तुम निष्ठुर हो …
तुम निष्ठुर हो तुम निर्मम हो
तुम बे-देह हो तुम बे-मन हो
तुम पुष्प नहीं तुम शूल नहीं
तुम मधुबन हो या निर्जन हो
तुम निष्ठुर हो …
तुम विरह पंथ का क्रंदन हो
तुम सृष्टि भाल का चंदन हो
तुम आदि-अंत के साक्षी हो
तुम वक्र दृष्टि की कंपन्न हो
तुम निष्ठुर हो …
तुम नीर नहीं समीर नहीं
तुम हर्ष नहीं तुम पीर नहीं
तुम हर दृष्टि से ओझल हो
तुम रखते कोई शरीर नहीं
तुम निष्ठुर हो …
तुम चलो तो सांसें चलती…
Added by Sushil Sarna on November 14, 2015 at 8:13pm — 13 Comments
हम खुशियों के दीप जलाकर मना रहे हैं दीपोत्सव
सच्चे विकास का संकल्प लेकर आगे बढ़ते प्रतिदिन
रूढ़िवादिता को त्यागकर हम करते नवयुग का वंदन
प्रेम का पावन पौध उगाकर करते एकता का संवर्धन
अज्ञानता की घनी रात का ज्ञानदीप से करते स्वागत
मतभेदों को आज हटाकर हम करते सबका अभिनंदन
भूल सारी बैर भावना करते देश हित में आत्म समर्पण
दुख से ग्रसित सभी जनों की पीड़ा का करते हम मर्दन
फूल और कांटे ज्यों सब मिलकर शोभित करते उपवन
भँवरे मिलकर…
ContinueAdded by Ram Ashery on November 14, 2015 at 9:58am — 1 Comment
ऐसा नहीं कि मुझे कविता, लिखनी नहीं आती
सच तो ये है कविता मुझसे लिखी नहीं जाती .
कविता लिखने की ललक में, ऐसे उठाता हूं मैं पैन
गर्भवती कोई जैसे छुपके, कच्चा आम लपकती है.
पर बेचारा कोरा कागज़, यूं सहमने लगता है
जैसे गुण्डों से घिरी, कोई अबला मिन्नत करती है.
शील-हरण तो रोज़ ही होते, बड़े शहर के चौराहों पर
लेकिन मुहल्ले की गलियों में, मैली आंख भी नहीं सुहाती.
इसीलिए तो कविता मुझसे लिखी नहीं जाती.
चाहूं तो किसी की झील सी आंखों…
Added by प्रदीप नील वसिष्ठ on November 13, 2015 at 6:30pm — 14 Comments
अरकान - 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2
तेरे बिन घर वन लगता है बाकी सब कुछ अच्छा है|
तुझ बिन बेटे जी डरता है बाकी सब कुछ अच्छा है|
माँ तेरी बीमार पड़ी है गुमसुम बहना भी रहती,
भैया का भी हाल बुरा है बाकी सब कुछ अच्छा है|
दादी तेरी बुढिया हैं पर चूल्हा-चौका हैं करती,
कोई न उनका दुख हरता है बाकी सब कुछ अच्छा है|
दादा जी पूछा करते…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 13, 2015 at 6:00pm — 8 Comments
212---212---212---212 |
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मखमली चाँदनी रोज आया करो |
पर सितारों से आमद छुपाया करो |
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तितलियों ने लिए है नए पैरहन |
ऐ… |
Added by मिथिलेश वामनकर on November 13, 2015 at 9:00am — 16 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 13, 2015 at 8:00am — 11 Comments
Added by बरुण सखाजी on November 13, 2015 at 1:00am — 7 Comments
बिहार प्रान्त एवं उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र से चल कर पूरे भारत में प्रसिद्ध होने वाले इस पर्व को महापर्व का क्यों जाता है, इसका पता आपको इस व्रत की पूजा पद्वति से पता चल जायेगा। छठ पर्व छठ, षष्टी का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया।
लोक-परंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on November 12, 2015 at 5:00pm — 3 Comments
पौरुष ने उठाया हाथ
सहनशीलता ने
कर तो लिया बर्दाश्त
पर चेहरा विकृत हुआ
अधर काँपे
आँखे पनिआयी
झट वह चौके में चली गयी
बेटी दौड़ी-दौड़ी आयी
क्या हुआ माँ ?
कैसी आवाज आयी ?
और यह क्या तू रोती है ?
नहीं बेटी, ये लकड़ियाँ ज़रा गीली है
धुंआ बहुत देती है
आँख में गडता है, पानी निकलता है
बेटी ने कहा – ‘ माँ !
गीली लकड़ी का
तुमसे क्या सम्बन्ध है ?
माँ ने कहा ‘ हम दोनों
जलती…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 12, 2015 at 4:30pm — 11 Comments
Added by Rahila on November 12, 2015 at 4:24pm — 11 Comments
अनहोनी - (लघुकथा) –
दीपावली पूजन की तैयारी हो रही थी!दरवाज़े की घंटी बजी!जाकर देखा,दरवाज़े पर अनवर खान साहब सपरिवार मिठाई का पैकेट लिये खडे थे!हमारे ही मोहल्ले में रहते थे!मोहल्ले के इकलौते मुसलमान थे!किसी के जाना आना नहीं था!पूरा मोहल्ला एक तरफ़ और खान साहब एक तरफ़!कोई तनाव या टकराव नहीं था! सब शांति से चल रहा था मगर फ़ासले थे!
अचानक ऐसी स्थिति का सामना कैसे करें, जिसके बारे में कभी सपने में भी नहीं सोचा!हमारे कुछ कहने सुनने से पहले खान साहब ने मिठाई हाथ में देते हुए दिवाली की…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 12, 2015 at 11:02am — 24 Comments
खिसिया जाते, बात बात पर
दिखलाते ख़ंजर
पूँजी के बंदर
अभिनेता ही नायक है अब
और वही खलनायक
जनता के सारे सेवक हैं
पूँजी के अभिभावक
चमकीले पर्दे पर लगता
नाला भी सागर
सबसे ज़्यादा पैसा जिसमें
वही खेल है मज़हब
बिक जाये जो, कालजयी है
उसका लेखक है रब
बिछड़ गये सूखी रोटी से
प्याज और अरहर
जीना है तो ताला मारो
कलम और जिह्वा पर
गली मुहल्ले साँड़…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 12, 2015 at 10:51am — 4 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 11, 2015 at 11:49pm — 13 Comments
"कितने मिष्ठ भाषी,सौम्य और मिलनसार थे तेरे पापा ।आज़कल न जाने उन्हें क्या हो गया।" माँ ने राघव से कहा।
" माँ ! मुझे भी ऐसा ही लग रहा है।मैं आज़ ही अपने मनोचिकित्सक दोस्त विवेक से इस बारे में बात करता हूँ।कि इस बदले व्यवहार का क्या कारण है।"
छः महीने पुरानी बात थी ज़ब पापा रिटायर हुये थे खूब खुश थे।
" बहुत काम कर लिया ।अब तो जिंदगी जीनी है।"
बस तभी से घर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। चैनल दर चैनल ये सिलसिला बढ़ता ही गया।
सुबह होते ही हिदायतें शुरू हो जाती।" आरव को…
Added by Janki wahie on November 11, 2015 at 5:30pm — 15 Comments
रूपम के हाथों में मेहंदी लग रही थी. दामिनी चाहती थी कि इसके लिए पार्लर से मेहंदी डिजाइनर बुलवा लें, किंतु रूपम ने साफ मना कर दिया था. उसकी जिद्द के आगे दामिनी को झुकना ही पड़ा. मेहंदी, कपड़े, मेक अप इत्यादि के मामलों में रूपम ने अपनी सहेलियों को ज्यादा तरजीह दी थी. अपने वादों के मुताबिक उसकी सहेलियां शादी के चार दिन पहले ही रूपम के घर पहुंच चुकी थी. अपने लहंगे और अन्य कपड़ों की खरीदारी वह नीलिमा के मुताबिक कर रही थी. नीलिमा उसकी बेस्ट फ्रेंड थी जो मुम्बई में रहकर फैशन डिजाइनिंग का कोर्स…
ContinueAdded by Govind pandit 'swapnadarshi' on November 11, 2015 at 11:21am — No Comments
Added by shree suneel on November 11, 2015 at 9:06am — 5 Comments
अंतर्मन के दीप जलाकर,
जग में उजियारा कर दो।
जले प्रेम का दीपक जगमग,
जगमग जग सारा कर दो।
शीतलता का घृत हो अनुपम,
अति सनेह का दीपक हो,
ज्ञान की बाती उल्लासित कर,
पुलकित मन प्यारा कर…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on November 11, 2015 at 7:56am — 1 Comment
Added by Samar kabeer on November 10, 2015 at 10:13pm — 2 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on November 10, 2015 at 12:25pm — 6 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 10, 2015 at 11:08am — 9 Comments
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