Added by Nita Kasar on December 26, 2015 at 6:20pm — 8 Comments
221 2121 1221 212
अपने लहू से आज वो अन्जान बन गये
टूटे हुए मकान का सामान बन गये
ज़ज्बात से किसी को यहाँ वास्ता नहीं
ड्राइंग रूम में रखा दीवान बन गये
बेगानों की तरह रहे अपने ही देश में
बस चार पाँच दिन के ही मेह्मान बन गये
अपने ही घर में किश्तियाँ महफूज़ हैं कहाँ
साहिल के आस पास ही तूफ़ान बन गये
छोड़ी कसर न देखिये कुदरत को लूटकर
आफ़ात आ पड़ी तो अब इंसान बन गये
करतूत वो करें…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 26, 2015 at 12:28pm — 20 Comments
निन्यानबे के फेर में
हूँ मैं
लोग देखते है मुझे
ईर्ष्या से या हिकारत से
क्योंकि वे जानते हैं
केवल और केवल एक मुहावरा
मानव की कमजोर वृत्ति का
धन संचय की उत्कट प्रवृत्ति का
उन्हें यह पता ही नहीं कि
मुहावरे के पीछे होता है
कोई चिरंतन सत्य या एक इतिहास
और बहुत सारे मायने
वे सोचते भी नहीं
कि निन्यानबे वे वैशिष्ट्य भी हैं
जिनके आधार पर उस ऊपर वाले के है
निन्यानबे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 26, 2015 at 12:00pm — 8 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 26, 2015 at 10:11am — 9 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on December 26, 2015 at 8:32am — 5 Comments
Added by somesh kumar on December 25, 2015 at 7:54pm — 7 Comments
अहसास क्रिसमस की छुट्टियों में आये पोता पोती ,दादी जी के लाड प्यार में पूरे घर में धमा चौकडी मचाये रखते हैं ।इस बार दादी को फेसबुक और इंटरनेट का पाठ याद करा दिया । आज न जाने क्या सूझी दादी को दोनों को लेकर रसोई में पहुंच गई ।सभी दालें दिखाई पर सिर्फ चना और राजमा पहचान पाये ,दादी ने सभी अनाजों की पहचान कराई ,नया पाठ था बच्चों को , जल्दी सीख गए । "बेटा सचिन कुकर उठाओ ,इसका ढक्कन लगाओ ।" "दादी यह तो लग ही नहीं रहा ।" "देखो बेटा यह गास्केट है ,यह सेफ्टी वाल्व है ,तुम्हें यह तो मालूम है कि कुकर…
ContinueAdded by Pawan Jain on December 25, 2015 at 5:30pm — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 24, 2015 at 2:57pm — 1 Comment
चुटकियाँ- ….. …
नेता क्या और भाषण क्या
भाषण पे अनुशासन क्या
मूक बधिर इस जनता को
व्यर्थ में आश्वासन क्या !!1!!
देश क्या विकास क्या
बिन कुर्सी मधुमास क्या
छल करते जो नित् निर्बल से
उस आवरण का विश्वास क्या !!2!!
नीति क्या अनीति क्या
भ्रष्ट की सोच से प्रीति क्या
जनता के जो खून से जिन्दा
उस नेता की परिणति क्या !!3!!
फ़र्ज़ क्या …
Added by Sushil Sarna on December 24, 2015 at 1:27pm — 6 Comments
Added by Manan Kumar singh on December 24, 2015 at 11:30am — 6 Comments
2122 1212 22 /112
क्या नहीं ये अजीब हसरत है ?
ग़म किसी का किसी की राहत है
ख़ाक में हम मिलाना चाहें जिसे
उनको ही सारी बादशाहत है
रोटी कपड़ा मकान में फँसकर
बुजदिली, हो चुकी शराफत है
हर्फ करते हैं प्यार की बातें
आँखें कहतीं हैं, तुमसे नफरत है
मुज़रिमों को मिले कई इनआम
आज मजलूम की ये क़िस्मत है
बेरहम क़ातिलों को मौत मिली
सेक्युलर कह रहे , शहादत है
हाँ,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 24, 2015 at 10:30am — 30 Comments
Added by Janki wahie on December 23, 2015 at 11:11pm — 2 Comments
दोहा छंद आधारित गीत
================
मन सहिष्णु भटके नहीं,
लेकर भाव अमर्ष
राह हमें उत्कर्ष की, नित दिखला नववर्ष.....
झाँक रही दीवार से,
खूंटी ओढ़े गर्द
साल मुबारक हो नया,
कहता मौसम सर्द
जंत्री नूतन साल की, करती ध्यानाकर्ष
लौटें लेकर सुदिन सब,
उत्सव औ त्यौहार
मिलना जुलना हो सहज,
सरल भाव व्यवहार
जाति धर्म के नाम पर, हो न कभी संघर्ष
गीत छंद कविता गजल,
ललित कलेवर…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on December 23, 2015 at 9:00pm — 12 Comments
बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’
अरकान – 1222 1222 1222 1222
लबों पर रख हँसी हरदम अगर को भुलाना है|
दिखा मत दर्दे-दिल अपना बहुत ज़ालिम ज़माना है|
तेरा गम तेरा अपना है न जग समझा न समझेगा,
तू अपने पास रख इसको कि ये तेरा ख़जाना है|
नजूमी हाथ की रेखाएं पढ़कर मुझसे यूँ बोला,
पुजारी है तू किस्मत का कि दिल तेरा दिवाना है|
कभी मायूस मत होना भले कुटिया में रहना हो,
बचाती धूप से तुझको वो तेरा आशियाना…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on December 23, 2015 at 6:29pm — 4 Comments
Added by Janki wahie on December 23, 2015 at 5:05pm — 1 Comment
बह्र : २२११ २२११ २२११ २२
ये झूठ है अल्लाह ने इंसान बनाया
सच ये है कि आदम ने ही भगवान बनाया
करनी है परश्तिश तो करो उनकी जिन्होंने
जीना यहाँ धरती पे है आसान बनाया
जैसे वो चुनावों में हैं जनता को बनाते
पंडे ने तुम्हें वैसे ही जजमान बनाया
मज़लूम कहीं घोंट न दें रब की ही गर्दन
मुल्ला ने यही सोच के शैतान बनाया
सब आपके हाथों में है ये भ्रम नहीं टूटे
यह सोच के हुक्काम ने मतदान…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 23, 2015 at 10:00am — 32 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 22, 2015 at 11:37pm — 12 Comments
मुहब्बत की डगर में फिर किसी का हो के देखूँ
किसी की झील सी आँखों में फिर से खो के देखूँ
अब इन आँखों से उसके प्यार का चश्मा उतारूँ
जहां में हैं बहुत से रंग आँखें धो के देखूँ
जिसे मैं प्यार करता था वो मेरा हो न पाया
जो मुझसे प्यार करता है मैं उसका हो के देखूँ
बहुत दिन हो गए आँखों को कोई ख़्वाब देखे
चलो शानो पे सर रख कर किसी के सो के देखूँ
कोई तो बढ़ के 'सूरज' आँसुओ को पोछ लेगा
मुहब्बत में चलो इक…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 22, 2015 at 11:00pm — 8 Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
इक सवाल आँखों में ही बसा रह गया
यूँ लगे जैसे इक ख़त खुला रह गया
रेल से वो चली शहर ये छोड़कर
और टेशन पे मैं बस खड़ा रह गया
दाग गिनवा रहा था जमाने के मैं
सामने मेरे बस आइना रह गया
वक़्त सा वैध भी कर ना पाया इलाज
देखिये ज़ख्म तो ये हरा रह गया
शख्स हर जानता जिंदगी है सफ़र
मंजिलें हर कोई ढूंढता रहा गया
दम निकलते समय भूला मैं रब को भी
इन लबों पर तेरा नाम सा…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on December 22, 2015 at 8:27pm — 10 Comments
"ओह, श्रीमती रोहन आप वाकई बहुत भाग्यशाली हैं । कि आप को रोहन जैसा हंसमुख ,जिंदादिल,स्वतंत्र विचारधारा का धनी पति मिला ।ऑफिस की तो जान है,मजाल जो किसी के चेहरे पर उसके रहते उदासी छा जाये।" रात के खाने पर आमंत्रित उनकी महिला मित्र काफ़ी देर से उनकी शान में कसीदे पढ़े जा रही थी ।
"वैसे बुरा ना मानियेगा, अगर रोहन की शादी ना हुई होती तो उसे किसीभी कीमत पर हाथ से नहीं जाने देती । आखिर ऐसे इंसान की पत्नी होना अपने आप में गर्व की बात है ।सच कह रही हूं ना! " वो अब मेरी राय जानने के लिये…
Added by Rahila on December 22, 2015 at 1:00pm — 18 Comments
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