Added by Rahila on March 5, 2016 at 12:41pm — 10 Comments
1222 1222 1222 1222 1222
हुनर की बात है सबको गमों में यूँ हँसाना तो नहीं आता
सभी के हाथ यारो ये मुहब्बत का खजाना तो नहीं आता
है हसरत तो हमारी भी लगाएँ दिल हसीनों से जमाने में
हमें पर नाज कमसिन का जरा भी यों उठाना तो नहीं आता
हमेशा लौट आता कारवाँ गर्दिश का जैसे दोस्तों फिर फिर
कि वैसे लौटकर फिर से बुलंदी का जमाना तो नहीं आता
लगेगी जिंदगी कैसे सजा से हट किसी ईनाम के जैसी
सभी को यार होठों पर तबस्सुम को सजाना तो नहीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 5, 2016 at 10:57am — 15 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 5, 2016 at 9:43am — 7 Comments
2212 121 1222 212
इतना कमाल हुस्न, दिखाया ही किसलिये।
होनी नही थी बात, बुलाया ही किसलिये।।
मौका नहीं था देना, इबादत का ग़र हमें।
बुत से भला नक़ाब, हटाया ही किस लिये।।
सुननी नहीं थी तुमको, अगर मेरी आरज़ू।
फिर नाम का भजन ये, सिखाया ही किसलिये।।
हम भूल ही गये थे, कि लेनी है साँस भी।
जब मारना ही था तो, जिलाया ही किसलिये।।
अरमान सब थे दफ़्न, सुकूँ में बहुत थे हम।
बर्बाद गुल था करना, खिलाया ही किसलिये।।
मौलिक…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 5, 2016 at 12:00am — 9 Comments
कौन है देख लें रो रहा कौन है
कौन है उस पे हँसता हुआ कौन है
कौन है लूट कर बन गया ज़िन्दगी
ज़िन्दगी ऐ तुझे भा गया कौन है
कौन है जिसका इक बार टूटे न दिल
दिल मुकम्मल जहाँ में बचा कौन है
कौन है ढूंढ़ता इक बशर बेखता
बेखता आज कल दिख रहा कौन है
कौन है आशना जो मिटा डाले ग़म
ग़म से रब के सिवा आशना कौन है
कौन है देखलूँ हू ब हू फूल सा
"फूल सा मुस्कुराता हुआ कौन है"
कौन है जान लें 'राज़' का…
ContinueAdded by Vivek Raj on March 4, 2016 at 8:30pm — 5 Comments
मुस्कुरा भर देती हूँ .....
कुछ तो है
तेरे मेरे मध्य
अव्यक्त सा //
शायद कोई शब्द
जो अभिव्यक्ति के लिए
अधरों पर छटपटा रहा हो //
या कोई पीछे छूटा पल
जो समय की आंधी में
अपने अहसासों को
बिखरने की वज़ह ढूंढ रहा हो //
या हृदय के अवगुंठन में
कोई उनींदी से चेतना
जो किसी के
स्नेह्पाश की प्रतीक्षा में
नयन दहलीज़ पर
अधलेटी सी बैठी हो //
क्या है आखिर
ये अव्यक्त और…
Added by Sushil Sarna on March 4, 2016 at 3:19pm — 10 Comments
पढ़ते हुए बच्चे का अनमना मन
टूटती ध्यान मुद्रा
बेचैनी बदहवासी
उलझन अच्छे बुरे की परिभाषा
खोखला करती खाए जा रही थी .......
कर्म ज्ञान गीता महाभारत
रामायण राम-रावण
भय डर आतंक
राम राज्य देव-दानव…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on March 4, 2016 at 11:00am — 6 Comments
उसकी दाढ़ी बनाई गयी, नहलाया गया और नये कपडे पहना कर बेड़ियों में जकड़ लिया गया| जेलर उसके पास आया और पूछा, "तुम्हारी फांसी का वक्त हो गया है, कोई आखिरी इच्छा हो तो बताओ|"
उसका चेहरा तमतमा उठा और वो बोला, "इच्छा तो एक ही है-आज़ादी| शर्म आती है तुम जैसे हिन्दुस्तानियों पर, जिनके दिलों में यह इच्छा नहीं जागी|"
वो क्षण भर को रुका फिर कहा, “मेरी यह इच्छा पूरी कर दे, मैं इशारा करूँ, तभी मुझे फाँसी देना और मरने के ठीक बाद मुझे इस मिट्टी में फैंक देना फिर फंदा…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 4, 2016 at 7:30am — 11 Comments
Added by amita tiwari on March 3, 2016 at 11:42pm — 7 Comments
गज़ल............उसी से दिल्लगी...
बहरे रुक्न.....हज़ज़ मुसम्मन सालिग
दिखा कर रोशनी जिसने किया है सृष्टि को पावन.
सघन तम में बसी जिसने किया है सृष्टि को पावन.
रही चर्चा यही जिसने किया है सृष्टि को पावन.
नहीं मिलती फली जिसने किया है सृष्टि को पावन.
हवाओं में, गुबारों में, समन्दर में वही साया
कहे मुझको परी जिसने किया है सृष्टि को पावन.
दिवाकर सांझ से मिलकर सितारे रात से कहते
वही सबसे बली जिसने किया है…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 3, 2016 at 10:12pm — 8 Comments
छंद – वंशस्थ विलं
जगण तगण जगण रगण
121 221 121 212
जहाँ मनीषी प्रमुदा रहें सभी
जहां सुभाषी मधुरा प्रमत्त हों
जहां सुधा हो सरसा प्रवाहिता
वहां सदा है अनुराग राजता
उदार सारल्य स्वभाव में बसे
रहे मुदा निश्छलता नवीनता
सुकांति में हो कमनीयता घनी
वहां सदा है अनुराग राजता
वियोग में भी हिय की समीपता
नितांत तोषी मनसा समर्पिता
जहाँ शुभांगी पुरुषार्थ रक्षिता
वहां सदा है अनुराग…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 3, 2016 at 9:30pm — 2 Comments
कहीं कुछ टूटता सा महसूस होता है
कहीं कोई डाली चटक सी जाती है
क्यों अस्तित्व खुद ही बिखर रहा है
हर शख्स जीवन से मुकर रहा है
बस एक धारा बनना चाहा
जो समेटे रहती ध्वनि कल-कल
बहती रहती सदा यूँ ही अविरल
सरोकार न होता जिसे सुख से
न दर्द होता किसी दुःख से
पहचान न होती किसी पाप की
न चाहत होती किसी पुण्य…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 3, 2016 at 4:30pm — 4 Comments
लड़ रहा वह युद्ध कबसे
पर थका कब?
घिर भी जाता अकेला
व्यूह में बेशस्त्र वह
हारता हिम्मत कहाँ?
लड़ता रहा बेखौफ वह
हाथ में पहिया भले टूटा हुआ
तो क्या हुआ?
हुंकारता दहला रहा वह
शूर वीरें को
जो बिके हर काल में
बेजुबां ही मर गये।
कैद मैं रहता कहाँ
फड़फड़ाता तोड़ता
भी वह कड़ी
रहता सदा ही मुक्त वह
जो कि परिंदा है।
लाख मारो मर नहीं सकता
'अभि' हर रोज जिंदा है।
मौलिक व अप्रकाशित@मनन
Added by Manan Kumar singh on March 3, 2016 at 1:30pm — 4 Comments
मित्रो , आज दिनांक ०३. ०३. २०१६ को विवाह की ४०वीं वर्षगांठ के
अवसर पर अपने हमसफ़र को समर्पित दिल के अहसास :
मैं नहीं जानता
मेरे अलफ़ाज़
तेरे दिल की गहराईयों में
कब तक गूंजते हैं
मगर जब तेरी नज़र उठती है
मुझे अपने वुज़ूद का
अहसास होता है
जब तेरी पलक की नमी
मेरी पलक को छूती है
मुझे अपनी मुहब्बत का
अहसास होता है
जब तेरे सुर्ख लबों पे
मुस्कुराहट अंगड़ाई लेती है
मेरी धड़कनों को
तेरी करीबी का
अहसास होता है
जब…
Added by Sushil Sarna on March 3, 2016 at 12:36pm — 10 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 3, 2016 at 12:36pm — 9 Comments
1212 1122 1212 22/112
छिपा के बाहों में रक्खा था तीरगी ने मुझे
नज़र उठा के भी देखा न रोशनी ने मुझे
थका थका सा बदन है झुके झुके शाने
परीशाँ कर दिया इस दौरे ज़िन्दगी ने मुझे
गली से उनकी जो निकला तभी जहाँ का हुआ
उसी गली में ही रक्खा था आशिक़ी ने मुझे
नज़र में रूह की सच्चाइयाँ पढ़ूँ कैसे
सिखा दिया है वही इल्म, बेबसी ने मुझें
रही तो चाह मेरी भी, तेरे क़रीब आता
तुझी से कर दिया है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 3, 2016 at 10:00am — 15 Comments
ग़ज़ल (पास है वह कहाँ दूर है )
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212 -------212 --------212
जो तसव्वुर में मामूर है |
पास है वह कहाँ दूर है |
आइने पर न तुहमत रखो
वह तो पहले से मग़रूर है |
मुस्करा उनके हर ज़ुल्म पर
यह ही उल्फ़त का दस्तूर है |
उनके दीदार का है असर
मेरे रुख पे न यूँ नूर है |
बे वफ़ाई है वह हुस्न की
जो ज़माने में मशहूर है |
छोड़ जाये गली किस…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 1, 2016 at 9:04pm — 10 Comments
2122 1122 1122 22
शाम को झील के रुख़सार गुलाबी होना
मिलके खुर्शीद से जज्बात रूहानी होना
उन्स की मय से लबालब है ग़ज़ल का सागर
, डूबकर उसमे सुखनवर का शराबी होना
बिन कहे छोड़ के जाना यूँ अकेले लिल्लाह
मार डालेगा तेरा गैर जबाबी होना
पाक उल्फत या मुहब्बत या इबादत समझो
कृष्ण की चाह में मीरा का दिवानी होना
वो मुहब्बत है कहाँ आज वो दिलदार कहाँ
चुन के दीवार में चुपचाप कहानी होना…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 1, 2016 at 8:40pm — 26 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on March 1, 2016 at 6:02pm — 7 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२
वक्त आ रहा दुःस्वप्नों के सच होने का
जागो साथी समय नहीं है ये सोने का
बेहद मेहनतकश है पूँजी का सेवक अब
जागो वरना वक्त न पाओगे रोने का
मज़लूमों की ख़ातिर लड़े न सत्ता से यदि
अर्थ क्या रहा हम सब के इंसाँ होने का
अपने पापों का प्रायश्चित करते हम सब
ठेका अगर न देते गंगा को धोने का
‘सज्जन’ की मत मानो पढ़ लो भगत सिंह को
वक्त आ गया फिर से बंदूकें बोने…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 1, 2016 at 6:00pm — 14 Comments
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