For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

February 2015 Blog Posts (174)

कब तक मनाऊँ मैं...............

कब तक मनाऊँ मैं, वो अक्सर रूठ जाते हैं|

गर्दिश में अक्सर.... हर सहारे छूट जाते हैं|1



न मनाने का सलीका है,न रिझाने का तरीका है|

मनाते ही मनाते वो      अक्सर रूठ जाते है|2



संजोकर दिल में रखता हूँ,नजर को खूब पढ़ता हूँ|

मगर खास होते ही   ,अक्सर नजारे छूट जाते हैं|3



आयना समझकर हम.., उन्ही को देख जाते हैं|

संभालने की ही कोशिश में,जो अक्सर टूट जाते…

Continue

Added by anand murthy on February 8, 2015 at 9:20pm — 8 Comments

कह गए थे तुम वापस आओगे-- डॉ o उषा चौधरी साहनी

कह कर गए थे तुम

आओगे वापस ,

जरूर आओगे ।

आस में तुम्हारी ,

लगे युग बीत गए जैसे ,

पर न आये तुम ,

न आये तुम्हारे खत ,

ना ही कोई संदेश ,

कहाँ खो गए तुम ,

भटक गए किस देश ?

जिन राहों पर दूर ,

बहुत दूर तक , चले थे ,

खोये , इक दूसरे में हम,

उन्हें, अब ये आँखें तकती हैं,

ढूंढती हैं तुम्हें , शायद कभी

लौटों तुम उन पर ढूंढते हुये

कि तुम्हारा भी

कुछ रह गया वहां पर ,

कुछ खो गया वहां पर ,

और मैं पा लूँ तुम्हें… Continue

Added by Usha Choudhary Sawhney on February 8, 2015 at 7:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल - चींटियों को देखना तुम

2122 2122 2122 212



होंठ पर अटकी सदा की लर्ज़िशें* क्या होती हैं?

छोड़ दें जब साथ अपने, गर्दिशें क्या होती हैं?



आपने दिल तोड़ डाला खेलकर जज़्बात से,

मेरे टूटे दिल से पूछो, ख़्वाहिशें क्या होती हैं?



क्यों हुई घर में लड़ाई, ये बड़ों से पूछिये!

बच्चों से मत पूछिये के रंजिशें* क्या होती हैं?



छूटने की, मौत से, होती हैं सौ गुंजाइशें,

ज़िंदगी से बचने की गुंजाइशें क्या होती हैं?



दो दिलों में प्यार होना सर्द बूँदों के तले,

इश्क़ वालों… Continue

Added by Zaif on February 8, 2015 at 2:40pm — 8 Comments

धारावाहिक गजल भाग -1 ( लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' )

2122    2122    2122

***********************

डूबता  हो  सूर्य तो अब डूब जाए

मत कहो तुम रोशनी से पास आए /1

******

एक अल्हड़ गोद में शरमा रही जब

चाँद से  कह दो नहीं वह मुस्कुराए /2

******

थी  कभी  मैंने लगायी बोलियाँ भी

मोलने पर तब न मुझको लोग आए /3

******

आज मैं अनमोल हूँ बेमोल बिक कर

व्यर्थ  अब  बाजार जो कीमत लगाए /4

******

कामना जब मुक्ति की थी खूब मुझको

बाँधने  सब  दौड़ कर नित पास आए /5



रास  आया  है मुझे  जब  आज…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2015 at 1:52pm — 7 Comments

आगे पीछे : लघुकथा



"कहाँ आगे-आगे बढ़े जा रहे हो जी', मैं पीछे रह जा रही हूँ |"

"तुम हमेशा ही तो पीछे थी"

"मैं आगे ही रही "

"और चाहूँ तो हमेशा आगे ही रहूँ, पर तुम्हारें अहम् को ठेस नहीं पहुँचाना चाहती हूँ समझे|"

"शादी वक्त जयमाल में पीछे ..."

"डाला जयमाल तो मैंने आगे"

"फेरे में तो पीछे रही"

"तीन में पीछे, चार में तो आगे रही न "

"गृह प्रवेश में तो पीछे"

"जनाब भूल रहे हैं, वहां भी मैं आगे थी "

इसी आगे पीछे को लेकर लड़ते -हँसते  पार्क से बाहर निकले और एक दूजे से…

Continue

Added by savitamishra on February 8, 2015 at 10:59am — 24 Comments

ले लो एक सलाम(अतुकांत कविता)

ले लो एक सलाम

आने को फागुन,

है सुन रही गुनगुन,

किसकी अहो,किसकी कहो?

हटा घूँघट अब कली-कली का,

कौन रहा यह मुखड़े बाँच?

कलियों से अठखेली करता,

नाच रहा है घूर्णन नाच ?

हुआ व्यग्र,पहचान नहीं कि

कौन कली खुशबू की प्याली,

कौन रूप की होगी थाली,

खिलखिलाकर खिलने देता,

रूप-वयस को मिलने देता,

देता कुछ सपने उधार,

कलियाँ कहतीं रूप उघाड़---

आज तो अब जा रहा,

हम आज के कल हैं,

अबल कब?सबल…

Continue

Added by Manan Kumar singh on February 8, 2015 at 10:00am — 1 Comment

तेरी बेव़फाई मेरी बेव़फाई

तेरी बेव़फाई मेरी बेव़फाई
कहानी समझ में अभी तक न आई
..........
मेरे इश्क़ में तू उधर ज़ल रहा है 
इधर मैंने ज़ल कर मुहब्बत निभाई
..........
बहाने बनाकर ज़ुदा हो गये हम
यूँ दोनों ने मिलके ही दुनिया हँसाई
..........
तुझे मैंने मारा क़भी खंजरों से 
क़भी सेज काँटों की तूने बिछाई
..........
जलाये जो तूने मेरे प्यार के ख़त
तो तस्वीर तेरी भी मैंने ज़लाई

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित



Added by umesh katara on February 8, 2015 at 9:05am — 22 Comments

वो एक लड़की ...

गुनगुन करती थी सदा

वो एक लड़की ..

खिड़की से आती थी नज़र

वो एक लड़की

कभी नाचती गुड़िया संग

कभी लगाती गुलाबी रंग

बाबा के कंधों पर चढ़

दुनिया थी देखती

माँ की बाहों में झुला झूलती

समय उपरान्त

उसी खिड़की में

आई  नज़र

वो एक लड़की

ले रंगबिरंगी चुनर

पूरियाँ तलती थी  

बाबा को बिस्तर पर सुला

माथा सहलाती 

वो एक लड़की...

बहुत दिनों से

बंद थी खिड़की

नहीं आती नजर…

Continue

Added by डिम्पल गौड़ on February 8, 2015 at 12:27am — 14 Comments

सोने का संसार

सोने का संसार !

उषा छिप गयी नभस्थली में,

देकर यह उपहार !

लघु–लघु कलियाँ भी प्रभात में,

होती हैं साकार !

प्रातः- समीरण कर देता है,

नव-जीवन संचार !

लोल-लोल लहलही लतायें,…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on February 8, 2015 at 12:16am — 19 Comments


मुख्य प्रबंधक
अतुकांत कविता : हिंसा (गणेश जी बागी)

मारते हो पशु

फैलाते हो हिंसा

'नीच' जाति के हो न

असभ्य कहीं के

कभी नहीं सुधरोगे

इतिहास गवाह है...



मारते तो तुम भी हो

'शिकार' के नाम पर

तुम तो 'नीच' न थे

याद है ?

वो शब्द भेदी बाण

जो असमय वरण किया था

अंधों के पुत्र का,

भागे थे हिरण के पीछे

चर्म चाहिए था न

इतिहास गवाह है...



हिंसक तो तुम दोनों ही हो

एक शौक के लिए

तो दूजा भूख के लिए

हाँ जी हाँ, बिलकुल

इतिहास गवाह है…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 7, 2015 at 4:30pm — 28 Comments

बसर तो प्यार से करते - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1212   1122  1212     22

***************************

किरन की साँझ पे यल्गारियाँ नहीं चलती

तमस  की  भोर पे हकदारियाँ नहीं चलती

**

बचाना  यार  चमन बारिशें भी गर हों तो

हवा की आग से कब यारियाँ नहीं चलती

**

बसर तो प्यार से करते वतन में हम  दोनों

धरम  के नाम की गर आरियाँ  नहीं चलती

**

चले वही जो करे जाँनिसार खुश हो के

वतन की राह में गद्दारियाँ नहीं चलती

**

बने हैं संत ये बदकार मिल रही इज्जत

कहूँ ये कैसे कि…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 7, 2015 at 4:04pm — 15 Comments

ग़ज़ल

समझ कर भी ये कुछ समझा नहीं है

ख़ुदा से आदमी डरता नहीं है



हमें हक़ के लिये लड़ना पड़ेगा

ये मौक़ा हाथ मलने का नहीं है



शराफ़त की दुहाई देने वालों

मुक़ाबिल इतना शाइस्ता नहीं है



ये आवाज़ों का जंगल है यहाँ पर

कोई फ़न्कार की सुनता नहीं है



नज़र के सामने रहता है लेकिन

कभी हमने उसे देखा नहीं है



ये दुनिया है संभल कर पाँव रखना

तुम्हारे घर का बाग़ीचा नहीं है



मैं अपनी क़ब्र में लेटा हुवा हूँ

मुझे अब कोई अन्देशा नहीं… Continue

Added by Samar kabeer on February 7, 2015 at 3:30pm — 23 Comments

संतुष्टि कहाँ है...? (अतुकांत)

धीमी-धीमी सी

हवाओं में

दीपों की टिमटिमाती लौ

दे जाती है

अंतर को भी रोशनी

बे-समय आँधियों ने

कब किया है, रोशन

बस! बुझा दिया

या फूंक दिए है जीवन

उन्ही दीपों से.

अथाह तेज बारिशों ने भी

बहा दिए हैं, जीवन

नदियों के मटमैले

जल से

प्यासा, प्यासा ही रहा

वैसे ही, जैसे

वैशाख-ज्येष्ठ की धूप में

बैठा हो

शुष्क किनारों पर

जीवन को तो

उतनी ही…

Continue

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on February 7, 2015 at 1:03pm — 23 Comments

ग़ज़ल --बहारों में

२१२२ — १२१२ — ११२(२२)

खिल रहे हैं सुमन बहारों में

झूमता है पवन बहारों में

 

ओढ़कर फागुनी चुनर देखो

सज गया है चमन बहारों में

 

आइने की तरह चमकता है

निखरा निखरा गगन बहारों में

 

यूँ तो संजीदा हूं बहुत यारों

हो गया शोख़ मन बहारों में

 

देखते हैं खिलाता है क्या गुल

आपका आगमन बहारों में

 

हो धनुष कामदेव का जैसे

तेरे तीखे नयन बहारों में

 

घुल गई है फिज़ा में मदिरा…

Continue

Added by khursheed khairadi on February 7, 2015 at 12:00pm — 18 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
( ग़ज़ल )- ज़रूरी है क्या ? चश्मे तर खोजिये ---- गिरिराज भंडारी

ज़रूरी है क्या ? चश्मे तर  खोजिये

********************************

 

122    122    122    12

जहाँ ग़म  न हो ऐसा घर  खोजिये

जो हँसता मिले , बामो दर खोजिये

 

कोई  बाइसे  ज़िंदगी  भी  तो  हो

इधर  खोजिये  या उधर   खोजिये

 

बाइसे  ज़िंदगी = ज़िन्दगी का कारण

 

गिरा एक क़तरा था सागर में कल

ज़रा जाइये   अब  असर  खोजिये

 

अँधेरा , यक़ीनों…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on February 7, 2015 at 9:00am — 29 Comments

वो कातिल शोख नजरों से पिलाती है दिवाली में

तरही ग़ज़ल 

नयी उम्मीद की किरने जगाती है दिवाली में 

वो नन्ही जान जब दीपक जलाती है दिवाली में 

अगर हो हौसला दिल में तो तय है मात दुश्मन की 

जला के खुद को बाती ये सिखातीहै दिवाली में 

बताशे खील खिलते फूल दीपक झिलमिलाते यूं 

नहीं मुफलिस को यादे गम सताती है दिवाली में 

दियों का नूर चेहरे पर चले बल खा के शरमा के 

वो कातिल शोख नजरों से पिलाती है दिवाली में 

है रुत बहकी, हवा महकी, अजब दिलकश नज़ारा…

Continue

Added by Dr Ashutosh Mishra on February 6, 2015 at 11:30pm — 15 Comments

मैं अपनी मुहब्बत को …

मैं अपनी मुहब्बत को …एक रचना 



मैं अपनी मुहब्बत को इक मोड़ पे छोड़ आया हूँ

इक ज़रा सी ख़ता पे मैं हर क़सम तोड़ आया हूँ



जाने कितने लम्हे मेरी साँसों की ज़िंदगी थे बने

मैं तमाम ख़्वाब उनकी पलकों में छोड़ आया हूँ



जिसकी मौजूदगी  में खामोशी भी बतियाती थी

अब्र की  चिलमन में वो माहताब छोड़ आया हूँ



बन के  हयात  वो हमसे क्यों बेवफाई .कर गए

उनकी  दहलीज़ पे  मैं  हर  आहट छोड़ आया हूँ



हिज्र का  दर्द  चश्मे  सागर में न सिमट पायेगा…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 6, 2015 at 12:02pm — 18 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़लत कोई और है ( अतुकांत ) -- गिरिराज भंडारी

ग़लत कोई और है , हम क्यों बदलें

********************************

बैलों का स्वभाव उग्र होता है , प्रकृति प्रदत्त

होना भी चाहिये

बिना उग्रता के भारी भारी गाड़ियाँ  नहीं खींची जा सकती

जो उसे जीवन भर खींचना है

बिना शिकायत

 

गायें ममता मयी , करुणा मयी होतीं है

गायों की थन से बहता दूध ,

दर असल उसकी ममता ही है ,

अमृत तुल्य , कल्याण कारी

 

गायें उग्र नहीं होतीं

प्रकृति जिसे धारिता के योग्य बनाती है , उसे…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on February 6, 2015 at 11:00am — 18 Comments

अपनी पीठ थपथपाना ---डॉo विजय शंकर

कठिन है

बहुत ही कठिन है

हाथ पीछे कर अपनी ही पीठ थपथपाना,

लेकिन....

कुछ लोग थपथपा लेते हैं,

बार बार थपथपाते हैं ,

लगातार थपथपाते हैं ,

खुद, खुश भी हो लेते हैं,

किन्तु भूल जाते हैं कि...

हाथ का प्रयोजन केवल यही नहीं है,

जिंदगी बीत जाती है,

किन्तु नहीं जान पाते,

और न ही कर पाते हैं

हाथों का सही इस्तेमाल,

बस अपनी पीठ थपथपा

खुश होते जाते हैं |

कभी कभी तो सौगातें आती हैं,

और सामने से निकल जाती है,

किन्तु, उनकें… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on February 6, 2015 at 11:00am — 19 Comments

कुकुभ छंद


कुलषित संस्कृति हावी तुम पर, बांह पकड़ नाच नचाये ।
लोक-लाज शरम-हया तुमसे, अब बरबस नयन चुराये ।।
किये पराये अपनो को तुम, गैरों से आंख मिलाये ।
भौतिकता के फेर फसे तुम, घर अपने आग लगाये ।।

पैर धरा पर धरे नही तुम, उड़े गगन पंख पसारे ।
कभी नही सींचे जड़ पर जल, नीर साख पर तुम डारे ।
नीड़ नोच कर तुम तो अपने, दूजे का नीड़ सवारे ।
करो प्रीत अपनो से बंदे, कह ज्ञानी पंडित हारे ।।

...............................
मौलिक अप्रकाशित

Added by रमेश कुमार चौहान on February 5, 2015 at 11:39pm — 4 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service