अपनों से ...
सपने
अक्सर
तारों की तरह
गिरकर
टूट जाते हैं
चीख उठते हैं
आँखों में
ख़ामोश आंसू
जब
अपने
अपनों से
रूठ जाते हैं
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 29, 2016 at 5:57pm — 6 Comments
Added by Arpana Sharma on December 29, 2016 at 5:30am — 8 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on December 28, 2016 at 11:59pm — 10 Comments
अँधेरा हो गया था
मेले से लौटने में
जब बैलगाड़ी के पहिये में
फंस गया था
मेरी बेटी का दुपट्टा
जो पहिये के घूर्णन के साथ-साथ
कसता गया
मेरी बेटी के गले में
और तब गया सबका ध्यान
जब घुटी -घुटी सी चीख
निकली उसके मुख से
हठात बैलों की लगाम
खींची गाडीवान ने
और बैल पैर उठाकर
पीछे की और धसके
पहिये में फंसे दुपट्टे को
आहिस्ता से निकाल कर
छुड़ाया गया उसका गला
उस काल-फंद…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 28, 2016 at 8:20pm — 17 Comments
कह्र ...
थक गयी है
लबों पे हंसी
शायद लब
आडम्बर का ये बोझ
और न सहन कर पाएंगे
संग अंधेरों के
ये भी चुप हो जाएंगे
कफ़स में कहकहों के
दर्द बेवफाई का
ये छुपा न पाएंगे
बावज़ूद
लाख कोशिशों के
ये
गुज़रे हुए
लम्हों की आतिश से
बंद पलकों से
पिघल कर
तकिये को
गीला कर जाएंगे
सहर की पहली शरर पे
रिस्ते ज़ख्मों का
कह्र लिख जाएंगे
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 28, 2016 at 5:45pm — 14 Comments
मैं भुला देना चाहता हूँ
झिलमिल सितारों को
झूमती बहारों को
सावन के झूलों को
महकते हुए फूलों को
मौसमी वादों को
पक्के इरादों को
नर्म एहसासों को
बहके जज़्बातों को
सोंधी सी ख़ुशबू को
कोयल की कू को
नाचते हुए मोर को
नदियों के शोर को
चाँदनी रातों को
मीठी-मीठी…
Added by Mahendra Kumar on December 28, 2016 at 1:30pm — 10 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 28, 2016 at 11:45am — 12 Comments
वेदना अभिशप्त होकर,
जल रहें हैं गीत देखो।
विश्व का परिदृश्य बदला और मानवता पराजित,
इस धरा पर खींच रेखा, मनु स्वयं होता विभाजित ।
इस विषय पर मौन रहना, क्या न अनुचित आचरण यह ?
छोड़ना होगा समय से अब सुरक्षित आवरण यह।
कुछ कहो, कुछ तो कहो,
मत चुप रहो यूँ मीत देखो।
वेदना अभिशप्त होकर,
जल रहें हैं गीत देखो।
मन अगर पाषाण है, सम्वेदना के स्वर जगा दो।
उठ रही मष्तिष्क में दुर्भावनायें, सब भगा…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2016 at 11:00am — 18 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on December 28, 2016 at 10:55am — 10 Comments
Added by नाथ सोनांचली on December 28, 2016 at 9:08am — 9 Comments
आहिस्ता – आहिस्ता, पास तू आने लगी,
बाहों मे आकर, दिल मे समाने लगी,
छूकर मुझको, सपना दिखाने लगी,
नींदों मे आकर, तू अब सताने लगी.
सवेरा तू है लाती, तू ही लाती रात है,
मेरे दिल को जो धड़कादे , तुझमे वही बात है....(2)
1} देदूं मैं…
Added by M Vijish kumar on December 28, 2016 at 8:30am — 8 Comments
मेरे दिल के जज़्बात साथ नहीं देते हैं
और आँसू भी अपनी बात कहते हैं ।
ना जाने नम सी आँखें रहती हैं
और दर्द की पीर आँखें सहती हैं
देखकर बेवफाई यह रोती है
तन्हाई के हर सितम सहती हैं ।
रात की अँधियारी में कभी रोती हैं
कभी काँधे पे सर रख सोती हैं
अश्क बन जब जब दिखाई देतीं हैं
सारा जग समेट अपने में भर लेतीं है ।
दर्द का दरिया आँखों को कहते हैं
आँखों से ही तो इशारे किया करते हैं
सूनी सूनी सी गलियारी है दिल की
हर…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 27, 2016 at 8:30pm — 6 Comments
अचानक स्कूटर खराब हो जाने के कारण वापिस लौटने में काफी देर हो चुकी थी अत: वह काफी तेज़ी से स्कूटर चला रहा थाI एक तो अँधेरा ऊपर से आतंकवादियों का डरI इस सुनसान रास्ते पर बहुत से निर्दोष लोगों की हत्याएँ हो चुकी थींI वह अपने अंदर के भय को पीछे बैठी पत्नी से छुपाने का प्रयास तो कर रहा था, किन्तु उसकी पत्नी स्कूटर तेज़ रफ़्तार से सब कुछ समझ चुकी थीI स्कूटर नहर की तरफ मुड़ा ही था कि अचानक हाथों में बंदूकें पकडे पाँच सात नकाबपोश साए सड़क के बीचों बीच प्रकट हो गएI
Added by योगराज प्रभाकर on December 27, 2016 at 10:00am — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on December 27, 2016 at 6:06am — 12 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on December 27, 2016 at 1:16am — 4 Comments
आएगा नया साल
खिलेंगे नये फूल
उगेगा नया सूरज
फैलेगी नयी रौशनी
छंटेगा अँधेरा
सजेगी महफ़िल
गायेंगी वादियाँ
बजेंगी चूड़ियाँ
झूमेगा आसमाँ
नाचेगी धरती
उड़ेगा आँचल
हँसेगा बादल
सच होंगे सपने
मिलेंगी ख़ुशियाँ
मुड़ेंगी राहें
आएगी मंज़िल
मगर...
सिर्फ औरों के लिए
मेरे लिए
तो अब भी वही साल है
कई सालों बाद भी
सड़न और सीलन से युक्त
दुर्गन्ध से भरा हुआ
तड़पता
उदास
बीमार
और बोझिल…
Added by Mahendra Kumar on December 26, 2016 at 9:00pm — 6 Comments
2122 – 1122 – 1122 - 22
केश विन्यास की मुखड़े पे घटा उतरी है
या कि आकाश से व्याकुल सी निशा उतरी है
इस तरह आज वो आई मेरे आलिंगन में
जैसे सपनों से कोई प्रेम-कथा उतरी है
ऐसे उतरो मेरे कोमल से हृदय में प्रियतम
जैसे कविता की सुहानी सी कला उतरी है
मेरे विश्वास के हर घाव की संबल जैसे
तेरे नयनों से जो पीड़ा की दवा उतरी है
पीर ने बुद्धि को कुंदन-सा तपाया होगा
तब कहीं जाके हृदय में भी…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2016 at 8:30pm — 40 Comments
Added by Samar kabeer on December 25, 2016 at 11:00pm — 36 Comments
बह्र : २१२२ २१२२ २१२
प्यार की धुन को बजाता जायगा
राज़ जीवन का सुनाता जायगा |
पल दो पल की जिंदगी होगी यहाँ
दोस्ती सबसे निभाता जायगा |
बाँटता जाएगा मोहब्बत सदा
दोस्त दुश्मन को बनाता जायगा |
पेट खुद का चाहे हो खाली मगर
खाना भूखों को खिलाता जायगा |
ले धनी का साथ अपनी राह में
मुफलिसों को भी मिलाता जायगा |
छोड़ नफरत द्वेष हिंसा औ घृणा
प्रेम मोहब्बत सिखाता जायगा…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 25, 2016 at 8:00pm — 14 Comments
Added by मनोज अहसास on December 25, 2016 at 1:13pm — 12 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |