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अपनों से ...

अपनों से  ... 

सपने
अक्सर
तारों की तरह
गिरकर
टूट जाते हैं

चीख उठते हैं
आँखों में
ख़ामोश आंसू
जब
अपने
अपनों से
रूठ जाते हैं

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 29, 2016 at 5:57pm — 6 Comments

“नूतन वर्षाभिनंदन - 2017” /कविता :- अर्पणा शर्मा

365 दिनों के,

माला में पिरोये मनके,

समय को कब

अवकाश है पाना,

न जीवन का,

स्थगन है कर पाना,

साल दर साल,

ये माला है जपते जाना,

नव वर्ष की

इस नई माला में,

नई आशाओं का

झुमका है लगाना,

परिश्रम की स्वेद बूंदों से

इसे है पखारते जाना,

विगत को संजोकर इतिहास में

चुनकर हंसी के मोती,

प्रेम-उल्लास की झालरों से

आगत के स्वागत में,

आँगन है सजाना,

जीवन आनंद की बूंदों का

रसास्वादन है करते… Continue

Added by Arpana Sharma on December 29, 2016 at 5:30am — 8 Comments

ग़ज़ल- मिल गया है आपका वह ख़त पुराना शुक्रिया

2122 2122 2122 212

मिल गया है आपका वह ख़त पुराना शुक्रिया ।

याद आया फिर मुझे गुज़रा ज़माना शुक्रिया ।।



ढल गई चेहरे की रौनक ढल गया वह चाँद भी ।।

हुस्न का अब होश में आकर बुलाना शुक्रिया ।।



कुछ अना के साथ में नज़रों की वो तीखी क़सिस।

बाद मुद्दत के तेरा यह दिल जलाना ,शुक्रिया ।।



मुस्तहक़ थी आरजू पर हो सकी कब मुतमइन ।

वक्त पर आवाज देकर यूँ बुलाना शुक्रिया ।।



जिक्र कर लेना मुनासिब है नहीं इस दौर में ।

फिर गमे उल्फ़त का देखो लौट आना,… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on December 28, 2016 at 11:59pm — 10 Comments

कैसे-कैसे मरहम ?

 अँधेरा हो गया था

मेले से लौटने में 

जब बैलगाड़ी के पहिये में

फंस गया था

मेरी बेटी का दुपट्टा

जो पहिये के घूर्णन के साथ-साथ

कसता गया

मेरी बेटी के गले में

और तब गया सबका ध्यान 

जब घुटी -घुटी सी चीख

निकली उसके मुख से

हठात बैलों की लगाम

खींची गाडीवान ने

और बैल पैर उठाकर 

पीछे की और धसके

 

पहिये में फंसे दुपट्टे को

आहिस्ता से निकाल कर 

छुड़ाया गया उसका गला

उस काल-फंद…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 28, 2016 at 8:20pm — 17 Comments

कह्र....

कह्र ...

थक गयी है
लबों पे हंसी
शायद लब
आडम्बर का ये बोझ
और न सहन कर पाएंगे
संग अंधेरों के
ये भी चुप हो जाएंगे
कफ़स में कहकहों के
दर्द बेवफाई का
ये छुपा न पाएंगे
बावज़ूद
लाख कोशिशों के
ये
गुज़रे हुए
लम्हों की आतिश से
बंद पलकों से
पिघल कर
तकिये को
गीला कर जाएंगे
सहर की पहली शरर पे
रिस्ते ज़ख्मों का
कह्र लिख जाएंगे


सुशील सरना

मौलिक एवम अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on December 28, 2016 at 5:45pm — 14 Comments

मैं भुला देना चाहता हूँ

मैं भुला देना चाहता हूँ

झिलमिल सितारों को

झूमती बहारों को

सावन के झूलों को

महकते हुए फूलों को

मौसमी वादों को

पक्के इरादों को

नर्म एहसासों को

बहके जज़्बातों को

सोंधी सी ख़ुशबू को

कोयल की कू को

नाचते हुए मोर को

नदियों के शोर को

चाँदनी रातों को

मीठी-मीठी…

Continue

Added by Mahendra Kumar on December 28, 2016 at 1:30pm — 10 Comments

तरही गजल/सतविन्द्र कुमार राणा

2122 2122 212

बह रहे हो नद-से दम भर देखिये

चलते रहना पर ठहरकर देखिए।



राज दिल के मुँह पे लाकर देखिए

आज अपनों को बताकर देखिए।



जा रहे हो दूर हमसे रूठकर

थोड़ा-सा नजदीक आकर देखिये।



नफरतों से क्या किसी को कुछ मिला?

चाह दिल में भी जगाकर देखिये।



कुछ न हासिल हो सका चलके अलग

*दो कदम तो साथ चलकर देखिए।*



मुश्किलों में भी ख़ुशी को पा लिया

मिटता उनके दिल का हर डर देखिये



मुश्किलें होती हैं सच की राह… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 28, 2016 at 11:45am — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
जल रहें हैं गीत देखो (गीत) - मिथिलेश वामनकर

वेदना अभिशप्त होकर,

जल रहें हैं गीत देखो।

 

विश्व का परिदृश्य बदला और मानवता पराजित,

इस धरा पर खींच रेखा, मनु स्वयं होता विभाजित ।

इस विषय पर मौन रहना, क्या न अनुचित आचरण यह ?

छोड़ना होगा समय से अब सुरक्षित आवरण यह।

कुछ कहो, कुछ तो कहो,

मत चुप रहो यूँ मीत देखो।

वेदना अभिशप्त होकर,

जल रहें हैं गीत देखो।

 

मन अगर पाषाण है, सम्वेदना के स्वर जगा दो।

उठ रही मष्तिष्क में दुर्भावनायें,  सब भगा…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2016 at 11:00am — 18 Comments

सपने -- डॉo विजय शंकर

सपने देखने में
कुछ नहीं जाता है ,
टूट जाएँ तो कुछ
रह भी नहीं जाता है।
इसलिए सपने देखें नहीं ,
हमेशा दूसरों को दिखाएं ,
सुन्दर , लुभावने , बड़े-बड़े ,
पूरे हों तो वाह , .. न हों ,
आपका कुछ नहीं जाता है ,
लेकिन इलेक्शन अकसर
इसी फार्मूले पे जीता जाता है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on December 28, 2016 at 10:55am — 10 Comments

बाज आ बस्तियाँ जलाने से

बह्र 2122 1212 22



लाख कोशिश करो ज़माने से

राज छिपता नही छिपाने से।।



सिर्फ कहने से कुछ नही होता

रिश्ता होता है बस निभाने से।।



हारते हम लड़ाइयाँ अक्सर

पीठ मैदान में दिखाने से।।



हाथ माँ का अगर तेरे सर हो

तू मिटेगा नहीं मिटाने से।।



मै बिखरता हूँ कितने टुकडो में

हौसला यार टूट जाने से।।



जिनकी आँखों पे हो बँधी पट्टी

क्या मिले आइना दिखाने से।।



तेरा घर भी इन्ही में है आबाद

बाज आ बस्तियां जलाने… Continue

Added by नाथ सोनांचली on December 28, 2016 at 9:08am — 9 Comments

गीत – सवेरा तू है लाती....

आहिस्ता – आहिस्ता, पास तू आने लगी,

बाहों मे आकर, दिल मे समाने लगी,

छूकर मुझको, सपना दिखाने लगी,

नींदों मे आकर, तू अब सताने लगी.

सवेरा तू है लाती, तू ही लाती रात है,

मेरे दिल को जो धड़कादे , तुझमे वही बात है....(2)



1} देदूं मैं…

Continue

Added by M Vijish kumar on December 28, 2016 at 8:30am — 8 Comments

जज़्बात (नज़्म)

मेरे दिल के जज़्बात साथ नहीं देते हैं

और आँसू भी अपनी बात कहते हैं ।



ना जाने नम सी आँखें रहती हैं

और दर्द की पीर आँखें सहती हैं

देखकर बेवफाई यह रोती है

तन्हाई के हर सितम सहती हैं ।



रात की अँधियारी में कभी रोती हैं

कभी काँधे पे सर रख सोती हैं

अश्क बन जब जब दिखाई देतीं हैं

सारा जग समेट अपने में भर लेतीं है ।



दर्द का दरिया आँखों को कहते हैं

आँखों से ही तो इशारे किया करते हैं

सूनी सूनी सी गलियारी है दिल की

हर…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 27, 2016 at 8:30pm — 6 Comments


प्रधान संपादक
अधूरी कथा के पात्र (लघुकथा) .

अचानक स्कूटर खराब हो जाने के कारण वापिस लौटने में काफी देर हो चुकी थी अत: वह काफी तेज़ी से स्कूटर चला रहा थाI एक तो अँधेरा ऊपर से आतंकवादियों का डरI इस सुनसान रास्ते पर बहुत से निर्दोष लोगों की हत्याएँ हो चुकी थींI वह अपने अंदर के भय को पीछे बैठी पत्नी से छुपाने का प्रयास तो कर रहा था, किन्तु उसकी पत्नी स्कूटर तेज़ रफ़्तार से सब कुछ समझ चुकी थीI स्कूटर नहर की तरफ मुड़ा ही था कि अचानक हाथों में बंदूकें पकडे पाँच सात नकाबपोश साए सड़क के बीचों बीच प्रकट हो गएI

“रुक जा ओये!” एक…
Continue

Added by योगराज प्रभाकर on December 27, 2016 at 10:00am — 10 Comments

आँधियाँ ( लघु-कविता ) - डॉo विजय शंकर

ये कुदरत है ,
रुख , दाब हवा का संतुलन
बिगाड़िये मत , बना रहने दीजिये।
आँधियाँ किसी के बुलाये ,
लाये से , नहीं आतीं ,
और आ जाएँ तो
किसी के भगाये से नहीं जातीं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on December 27, 2016 at 6:06am — 12 Comments

ग़ज़ल- ख़त मेरा दिल से लगाकर देखिये

2122 2122 212



चाँद को महफ़िल में आकर देखिये ।

इक ग़ज़ल मेरी सुनाकर देखिये ।।



गर मिटानी हैं जिगर की ख्वाहिशें ।

इस तरह मत छुप छुपाकर देखिये ।।



ये रक़ीबों का नगर है मान लें ।

इक रपट मेरी लिखाकर देखिये ।।



हुस्न पर पर्दा मुनासिब है नहीं ।

बज़्म में चिलमन उठाकर देखिये ।।



क्यों फ़िदा हैं लोग शायद कुछ तो है ।

आइने में हुस्न जाकर देखिये ।।



हैं हवाएँ गर्म कुछ् बेचैन मन ।

तिश्नगी थोड़ी बुझा कर देखिये ।।



आप… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on December 27, 2016 at 1:16am — 4 Comments

नया साल

आएगा नया साल

खिलेंगे नये फूल

उगेगा नया सूरज

फैलेगी नयी रौशनी

छंटेगा अँधेरा

सजेगी महफ़िल

गायेंगी वादियाँ

बजेंगी चूड़ियाँ

झूमेगा आसमाँ

नाचेगी धरती

उड़ेगा आँचल

हँसेगा बादल

सच होंगे सपने

मिलेंगी ख़ुशियाँ

मुड़ेंगी राहें

आएगी मंज़िल

मगर...

सिर्फ औरों के लिए

मेरे लिए

तो अब भी वही साल है

कई सालों बाद भी

सड़न और सीलन से युक्त

दुर्गन्ध से भरा हुआ

तड़पता

उदास

बीमार

और बोझिल…

Continue

Added by Mahendra Kumar on December 26, 2016 at 9:00pm — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
कोई प्रेम-कथा उतरी है (ग़ज़ल) - मिथिलेश वामनकर

2122 – 1122 – 1122  - 22

 

केश विन्यास की मुखड़े पे घटा उतरी है  

या कि आकाश से व्याकुल सी निशा उतरी है

 

इस तरह आज वो आई मेरे आलिंगन में

जैसे सपनों से कोई प्रेम-कथा उतरी है

 

ऐसे उतरो मेरे कोमल से हृदय में प्रियतम

जैसे कविता की सुहानी सी कला उतरी है

 

मेरे विश्वास के हर घाव की संबल जैसे   

तेरे नयनों से जो पीड़ा की दवा उतरी है

 

पीर ने बुद्धि को कुंदन-सा तपाया होगा

तब कहीं जाके हृदय में भी…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2016 at 8:30pm — 40 Comments

तरही ग़ज़ल

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा



दौर-ए-जवानी के हमको रंगीन ज़माने याद आये

महफ़िल में यारों से वो साग़र टकराने याद आये



तन्हाई में भूले बिसरे सब अफ़साने याद आये

जिनमें ग़म की रातें गुज़रीं, वो मैख़ाने याद आये



दिल मुट्ठी में लेकर कोई भींच रहा यूँ लगता था

ग़म की काली रातों में जब ख़्वाब सुहाने याद आये



इक मुद्दत के बाद ख़ुशी ने दरवाज़े पर दस्तक दी

दिल घबराया और मुझे कुछ यार पुराने याद आये



सब कुछ खोकर बर्बादी के सहरा में जब… Continue

Added by Samar kabeer on December 25, 2016 at 11:00pm — 36 Comments

ग़ज़ल ;उस फ़रिश्ते की प्रतीक्षा है अभी

बह्र : २१२२ २१२२ २१२

प्यार की धुन को बजाता जायगा

राज़  जीवन का सुनाता जायगा |

पल दो पल की जिंदगी होगी यहाँ  

दोस्ती सबसे निभाता जायगा |

बाँटता जाएगा मोहब्बत सदा

दोस्त दुश्मन को बनाता जायगा |

पेट खुद का चाहे हो खाली मगर

खाना भूखों को खिलाता जायगा |

ले धनी का साथ अपनी राह में

मुफलिसों को भी मिलाता जायगा |

छोड़ नफरत द्वेष हिंसा औ घृणा

प्रेम मोहब्बत सिखाता जायगा…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on December 25, 2016 at 8:00pm — 14 Comments

एक नज़्म ,मनोज अहसास

आज जब तय है मुहब्बत से रिहा हो जाना

सोचता हूँ के ज़रा तेरी गली से गुज़रू

फिर तेरी याद के मखमल के दरीचे को ज़रा

खुद से लिपटाऊ,तमन्नाओं को छू लूँ,जी लूँ



जबकि ज़ाहिर है मेरे पास तेरे गम का समा

सिर्फ कुछ रोज़ इनायत की रवानी में रहा

फिर भी ये मानने को दिल कहाँ राजी है सनम

मेरा किरदार कम क्यों तेरी कहानी में रहा



हर तरफ एक सी उलझन का असर लगता है

भूख के,दर्द के,एहसास के,शोलो की हवा

रूठ जाती है इशारों की जुबां जब मुझसे

तब बहुत झूठ सी लगती है… Continue

Added by मनोज अहसास on December 25, 2016 at 1:13pm — 12 Comments

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