्में
सांस अधूरी धड़कन अधूरी
जब तुम ना थे तब हम अधूरे
पूरा है अब चाँद फलक पर
अब तू भी पूरा में भी पूरा।
रोहित डोबरियाल"मल्हार"
मौलिक व अप्रकाशित
Added by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on April 24, 2017 at 8:24pm — No Comments
आखिर आज शो का दिन आ ही गया| गाँव की चौपाल पर सुरीली तान छेड़ने वाला रामा बहुत घबराया हुआ था| दोस्त के कहने पर, गायकी के शो में जब चयनित होकर आया तो शहर की चकाचौंध देखता रह गया था| होटल के ए सी रूम में उसकी आवाज़ भी बंद हो गयी|
साथी प्रतियोगियों के लिए अजूबा सा रामा, हीन महसूस करता| बस खुसुर-पुसुर और व्यंगात्मक हँसी| लज्जित, अपमानित होकर मन हीनता के बोध से मुरझा-सा गया| उच्चारण और सुर के लिए जो बातें बताई गईं, समझ से परे थीं| बालों का स्टाइल बनाकर, डिजाइनर कपड़े पहनाए गए| असहज हो…
ContinueAdded by Seema Mishra on April 24, 2017 at 5:09pm — 8 Comments
हार गई जिंदगी
चार दिन से ऋचा ड्यूटी पर नहीं जा रही थी, बुखार के साथ शरीर में लाल्गी आने से परेशानी और बढ़ गई थी जिस कारण अब बिस्तर से उठकर चलना भी मुश्किल हो रहा था।
प्रशिक्षण दौरान पढ़ाया गया था कि अगर माता रानी की क्रोपी बढ़ी ऊम्र में हो जाए तो रोग जानलेवा भी हो सकता है ।
यह बात वह पति परमेशर कई बार बता चुकी थी, लेकिन अभी तक कोई जवाब उसके द्वारा नहीं मिल रहा था इक बार ऋचा ने कहा कि वह माँ के घर जा आती है, लेकिन सासू माँ ने इनकार कर दिया…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on April 24, 2017 at 5:00pm — 1 Comment
पांच मिनट के लिए स्टेशन पर गाड़ी रुकी जनरल बोगी में पहले ही बहुत भीड़ थी उसपर बहुत से लोग और घुस आये जिनमे सजे धजे परफ्यूम की सुगंध बिखेरते चार किन्नर भी थे| कुछ लोगों के चेहरे पर अजीब सी मुस्कान आ गई जैसे की कोई मनोरंजन का सामान देख लिया हो कुछ लोगों ने अजीब सा मुंह बनाया तथा एक साइड को खिसक लिए जैसे की कोई छूत की बीमारी वाले आस- पास आ गए हों|
“अब ये अपने धंधे पर लगेंगे” वहाँ बैठे लडकों के ग्रुप में से एक ने कहा| “हाँ यार आज कल तो ट्रेन में भी आराम से सफ़र नहीं कर सकते अच्छी…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 24, 2017 at 12:08pm — 26 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 23, 2017 at 4:30pm — 18 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |