Added by amita tiwari on December 15, 2016 at 11:17pm — 2 Comments
बड़ी अच्छी लगती है ...
हिज़्र में
तन्हाई
बड़ी अच्छी लगती है
यादों की
परछाई
बड़ी अच्छी लगती है
कभी कभी
रुसवाई भी
बड़ी अच्छी लगती है
आँखों की
गहराई
बड़ी अच्छी लगती है
साँसों की
गरमाई
बड़ी अच्छी लगती है
हुस्न की
अंगड़ाई
बड़ी अच्छी लगती है
दिल में
दिल की
समाई
बड़ी अच्छी लगती है
मगर
हक़ीक़ी ज़िन्दगी…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 15, 2016 at 9:19pm — 6 Comments
Added by Manan Kumar singh on December 15, 2016 at 8:00pm — 5 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 15, 2016 at 5:16pm — 3 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 15, 2016 at 4:30pm — 6 Comments
इक लफ्ज़ मुहब्बत का ....
लम्हों की गर्द में लिपटा
इक साया
ओस में ग़ुम होती
भीगी पगडंडी के
अनजाने मोड़ पर
खामोशियों के लबादे ओढ़े
किसी बिछुड़े साये के
इंतज़ार में
इक बुत बन गया
धुल न जाएँ
सर्दी की बारिश में
कहीं लंबी रातों के
पलकों के लिहाफ़ में
अधूरे से ख़्वाब
वो धीरे धीरे
कोहरे की लहद में
खो गया
इक लफ्ज़
मुहब्बत का
खामोश ही सो गया
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 14, 2016 at 9:03pm — 8 Comments
तुम क्या हो?
किसी समुद्री मछली के उदर में
किसी ब्रह्मचारी के पथभ्रष्ट शुक्राणु का अंश मात्र
किन्तु उसका निषेचन?
अभी बहुत समय बाकी है उसमे
बहुत.....
हे प्रिये!
बुरा नहीं स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझना
अमरत्व का दिवा-स्वप्न भी बुरा नहीं
किन्तु समझना आवश्यक है
यह जान लेना आवश्यक है कि
अमर होने ने लिए मरण आवश्यक है
मरण हेतु जन्म अति आवश्यक
फिर तुम्हें तो अभी जन्म लेना है
जन्म लेने से पूर्व…
ContinueAdded by योगराज प्रभाकर on December 14, 2016 at 12:42pm — 7 Comments
Added by Manan Kumar singh on December 14, 2016 at 9:08am — 6 Comments
रेशम से रिश्ते ....
न हवा
न आंधी
धूप का कहर
तमतमाई वसुधा
शज़र के शीर्ष से
गिरा
बे-दम सा
एक
ज़र्द पत्ता
इतना भी
क्या अफ़सोस
बोली
नयी कोपल
दर्द पे
शज़र के
एक हल्की सी ज़ुब्मिश
शज़र बोला
बाद गुज़रने के
इतनी लंबी उम्र
अब
रिश्तों की
समझ आयी है
तू
अभी नयी है
तू
मुझे भी कहाँ जान पायी है
छोड़ के देख
मेरी उंगली को
तुझे दर्द की…
Added by Sushil Sarna on December 13, 2016 at 9:06pm — 4 Comments
2122 2122 2122 212
कर की चोरी देखिये जी धन की चोरी देखिये
लूटकर पकड़े गये तो जब्रजोरी देखिये
नोट्बंदी देखिये जी नोट खोरी देखिये
पूंजियों की सीरतें भी काली गोरी देखिये
नोट्बंदी का हथौड़ा ऐसा बैठा पीठ पर
भ्रष्टता की सरबसर टूटी तिजोरी देखिये
बह रहे हैं नोट सारे वो पुराने हर जगह
क्या समन्दर क्या नदी तालाब मोरी देखिये
लूटखोरी की बदौलत खत्म पैसे बैंक में
लाइनों की टूटती अब आस…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 13, 2016 at 12:08pm — 19 Comments
वागीश्वरी सवैये सूत्र : यगण X 7 + ल गा
अभी तो अकेले चले हैं मियाँ जी ,न कोई वहां है न कोई यहां ।
यहां कौन है जो बताये जहां को,कि बाबू चले हैं अकेले कहां ।
जहाँ जा रहे हैं रहेंगे अकेले,मिलेगा न साथी उन्हें तो वहाँ ।
पता है हमें ख़ूब यारों यक़ीं है, करेगा उन्हें याद सारा जहाँ ।।
_________
निगाहें उठाके ज़रा देख तो लो ,बताओ यहाँ क्यूँ अकेले खड़े ।
हमें ये बता दो बिना बात के ही,भला जान देने यहाँ क्यूँ अड़े।
जहाँ में न कोई हमें तो मिला…
Added by Samar kabeer on December 12, 2016 at 11:30pm — 18 Comments
2122 2122 212
मौत का मेरे नया फरमान कर ।
हो सके तो ऐ खुदा एहसान कर ।।
जिंदगी तो काट दी मुश्किल में, अब
रास्ता जन्नत का तो आसान कर ।।
जी रहा है आदमी किस्तों में अब ।
धड़कनो की बन्द यह दूकान कर ।।
टूट जाती हैं उमीदें सांस की।।
खत्म तू बाकी बचा अरमान कर ।।
हसरतें सब बेवफा सी हो गईं ।
आसुओं के दौर से अनजान कर ।।
हार जाता है यहां हर आदमी।
क्या करूँगा मौत को पहचान कर ।।
है गरीबी से मेरा रिश्ता…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 12, 2016 at 11:30pm — 14 Comments
बह्र : 1212 1122 1212 22
प्रगति की होड़ न ऐसे मकाम तक पहुँचे
ज़रा सी बात जहाँ कत्ल-ए-आम तक पहुँचे
गया है छूट कहीं कुछ तो मानचित्रों में
चले तो पाक थे लेकिन हराम तक पहुँचे
वो जिन का क्लेम था उनको है प्रेम रोग लगा
गले के दर्द से केवल जुकाम तक पहुँचे
न इतना वाम था उनमें के जंगलों तक जायँ
नगर से ऊब के भागे तो ग्राम तक पहुँचे
जिन्हें था आँखों से ज़्यादा यकीन कानों पर
चले वो भक्त से…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 12, 2016 at 11:28pm — 13 Comments
यादों का सफर ...
मैं
चलता रहा
हर उस रास्ते पर
जहां पर आज
खिजाओं के डेरे थे
मैं
चलता रहा
हर उस रास्ते पर
जहां आज
उजालों में अंधेरे थे
मैं
चलता रहा
हर उस रास्ते पर
जहां आज
सिर्फ
यादों के घेरे थे
मैं
रुक गया
चलते चलते
जहां मंज़िल ने
मुँह मोड़ा था
मैं
हंस पड़ा
उस खार की अदा पर
जिसके दर्द में
यादों के डेरे थे
मैं…
Added by Sushil Sarna on December 12, 2016 at 9:00pm — 6 Comments
ग़ज़ल (हमें गुज़रा ज़माना याद आया )
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मफाईलुन---मफाईलुन---- फऊलन
मुहब्बत का फसाना याद आया |
हमें गुज़रा ज़माना याद आया |
बनी है जान की दुश्मन शबे गम
कोई साथी पुराना याद आया |
शबे गम चैन भी आएगा कैसे
वो फिर ज़ालिम यगाना याद आया |
न जब इज़्ज़त मिली परदेस जा कर
वतन का आब दाना याद आया |
मिलीं जब ठोकरें हर एक दर से
मुझे उनका ठिकाना याद आया…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 12, 2016 at 7:21pm — 12 Comments
आकाश से
गिरती है बिजली
और एक हरा भरा पेड़
अचानक बदल जाता है
एक काले ठूंठ में
भीतर तक
किसी काम नहीं आती
वह जली लकड़ी
सिवाय सुलगने के
धुवां छोड़ने के
अपने अंतिम सांस तक
और रह जाता है एक
अलिखित शिलालेख
ध्वंस का इतिहास समेटे
मौन स्तब्ध उदास जड़
निर्जीव
हमारे पूर्वज
लीपते थे गोबर से
माटी के घर
और उसकी दीवारें
क्योंकि वह मानते…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 12, 2016 at 6:09pm — 4 Comments
Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on December 12, 2016 at 4:00pm — 18 Comments
निशानों में .....
आंखें बन्द
मुट्ठियों भिची हुई
अंतस में शोर
अपने रुद्र रूप में
तलाश
बीते लम्हों की
खो गए जो
अपने साथ लिए
जन्मों के वादे
सागर किनारे
गीली रेत पे
छूटे
गीले पाँव के
निशानों में
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 12, 2016 at 2:29pm — 8 Comments
" ऐ भाई ... दे दे ना ..."
"फिर आ गया तू ! चल भाग यहाँ से।"
" भाई ! एक दे दे ना,तुमको तो रोज बहुत मिलता है।"
" तेरी समझ में नहीं आता? ये जगह बच्चों के लिए नहीं ... अरे ! अभी भी यहीं खड़ा है ? लगाऊँ क्या एक ?"
" भाई ! आप बहुत अच्छे हो !एक दे दो, फिर नहीं आऊँगा यहाँ ।" अब उस लगभग बारह साल के बच्चे ने मस्का लगाने की कोशिश की।
" बड़ा ज़िद्दी है।कौन - कौन है तेरे घर में ?"
" माँ,छोटी बहन और मैं ।"
" और तेरा बाप ?"
" वो तो हमें छोड़ कर चला गया।उसने दूसरी शादी कर ली।"…
Added by Janki wahie on December 12, 2016 at 12:00pm — 21 Comments
Added by नाथ सोनांचली on December 12, 2016 at 7:28am — 10 Comments
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