हाँ, तुम बंट गए उस दिन कबीर
अहो कबीर !
कही पढा था या सुना
तम्हारी मृत्यु पर
लडे थे हिन्दू और मुसलमान
जिनको तुमने
जिन्दगी भर लगाई फटकार
वे तुम्हारी मृत्यु पर भी
नहीं आये बाज
और एक
तुम्हारी मृत देह को जलाने
तथा दूसरा दफनाने
की जिद करता रहा
और तुम
कफ़न के आवरण में बिद्ध
जार-जार रोते इस मानव प्रवृत्ति पर
अंततः हारकर मरने के बाद…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 28, 2015 at 6:00pm — 24 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 28, 2015 at 2:24pm — 8 Comments
" ओ बाबू , सुन ना ! मुझे नेता बनना है , " --पैर पटक - पटक कर भोलूआ आज जिद पर आन पड़ा । कम अक्ल होने के बावजूद भोलूआ अपने भोलेपन के कारण गाँव भर का दुलारा था ।
बापू तो सुनते ही चक्कर खा गया । बिस्कुट ,चाकलेट और मेले घुमाने तक के सारे जिद तो आसानी से पूरा करता आया था , लेकिन बुरबक , अबकी कहाँ से नेता बनने का जिद पाल लिया । सोचे कि चलो गुड्डे- गुडि़या वाला नेता बना देंगे । रामलीला वाले सुगना से नेता जी का ड्रेस माँग के भी पहिराय देंगे , लेकिन भोलूआ का जिद तो असली नेता बनने से है । अब का…
Added by kanta roy on November 28, 2015 at 12:00pm — 10 Comments
आस्तीन मे छुपे सांप
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किसी हद तक सच भी है
आपका कहना
चलो मान लिया
आस्तीन मे छुपे सांप
हमारी रक्षा के लिये होते हैं
और हमे काट के या डस के अभ्यास करते हैं
ताकि हमारा कोई दुश्मन हमपे वार करें
तो ,
हमें ही काट के किया गया अभ्यास काम आये
अब सोचिये न
क्या दुशमनी हो सकती है हमारे से ?
उस चूहे की
जो हमारे ही घर मे रह के
हमारे ही अन्न जल मे पलके बड़ा होता है …
Added by गिरिराज भंडारी on November 28, 2015 at 10:22am — 5 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 28, 2015 at 7:09am — 4 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 27, 2015 at 12:19pm — 2 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 27, 2015 at 8:21am — 12 Comments
अरकान - 122 122 122 122
किया जिसने दिल में ही घर धीरे-धीरे|
उसी ने रुलाया मगर धीरे –धीरे|
उमर मेरी गुजरी है यादों में जिनकी ,
हुई आज उनको खबर धीरे –धीरे |
जहाँ तक पहुचने की ख्वाहिश है मेरी,
यकीनन मैं पहुंचूंगा पर धीरे –धीरे|
बचपन में सरका जवानी में दौड़ा,
बुढापा गया अब ठहर धीरे-धीरे|
न शिकवा किसी से न है अब शिकायत,
भरा घाव मेरा मगर धीरे –धीरे|
मौलिक व…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 26, 2015 at 8:00pm — 4 Comments
मेरे घर के पास है, एक खुला मैदान,
चार दिशा में पेड़ हैं, देते छाया दान
करते क्रीड़ा युवा हैं, मनरंजन भरपूर
कर लेते आराम भी, थक हो जाते चूर
सब्जी वाले भी यहाँ, बेंचे सब्जी साज.
गोभी, पालक, मूलियाँ, सस्ती ले लो आज…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on November 25, 2015 at 8:30pm — 4 Comments
संबोधन
“देखो ये बस अब नहीं जा सकेगी खराब हो चुकी है चारो और सुनसान है लगभग सभी सवारियां पैदल ही निकल चुकी हैं ये दो चार लोग ही बचे हैं और बहन, मेरा गाँव पास में ही है पैदल ही चले जाएँगे सुबह खुद मैं तुम्हारे गाँव छोड़ आऊँगा मेरे साथ चलो तुम्हारे लिए यही ठीक रहेगा” सतबीर ने कोमल से कहा |
कोमल ने मन मे बेटी संबोधन, जो कुछ देर पहले बस में बचे हुए उन लोगों ने दिया को बहन के संबोधन से भारी तौलते हुए तथा खुद को मन ही मन कोसते हुए कि किस मनहूस घड़ी में वो पति से लड़कर गाँव…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 25, 2015 at 7:32pm — 9 Comments
जब जन्म लिया इस माटी में,
तब आँखो तले अँधेरा था,
जब पलक उठी इस दुनिया में,
माँ के आँचल में हुआ सवेरा था,
फिर दिन चढ़ने और ढ़लने कि,
गुत्थी सुलझाने बैठ गया...,
जब एक तरफ देखा उजियाला
तो दूजी तरफ अँधेरा था ।। 1 ।।
छोटा था तो मन में मेरे,
उठता था एक बड़ा अँधेरा ?
क्यूँ रात होती हैं काली,
क्यूँ दिन को होता हैं सवेरा,
किसी ने बोला ये नियम प्रकति का,
तो कोई कहे इन्हे ग्रहों कि चाल...,
पर सच…
ContinueAdded by DIGVIJAY on November 25, 2015 at 7:30pm — 2 Comments
1222 1222 122
कभी है ग़म,कभी थोड़ी ख़ुशी है..
इसी का नाम ही तो ज़िन्दगी है..
हमें सौगात चाहत की मिली है..
ये पलकों पे जो थोड़ी-सी नमी है..
मुखौटे हर तरफ़ दिखते हैं मुझको,
कहीं दिखता नहीं क्यों आदमी है..?
फ़िज़ा में गूँजता हर ओर मातम,
कि फिर ससुराल में बेटी जली है..
सभी मौजूद हों महफ़िल में,फिर भी,
बहुत खलती मुझे तेरी कमी है..
दहल जाए न फिर इंसानियत 'जय',
लड़ाई मज़हबी फिर से…
Added by जयनित कुमार मेहता on November 25, 2015 at 4:50pm — 8 Comments
सच है
कि, प्रकृति स्वयं जीवों के विकास के क्रम में
जीवों की शारिरिक और मानससिक बनावट में
आवश्यकता अनुसार , कुछ परिवर्तन स्वयं करती है
चाहे ये परिवर्तन करोड़ों वर्षों में हो
इसी क्रम में हम बनमानुष से मानुष बने …..
लेकिन ये भी सच है कि,
मानव कुछ परिवर्तन स्वयँ भी कर सकते हैं
अगर चाहें तो
और फिर हमारा देश तो आस्था और विश्वास का देश है
जहाँ यूँ ही कुछ चमत्कार घट जाना मामूली बात है
मै तो इसे मानता हूँ ,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 25, 2015 at 7:00am — 7 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 25, 2015 at 4:16am — 5 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 25, 2015 at 1:19am — 5 Comments
न जग तेरा है .....
न जग तेरा है न मेरा है
बस दो साँसों का डेरा है
है पल भर की बस भोर यहां
पल अगला घोर अँधेरा है
न जग तेरा है ....
मैं पथ का कोई शूल कहूँ
या जीवन कोई भूल कहूँ
इक पल यहाँ पर है उत्सव
पल दूजा दुख का डेरा है
न जग तेरा है ....
स्वर प्रेम नीड को ढूंढ रहे
दृग पीर नीर में मूँद रहे
है नीरवता हर ओर यहां
विष सेज पे सुप्त उजेरा है
न जग तेरा है ....
अभिलाष हृदय की…
Added by Sushil Sarna on November 24, 2015 at 9:35pm — 4 Comments
Added by gumnaam pithoragarhi on November 24, 2015 at 7:37pm — 8 Comments
"लाहोल विला कुव्वत! जाने इतनी रात गए कहां आवारगी करता फिरता है ये लड़का।" अम्मीजान की कोशिश के बाद भी जफ़र के रात दूसरे पहर घर में घुसते ही अब्बूजान की आँख खुल गयी और वो बड़बड़ाने लगे।
"कुछ गलत न करे है मेरा ज़फर, अब सारा दिन किताबो में मगजमारी करने के बाद कुछ देर दोस्तों में गुजार ले तो हर्ज ही क्या है?" अम्मी ने उसकी तरफदारी की कोशिश की।
"तो वही जाहिल लोग रह गए है दोस्ती के लिए।" अब्बु ने अम्मी पर तंज भरी नज़र डालते हुए कहा।
"अब्बु अब ऐसे भी जाहिल न है वो लोग।" ज़फ़र चुप न…
Added by VIRENDER VEER MEHTA on November 24, 2015 at 6:30pm — 5 Comments
२१२२ ११२२ ११२२ २२
अपनी खुशियों पे नया रंग चढ़ाकर देखो
बंद पिंजरे के ये पंछी तो उड़ाकर देखो
मेरी आँखों से बहा जाता है आँसू बनकर
अपनी यादों में कभी खुद को जलाकर देखो
बात बन जायेगी बिगड़ी है जो सदियों से यहाँ
तुम ज़रा अपनी अना को तो झुकाकर देखो
सिर्फ बातों के सहारे न हवा में उड़ना
तुम हकीकत नज़र आज मिलाकर देखो
तुमको हर नेकी के बदले में मिलेगी खुशियाँ
राह में सबके…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on November 24, 2015 at 6:30pm — 12 Comments
22---22---22---22---22---2 |
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दुख देने को आये जो हालात, सुनो |
अपना दिल भी पहले से तैनात सुनो |
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दे देना फिर तुम भी उत्तर, सुन लूँगा… |
Added by मिथिलेश वामनकर on November 24, 2015 at 11:25am — 22 Comments
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