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तुम मुझसे मिलने जरूर आओगी (कविता)

तुम मुझसे मिलने जरूर आओगी

जैसे धरती से मिलने आती है बारिश

जैसे सागर से मिलने आती है नदी

 

मिलकर मुझमें खो जाओगी

जैसे धरती में खो जाती है बारिश

जैसे सागर में खो जाती है नदी

 

मैं हमेशा अपनी बाहें फैलाये तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा

जैसे धरती करती है बारिश की

जैसे सागर करता है नदी की

 

तुमको मेरे पास आने से

कोई ताकत नहीं रोक पाएगी

जैसे अपनी तमाम ताकत और कोशिशों के बावज़ूद

सूरज नहीं रोक पाता…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 14, 2016 at 2:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल खूबरू इक लिखूँ तुझ ग़ज़ल पर--------पंकज

122 122 122 122



इज़ाज़त ये तुमसे, है माँगे सुखनवर।

ग़ज़ल खूबरू इक, लिखे तुझ ग़ज़ल पर।।



कहो तो लिखे झील, आँखों को तेरी।

लिखे, चाहता हुस्न, का इक समंदर।।



गज़ब की हो तुम तो, विधाता की रचना।

बहुत खूबरू ज्यूँ, हिमालय का मंजर।।



ये होंठों की मुस्कान, है क़ातिलाना।

कलम लिख रहा है, इसे ज़िंदा खंज़र।।



है जो मरमऱी सा, बदन ये तुम्हारा।

सजा कर बसाया, इसे मन के अंदर।।



मौलिक-अप्रकाशित



(आदरणीय समर सर की इस्लाह पर… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 14, 2016 at 12:00pm — 6 Comments

बढ़ता जीवन,घटती ताकत(कुण्डलिया)/सतविन्द्र कुमार

जीवन का यह खेल है,जो चलता दिन रैन
समझे जो इस बात को,वह पाता है चैन
वह पाता है चैन,कभी फिर दुःख ना पाए
मस्ती में ले काट,समय जैसा मिल जाए
सतविंदर कह बात,वही जो हो सच्ची जी
कटते जब दिन -रात,चले ताकत घटती जी।।


मौलिक एवम् अप्रकाशित।

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 14, 2016 at 11:17am — 10 Comments

राम-रावण कथा (पूर्व पीठिका) 19

कल से आगे .....

‘‘बाबा मैं भी गुरुकुल जाऊँगी।’’ आठ साल की मंगला पिता की पीठ पर लदी, उसके गले में हाथ पिरोये लड़िया कर बोली। मंगला का पिता मणिभद्र अवध का एक श्रेष्ठी (सेठ) है। उसकी अनाज की ठीक-ठाक सी आढ़त है। बहुत बढ़िया तो नहीं फिर भी अच्छा खासा चल रहा है उनका धंधा। मंगला उसकी दुलारी पुत्री है। दुलारी हो भी क्यों न, आखिर पाँच पुत्रों के बाद तमाम देवी-देवताओं की मनौती के बाद मंगला प्राप्त हुई है।



सेठ बाजार में अपनी गद्दी पर बैठे हिसाब-किताब में मगन थे। मंगला की बात…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 14, 2016 at 9:00am — 1 Comment

टूटा हुआ आइना

"ये तो होना ही था। अब ये टूटा हुआ आइना कुछ तो अपशकुन करता ही न !" बंटू के दुकान से पैसे लेकर गायब होने की खबर पर, उसने आदतन मुन्ना की ओर एक तीर छोड़ा और अपने 'चाल नुमा कमरे' की ओर मुड़ गया।

......... उसके कमरे की खिड़की से सामने गली में नजर आने वाले मुन्ना के छोटे से 'हेयर कटिंग सैलून' में लगे टूटे हुए आइने को देखकर अक्सर उसे बहुत बेचैनी होती थी। वो जब तब उसे कहता भी रहता था कि 'इसे बदल दो, टूटा हुआ आइना शुभ नहीं होता' लेकिन मुन्ना सदा जवाब में मुस्करा देता अलबता मुन्ना का युवा नौकर बंटू उसकी… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on July 13, 2016 at 8:58pm — 14 Comments

ग़ज़ल (ज़िंदगी के लिए )

ग़ज़ल (ज़िंदगी के लिए )

------------------------------

२१२ ---२१२ --२१२ --२१२

मेरे महबूब तेरी ख़ुशी के लिए ।

ले लिए हम ने गम ज़िंदगी के लिए ।

गौर से अपने कूचे पे डालें नज़र

मुंतज़िर है कोई आप ही के लिए ।

मुस्कराता रहे ज़ुल्म सह के सदा

कब है मुमकिन हर इक आदमी के लिए ।

इक क़लम और कागज़ ही काफी नहीं

लाज़मी है सनम शायरी  के लिए ।

ऐसे आशिक़ हुए हैं रहे इश्क़ में

जान दे दी जिन्होंने किसी…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on July 13, 2016 at 8:47pm — 18 Comments

राम-रावण कथा (पूर्व पीठिका) 18

कल से आगे ...

देवर्षि नारद तो पर्यटन के पर्याय ही माने जाते हैं किंतु उनका यह पर्यटन निष्प्रयोजन कभी नहीं होता। प्रत्येक यात्रा के पीछे कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता है।



इस बार वे अयोध्या आये थे। उनके आते ही मंथरा को उनके आगमन की सूचना मिल गयी। वे महारानी कैकेयी के कक्ष में ही गये थे, जहाँ महाराज विश्राम कर रहे थे। देवर्षि का स्वभाव मंथरा जानती थी इसलिये उसके जिज्ञासु हृदय में उथल-पुथल मचने लगी। विवशता थी कि महाराज की उपस्थिति में वह बिना बुलाये कक्ष में प्रवेश…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 13, 2016 at 5:25pm — 1 Comment

अक़ल का चश्मा(लघुकथा)राहिला

किसी भी सफ़र की बेहद आम,लेकिन जबरदस्त मानसिक प्रताड़ना वाली हरक़त से सोमी दो चार हो रही थी।उसके बगल में बैठे सज्जन गाहे वाहे हर संभव मौके पर उसे छूने का कोई अवसर हाँथ से नहीं गवां रहे थे।सफर लंबा था और बर्दास्त की हद हो रही थी।लेकिन संकोची स्वभाव आज उसपर भारी पड़ रहा था।ऐसे में अचानक उसकी नज़र मोबाइल पर पड़ी।और पता नहीं क्या सोचकर उसने अपनी सहेली को संदेश लिखना शुरू किया।

"सुन यार!इस समय बस में हूँ।और मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है।"

"क्यों.. क्या हुआ?"

"क्या कहूँ यार!मेरी बगल में एक छिछोरा… Continue

Added by Rahila on July 13, 2016 at 4:19pm — 16 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल- शिज्जु शकूर

212 212 212 212

वो बहुत खुश है ‘उल्लू’ बनाकर मुझे

और तस्कीं है अहसाँ जताकर मुझे



करते हो फल की उम्मीद ऐ जान तुम*

रेत में मय तमन्ना दबाकर मुझे



कोयले की दहकती हुई आँच पर

रख दिया काँटों में से उठाकर मुझे



अपने अह्सान के बोझ को लादकर

मार तो डाला आखिर बचाकर मुझे



रोज़ बेचैनियाँ ही मिलीं रू-ब-रू

खुद को सारे जहाँ से छुपाकर मुझे



तस्कीं- संतोष



*फल की उम्मीद करते हो नादान तुम

साथ इच्छाओं के यूँ दबाकर… Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2016 at 4:00pm — 17 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
क़िताब ख़ास लिखी जाएगी जो आज कोई (ग़ज़ल 'राज ')

1212  1122  1212  112/22

बह्र –मुजतस मुसम्मन मख्बून मक्सूर

 

तनाव से ही सदा टूटता समाज कोई

लगाव से ही सदा फूलता रिवाज कोई

 

पढ़ेगी कल नई पीढ़ी उन्हीं के सफ्हों को

क़िताब ख़ास लिखी जाएगी जो आज कोई

 

न ख़्वाब हो सकें पूरे कहीं बिना दौलत

बना सकी न मुहब्बत गरीब ताज कोई

 

सियासतों में बगावत नई नहीं यारों

कभी चला कहाँ आसान राजकाज कोई

 

सभी मिलेंगे यहाँ छोड़कर शरीफों को

कोई फरेबी यहाँ और चालबाज…

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Added by rajesh kumari on July 13, 2016 at 1:00pm — 40 Comments

गजल( काफियों की अब करो......)

2122 2122 2122

काफियों की अब करो पहचान फिर से

पानी बहता मत करो हिमवान फिर से।1



ढ़ल रहा कबसे घड़ा में बेझिझक वह

अब अतल से तो मिले नादान फिर से।2



आज निर्मल बह रहा कहता धरा पर

प्यास बुझती हो यही अरमान फिर से।3



मैल मन का धो रही उसकी लहर है

मत सुनाओ अब गड़ा फरमान फिर से।4



काफिये का जल बँधेगा कब हदों में ?

तूमरी में मत उठा तूफान फिर से।5



आब कह दो या कहो पानी इसे तुम

फर्क कितना है कहो गुणवान फिर से।6



बात… Continue

Added by Manan Kumar singh on July 13, 2016 at 8:30am — 6 Comments

दोहा छ्न्द......प्रतिपल अच्छा देखिए

प्रतिपल अच्छा देखिए

आंंख चुरा कर घूमते, मिला न पाए आंख.

आखों के तारे मगर, बिखरे जैसे पांख.1

आसमान से बात कर, मत अम्बर पर थूंक.

कण्ठ-हार बन कर चमक, अवसर पर मत चूक.2

प्रतिपल अच्छा देखिए, अच्छे में उत्साह.

बालमीकि - रैदास भी, हुए ब्रह्म के शाह.3

अच्छे दिन की सोच में, बुरी नहीं यदि सोच.

दीन-हीन के दु:ख भी दूर करें  बिन खोंच.4

संसारिक उद्देश्य ने, रिश्ते गढ़े…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 13, 2016 at 8:30am — 8 Comments

तरह ग़ज़ल -याद रख अगर कच्चा रास्ता नहीं होता

तरह ग़ज़ल

याद रख,अगर कच्चा रास्ता नहीं होता

आज तू सड़क पर यूँ दौड़ता नहीं होता ।

आदमी करेगा बेशर्म हरक़तें अक्सर,

ना समझ नहीं है,के जानता नहीं होता!!

तेज गति समय पहले मौत को बुलाती है

आप धीरे चलते तो हादसा नहीं होता

प्यार के मरासिम ऐसे निभाये जाते हैं

फूल को देखना तो है तोड़ना नहीं होता

क्यों ख़फा है दुनिया से,फैसला बदल अपना

इस जहाँ में हर कोई बेवफ़ा नहीं होता वो तो खूबसूरत है,हर नज़र उसी पर है

ग़म न कीजिए,वो गर आपका नहीं होता।

वो… Continue

Added by सूबे सिंह सुजान on July 13, 2016 at 1:09am — 12 Comments

नारी मन .....

नारी मन .....

एक लंबे

अंतराल के पश्चात

तुम्हारा इस घर मेंं

पदार्पण हुअा है

जरा ठहरो !

मुझे नयन भर के तुम्हें

देख लेने दो



देखूं ! क्या अाज भी

तुम्हारे भुजबंध

मेरी कमी महसूस करते हैं ?

क्या अाज भी

तुम्हारी तृषा

मे्रे सानिध्य के लिए

अातुर है ?

जरा रुको

मुझे शयन कक्ष की दीवारों से

उन एकांत पलों के

जाले उतार लेने दो

जहां अपनी नींदों को

दूर सुलाकर …

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Added by Sushil Sarna on July 12, 2016 at 4:30pm — 6 Comments

मैं ग़ज़ल कहने लगा (ग़ज़ल)

2122 2122 2122 212



नींद टूटी, ख़्वाब टूटे, मैं ग़ज़ल कहने लगा

रात, दिन, लम्हात बदले, मैं ग़ज़ल कहने लगा



अक्स उसका दिल में उतरा,जैसे कोई शाइरी,

जागते, सोते, ठहरते मैं ग़ज़ल कहने लगा।



अपने दिल का हाल मुझको उन से कहना था,मगर

सामने आकर वो बैठे,मैं ग़ज़ल कहने लगा।



उनके आने से फ़िज़ा में जश्न का माहौल है,

छेड़ दी सरगम घटा ने,मैं ग़ज़ल कहने लगा।



तज्रिबे इतने दिए थे ज़ीस्त ने मेरी..मुझे,

तज्रिबों से ले के मिसरे, मैं ग़ज़ल कहने… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on July 12, 2016 at 2:53pm — 6 Comments

राम-रावण कथा (पूर्व पीठिका) 17

पूर्व से आगे ....

देवर्षि की योजना अंततः इंद्र की समझ में आ गयी।

देवों ने उसके अनुरूप कार्य करना भी आरंभ कर दिया।

योजना यह थी कि देव, लोकपाल, यक्ष, नाग आदि रावण का नाश नहीं कर सकते क्योंकि पितामह ब्रह्मा ने इनके विरुद्ध रावण को अभय दिया हुआ है। उसके नाश का कार्य मानवों द्वारा ही सम्पादित हो सकता है और आर्यावर्त के मानवों में उससे युद्ध के प्रति उत्साह नहीं है। अतः योजना यह थी कि बिना इस बात की प्रतीक्षा किये कि रावण कब स्वर्ग पर आक्रमण किये अभी से दक्षिणावर्त के वनवासियों को…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 12, 2016 at 10:33am — 1 Comment

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) - 11-16

पूर्व से आगे ...

ब्रह्मा द्वारा दौहित्रों को आशीर्वाद क्या प्राप्त हुआ, सुमाली मानो मन मांगी मुराद मिल गयी थी। उसकी आँखों के सामने विष्णु के हाथों हुई विकट पराजय से लेकर रावणादि के समक्ष पितामह के आगमन तक की सारी घटनायें जैसे सजीव होकर तैर रही थीं। अब उसका एक ही लक्ष्य था अपना खोया गौरव पुनः प्राप्त करना और इस उद्देश्य की प्राप्ति में पहला सोपान था कुबेर से लंका दुबारा प्राप्त करना।

वह जानता था कि अभी वह शक्ति द्वारा कुबेर को परास्त नहीं कर सकता था किंतु इससे वह निराश नहीं था।…

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Added by Sulabh Agnihotri on July 12, 2016 at 10:00am — 3 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - पूछ दबी तो रो देते हैं , अच्छे अच्छे -- ( गिरिराज भंडारी )

22   22   22   22   22   22 ( बहरे मीर )

हम तो रह गये देख के मंज़र, हक्के बक्के 

सारे मूछों वाले निकले ब्च्चे बच्चे

 

अजब न समझें, पूँछ दबी तो कुत्ता रोया

पूछ दबी तो रो देते हैं , अच्छे अच्छे

 

परिणामों की आशा चर्चा से मत करना

केवल बातों के निकलेंगे लच्छे लच्छे

 

हर दिमाग में छन्नी ऐसी लगी मिलेगी

सारे बाहर रह जाते हैं , सच्चे सच्चे

 

इक चावल का दाना देखो, कच्चा है गर

सारे चावल तुम्हें मिलेंगे ,…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on July 12, 2016 at 9:20am — 20 Comments

ममता और मौत की गलियाँ (लघु कथा ) जानकी बिष्ट वही

लगा कई दिन से छाए कुहासे बादल अपने सारे बन्धन तोड़ कर बरसने लगे।बिजली की कौंध और गरज़ से धरती काँपने लगी।ऊपर जंगल से बहते बरसाती नाले का उफान और शोर किसी के भी दिल को दहलाने के लिए काफी था।



शकुंतला ने अपनी पक्की छत वाले मकान में रज़ाई को कसकर लपेटते हुए सोचा - छोटा बेटा बिशनु अपनी घरवाली और बच्चों के साथ अपने कच्चे छप्पर में ठीक तो होगा ? बाप की जरा सी बात पर घर छोड़ अलग झोपड़ी बना कर रहने लगा। दिल कसकता है।उनके लिए।नींद आँखों से कोसो दूर थी।



" काहे करवट बदल रही हो ? लगता… Continue

Added by Janki wahie on July 12, 2016 at 8:05am — 6 Comments

घनाक्षरी छन्द :-

1) जलहरण घनाक्षरी छन्द

-------------------

यशोदा को छैया सखी,छलिया छबीलो छैल,

छेड़त है नित्य प्रति,यमुना के घाट पर ।।

कंकरिया मार मार,गगरिया फोर डारै,

ठाढ़ो ठहाके लगावै,खूब ढीठ डाँट पर ।।

छीन लेत दही दूध,लूट लेत माखन वो,

तके रोज ठाढ़ो रहै,गोकुल की बाट पर ।।

चंचल चपल चल,चितचोर श्याम लटो,

आज रात सपनें में,आइ गयो खाट पर ।।(1)





२)रूप घनाक्षरी छन्द :-



बात नहीं करें आज,रूठ गये बृजराज,

हार गए नैना सखी,श्याम मग हेर हेर… Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 11, 2016 at 9:53pm — 10 Comments

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