Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 14, 2016 at 10:00am — 8 Comments
Added by Manan Kumar singh on June 14, 2016 at 7:03am — 11 Comments
"भाभी, चाय खौल चुकी है, कहाँ खोई हुई हो तुम!" देवरानी ने गैस चूल्हा बंद करते हुए जिठानी से कहा।
"ओह, मैं चाय की पत्ती के बारे में सोच रही थी!"
"क्यों?"
"मैं भी यहाँ चाय की पत्ती ही तो हूँ!"
"क्या मतलब?"
"बिना शक्कर के सबको चाय कड़वी ही तो लगती है, मिठास मिले तो सबको मीठी चाय भाये!"
"लेकिन चाय मीठी हो या फीकी, रिश्ते मधुर बनाने में एक पहल तो करती ही है, बस यह ध्यान रहे कि कहां फीकी चलेगी और कहां मीठी!"
"सही कहा तुमने, लेकिन नौकरी पेशा औरत को जब मध्यमवर्गीय…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 13, 2016 at 4:00pm — 12 Comments
मायाजाल ...
ये मकड़ी भी
कितनी पागल है
बार बार गिरती है
मगर जाल बुनना
बंद नहीं करती
बहुत सुकून मिलता है उसे
अपने ही जाल के मोह में
स्वयं को उलझाए रखने में
वो स्वयं को
वासनाओं के जाल में
लिप्त रखना चाहती है
शायद वो जानती है
जिस दिन भी वो
अपना कर्म छोड़ देगी
वो अपनी पहचान खो देगी
पाकीज़गी उसे मोक्ष तक ले जाएगी
लेकिन इस तरह का मोक्ष
कभी उसकी पसंद नहीं होता
उसे तो अपनी वही दुनियां पसंद है…
Added by Sushil Sarna on June 13, 2016 at 3:35pm — 12 Comments
२१२२ ११२२ ११२२ २१२
आइना सब को दिखाते हैं कभी खुद देखिये
क्यूँ लगी ये आग हरसू आप खुद ही सोचिये
हुक्मरानों ने खता की बच्चों से बचपन छिना
अब्बू ना लौटेंगे चाहे लाख आंसू पोंछिये
अम्मी के हाथों के सेवइ अम्मा के हाथों की खीर
एक जैसा ही सुकू देती है खाकर देखिये
दिल हमीदों का न तोड़ो गर है कोई सिरफिरा
मौत हिन्दी की हुई मत हिन्दू मुस्लिम बोलिये
जो बचाने में लगा है इस वतन की आबरू
हम बिरोधी उसके हैं या नीतियों के…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 13, 2016 at 1:57pm — 12 Comments
'मत्तगयन्द सवैया'
हे! जगदीश! सुनो विनती अब, भक्त तुम्हें दिन-रैन पुकारे।
व्याकुल नैन निहार रहे मग, दर्शन को तव साँझ-सकारे।
कौन भला जग में तुम्हरे बिन, संकट से प्रभु ! मोहि उबारे?
आय करो उजियार प्रभो ! हिय, जीवन के हर लो दुख सारे।।1।।
'दुर्मिल सवैया'
जय हे जगदीश! कृपा करके, कर आय प्रभो! मम शीश धरो।
तुम मूरत बुद्धि-दया-बल के, सदबुद्धि-दया-बल दान करो।
शुचि ज्ञान-प्रकाश बहा प्रभु हे ! मन के तम-पाप-प्रमाद हरो।
हर लो हर दुर्बलता हिय के, उर…
Added by रामबली गुप्ता on June 13, 2016 at 1:00pm — 6 Comments
Added by SudhenduOjha on June 13, 2016 at 12:36pm — No Comments
Added by SudhenduOjha on June 13, 2016 at 12:31pm — 1 Comment
"सुनो , कुछ कहना है " बड़ी हिम्मत करके पति की तरफ देखा उसने ।
" क्या हुआ अब , आज फिर माँ से कहा-सुनी हो गई है क्या ?" उन्होंने पूछा ।
" अरे नहीं , माँ से कुछ नहीं हुआ । बात दीपू की है " उसने तीखे स्वर में कहा ।
" अब उसने क्या कर दिया "
" वो ..."
" वो क्या , अरे बताओ भी , किसी से सिर फुट्व्वल करके तो नहीं आया है " उन्होंने तमतमाये चेहरे से पूछा ।
" कैसी बात करते है आप , अपना दीपू वैसा नहीं है " वह एकदम से कह उठी ।
" तो कैसा है , अब तुम्हीं बता दो ? "
"…
Added by kanta roy on June 13, 2016 at 10:00am — 14 Comments
‘भूकंप’
“सेठ साहब, ये बुढ़िया रोज आती है और इस दीवार को छू छू कर देखती है फिर घंटो यहाँ बैठी रहती है मैं तो मना कर-कर के थक गया लगता है कुछ गड़बड़ है जाने सेंध लगवाने के लिए कुछ भेद लेने आती है क्या” चौकीदार ने कहा |
“माई, कौन है तू क्या नाम है तेरा और तेरा रोज यहाँ आने का मकसद क्या है”? साहब ने पूछा |
“जुबैदा हूँ सेठ साहब, आपने तो नहीं पहचाना पर आपके कुत्ते ने पहचान लिया अब तो ये भी बड़ा हो गया साहब देखिये कैसे पूंछ हिला रहा है”|
सेठ दीन दयाल भी ये देखकर…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 13, 2016 at 10:00am — 22 Comments
स्वप्न, बच्चों की आँखों में
पलना चाहिए।
आगया है समय, हमको
बदलना चाहिए॥
जर्जरावस्था है,
बता दो तन को।
उसे, झुक-झुक के
चलना चाहिए॥
बदल रहा है अब,
मौसम का मिजाज़।
उन्हें दरख्तों पर
उतरना चाहिए॥
कुछ परिंदे,
सारी हदों को तोड़ते हैं।
बुलंद हौसलों को
करना चाहिए॥
मेरा सच,
दुनिया के सच से ख़ूब है।
‘आप’ को इसे
समझना चाहिए॥
‘निर्भया’ से…
ContinueAdded by SudhenduOjha on June 12, 2016 at 7:30pm — 2 Comments
सारा देश दहशत में था .भारत के सर्वाधिक सम्मानित नेता देश के सुरक्षा संबंधी गुप्त दस्तावेज दुश्मन देश को सौंपते हुए कैमरे में कैद कर लिए गये थे . मीडिया में देश के खिलाफ इस प्रकार के षड्यंत्र में नेता जी के लिप्त होने को लेकर गरमागरम बहस चालू थी . जिस टी वी चैनल ने यह स्ट्रिंग आपरेशन किया था , वह बार-बार उन दृश्यों को जनता के सामने परोस रहा था .या सीधे -सीधे देश-द्रोह का मामला था अनेक चैनेल इस विषय पर सीधे नेता जी से सम्पर्क कर उनकी ज़ुबानी सारा सत्य उगलवाना चाहते थे . नेता जी इन सब…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 12, 2016 at 6:42pm — 5 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on June 12, 2016 at 5:15pm — 8 Comments
2212 2212 2212 2212
भरने लगीं आँहें तड़फ के संगदिल तनहाइयाँ
ढलने चला सूरज अभी बढ़ने लगी परछाइयाँ
थीं कोशिशें की थाम लें उड़ता हुआ दामन तेरा
पर मुददतों से फासले पसरे हुये हैं दरमियाँ
ये कौन सा माहौल है ये वादियाँ हैं कौन सीं ?
हर ओर सन्नाटा ज़हन में चीखतीं खामोशियाँ
तुमभी परेशां हो बड़े दिल की खलाओं से अभी
छू कर तुझे आईं हवायें करती हैं…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 12, 2016 at 5:13pm — 4 Comments
गान मेरा स्वांस है,
यह अजब विश्वास है
दूरियाँ ही दूरियाँ हैं
लक्ष्य तक,
तम ही तम है
सूर्य के द्वार तक
पाँव में
सर्पदंशी फांस है
गान मेरा स्वांस है,
यह अजब विश्वास है
ओस में कागज़ों से
मुस गए हैं आदमी
भय अजब सा लिए घरों में
घुस गए हैं आदमी
दीप उज्ज्वल
एक मेरे पास है
गान मेरा स्वांस है,
यह अजब विश्वास है
हाशिये से उतर…
ContinueAdded by SudhenduOjha on June 12, 2016 at 2:32pm — 2 Comments
Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 12, 2016 at 12:36pm — 11 Comments
आरक्षण – (लघुकथा ) –
राज्य के कुछ तेज तर्रार देशी कुत्तों ने समाज की महा पंचायत बुलाई ! प्रदेश के कोने कोने से देशी कुत्ते एकत्र हुए ! सबसे बुजुर्ग कुत्ते को सभापति बनाया गया! तेज तर्रार कुत्तों में से एक प्रवक्ता बनाया गया! प्रवक्ता ने मंच से संबोधित किया,
"साथियो, आप सभी को ज्ञात है कि हमारी क़ौम वफ़ादारी की मिसाल है! हम बिना किसी लोभ, लालच के घरों, बाज़ारों और सड़कों की चौकीदारी करते हैं! मगर अफ़सोस की बात है कि मानव जाति हमारे साथ घोर अन्याय करती है! हमें कोई सुविधा नहीं दी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 12, 2016 at 12:02pm — 4 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on June 12, 2016 at 9:07am — 2 Comments
पंडितजी पूजा के पहले साफ करते करते बुदबुदाते न खुश न दुखी अजीब सी ऊहापोह में दबाए रखते क्रोध को,न बाहर आने देते न जज्ब ही कर पाते।
"क्या हो गया पंडित जी ?"
"देखो तो, पूरा गर्भगृह गंदा कर देते हैं, रोज रोज रगड़ रगड़ के साफ करना पड़ता है।"
"अरे ये तो बहुत गंदगी करते हैं।"
मूर्ति की ओर इशारा करते हुए,"सब इनकी मर्जी है।"
"क्या इनकी मर्जी, शाम को सब प्रसाद उठा लिया करो,और बंद कर दो सारे बिल,पिंजरा भी रख दो।"
"शुभ शुभ बोलो भइया, उनका भी तो हिस्सा है इस चढावा में, हम…
Added by Pawan Jain on June 11, 2016 at 10:00am — 2 Comments
बैठ हिमालय की चोटी
करते हैं वे तपस्या हरदम
नीचे जंगल के पेड़ों का
कटना है जारी
जो उन्हे करता
नही
किसी तरह से
चिन्तित
लगा हमें क्यों न हम ही
जाकर करें विनती
हमें चाहिए शिव का वरदान
उनके द्वारा दिया गया
वचन ही हमें ं
प्रदान कर सकता है
अभय
नहीं चाहिए जनविनाश
हमें चाहिए कल्याण
उनका समर्थन
जो बढ़ायेगा
हमारा संबल
देखा हमें
स्वच्छ व स्वस्थ
जिंदगी
मौलिक…
Added by indravidyavachaspatitiwari on June 10, 2016 at 8:26pm — 1 Comment
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