२२१२/२२१२
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माँ भारती की शान में,
वो रोज़ नव परिधान में.
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क्यूँ राष्ट्रभक्ति खो गयी
समवेत गर्दभ गान में.
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सब हो गए कितने पतित
सोचो कथित उत्थान में.
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हर बैंक कर देंगे सफा
वो स्वच्छता अभियान में.
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इन्सानियत बाक़ी कहाँ
अब है बची इन्सान में.
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वो माफ़िनामे लिख गये
अपना यकीं बलिदान में.
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कैसे मसीहा देख लूँ
उस इक निरे नादान में.
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करते दहन है खूँ फ़िशां
कत्था लगा कर…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 14, 2018 at 8:12pm — 14 Comments
स्वप्निल यथार्थ....
जब प्रतीक्षा की राहों में
सांझ उतरे
पलकों के गाँव में
कोई स्वप्न
दस्तक दे
कोई अजनबी गंध
हृदय कंदरा को
सुवासित कर जाए
कोई अंतस में
मेघ सा बरस जाए
उस वक़्त
ऐ सांझ
तुम ठहर जाना
मेरी प्रतीक्षा चुनर के
अवगुंठन के
हर भ्रम को
हर जाना
मेरे स्वप्न को
यथार्थ कर जाना
मेरे स्वप्निल यथार्थ को
अमर कर जाना
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on March 14, 2018 at 7:45pm — 13 Comments
1-
वर दे माता शारदे , रचूँ प्रीति के छंद l
हो समष्टि की साधना , बढ़े ह्रदय आनंद ll
बढ़े ह्रदय आनंद , लेखनी चलती जाए l
लिखूँ सदा ही सत्य , झूठ से दिल घबराए ll
'अना' बहुत नादान, शारदे जग की ज्ञाता l
सिर पर रख दे हाथ, आज तू वरदे माता ।।
2-
सत्कर्मों का फल मिला , पाया मानव रूप l
जीवन पथ पर रख कदम ,देख न छाया धूप ll
देख न छाया धूप , मैल मत मन में रखना l
करना सबसे प्रेम , स्वाद जीवन का चखना…
ContinueAdded by Anamika singh Ana on March 14, 2018 at 4:00pm — 15 Comments
बीत जाएगी
जिंदगी, काटो मत
जीवन जियो
पतंग जैसे
डोर है जिंदगी की
उड़ी या कटी
नहीं टूटते
अपनत्व के तार
आखिर यूँ ही
सूर्य ग्रहण
हार गया सूरज
परछाई से
नदी बावरी
सागर में समाना
अभीष्ट जो था
.... मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on March 14, 2018 at 3:30pm — 4 Comments
(फ़ाइलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलुन)
हो रहा उनका हर वक़्त दीदार है |
मेरी आँखों में तस्वीरे दिलदार है |
कुछ तो है दोस्तों शक्ले महबूब में
देखने वाला कर बैठता प्यार है |
उनका दीदार मुमकिन हो कैसे भला
उनके चहरे पे बुर्क़े की दीवार है |
मुझ पे तुहमत दग़ा की लगा कर कोई
कर रहा ख़ुद को साबित वफ़ादार है |
चाहे दीदारे दिलबर ,दवाएं नहीं
वो हकीमों मुहब्बत का बीमार है |
उसको क्या वारदाते जहाँ की ख़बर
जो पढ़े ही नहीं…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on March 14, 2018 at 11:30am — 32 Comments
हृदय-सम्बन्ध - ५
संकोच, घबराहट
ढुलता अश्रुजल
हर प्रवाह के नीचे
एक और प्रवाह
पता नहीं भूचाल था वह, या
था कोई भीषण प्रकम्पक तूफ़ान…
ContinueAdded by vijay nikore on March 14, 2018 at 8:06am — 26 Comments
221 2121 1221 212
इस बेखुदी में आप भी जाते कहाँ कहाँ ।
दिल के हजार ज़ख्म दिखाते कहाँ कहाँ ।।
खानाबदोश जैसे हैं हम जहान में ।
रातें तमाम आप बिताते कहां कहां ।।
मुश्किल सफर में अलविदा कह कर चले गए ।।
यूँ जिंदगी का साथ निभाते कहाँ कहाँ ।।
चहरा हो बेनकाब न जाहिर शिकन भी हो।
क़ातिल का हम गुनाह छुपाते कहाँ कहाँ…
Added by Naveen Mani Tripathi on March 14, 2018 at 5:00am — 3 Comments
उनके बंगले के बाहर आज फिर उनके दीवानों, प्रशंसकों और पत्रकारों की ग़ज़ब की भीड़ लगी हुई थी। एक वरिष्ठ पत्रकार को उनसे रूबरू होने का मौक़ा मिला। बातचीत शुरू हुई :
"बहुत-बहुत मुबारक हो आपकी एक और जीत !" पत्रकार ने अभिवादन करते हुए कहा - "अस्पताल से लौट कर अब कैसा महसूस कर रहे हैं?"
"चिकित्सकों की कर्मभूमि से अपनी कर्मभूमि पर जाने के लिए फिर से तैयार हूं!" उन्होंने अपनी चिर-परिचित जोशीली आवाज़ में पत्रकार को जवाब देते हुए कहा - "बचपन से ही सिर पर है अल्लाह का हाथ इस अल्लारक्खा…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 14, 2018 at 4:00am — 7 Comments
2122 2122 212
आंधियों के बाद भी अक्सर मिले ।।
फिर किसी दरिया में हम बहकर मिले ।।
हौसले ने आसमाँ तब छू लिया ।
आप मुझ से जब कभी हंस कर मिले ।।
हक़ जो मांगा इस ज़माने से यहां ।
दोस्तों के हाथ में ख़ंजर मिले ।।
लूट की थीं दौलतें जिसमें लगीं ।
वो मकां अक्सर हमें जर्जर मिले ।।
क्या गले मिलते भी हम तुमसे सनम ।
प्यार के बदले बहुत पत्थर मिले…
Added by Naveen Mani Tripathi on March 14, 2018 at 12:30am — 8 Comments
2122 2122 2122
बेवफा वे अब कहाँ,अपने हुए हैं
वर्जनाएँ तोड़कर आगे बढ़े हैं।1
दो कदम उनके हुए तो कम नहीं हम
कुछ कदम चलकर मुरव्वत से मिले हैं।2
गालियाँ उनकी नहीं लगतीं बुरी अब
लफ्ज उनके चासनी में ज्यों सने हैं।3
दोस्ती का सिलसिला चलता रहेगा
लोग वैसे कह रहे,चिकने घड़े हैं।4
डर सताता हार जाने का हमेशा
इस कदर ही मोहरे कि त ने लुटे हैं।5
फूलती-फलती रहे अपनी तिजारत
नाव जिनकी डूबती वे आ…
Added by Manan Kumar singh on March 13, 2018 at 9:30pm — 3 Comments
221 2121 1221 212
इस बेखुदी में आप भी जाते कहाँ कहाँ ।
दिल के हजार ज़ख्म दिखाते कहाँ कहाँ ।।
खानाबदोश सा लगा आलम जहान का ।
रातें तमाम आप बिताते कहां कहां ।।
मुश्किल सफर में अलविदा कह कर चले गए ।
यूँ जिंदगी का साथ निभाते कहाँ कहाँ ।।
चहरा हो बेनकाब न जाहिर शिकन भी हो।
क़ातिल का हम गुनाह छुपाते कहाँ कहाँ ।।
कुछ तो हमें भी फैसला लेना था…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on March 13, 2018 at 11:01am — 7 Comments
खुशियों का बँटवारा
“पापा,बड़े कमरे में चलों “ मनीष ने मैच देख रहे अजीत गुप्ता का हाथ खींचते हुए कहा
“अरे चल रहा हूँ मेरे लाडले,इतनी उतावली क्या है !”
और कमरे में प्रवेश करते ही- सरप्राइज !
“क्यों पापा कैसी लगी डेकोरेशन !” मझली बेटी आनंदी ने पूछा
“एक्सीलेंट!”
“अभी एक और सरप्राइज है “ मिसीज अजीत ने चॉकलेट केक आगे बढ़ाते हुए कहा
“यार ! तुम भी बच्चों के साथ बच्ची बन रही हो |क्या यह उम्र है बर्थडे मनाने की ---केक काटने…
ContinueAdded by somesh kumar on March 12, 2018 at 11:23pm — 3 Comments
अरकान:फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलुन
ज़िन्दगी से दूर कब तक जाओगे,
किस तरह सच्चाई को झुटलाओगे।।
सादगी इतनी मियाँ अच्छी नहीं,
ज़िन्दगी में रोज़ धोका खाओगे।।
तल्ख़ यादें दिल से मिटती ही नहीं,
ज़िन्दगी में चैन कैसे पाओगे।।
तुम ग़मों को मात देना सीख लो,
अश्क पीकर कब तलक ग़म खाओगे।।
अपनी कमज़ोरी को ज़ाहिर मत करो,
वरना हर सौदे में घाटा खाओगे।।
(मौलिक एवं…
ContinueAdded by santosh khirwadkar on March 12, 2018 at 11:00pm — 15 Comments
221 2121 1221 212
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छोटी सी ज़िन्दगी में किसे ख़ुश बता करूँ,
ज़लता चराग़ हूँ मैं अँधेरे का क्या करूँ ।
कैसे सुनाऊँ सबको महब्बत की दास्ताँ,
या फिर बता दो दर्द वो कैसे सहा करूँ ।
ये माना ख़ुद की फ़िक्र में इतना नहीं सकूँ,
जो मिलता ज़ख्म-ए-ग़ैर के मरहम मला करूँ ।
दस्तक़ तू दे ऐ मौत, मज़ा तब है, हो नशा,
मैं जब खुदा के ध्यान में सिमरण किया करूँ ।
जब हो नसीब में ये तग़ाफ़ुल ये बेरुख़ी,
तो…
ContinueAdded by Harash Mahajan on March 12, 2018 at 6:27pm — 17 Comments
उतरती नहीं है धूप
तुम्हारे स्नेहिल मादक स्पर्श
मेरे शिशु-मन को स्वयं में समाविष्ट करते
प्राणदायक आत्मीय वसन्ती हवा-से
और फिर अचानक कभी-कभी
तुम्हारे रोष
पता नहीं थे…
ContinueAdded by vijay nikore on March 12, 2018 at 12:00pm — 12 Comments
पता नहीं उस मिटटी के बड़े से आले में क्या तलाश रहा था थका मायूस आठ बर्षीय मोहन?कुछ गंदे फटे पुराने कपड़े और नाना की टूटी पनय्यियों के सिवा कुछ भी तो नहीं था उस आले में।अचानक उसके उदास चेहरे पे एक तेज चमक उभरी..कुछ मिला था उसे..लेकिन ये वो चीज नहीं है जिसे वो मासूम तलाश रहा था ।परंतु शायद उससे भी ज्यादा जरुरी था वो धूल मिटटी से सना हुआ रोटी का टुकड़ा।लगता है किसी चूहे ने यहाँ छोड़ा होगा।चोर निगाहों से उसने दांये बांये देखा..नहीं कोई नहीं देख रहा है..अगले ही पल वो रोटी का टुकड़ा उसकी निकर की जेब…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 12, 2018 at 10:30am — 10 Comments
माँ शब्द पर २ क्षणिकाएं :
1.
मैं
जमीं थी
आसमाँ हो गयी
एक पल में
एक
जहाँ हो गयी
अंकुरित हुआ
एक शब्द
और मैं
माँ हो गयी
...........................
२.
ज़िंदा रहते हैं
सदियों
फिर भी
लम्हे
बेज़ुबाँ होते हैं
छोड़ देती हैं
साथ
साँसें
जब ज़िस्म
फ़ना होते हैं
ज़िंदगी
को जीत लेते हैं
मौत से
जो शब्द
वो
माँ होते…
ContinueAdded by Sushil Sarna on March 11, 2018 at 9:30pm — 17 Comments
221 2121 1221 212
इंसानियत के तंग सभी दायरे हुए।
दिखते नहीं हैं लोग जमीं से जुड़े हुए।।
जो सुर्खियों में रहते हमेशा बने हुए।
रहते है लोग वो ही ज़ियादा डरे हुए।।
आहट हुई जरा सी बुरे वक़्त की तभी।
कुछ साँप आस्तीन से निकले छुपे हुए।।
वो इस लिये खड़ा है बुलन्दी पे आज भी।
डरता नहीं है झूठ कोई बोलते हुए।।
ख्वाबों में देखता हूँ जिसे रोज रात में।
कहता हूँ अब ग़ज़ल मैं उसे सोचते…
Added by surender insan on March 11, 2018 at 4:00pm — 28 Comments
अहमियत
“सुनते हो !” रीमा ने सहमते हुए मोबाईल पर गेम खेल रहे प्रकाश को धीरे से छूकर कहा
“क्या यार ! तुम्हारे चक्कर में मेरा खिलाड़ी मारा गया -----बोलों क्या आफ़त आ गई |” प्रकाश ने झल्लाते हुए कहा
“मौसीं का फ़ोन आया था------नानी सीढ़ियों से गिर गईं हैं |” रीमा ने सहमते हुए कहा
“वेरी बैड ----ज़्यादा चोट तो नहीं आई ---“ प्रकाश ने बिना उसकी तरफ़ देखे गेम में लगे हुए ही कहा
“नहीं !” रीमा चुपचाप बगल में बैठ गई
"सबकी बैंड बजा रखी है मैंने ---मुझसे अच्छा…
ContinueAdded by somesh kumar on March 11, 2018 at 9:18am — 5 Comments
अलमारी में रखे शब्दकोष के पन्ने अचानक फड़फड़ाने लगे । हो सकता है ये उनके अंदर की बेचैनी या घबराहट हो । " सहिष्णुता " शब्द ने "संस्कार " से अपनी व्यथा बताते हुए कहा -" मेरे अर्थ को लोग भूल से गए हैं । मैं उपेक्षित जीवन जी रहा हूँ । मेरे मर्म को कोई जानना नहीं चाहता । बुरा तो तब और लगता है जब मेरे आगे "अ" जोड़कर " असहिष्णुता " बनाकर देश में बवाल मचाया जा रहा है ।"
" सच कहती हो " सहिष्णुता" बहना । मेरी भी हालत अनाथों की तरह हो गई है । कोई मुझे अपनाने को तैयार ही नहीं है ।" "संस्कार…
Added by Mohammed Arif on March 11, 2018 at 9:00am — 27 Comments
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