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गीत - तू ही रे

तू ही रे.....तू ही रे.....

मेरे दिल मे है समाया,

तू ही रे....

तुझे दिल मे है बसाया,

तू ही रे....

1}एक तू ही तो दुआ थी,एक तू ही थी मंज़िल,

तुझसे शुरू मेरी राहें, मेरा हर पल तुझमे शामिल,

इतना बेसूध हुआ मैं, पाने को प्यार तेरा,

तेरी रज़ा तेरी कुरबत,बस इंतेज़ार है तेरा.

तू ही रे.....तू ही रे.....

.

जादू था तेरी नज़र मे, हुआ पागल मैं दीवाना,

तेरी मदहोश सी अदा ने, किया दिल को आशिकाना,

बंदिशों की है ना परवाह, ना…

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Added by M Vijish kumar on June 10, 2016 at 4:00pm — 2 Comments

एक गुंचा ...

एक गुंचा ...
(२१२ x ३ )
क्यूँ हवा में ज़हर हो गया
हर शजर बेसमर हो गया !!१ !!


एक लम्हा राह में था खड़ा
याद में वो खंडर हो गया !!२!!


भर गया ज़ख्म कैसे भला
किस दुआ का असर हो गया !!३!!


आँख से जो गिरा टूट कर
दर्द वो एक सागर हो गया !!४!!


गुमशुदा था शहर आज तक
जल के वो इक खबर हो गया !!५!!


एक गुंचा क्या खिला बाग़ में
ख्वाब का वो एक घर हो गया !!६!!

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 10, 2016 at 2:55pm — 2 Comments

ईद हुई गुलज़ार...

दोहो का उपकार

सदा सूफियाना गज़ल, गम को करके ध्वस्त.

शब्द अर्थ रस भाव से, ऊर्जा भरे समस्त.१

मंदिर  की  श्रद्धा  लिये  खड़ी  दीप- जयमाल.

वरे नित्य सुख- शांति को,  रखे प्रेम खुशहाल.२

मस्ज़िद का ताखा प्रखर, लिये धूप की गंध.

मेघ-मेह की भांति ही, जोड़े मृदु सम्बंध.३

पश्चिम  का  तारा  उदय, हुआ ईद का चांद.

उन्तिस  रोज़ो  से  डरा, छिपा शेर की मांद.४

रोज़ो से सहरी मिली, सांझ करे इफ्तार.

उन्तिस दिन…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 9, 2016 at 8:30pm — 12 Comments

कह के तो नहीं गया था, -पर सामान रह गया था

कह के तो नहीं गया था,

-पर सामान रह गया था

 

समय का ऐसा सैलाब,

-वजूद भी बह गया था

क्या आए हो सोच कर,

-हर चेहरा कह गया था

बाद रोने के यों सोचा,

-घात कई सह गया था

गिरा, मंज़िल से पहले,

-निशाना लह गया था

पुरजोर कोशिश में थी हवा,

-मकां ढह गया था

तुम आए, खैरमकदम!

-वरक मेरा दह गया था?

 

मौलिक है, अप्रकाशित भी

सुधेन्दु ओझा

Added by SudhenduOjha on June 9, 2016 at 7:30pm — 7 Comments

जिन्दगी तनहा तो मौत भी तनहा

बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ

मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

1212     1122      1212      22

 

कहाँ गए थे यूँ ही छोड़कर मुझे तनहा

बिना तुम्हारे मुझे ये जहां लगे तनहा  

 

कभी-कभी तो बहुत काटता अकेलापन

मगर न भूल कि पैदा सभी हुये तनहा

 

तमाम उम्र जो बर्दाश्त है किया हमने     

समझ वही सकता जो कभी जिये तनहा

 

मगर न फिर कभी वो बात रात आ पायी

है याद आज भी वो शाम जब मिले तनहा

 

बिखर ही…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 9, 2016 at 6:30pm — 10 Comments

जल बिन !

चारो तरफ से पानी..पानी..पानी की आवाज सुनाई दे रही है | जिधर देखो उधर पानी के लिए लम्बी कतारें व पानी के लिए जूझते लोग, पानी ढोते टैंकर से ले कर ट्रेन तक दिखाई दे रहे हैं | हैण्डपम्प, कुँए सूख गए हैं और तालाब अब रहे नहीं, उस पर कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए गए हैं | पानी के लिए चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है | देश का रीढ़ किसान आस भरी नजरों से आसमान की ओर देख रहा है | प्यास से घरती का कलेजा फट रहा है | विकाश के नाम पर वन प्रदेश खत्म होते जा रहे हैं, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई हो रही है क्यों की हम…

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Added by Meena Pathak on June 9, 2016 at 5:47pm — 4 Comments

ग़ज़ल

2122 2122 2122 212 

नाम को गर बेच कर व्यापार होना चाहिए

दोस्तों फिर तो हमें अखबार होना चाहिए

आपके भी नाम से अच्छी ग़ज़ल छप जायेगी

सरपरस्ती में बड़ा सालार होना चाहिए

सोचता हूँ मैं अदब का एक सफ़हा खोलकर

रोज़ ही यारो यही इतवार होना चाहिए

क्या कहेंगे शह्र के पाठक हमारे नाम पर

छोड़िये, बस सर्कुलेशन पार होना चाहिए

हम निकट के दूसरे से हर तरह से भिन्न हैं

आंकड़ो का क्या यही मेयार होना…

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Added by Ravi Shukla on June 9, 2016 at 5:00pm — 25 Comments

शॉर्ट कट्स से भूल-भुलैया तक (लघुकथा)

आज मौक़ा पाते ही बाबूजी ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा- "देखो छोटे, या तो तुम्हारी पत्नी और तुम हमारी परम्परा के अनुसार चलो, या फिर अपने रहने की कोई और व्यवस्था कर लो!"

"क्यों बाबूजी, आपको हमसे क्या परेशानी होने लगी है?" छोटे ने हैरान हो कर पूछा।

"बेटे, परेशानी मुझे उतनी नहीं, जितनी बड़े को और उसके परिवार को है! उसे बिलकुल पसंद नहीं है घर पर भी फूहड़ पहनावा, बाज़ार का जंक और फास्ट फूड वग़ैरह और तुम्हारी पत्नी की बोलचाल! बच्चों से भी बात-बात पर 'यार' कहना, तू और तेरी कहकर बात करना!…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 9, 2016 at 4:00pm — 16 Comments

कविता - " तेरा-मेरा "

)

जन्नत से आगे इक जहान तेरा…

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Added by M Vijish kumar on June 9, 2016 at 10:30am — 6 Comments

वक्तव्य ... काव्य-यात्रा और जीवन-यात्रा में समन्वय

दर्द मेरी कविता में नहीं है ... दर्द मेरी कविता है।

दर्द के भाव में बहाव है, केवल बहाव, .. कोई तट नहीं है, कोई हाशिया नहीं है जो उसकी रुकावट बने।

 

पत्तों से बारिश की बूँदों को टपकते देख यह आलेख कुछ वैसे ही अचानक जन्मा जैसे मेरी प्रत्येक कविता का जन्म अचानक हुआ है। कोई खयाल, कोई भाव, कोई दर्द दिल को दहला देता है, और भीतर कहीं गहरे में कविता की पंक्तियाँ उतर आती हैं।

 

दर्द एक नहीं होता, और प्राय: अकेला नहीं आता। समय-असमय हम नए, “और” नए, दर्द झोली…

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Added by vijay nikore on June 9, 2016 at 9:49am — 3 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
दोहा- ग़ज़ल (जिसकी जितनी चाह है, वो उतना गमगीन (गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22   22

बात सही है आज भी , यूँ तो है प्राचीन

जिसकी जितनी चाह है , वो उतना गमगीन

फर्क मुझे दिखता नहीं, हो सीता-लवलीन

खून सभी के लाल हैं औ आँसू नमकीन

क्या उनसे रिश्ता रखें, क्या हो उनसे बात

कहो हक़ीकत तो जिन्हें, लगती हो तौहीन   

सर पर चढ़ बैठे सभी , पा कर सर पे हाथ

जो बिकते थे हाट में , दो पैसे के तीन

 

बीमारी आतंक की , रही सदा गंभीर

मगर विभीषण देश के , करें और…

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Added by गिरिराज भंडारी on June 9, 2016 at 7:30am — 40 Comments

ना साथ ना विकास

सड़क के मुख्य मार्ग से २१ कि.मी. कच्चे रास्ते पर धूल उड़ाती जीप चली जा रही थी।  जीप में पीछे बैठे कर्मचारी ने मुझसे कहा साहब २ कि.मी. बाद सुनारिया गांव है, वहाँ का एक किसान पिछले ६-७ साल से  नहीं मिल रहा है, जब देखो, तब झोपड़ी बंद मिलती है, आज मिल जाये, तो उसे निपटाना है,बहुत पुराना कर्ज बाकी है,मैंने कहा कितना बाकी है ? वो बोला  बाकी तो ५००० है, पर ७-८ साल का बाकी है। 

तभी जीप सुनारिया पहुँच गई , दो-तीन कर्मचारी तेजी से उतरे और झोपड़ी की तरफ लपके पर झोपड़ी बंद थी , दरवाजे…

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Added by Rajendra kumar dubey on June 8, 2016 at 8:00pm — 3 Comments

सवैया ......करुणाकर

(१) दुर्मिल सवैया  ....करुणाकर राम

करुणाकर राम प्रणाम तुम्हें, तुम दिव्य प्रभाकर के अरूणा.

अरुणाचल प्रज्ञ विदेह गुणी, शिव विष्णु सुरेश तुम्हीं वरुणा.

वरुणा क्षर - अक्षर प्राण लिये, चुनती शुभ कुम्भ अमी तरुणा.

तरुणा नद सिंधु मही दुखिया, प्रभु राम कृपालु करो करुणा.

(२) किरीट सवैया  ...अनुप्राणित वृक्ष

कल्प अकल्प विकल्प कहे तरु, पल्लव एक विशेष सहायक.

तुष्ट करें वन-बाग नमी -जल  विंदु समस्त विशेष…

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Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 8, 2016 at 8:00pm — 8 Comments

दुरुपयोग

"हेलो,बहना क्या हाल है,ससुराल में सब ठीक है ना "

"क्या ठीक है भैया "

"अरे क्या हो गया,किसी नें कुछ कहा क्या ?

"अभी 2 सप्ताह ही हुए हैं आये और सभी खाना बनाने को कह रहे हैं "

"अच्छा,किसकी इतनी हिम्मत है,जो तुमसे खाना बनवायेगा "

"अरे,ये जो बुड्डी है ना वही,आप तो जानते हो भैया मुझे खाना बनाना......"

"रो,मत पगली,तू चिंता ना कर,ज्यादा बोलेंगे तो....तू जानती है ना "

"क्या भैया मैं समझी नही "

"अरे तू टेंशन ना ले,तेरा ये वकील भाई कब काम आयेगा .ज्यादा जुबान चलेगी… Continue

Added by maharshi tripathi on June 8, 2016 at 2:06pm — 9 Comments

सो रहे हैं सब- ग़ज़ल

2122 2122 2122 2

झाँक कर देखा दिलों में, सो रहे हैं सब।

एक जर्जर आत्मा ही ढ़ो, रहे हैं सब।।



कोठियों में लोग खुश हैं, भ्रम में ही था मैं।

किन्तु धन के वास्ते ही, रो रहे हैं सब।।



शीर्ष पर जो लोग लगता, पा गये सब कुछ।

जाके देखा पाया खुद को, खो रहे हैं सब।।



लग रहा था लोग मन्ज़िल, के सफर पर हैं।

हूँ चकित की दूर खुद से, हो रहे हैं सब।।



बंग्ले गाड़ी सुख के साधन, था गलत ये "मत"

आँधियाँ कह कर गयीं, दुख बो रहे हैं… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 8, 2016 at 11:30am — 14 Comments

कुछ बातें - ( क्षणिकाएँ) -डॉo विजय शंकर

क्यों कोई आया है ,

जान लेते हो ,

चेहरा पढ़ लेते हो ,

अनकहा , सुन लेते हो ,

आंसू जो बहे ही नहीं ,

देख - सुन लेते हो।

********************

सपने उन्हें दिखाते हो ,

पूरे अपने करते हो।

********************

अपनी सब जरूरतें जानते हो ,

गरीब की रोटी भी जानते हो।

********************

जान कहाँ बसती है , जानते हो ,

उनकीं भी जान है , जानते हो।

********************

सरकार में हो ,

पर सरकार से ऊपर हो।…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 8, 2016 at 11:30am — 7 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - चाकू पिस्टल ही समझाओ, अच्छा है - गिरिराज भंडारी

22 22  22  22  22  2

तुम केवल परिभाषा जानो ,अच्छा है

और अमल सब हमसे चाहो, अच्छा है

 

देव सभी हो जायें तो , मुश्किल होगी

पाठ लुटेरों का भी रक्खो , अच्छा है

 

पत्थर जब जग जाते हैं, श्री चरणों से

इंसा छोड़ो , उन्हें जगाओ, अच्छा है

 

समदर्शी होता है ऊपर वाला, पर

छोड़ो भी , तुम काटो- छाँटो, अच्छा है

 

सूरज ,चाँद, सितारे, दुनिया को छोड़ो

चाकू पिस्टल ही समझाओ, अच्छा है

 

धड़ सारा कालिख में है…

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Added by गिरिराज भंडारी on June 8, 2016 at 8:00am — 24 Comments

तने- तने मिले घने......

कलाधर छंद  .........तने- तने मिले घने

 

वृक्ष की पुकार आज,  सांस में रुंधी रही कि,  वायु धूप क्रूर रेत,  चींखती सिवान में.

मर्म सूख के उड़ी,  गुमान मेघ में भरा कि,  बूंद-बूंद ब्रह्म शक्ति,  त्यागती सिवान में.

डूबती गयी नसीब,  बीज़ कोख में लिये,  स्वभाव प्रेम छांव भाव,  रोपती सिवान में.

कोंपलें खिली जवां,  तने- तने मिले घने,  हसीन वादियां बहार,  झूमती सिवान में.

 

 

मौलिक व अप्रकाशित

रचनाकार....केवल प्रसाद सत्यम

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 7, 2016 at 6:30pm — 10 Comments

दोस्ती का हक़ ( लघु- कथा ) -- डॉo विजय शंकर

रवि का फोन था , देखते ही उस में उत्साह सा आ गया , औपचारिक अभिवादन के बाद धन्यवाद देते हुए बोला , " हाँ , और थैंक्स , तूने बहुत ही अच्छी टिप्पणी लिखी मेरे लेख पर , वर्ना अधिकतर तो लोग बस खींच - तान में ही लगे रहते हैं , तुझे वाकई में मेरे तर्क सही लगे ? "

" ओह ! वो पिछले हफ्ते वाला , वो यार , मैंने पूरा पढ़ा तो नहीं था , पर अब तेरा नाम देखा तो इतना तो लिखना ही था , आखिर दोस्ती का कुछ तो हक़ होता ही है न ?"

जितने उत्साह से उसने फोन उठाया था वो धीरे धीरे ठंडा होकर एक गहरी निराशा में… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 7, 2016 at 10:47am — 18 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
फूल जंगल में खिले किन के लिए (तरही ग़ज़ल 'राज ')

२१२२  २१२२  २१२

ढाल बन अकड़ा रहा जिनके लिए

जगमगाये दीप कुछ दिन के लिए

 

घोंसला भी साथ उनके उड़ गया

रह गया वो हाथ में तिनके लिए

 

फूल को तो ले गई पछुआ  हवा  

रह गई बस डाल मालिन के लिए

 

फूल चुनकर बांटता उनको रहा

खुद कि खातिर ख़ार गिन गिन के लिए

 

क्या मिला उसको बता ऐ जिन्दगी

सोचकर उनके लिए इनके लिए

 

अपने आंगन में खिले अपने नहीं

फूल जंगल में खिले किन के…

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Added by rajesh kumari on June 7, 2016 at 10:47am — 14 Comments

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