"हे परवरदिगार! ये तूने मुझे आज कैसे इम्तिहां में डाल दिया ?" उसने पीछे लेटे लगभग बेहोश, युवक को एक नजर देखते हुए हाथ इबादत के लिए उठा दिए।
...... रात का दूसरा पहर ही हुआ था जब वह सोने की कोशिश में था कि 'कोठरी' के बाहर किसी के गिरने की आवाज सुनकर उसने बाहर देखा, घुप्प अँधेरे में दीवार के सहारे बेसुध पड़ा था वह अजनबी। देखने में उसकी हालत निस्संदेह ऐसी थी कि यदि उसे कुछ क्षणों में कोई सहायता नहीं मिलती तो उसका बचना मुश्किल था। युवक की हालत देख वह उसके कपडे ढीले कर उसे कुछ आराम की स्थिति…
Added by VIRENDER VEER MEHTA on December 20, 2016 at 10:30pm — 23 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on December 20, 2016 at 8:30pm — 4 Comments
" आज कड़ाके की ठण्ड है।" कहते हुए उसने दोनों हाथों को आपस में रगड़ कर अपने अंदर गर्मी का अहसास जगाया। बदन पर पहनी एकमात्र कमीज और पतली सी सांता क्लॉज की ड्रेस उसको गर्म रखने में नाक़ाम लग रही थी।
" ममा ! देखो सैंटा " एक छह या सात साल का बच्चा उसकी ओर उत्सुकता से देखने लगा।
" सारी सुस्ती छोड़कर उसने मुस्कुराते मुखौटे के अंदर ठण्डी साँस भरी और मुठ्ठी टॉफियों के साथ गर्मजोशी से बच्चे की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया।
"थैंक्यू सैंटा !" बच्चे ने लपक कर टॉफियां पकड़ ली।साथ ही उसके पापा ने…
Added by Janki wahie on December 20, 2016 at 1:30pm — 14 Comments
Added by नाथ सोनांचली on December 20, 2016 at 12:30pm — 7 Comments
2212 2212 2212 2212
शर्मो हया के साथ कुछ दीवानगी पढ़ने लगी।
वो सुर्खरूं चेहरे पे कुछ आवारगी पढ़ने लगी ।।
हर हर्फ़ का मतलब निकाला जा रहा खत में यहां ।
खत के लिफाफा पर वो दिल की बानगी पढ़ने लगी ।।
वह बेसबब रातों में आना और वो पायल की धुन ।
शायद गुजरती रात की वह तीरगी पढ़ने लगी ।।
गोया के वो महफ़िल में आई बाद मुद्दत के मगर ।
ये क्या हुआ उसको जो मेरी सादगी पढ़ने लगी ।।
कुछ हसरतों को दफ़्न कर देने पे ये तोहफा मिला ।
वो फिर…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 20, 2016 at 6:00am — 8 Comments
सरसी छन्द :
शिल्प :16,11 मात्राएँ चरणान्त गुरु+लघु
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प्रसंग : "धनुष यज्ञ" रामचरित मानस
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सुनें जनक के वचन लखन नें,उमड़ पड़ा आक्रोश ।।
दहल उठी थीं दसों दिशायें,देख लखन का जोश ।।
लगता ज्वालामुखी खड़ा हो,भरे हृदय में रोष ।।
या फ़िर जैसॆ प्रलय सामने,खड़ा हुआ ख़ामोश ।।
काँप उठी थी सभा समूची,नत भूपॊं की दृष्टि ।।
लगता सम्मुख खड़ा शेष अब,खा जाएगा सृष्टि ।।
भृकुटि तनीं भुजदण्ड फड़कते,रक्त…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 19, 2016 at 10:30pm — 12 Comments
(मफाईलुन---मफाईलुन ----फऊलन )
ज़माना दुश्मने दिल हो गया है |
मुहब्बत करना मुश्किल हो गया है |
सफ़ीना बच गया तूफां से लेकिन
बहुत ही दूर साहिल हो गया है |
यह क्या कम है जुदा थी राह जिसकी
वो साथी क़ब्ले मंज़िल हो गया है |
खिलाफे ज़ुल्म कोई लब न खोले
जिसे देखो वो बुज़दिल हो गया है |
निगाहें बोलती हैं यह किसी की
ये दिल अब उनके क़ाबिल हो गया है |
किसी की खूब रूई का है जादू …
Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 19, 2016 at 8:30pm — 10 Comments
उसके दरबार में ……………
पूजा कहीं दिल से की जाती है
तो कहीं भय से की जाती है
कभी मन्नत के लिए की जाती है
तो कभी जन्नत के लिए की जाती है
कारण चाहे कुछ भी हो
ये निश्चित है कि
पूजा तो बस स्वयं के लिए की जाती है
कुछ पुष्प और अगरबती के बदले
हम प्रभु से जहां के सुख मांगते हैं
अपने स्वार्थ के लिए
उसकी चौखट पे अपना सर झुकाते हैं
अपनी इच्छाओं पर
अपना अधिकार जताते हैं
इधर उधर देखकर
प्रभु के परम भक्त होने पर इतराते…
Added by Sushil Sarna on December 19, 2016 at 6:31pm — 12 Comments
ऊन सलाई संग दादी का
बहुत पुराना था याराना
चपल उँगलियों का दादी की
जाड़े ने भी लोहा माना
छत पर जब दादी को पाती
धूप गुनगुनी मिलने आती
ख़ास सहेली बन दादी की
वो भी फंदों से बतियाती
सीधे पर दो उल्टे फंदे
बुनता जाता ताना बाना
कल जो था बाबा का स्वेटर
अब छोटू का टोपा मफलर
नई पुरानी ऊनों के संग
चपल उँगलियाँ चलतीं सर सर
इस रिश्ते से उस रिश्ते तक
गर्माहट का आना…
ContinueAdded by pratibha pande on December 18, 2016 at 1:00pm — 8 Comments
Added by Mahendra Kumar on December 18, 2016 at 8:31am — 8 Comments
माँ की ममता कोई कल्पना नहीं,
ये सृष्टि संरचना की एक दास्तां
जो जन्म लेती अनंत गहराई में
पुष्पित,पल्लवित होती धरातल पर
एक कल्पतरु का सुंदर रूप लेकर
सदियों से चल रहा यह शिलशिला
ये हृदय से निकली प्यार ज्योति
सूर्य की रोशनी में हर दिन बढ़ती
बांधती सभी को एक प्रेम डोर में
अपने खुशियों की देती तिलांजली
नन्ही सी चिड़िया लड़ती साँप से
अपने प्राणों को संकट में डालकर
उसे बचाती मुसीबतों को झेलकर
उसके…
ContinueAdded by Ram Ashery on December 17, 2016 at 8:30pm — 5 Comments
काफिया :ओं ; रदीफ़: ने ले लिया
बह्र: २२१ २१२१ १२२१ २१२
बन्दे का काम घेर, उसूलों ने ले लिया
है गलतियाँ रहस्य, बहानों ने ले लिया |१
वो बात जो थी कैद तेरे दिल के जेल में
आज़ाद करना काम अदाओं ने ले लिया |२
चुपके से निकले घर से, सनम ने बताया था
वो जिंदगी का राज़ निशानों ने ले लिया |३
धरती को चाँदनी ने बनायीं मनोरमा
विश्वास नेकनाम सितारों ने ले लिया |४
मिलता है सुब्ह शाम समय रिक्त अब…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 17, 2016 at 8:00pm — 4 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 17, 2016 at 5:09pm — 8 Comments
ज़ंग .....
गलत है
मिथ्या है
झूठ है
कि
उदासी
अकेलेपन की दासी है
अकेलेपन के किनारों पर
नमी का अहसास होता है
क्या अकेलापन
अंतस का
दर्द से
परिचय कराने का पर्याय है ?
जब कुछ नहीं होता
तो अकेलापन होता है
अकेलेपन में
स्व से परिचय होता है
अपने वज़ूद से
पहचान होती है
ज़िदंगी करीब आती है
अपना पराया समझाती है
अकेलेपन में
पीछे छूटे लम्हात
साथ निभाते हैं…
Added by Sushil Sarna on December 17, 2016 at 4:45pm — 6 Comments
Added by आशीष यादव on December 17, 2016 at 6:56am — 6 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 16, 2016 at 9:13pm — 4 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on December 16, 2016 at 2:00pm — 5 Comments
इंतज़ार ....
भोर की पहली किरण
सर्द हवा
आधी जागी
आधी सोयी
तू गर्म शाल में लिपटी
बालकनी के कोने में
हाथों में
कॉफी का कप लिए
यक़ीनन
मेरे आने का
इंतज़ार करती होगी
कितना
रुमानियत भरा होगा
वो मंज़र
तेरी आँखों में
मेरे आने के
इंतज़ार का
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 16, 2016 at 1:01pm — 8 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on December 16, 2016 at 12:39pm — 6 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on December 16, 2016 at 6:47am — 8 Comments
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