कब तक मनाऊँ मैं, वो अक्सर रूठ जाते हैं|
गर्दिश में अक्सर.... हर सहारे छूट जाते हैं|1
न मनाने का सलीका है,न रिझाने का तरीका है|
मनाते ही मनाते वो अक्सर रूठ जाते है|2
संजोकर दिल में रखता हूँ,नजर को खूब पढ़ता हूँ|
मगर खास होते ही ,अक्सर नजारे छूट जाते हैं|3
आयना समझकर हम.., उन्ही को देख जाते हैं|
संभालने की ही कोशिश में,जो अक्सर टूट जाते…
Added by anand murthy on February 8, 2015 at 9:20pm — 8 Comments
Added by Usha Choudhary Sawhney on February 8, 2015 at 7:30pm — 14 Comments
Added by Zaif on February 8, 2015 at 2:40pm — 8 Comments
2122 2122 2122
***********************
डूबता हो सूर्य तो अब डूब जाए
मत कहो तुम रोशनी से पास आए /1
******
एक अल्हड़ गोद में शरमा रही जब
चाँद से कह दो नहीं वह मुस्कुराए /2
******
थी कभी मैंने लगायी बोलियाँ भी
मोलने पर तब न मुझको लोग आए /3
******
आज मैं अनमोल हूँ बेमोल बिक कर
व्यर्थ अब बाजार जो कीमत लगाए /4
******
कामना जब मुक्ति की थी खूब मुझको
बाँधने सब दौड़ कर नित पास आए /5
रास आया है मुझे जब आज…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2015 at 1:52pm — 7 Comments
"कहाँ आगे-आगे बढ़े जा रहे हो जी', मैं पीछे रह जा रही हूँ |"
"तुम हमेशा ही तो पीछे थी"
"मैं आगे ही रही "
"और चाहूँ तो हमेशा आगे ही रहूँ, पर तुम्हारें अहम् को ठेस नहीं पहुँचाना चाहती हूँ समझे|"
"शादी वक्त जयमाल में पीछे ..."
"डाला जयमाल तो मैंने आगे"
"फेरे में तो पीछे रही"
"तीन में पीछे, चार में तो आगे रही न "
"गृह प्रवेश में तो पीछे"
"जनाब भूल रहे हैं, वहां भी मैं आगे थी "
इसी आगे पीछे को लेकर लड़ते -हँसते पार्क से बाहर निकले और एक दूजे से…
Added by savitamishra on February 8, 2015 at 10:59am — 24 Comments
ले लो एक सलाम
आने को फागुन,
है सुन रही गुनगुन,
किसकी अहो,किसकी कहो?
हटा घूँघट अब कली-कली का,
कौन रहा यह मुखड़े बाँच?
कलियों से अठखेली करता,
नाच रहा है घूर्णन नाच ?
हुआ व्यग्र,पहचान नहीं कि
कौन कली खुशबू की प्याली,
कौन रूप की होगी थाली,
खिलखिलाकर खिलने देता,
रूप-वयस को मिलने देता,
देता कुछ सपने उधार,
कलियाँ कहतीं रूप उघाड़---
आज तो अब जा रहा,
हम आज के कल हैं,
अबल कब?सबल…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on February 8, 2015 at 10:00am — 1 Comment
तेरी बेव़फाई मेरी बेव़फाई
कहानी समझ में अभी तक न आई
..........
मेरे इश्क़ में तू उधर ज़ल रहा है
इधर मैंने ज़ल कर मुहब्बत निभाई
..........
बहाने बनाकर ज़ुदा हो गये हम
यूँ दोनों ने मिलके ही दुनिया हँसाई
..........
तुझे मैंने मारा क़भी खंजरों से
क़भी सेज काँटों की तूने बिछाई
..........
जलाये जो तूने मेरे प्यार के ख़त
तो तस्वीर तेरी भी मैंने ज़लाई
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Added by umesh katara on February 8, 2015 at 9:05am — 22 Comments
गुनगुन करती थी सदा
वो एक लड़की ..
खिड़की से आती थी नज़र
वो एक लड़की
कभी नाचती गुड़िया संग
कभी लगाती गुलाबी रंग
बाबा के कंधों पर चढ़
दुनिया थी देखती
माँ की बाहों में झुला झूलती
समय उपरान्त
उसी खिड़की में
आई नज़र
वो एक लड़की
ले रंगबिरंगी चुनर
पूरियाँ तलती थी
बाबा को बिस्तर पर सुला
माथा सहलाती
वो एक लड़की...
बहुत दिनों से
बंद थी खिड़की
नहीं आती नजर…
ContinueAdded by डिम्पल गौड़ on February 8, 2015 at 12:27am — 14 Comments
सोने का संसार !
उषा छिप गयी नभस्थली में,
देकर यह उपहार !
लघु–लघु कलियाँ भी प्रभात में,
होती हैं साकार !
प्रातः- समीरण कर देता है,
नव-जीवन संचार !
लोल-लोल लहलही लतायें,…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 8, 2015 at 12:16am — 19 Comments
मारते हो पशु
फैलाते हो हिंसा
'नीच' जाति के हो न
असभ्य कहीं के
कभी नहीं सुधरोगे
इतिहास गवाह है...
मारते तो तुम भी हो
'शिकार' के नाम पर
तुम तो 'नीच' न थे
याद है ?
वो शब्द भेदी बाण
जो असमय वरण किया था
अंधों के पुत्र का,
भागे थे हिरण के पीछे
चर्म चाहिए था न
इतिहास गवाह है...
हिंसक तो तुम दोनों ही हो
एक शौक के लिए
तो दूजा भूख के लिए
हाँ जी हाँ, बिलकुल
इतिहास गवाह है…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 7, 2015 at 4:30pm — 28 Comments
1212 1122 1212 22
***************************
किरन की साँझ पे यल्गारियाँ नहीं चलती
तमस की भोर पे हकदारियाँ नहीं चलती
**
बचाना यार चमन बारिशें भी गर हों तो
हवा की आग से कब यारियाँ नहीं चलती
**
बसर तो प्यार से करते वतन में हम दोनों
धरम के नाम की गर आरियाँ नहीं चलती
**
चले वही जो करे जाँनिसार खुश हो के
वतन की राह में गद्दारियाँ नहीं चलती
**
बने हैं संत ये बदकार मिल रही इज्जत
कहूँ ये कैसे कि…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 7, 2015 at 4:04pm — 15 Comments
Added by Samar kabeer on February 7, 2015 at 3:30pm — 23 Comments
धीमी-धीमी सी
हवाओं में
दीपों की टिमटिमाती लौ
दे जाती है
अंतर को भी रोशनी
बे-समय आँधियों ने
कब किया है, रोशन
बस! बुझा दिया
या फूंक दिए है जीवन
उन्ही दीपों से.
अथाह तेज बारिशों ने भी
बहा दिए हैं, जीवन
नदियों के मटमैले
जल से
प्यासा, प्यासा ही रहा
वैसे ही, जैसे
वैशाख-ज्येष्ठ की धूप में
बैठा हो
शुष्क किनारों पर
जीवन को तो
उतनी ही…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on February 7, 2015 at 1:03pm — 23 Comments
२१२२ — १२१२ — ११२(२२)
खिल रहे हैं सुमन बहारों में
झूमता है पवन बहारों में
ओढ़कर फागुनी चुनर देखो
सज गया है चमन बहारों में
आइने की तरह चमकता है
निखरा निखरा गगन बहारों में
यूँ तो संजीदा हूं बहुत यारों
हो गया शोख़ मन बहारों में
देखते हैं खिलाता है क्या गुल
आपका आगमन बहारों में
हो धनुष कामदेव का जैसे
तेरे तीखे नयन बहारों में
घुल गई है फिज़ा में मदिरा…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 7, 2015 at 12:00pm — 18 Comments
ज़रूरी है क्या ? चश्मे तर खोजिये
********************************
122 122 122 12
जहाँ ग़म न हो ऐसा घर खोजिये
जो हँसता मिले , बामो दर खोजिये
कोई बाइसे ज़िंदगी भी तो हो
इधर खोजिये या उधर खोजिये
बाइसे ज़िंदगी = ज़िन्दगी का कारण
गिरा एक क़तरा था सागर में कल
ज़रा जाइये अब असर खोजिये
अँधेरा , यक़ीनों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 7, 2015 at 9:00am — 29 Comments
तरही ग़ज़ल
नयी उम्मीद की किरने जगाती है दिवाली में
वो नन्ही जान जब दीपक जलाती है दिवाली में
अगर हो हौसला दिल में तो तय है मात दुश्मन की
जला के खुद को बाती ये सिखातीहै दिवाली में
बताशे खील खिलते फूल दीपक झिलमिलाते यूं
नहीं मुफलिस को यादे गम सताती है दिवाली में
दियों का नूर चेहरे पर चले बल खा के शरमा के
वो कातिल शोख नजरों से पिलाती है दिवाली में
है रुत बहकी, हवा महकी, अजब दिलकश नज़ारा…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on February 6, 2015 at 11:30pm — 15 Comments
मैं अपनी मुहब्बत को …एक रचना
मैं अपनी मुहब्बत को इक मोड़ पे छोड़ आया हूँ
इक ज़रा सी ख़ता पे मैं हर क़सम तोड़ आया हूँ
जाने कितने लम्हे मेरी साँसों की ज़िंदगी थे बने
मैं तमाम ख़्वाब उनकी पलकों में छोड़ आया हूँ
जिसकी मौजूदगी में खामोशी भी बतियाती थी
अब्र की चिलमन में वो माहताब छोड़ आया हूँ
बन के हयात वो हमसे क्यों बेवफाई .कर गए
उनकी दहलीज़ पे मैं हर आहट छोड़ आया हूँ
हिज्र का दर्द चश्मे सागर में न सिमट पायेगा…
Added by Sushil Sarna on February 6, 2015 at 12:02pm — 18 Comments
ग़लत कोई और है , हम क्यों बदलें
********************************
बैलों का स्वभाव उग्र होता है , प्रकृति प्रदत्त
होना भी चाहिये
बिना उग्रता के भारी भारी गाड़ियाँ नहीं खींची जा सकती
जो उसे जीवन भर खींचना है
बिना शिकायत
गायें ममता मयी , करुणा मयी होतीं है
गायों की थन से बहता दूध ,
दर असल उसकी ममता ही है ,
अमृत तुल्य , कल्याण कारी
गायें उग्र नहीं होतीं
प्रकृति जिसे धारिता के योग्य बनाती है , उसे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 6, 2015 at 11:00am — 18 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on February 6, 2015 at 11:00am — 19 Comments
कुलषित संस्कृति हावी तुम पर, बांह पकड़ नाच नचाये ।
लोक-लाज शरम-हया तुमसे, अब बरबस नयन चुराये ।।
किये पराये अपनो को तुम, गैरों से आंख मिलाये ।
भौतिकता के फेर फसे तुम, घर अपने आग लगाये ।।
पैर धरा पर धरे नही तुम, उड़े गगन पंख पसारे ।
कभी नही सींचे जड़ पर जल, नीर साख पर तुम डारे ।
नीड़ नोच कर तुम तो अपने, दूजे का नीड़ सवारे ।
करो प्रीत अपनो से बंदे, कह ज्ञानी पंडित हारे ।।
...............................
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on February 5, 2015 at 11:39pm — 4 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |