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आँखों में भय लिये
आज्ञाकारिता तय किये,
क्षुधोदर की भूले
बड़ी देर के बाद बैठ पाया था।
कंपायमान हाथों से
चलायमान श्वासों से ,
भुंजे हुए महुओं की छोटी सी
पोटली बस खोल ही पाया था।
जीवन समर्पित कर
मालिक को अपना कर
स्मृत अहसानों ने
छोटा सा उलहना दे पाया था।
ज्वार की वह बासी रोटी
गिजगिजी बहुत मोटी
महुओं सहित इस अनोखे भोजन को
कर ही न पाया था।
मालिक ने पुकारा...…
ContinueAdded by Dr T R Sukul on November 23, 2015 at 10:30pm — 4 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on November 23, 2015 at 2:28pm — 6 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on November 23, 2015 at 2:24pm — 5 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on November 23, 2015 at 12:57pm — 13 Comments
जिन्दगी में जीत का तब,
कुछ नहीं संशय रहा,
धैर्य का जब जब सहारा,
हर घड़ी , हरशय रहा ।
जिन्दगी में दिन सितम के,
भी सभी कट जायेंगे ।
जिन्दगी की ठोकरों ने ,
जब मुस्कुरा कर ये कहा।
रात काली भी गुजर…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on November 22, 2015 at 11:52am — 3 Comments
दुनिया देती मुझे बधाई, कि मैं कितना संभल गया
मुझे ग्लानि, आंख में पानी, कि मैं इतना बदल गया
एक समय होता था जब मैं,
न्याय की बात पर अड़ जाता था
आग धधकती थी सीने में
हर जुल्मी से भिड़ जाता था
अब रोज़ द्रौपदी होती नंगी, खून ज़रा भी नहीं खौलता
कोई सूरज को भी चांद कहे तो, चुप रहता हूं नहीं बोलता
कहते हैं सब भला हुआ कि अब चुक सा गया हूं मैं
सच तो ये है लेकिन अब, ज़रा थक सा गया हूं मैं .
थक गया हूं झूठे रिश्तों का, बोझ…
ContinueAdded by प्रदीप नील वसिष्ठ on November 22, 2015 at 10:00am — 11 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२२ - रमल मुसम्मन सालिम
जो ख़ुशी से दान दे वो ग़म कभी करता नही है।
जो किसी पे जान दे वो आह भी भरता नहीं है ।
है अगर दिल में ख़ुशी तो चैन से सोते सभी हैं,
गम समाया है कहीं तो नींद भी भरता नहीँ है ।
हार हो या जीत हो ये तो कहीं वश में नहीं है ,
दिल लगाकर छोड़ देता वो कभी डरता नहीं है।
राह में चलते हुए भी घर बसा लेते कहीं भी ,
रेत का घर जब गिरे ग़म कोई भी हरता नहीं है ।
फूल हो जब डाल पे झूमे हवा में हर ख़ुशी में ,
तोड़ कर कोई रखे जब आह…
Added by Shyam Narain Verma on November 21, 2015 at 4:30pm — 2 Comments
आगरा से लखनऊ का छ-सात घंटे का सफ़र | ट्रेन खचाखच भरी हुई थी, पर भला हो उस दलाल का,जिसने सौ रूपये ज्यादा लेकर सीट कन्फर्म करा दी थी | वरना सिविल सेवा परीक्षा देने जाना बड़ा भारी लग रहा था | दोनों ही सहेलियों ने गेट से लगी सीट पर धम्म से बैठ कब्ज़ा जमा लिया था | सामने फर्श पर सामान्य कद-काठी का शरीरधारी, किसी दूसरे ग्रह का प्राणी लग रहा था | मैला-कुचैला सा कम्बल अपने शरीर के चारो तरफ लपेटे बैठा था | रह-रह सुमी उसे हिकारत…
ContinueAdded by savitamishra on November 21, 2015 at 10:00am — 11 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 21, 2015 at 9:27am — 9 Comments
2122 2122 2122
भागता ही जा रहा है बेतहाशा..
आदमी के हाथ लगती बस हताशा..
मुस्कराहट लब से गायब हो रही है,
पाँव फैलाए खड़ी जड़ तक निराशा..
नष्ट होती जा रही वो स्वर्ण-मूरत,
वर्षों में पुरखों ने जिसको था तराशा..
सुबह का भूला अभी लौटेगा शायद,
सूर्य की अंतिम किरण तक है ये आशा..
है न भक्तों को कफ़न तक भी मयस्सर,
देवता कुर्सी पे खाते हैं बताशा..
जान पंछी की निकलने पर तुली है,
और सारे…
Added by जयनित कुमार मेहता on November 20, 2015 at 10:02pm — 6 Comments
अरकान - 2122 2122 2122 212
आप आये और मेरा दिन सुनहरा हो गया|
आपको देखा तो मेरा फूल चेहरा हो गया|
कुछ समय पहले तलक तो थी हरी यें वादियाँ ,
आपके जाते ही तो हर सिम्त सहरा हो गया|
क़त्ल का ए सिलसिला क्यों और आगे बढ़ गया,
जब से मेरे गाँव में कुछ सख्त पहरा हो गया |
लाख चीखो और चिल्लाओ सुनेगा कौन अब,
हाय पत्थर दिल ज़माना आज बहरा हो गया|
जख्म तो बस जख्म था जो भर भी सकता था मगर…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 20, 2015 at 10:00pm — 1 Comment
बढ़ती हुई महंगाई में हाल बुरा है,
कुछ पूछो तो कहते हैं, सवाल बुरा है।
पेट्रोल, डीजल, सब्जियां आकाश छू रहीं,
कम होने की उम्मीद का, खयाल बुरा है।
संसद में अमन चैन है, धमाल हो रहा,
जनता की रसोई में अब, बवाल बुरा है।
ठोकते हैं ताल, अपने राग में तल्लीन,
उठा पटक का इनका सब, चाल बुरा है।
दुश्मन हैं ये आपसी, दुनिया की नज़र में,
नेता की शकल में हर, दलाल बुरा है…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on November 20, 2015 at 9:05pm — No Comments
अजी सुनते हो ..... पप्पू के पापा ।
धीरे बोलो भागवान, पड़ोसी क्या सोचेंगे।
मैंने कहा छोटे बड़े मँझले साहित्यकारों और पुरस्कृत कुछ लोग लुगाइयों में सम्मान लौटाने की होड़ लगी है। इन सब के थोपड़े हर चैनल्स में बार बार दिखाया जा रहा है। आप भी अपना सम्मान लौटा दीजिये।
कौन सा सम्मान ?
ये लो, ऐसे पूछ रहे हो जैसे 10–20 पुरस्कार और सम्मान प्राप्त कर चुके हो और सिर्फ नोबेल पुरस्कार ही लेना बाकी है। अरे जीवन में एक ही बार तो सम्मानित…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 20, 2015 at 2:19pm — 9 Comments
Added by आशीष यादव on November 20, 2015 at 7:30am — 8 Comments
श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुझको याद किया|
भूल गई मैं सारे जग को, फिर भी तेरा नाम लिया|
यादों में तेरी मुरली वाले, जीवन यूँ ही गुजार दिया,
श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुझको याद किया|
देख के तेरी भोली सूरत हम भी धोखा खा ही गए,
मोहन तेरी मीठी-मीठी बातों में हम आ ही गए,
हार गए जीवन में सब फिर भी तेरा नाम लिया
श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुझको याद किया|
करती हूँ कोशिश मैं मोहन याद हमेशा तुम आओ,
रह नही सकती…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 19, 2015 at 8:30pm — 2 Comments
मौन रहकर साज भी,
हैं ध्वनित होते नहीं,
कुछ बोलने दे आज,
मन की बात कहने दे मुझे ।
है नहीं ख्वाहिश कि,
सुन्दर सा सरोवर मैं बनूँ,
धार हूँ नदिया की मैं,
मत रोक बहने दे मुझे । हर एक पल भी…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on November 19, 2015 at 8:08pm — 5 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 19, 2015 at 8:06pm — 11 Comments
मेरी बेटी ने गमले में
लॉलिपॉप बो दिया हैI
खुद को पूरा भिगो कर
पानी भी देती है
मिठास की लहलहाती फसल का
इंतज़ार कर रही है I
पगली ने उस दिन
कागज़ का तिरंगा भी बो दिया था
कि ढेर सारे तिरंगे
ढेर सारा देश प्रेम उगेगा I
बच्चों की बातें हैं
ऐसी ही बेतुकी ,नासमझ I
हम तो बड़े हैं ,समझदार हैं
हम थोड़ी करते हैं विश्वास
इन बातों पर ,हैं ना ?
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by pratibha pande on November 19, 2015 at 5:30pm — 8 Comments
ईश कृपा से ही हुऐ, सात दशक ये पार,
बाँट सका सुख-दुख सदा,उन सबका आभार | - 1
सहयोगी मन भाव से, दिया जिन्होनें साथ,
आभारी उनका सदा, भली करेंगे नाथ | - 2
सीख मिली जिनसे सदा, उनका ऐसा कर्ज,
चुका सकूँ क्या मौल मै, पूरा करने फर्ज | = 3
गुरुजन को मै दे सकूँ, क्या ऐसी सौगात,
सूरज सम्मुख दीप की, आखिर क्या औकात |-4
कृपा करे माँ शारदा, तब कुछ मिलता ज्ञान,
विद्वजनों के योग से, लिया सदा संज्ञान | =…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2015 at 5:00pm — 8 Comments
122 122 122 122
अजब इक तमाशा है ये ज़िन्दगी भी।
बिछड़ना है सबकुछ मगर दिल्लगी भी।।
बहुत बेमुरव्वत है तासीर दिल की।
मिली जितनी उतनी बढ़ी तिश्नगी भी।।
जमीं हो या आँखें...ख़ुशी हो या हो गम।
है अच्छी नही देर तक खुश्कगी* भी।। (सूखापन)
कहानी मुहब्बत की है तो पुरानी।
नयी सी मगर इसमें है ताजगी भी।।
न समझा कोई हुस्नो-इश्को-वफ़ा पर।
हरिक को है पर इनसे बावस्तगी* भी।। (सम्बद्धता)
ये माना कि बरबादियाँ भी बहुत की।…
Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on November 19, 2015 at 1:30pm — 6 Comments
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