Added by Manan Kumar singh on December 11, 2016 at 1:12pm — 11 Comments
काफिया: अल ;रदीफ़ :गया
बह्र : २२ २२ २२ २२ २२
नव यौवन चंचल चितवन फिसल गया
यौवन की धूप खिली मन पिघल गया |
तेरे नैनों ने किया इशारा कुछ
निश्छल मृदु दिल तो मेरा मचल गया |
मखमल सी आवाज़ की तारीफ करूँ
कर्ण प्रवेश से पत्थर दिल पिघल गया |
हम कैसे कह दे के तू बेवफ़ा है
तेरा गफलत ही प्यार को कुचल गया |
आक्रोश भरा रूप कभी न दिखाओ
देख रौद्र रूप मेरा दिल दहल गया |
है…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 10, 2016 at 10:30pm — 8 Comments
Added by Anita Maurya on December 10, 2016 at 10:00am — 6 Comments
बुद्धिजीवियों की एक ही हसरत
सुख समृद्धि को देश में है लाना ।
संभालकर रखना अपनी विरासत,
आपसी झगड़ों से सबको बचाना ।
इसके लिए खुद से करते कसरत
बिना किए कभी कोई भी बहाना ।
कोसों दूर रहती है इनसे मुसीबत
मिलती इन्हे खुशियों का खजाना ।
सभी लोग जानते इनकी हकीकत
आलसी सदा करते अनेकों बहाना ।
ऐसे लोगों की होती एक फितरत
दूसरों की कमी पर उंगली उठाना ।
समाज को दिखाते अपनी लियाकत,
समाज के सुधार से सदा मुंह…
ContinueAdded by Ram Ashery on December 10, 2016 at 9:30am — 4 Comments
Added by chandramauli pachrangia on December 9, 2016 at 12:19pm — 2 Comments
जंगल के अंदर उस खुले स्थान पर जानवरों की भारी भीड़ जमा थी। जंगल के राजा शेर ने कई वर्षों बाद आज फिर खरगोश और कछुए की दौड़ का आयोजन किया था।
पिछली बार से कुछ अलग यह दौड़, जानवरों के झुण्ड के बीच में सौ मीटर की पगडंडी में ही संपन्न होनी थी। दोनों प्रतिभागी पगडंडी के एक सिरे पर खड़े हुए थे। दौड़ प्रारंभ होने से पहले कछुए ने खरगोश की तरफ देखा, खरगोश उसे देख कर ऐसे मुस्कुरा दिया, मानों कह रहा हो, "सौ मीटर की दौड़ में मैं सो जाऊँगा क्या?"
और कुछ ही क्षणों में दौड़ प्रारंभ…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 8, 2016 at 6:35pm — 14 Comments
अदालत में बैठे बैठे उनकी आंख लग गयी, अभी तक जज साहब नहीं आये थे और लगता था कि आज भी नहीं आएंगे| लगभग साल होने को आये थे लेकिन मामला पहली सुनवाई के बाद आगे नहीं बढ़ पाया था| पता नहीं और कितने महीने या साल लग जायेंगे इसमें, उनको खुद को समझ में नहीं आ रहा था|
शादी के कुछ ही हफ्ते बाद पत्नी ने शिकायत करना शुरू कर दिया और एक दिन वह अपना सूटकेस लेकर निकल गयी| शाम को जब उन्होंने फोन किया तो उसने साफ़ साफ़ कह दिया कि वह उनके साथ नहीं रह सकती| उन्होंने समझाने की बहुत कोशिश की, उसके घर भी गए लेकिन न…
Added by विनय कुमार on December 8, 2016 at 6:16pm — 8 Comments
अधूरी तिश्नगी ...
कैसे भूल सकती हूँ
वो रात
वो बात
जो एक चिंगारी से
शुरू हुई थी
वो चिंगारी
मेरी रगों में
धीरे धीरे
आग बनकर फैलती गयी
और मैं
चुपचाप उस आग में
जलती रही
मैं
खामोशियों के बियाबाँ में
गूंगी बनी
अपने जज़्बातों से
तन्हा सी
गुफ़्तगू करती रही
अपने खून में
लगी आग को बुझाना
मुझे कहां आता था
निहारती रही
आसमां की तरफ़
कि शायद कोई अब्र…
Added by Sushil Sarna on December 8, 2016 at 6:11pm — 12 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on December 7, 2016 at 5:08pm — 8 Comments
121 22 121 22 121 22 121 22
न वक्त का कुछ पता ठिकाना न रात मेरी गुज़र रही है ।
अजीब मंजर है बेखुदी का , अजीब मेरी सहर रही है ।।
ग़ज़ल के मिसरों में गुनगुना के , जो दर्द लब से बयां हुआ था ।
हवा चली जो खिलाफ मेरे , जुबाँ वो खुद से मुकर रही है ।।
है जख़्म अबतक हरा हरा ये , तेरी नज़र का सलाम क्या लूँ ।
तेरी अदा हो तुझे मुबारक , नज़र से मेरे उतर रही है ।।
मिरे सुकूँ को तबाह करके , गुरूर इतना तुझे हुआ क्यूँ ।
तुझे पता है तेरी हिमाकत , सवाल…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 7, 2016 at 11:00am — 11 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 7, 2016 at 7:09am — 6 Comments
Added by sarita panthi on December 6, 2016 at 7:12pm — 3 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 6, 2016 at 7:04pm — 17 Comments
Added by Mahendra Kumar on December 6, 2016 at 3:52pm — 18 Comments
कुंडलिया छंद
=========
सुख-सुविधा से काटते, जीवन उसके साथ,
जब सजनी के काम में, आप बँटाते हाथ। |
आप बँटाते साथ, ह्रदय में प्रेम बरसता
करे सभी सहयोग, उसी के घर समरसता
रहे सभी जब साथ, फिर न जीवन में दुविधा
पुत्र बहूँ औ पौत्र, मिलें सबको सुख-सुविधा |
(2)
जीवन के संग्राम में, करते जो संघर्ष,
सुगम रह उसकी बने, जीवन हो उत्कर्ष ।
जीवन हो उत्कर्ष, राह में आगे बढ़ता
करे सत्य ही बात,अकारण कभी न अड़ता
स्वार्थ भावना…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 6, 2016 at 3:50pm — 4 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 6, 2016 at 10:30am — 4 Comments
2122 1212 22 /112
कर के उल्टी, कभी नहीं कहते
ख़ुद की हो गंदगी ...नहीं कहते
कितने बे ख़ौफ हो गये हैं सब
चाँद को चाँद भी नहीं कहते
सादगी देख कर भी पागल में
हम उसे सादगी नहीं कहते
फाइदा तो लिये उजालों का
पर उसे रोशनी नहीं कहते
जब से इमदाद-ए-पाक पाये हैं
हम उन्हें आदमी नहीं कहते
क़त्ल करतें हैं ले के नाम–ए-ख़ुदा
हम उसे बंदगी नहीं कहते
तुम इसे मौत कह…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 6, 2016 at 10:30am — 7 Comments
Added by नाथ सोनांचली on December 6, 2016 at 4:13am — 8 Comments
ओ मेरे आकाश !
पिता थे तुम
असीम अपरिमाप
सितारों की पहुँच से भी दूर
और मैं पर्वत की भाँति बौना
अपने उठान का अभिमान लिए
तब नहीं जानता था
यह फर्क
जब तुम मेरे पास थे
अनंत विस्तार लिए
भले ही
आज बन जाऊं मैं ऊंचा
चोमोलुंगमा
यानि कि सागरमाथा
दुनियां का सर्वोच्च हिमशिखर
एवरेस्ट ---
ओ मेरे आकाश !
सदा ही रहोगे तुम
अनंत ऊँचाइयों पर
ऊंचे और उन्नत
कई-कई…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2016 at 7:30pm — 10 Comments
"आज फिर तेरा मुँह सूखा सूखा लग रहा है, लगता है आज भी कुछ नहीं खाया तूने", माँ ने उसको देखते ही टोका|
"बहुत भूख लगी है माँ, कुछ खिला पहले", उसने बात को टालने की गर्ज से कहा|
"ठीक है तू हाथ मुँह धो ले, कुछ गर्मागर्म बनाती हूँ तेरे लिए", माँ तुरंत रसोई की तरफ लपकी और फिर उसका बोलना चालू हो गया "पता नहीं कब अकल आएगी इस छोरे को"|
जल्दी से गरम पकोड़े उसके सामने रखते हुए वह बोली "चाय भी बना रही हूँ, तू आराम से खा| वैसे आज तूने पैसों का क्या किया, टिफ़िन तो तू ले ही नहीं जाता"|
"बहुत…
Added by विनय कुमार on December 5, 2016 at 6:59pm — 14 Comments
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