Added by Harash Mahajan on August 21, 2015 at 5:28pm — 13 Comments
“अब परेशान होने से क्या होगा? मैंने पहले ही कहा था कि इतनी उधारी मत करो.”
“गज़ब बात करती हो सुधा. अगर उधार नहीं लेते तो अनु की पढ़ाई का क्या होता?”
“क्या अनु यहीं नहीं पढ़ सकती थी? कितना कहा, पर आपको तो.... जवान बेटी को विदेश भेज दिया ... बरमंगम में पढ़ाएंगे”
“बरमंगम नहीं यूनिवर्सिटी ऑफ़ बर्मिंघम इन ग्रेट ब्रिटेन”
“जिस जगह का नाम तक याद नहीं रहता, वहां भेज दिया बेटी को और अब परेशान हो रहे है.”
“अरे मैं परेशान इसलिए हूँ कि संपत भाई इसी हप्ते चार लाख वापस मांग रहे…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on August 21, 2015 at 3:41am — 20 Comments
"मम्मी स्कूल की नौकरी , बिट्टू को पढ़ाने के बाद रात का खाना बनाना मेरे बस की बात नहीं हैं।"
"लेकिन बहू घर का अन्य काम तो इस उम्र में भी मैं ही करती हूँ तो क्या तुम एक समय का खाना भी नहीं बना सकती ?"
"नहीं बना सकती क्योकि मैं नौकरी करती हूँ , आपकी तरह घर में नहीं बैठी रहती "
ससुरजी हस्तक्षेप करते हुए -
"बस बहुत हो गया बहू , आज से तुम अपनी गृहस्थी देखो और हम अपनी जिम्मेदारी खुद उठा लेंगे और फिर हम पराश्रित भी तो नहीं हैं ।"
मौलिक और अप्रकाशित
Added by Archana Tripathi on August 21, 2015 at 12:00am — 15 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on August 20, 2015 at 9:41pm — 8 Comments
वो थी एक डायरी
गुलाबी जिल्द वाली
अन्दर के चिकने पन्ने
खुशनुमा छुअन लिए
मुकम्मल थी एकदम
कुछ खूबसूरत सा
लिखने के लिए I
सिल्क की साड़ियों की
तहों के बीच,
अल्मारी में सहेजा था उसे
उन मेहंदी लगे हाथों ने,
सेंट की खुशबू
और ज़री की चुभन
को करती रही थी वो जज़्ब,
हर दिन रहता था
बाहर आने का इंतज़ार
अपने चिकने पन्नों पर
प्यारा सा कुछ
लिखे जाने का इंतज़ार…
ContinueAdded by pratibha pande on August 20, 2015 at 5:00pm — 17 Comments
2122 1212 112 /22
डर के यूँ ज़िन्दगी बची तो क्या
और अगर बच नहीं सकी तो क्या
देख क्या आदमी ही जीता है ?
आदमी में है आदमी तो क्या
जब कहे को नही समझते हैं
रह गई बात अनकही तो क्या
भूख आदाब कब समझती है
बे अदब थोड़ी हो गयी तो क्या
जारी फिर चाँद ने किया फतवा
बे असर चाँदनी रही तो क्या
फूल पत्तों में आज खुशियाँ हैं
जड़ अँधेरों से है घिरी तो क्या
दुन्दुभी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 20, 2015 at 9:56am — 20 Comments
Added by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on August 19, 2015 at 3:53pm — 10 Comments
सोच रही हूँ आज कौन सा गीत लिखूँ जी
आडी -तिरछी रेखाओं में भाव भरूँ जी।
मन उड़ भागा लेकर भाव के सारे पन्ने।
दिक करते हैं बोल पडौस में गव रहे बन्ने।
कभी किसी कोयलिया ने कुहु टेर लगाई ।
खुशबू पहले बौर की मुझ तक दौड़ी आई।
डाल पे झूले बैठीं सखियाँ झूल रही हैं।
मन की चिड़िया शब्द भी सारे भूल रही है।
काला कौवा बैठ मुंडेरी चीख रहा है।
आता दूर पथिक भी कोई दीख रहा है।
रात चाँदनी साज लिए लो बैंठ गई है ।
नई बहुरिया सास से…
Added by Mamta on August 19, 2015 at 3:30pm — 5 Comments
122 122 122 122
जहॉं था अंधेरा घना जि़दगी का
वहीं से मिला रास्ता रोशनी का
सलीबें न बदली न बदले मसीहा
वही हाल है आज तक हर सदी का
सितारे फलक से न आये उतर कर
हुआ कब ख़सारा किसी आशिकी का
न तुम रो सके औ हमारी अना को
सहारा मिला आरज़ी ही खुशी का
समन्दर सुख़न के तलाशे बहुत से
ख़जा़ना मिला है तभी शाइरी का
पिया है वही जाम जो दे ख़ुदाई
न अहसां उठाया न बदला…
ContinueAdded by Ravi Shukla on August 19, 2015 at 3:00pm — 15 Comments
212—212—212----212—212—212 |
|
वो बदलते नहीं है अगर, तो फ़क़त इतना चल जाएगा |
आप खुद ही बदल जाइए, ये ज़माना बदल जाएगा |
|
बात इतनी सी है ये मगर, नासमझ बन के बैठे… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 19, 2015 at 9:30am — 15 Comments
बेटे के पास विलायत गए दीवान जी को पोते पोतियों की चाल ढाल अच्छी नही लग रही थी | उनका रातों को देर से आना, बेढंगे कपड़े पहनना, घर पर ही दोस्तों के साथ मदिरा का सेवन आदि उनको बिलकुल भी बर्दास्त नही हो रहा था |
एक दिन घर पर पार्टी चल रही थी | डीजे के तीव्र संगीत के साथ जम के मदिरापान करते लड़के-लड़कियों का हुल्लड़ करना उनको रास ना आया और उन्होंने बेटे से कह डाला कि, " ये सब क्या है विमल ? "
"बाबू जी नई पीढ़ी है | "
"नई पीढ़ी है तो क्या इस तरह..... ? "
"ये अपनी तरह से जीना चाहते…
Added by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on August 19, 2015 at 1:00am — 7 Comments
बहर -2122/2122/2122/212
आज हम यह सोचते है के बिछड़ कर क्या मिला
हाँ ये सच है जो मिला उसका अलग रस्ता मिला
सोचता हूँ चाँद तारों से ज़रा मै पूछ लूँ
क्या तुम्हे भी राह में जो भी मिला तन्हा मिला
आज आँगन में कही तारा नहीं यादों भरा
छिप के कोने में पड़ा घर का हँसी प्याला मिला
मौसमो की ही तरह है इश्क की आबो हवा
जब चली तो घर मेरा दरका कही टूटा मिला
देख कर अंजाम अपना मैं बहुत हैरान हूँ
चल पड़ा जिस रास्ते पर वो ग़मों से जा…
Added by amod shrivastav (bindouri) on August 18, 2015 at 11:00pm — 15 Comments
कुछ काम से कमरे में आई तो देखा , उसका पति सूटकेस में कपड़े जमा रहा था , हैरान हो उसने पूछा ," कहीं बाहर जा रहे हैं ? मुझे कुछ बताया भी नहीं ? यूँ अचानक .. आखिर बात क्या है ? "
" ....................... "
"मैं कुछ पूछ रही हूँ , जवाब क्यों नहीं देते । "
"तुम्हें नहीं लगता संगीता तुमने कुछ पूछने में बहुत देर कर दी । "
"देखो, बच्चों के खाने का समय हो रहा है । फिर मिन्नी की अधूरी पड़ी नई ड्रेस भी सिलना है और बेटू कह रहा था , उसके सिर में दर्द है तो मालिश भी करनी है I सो अभी मेरे…
Added by shashi bansal goyal on August 18, 2015 at 6:00pm — 11 Comments
दीनदयाल की विधवा की दस लाख की लॉटरी खुल गयी!घर रिश्तेदारों से भर गया I छोटा दो कमरों का मकान! मॉ बेटी दो प्राणी, दौनों परेशान!
"अम्मा, ये लोग कौन हैं,और कब तक रहेंगे"!
"बेटी,ऐसे नहीं बोलते, मेहमान हैं,बधाई देने आये है"!
"मैने तो कभी नहीं देखा इनको"!
"ये तेरे बापू के करीबी रिश्तेदार हैं"!
"अम्मा,दो महिने पहले जब बापू शांत हुए थे, तब तो कोई नहीं आया था"!
मंदिर में भज़न बज रहा था,"सुख के सब साथी, दुख में न कोय"!
.
मौलिक व अप्रकाशित
Added by TEJ VEER SINGH on August 18, 2015 at 5:00pm — 14 Comments
"क्या कर रहा है i,बार बार साँस तोड़ कर सुर गड़बड़ा रहा है ..ध्यान कहाँ है तेरा ?"
"जी ,वो रात से घरवाली की हालत बहुत खराब है ,..यहाँ से फारिग हो जाऊं ,और पैसे मिल जाएँ तो अस्पताल ले जाऊं "
"मिल जाएंगे पैसे , करोड़ों की इस शादी का इंतजाम लिया है मैंने ,तू अच्छी शहनाई बजाता है खासकर बिदाई की ,इसलिए तुझे पूरे दो हज़ार दे रहा हूँ एक घंटे के ,बस 10-15 मिनट में हो जाएगी बिदाई, चले जाना "I
उसने शहनाई पर होंठ रखे ही थे कि कंधे पर हाथ महसूस किया ,छोटा भाई था .. बदहवास, चेहरा…
ContinueAdded by pratibha pande on August 18, 2015 at 10:30am — 22 Comments
Added by Samar kabeer on August 17, 2015 at 10:48pm — 19 Comments
Added by Dr T R Sukul on August 17, 2015 at 10:26pm — 11 Comments
आरोह-अवरोह
कभी-कभी ... कभी कभी
आत्म-चेतन अंधेरे में ख़यालों के जंगल में
रुँधे हुए, सिमटे हुए, डरे-डरे
चुन रहा हूँ मानो अंतिम संस्कार के बाद
झुठलाती-झूठी ज़िन्दगी के फूल
और सौ-सौ प्रहरी-से खड़े आशंका के शूल
दो टूक हुई आस्था की काँट-छाँट
अच्छे-बुरे तजुर्बे बेपहचाने
पावन संकल्प, पुण्य और पाप
पानी और तेल और राख
कितना कठिन है प्रथक करना
सही और गलत के तर्क से ओझल हो कर
कठिन है…
ContinueAdded by vijay nikore on August 17, 2015 at 3:30pm — 12 Comments
Added by Manan Kumar singh on August 17, 2015 at 10:00am — 8 Comments
1222 — 1222 — 1222 — 1222 |
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प्रकाशित और नित् निर्मल जो मन होगा तो क्या होगा? |
हमारा और उनका जब मिलन होगा तो क्या होगा? |
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उन्हें इस बात का आभास हो जाए तो अच्छा… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 17, 2015 at 9:30am — 24 Comments
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