For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

April 2014 Blog Posts (157)

मेरे जीवन के मधुबन में : गीत /नीरज नीर

सुगंध बनकर आ जाओ तुम

मेरे जीवन के मधुबन में

प्रेम सिंचित हरी वसुंधरा

पल पल में जीवन महकाओ

परितप्त ह्रदय के मरुतल पर

मेघा दल बन कर छा जाओ

बस जाओ न प्रतिबिम्ब बनकर

मेरे जीवन के दर्पण में.

सुगंध बनकर आ जाओ तुम

मेरे जीवन के मधुबन में ..

तुझ से ही है मेरा होना

तुझ से मिलकर हँसना रोना

तुम चन्दा , मैं टिम टिम तारा

अर्पण तुझ पर जीवन सारा

तुझ से दूर रहूँ मैं कैसे

आसक्त बंधा हूँ बंधन में

सुगंध बनकर आ जाओ…

Continue

Added by Neeraj Neer on April 9, 2014 at 10:01am — 14 Comments

ग़जल

चल पड़े राह जो गुनाह में थे । 
गुम गए वो सभी सियाह में थे । 


वो क्या थी अदा हमें दिखाई ,
जब हमारी रहे निगाह में थे । 


वो  क्या ये बतायें तुझे अब ,
जब रहे वो न उस सलाह में थे । 


हम कहें भी क्या तो वेसा क्या ,
जब रहे हम उसी पनाह में थे । 


क्यों  लगे  वो यहीं रुके  होंगे ,
जो  सदा के लिए प्रवाह में थे। 

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by मोहन बेगोवाल on April 9, 2014 at 1:00am — 7 Comments

आखिर, कितने दिनों के वास्ते ?

खिलना नहीं है बाग में

मिलना है जिसको खाक में

ध्यान में उसका धरूँ

कितने दिनों के वास्ते ?

विश्वास अपनों का धरूँ

उपहास अपना क्यों करूँ ?

इतिहास अपना ही लिखूँ

कितने दिनों के वास्ते ?

अवसाद सपनों पर करूँ

फरियाद अपनों से करूँ

नित याद में खोई रहूँ

कितने दिनों के वास्ते ?

अभिमान मन की भूल है 

अरमान मन की चूक है

इस चूक को वरदान समझूँ

कितने दिनों के वास्ते…

Continue

Added by kalpna mishra bajpai on April 8, 2014 at 11:00pm — 22 Comments

सह विनाश या सह विकास

सह विनाश या सह विकास  

 

दुनियाँ

परमाणु बम पर बैठी हुयी है

बस एक हिट की –

ज़रूरत है ,

मनु – युग मे जाने की

ज़रूरत नहीं होगी

तब मालूम होगा

अस्तित्व

सह विनाश का ।

पर यदि

नयी उमर की  नयी फसल -

देखनी है

तो सम्राट अशोक को

फिर से

बुद्ध के शरण मे आना होगा

गांधी और किंग की भावनाओं को

अपनाना होगा

फिर कल – कारखानों से 

सुमधुर संगीत जो…

Continue

Added by S. C. Brahmachari on April 8, 2014 at 9:47pm — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
आंखों देखी – 15 बैरागी अभियात्री, साधारण इंसान

आंखों देखी – 15  बैरागी अभियात्री, साधारण इंसान

     आसमान में बादल थे लेकिन दृश्यता (visibility) अच्छी होने के कारण छठे अभियान दल के दलनेता ने दक्षिण गंगोत्री आने का निर्णय लिया. नियमानुसार, जहाज़ के अंटार्कटिका पहुँचने के साथ ही अभियान की पूरी कमान नए दल के दलनेता के हाथों आ जाती है हालाँकि वे हालात के अनुसार लगभग सभी निर्णय शीतकालीन दल के स्टेशन कमाण्डर के साथ विचार-विमर्श करने के बाद ही लेते हैं. शिष्टाचार के अतिरिक्त इसका मुख्य कारण है शीतकालीन दल का विशाल अनुभव…

Continue

Added by sharadindu mukerji on April 8, 2014 at 5:15pm — 4 Comments

चुनावी वर्ल्ड-कप ( कविता )

देख चुनावी वर्ल्ड कप, का सज गया मैदान

ट्रोफी इसकी पाने को , सब नेतागन परेशान

 

सोच रहे हैं सब कैसे,  मतदाता को रिझायें

कम ओवर मैं अब कैसे, रन तेजी से बनायें

 

कैसे उसे मनाये जो, मतदाता पहले से रूठा

निकल जाये न मैच, कैच जो हाथों से छूटा

 

जो बॉलर भी आये समक्ष, उसको मारो बल्ला

चाहे चौका लग न पाये, मचे छक्के का हल्ला

 

जीतेंगे है हर हाल मैं हमतो, ठोंक रहे हैं ताल

गति गेंद की तेज रहे चाहे, हो जाये नो…

Continue

Added by Sachin Dev on April 8, 2014 at 4:30pm — 8 Comments

राम तुम्हें फिर.../गज़ल/कल्पना रामानी

मात्रिक छंद

असुरों के सुर उच्च हुए हैं, मौन मंत्र सिखलाना होगा।

राम, तुम्हें  फिर से कलियुग में, भारत भू पर आना होगा।

 

ओढ़ चदरिया राम नाम की, घूम रहे चहुं ओर अधर्मी।

धर्म-पंथ उनको दिखलाकर, गूढ़-ज्ञान  फैलाना होगा।

 

मानवता का ढोंग रचाकर, रावण ताज सजा …

Continue

Added by कल्पना रामानी on April 8, 2014 at 11:00am — 18 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
चिन्दियाँ इतिहास की, रूहों तलक फिर जाएँगी ग़ज़ल (राज )

२१२२  २१२२ २१२२  २१२ 

रोक लो तूफ़ान चिंगारी भड़क फ़िर जाएँगी

नफ़रती लपटें जमीं से अर्श तक फ़िर जाएँगी

 

इन दरारों पे जरा आँचल बिछा कर छाँव दो   

आंच पाकर बैर की वरना दहक फ़िर जाएँगी

 

अम्न- ओ-इंसानियत से चूर थी  गलियाँ यहाँ 

देख वो अपने उसूलों से भटक फ़िर जाएँगी  

 

खाई जाती थी कसम जो  दोस्ती के दरमियाँ 

उस वफ़ा की पाक़  मीनारें चटक  फ़िर जाएँगी

 

फिर झडेंगे शाखों से पत्ते ख़जां आये बिना   

बिजलियाँ जब उन…

Continue

Added by rajesh kumari on April 8, 2014 at 11:00am — 14 Comments

कुछ चुनावी दोहे-लक्ष्मण लडीवाला

पहन मुखौटा घूमते, आया पास चुनाव,

खेती बो विश्वास की, तापे खूब अलाव । 

 

छलियाँ बनकर लूटने, करे प्रेम की बात,

सबकी बाते मानते,  दिन हो चाहे रात ।

 

मीठा मंतर मारते, मन में रखते खोट,

बंजर को उर्वर कहे, लेने इनको वोट । 

 

पाखण्डी कुछ आ गए, देख हमारे गाँव,

आकर लूटे  कारवाँ,  बोझिल से है पाँव ।

 

देख हवा के रूख को, झट पलटी खा जाय, 

अपने दल को छोड़कर, दूजे दल में जाय |

 

होड़ लगी है मंच पर, फिसला…

Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 8, 2014 at 9:43am — 12 Comments

बस्ती में कोई बच्चा नहीं देखा - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1222 1222 1222 1222

***

सियासत पूछ मत तुझमें पतन क्या-क्या नहीं देखा

बहुत  खुदगर्ज  देखे  हैं  मगर  तुझ  सा  नहीं  देखा

**

महज  कुर्सी को  दुश्मन से  करे तू लाख  समझौते

चरित तुझ सा  किसी का भी  यहाँ गिरता नहीं देखा

**

सपन में भी दिखा करती मुझे तो बस सियासत ही

सियासत से  मगर कच्चा  कोई  रिश्ता  नहीं  देखा

**

बराबर  बाटते   देखी   मुहब्बत  भी   समानों  सी

बड़ा-छोटा  करे  माँ  प्यार  का  हिस्सा  नहीं …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 7, 2014 at 12:30pm — 23 Comments

बंटवारा....(लघु-कथा)

  “अरे! रामेश्वर भाई..समझ नही आता क्या करें ? किस को क्या समझाएं ? किस दुःख में शामिल होने चलें?”

“सही कह रहे हो..तुम किशन भाई, वहां बेचारे दीनानाथ जी का शव अंतिम संस्कार की राह देख रहा है और उनके चारों बेटे आपस में बटवारे को लेकर झगड़ रहे है..”

" हाँ भाई..! रामेश्वर ,  दीनानाथ जी ने अपनी अर्थी के लिए चार काँधे तैयार किये थे, न जाने क्या कमी रह गई "

 

   जितेन्द्र 'गीत'

(मौलिक व् अप्रकाशित)

 

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on April 7, 2014 at 11:09am — 30 Comments

गज़ल - जलते नयन बेतहाशा - इमरान

221 221 22



ठंडी पवन बेतहाशा,

जलते नयन बेतहाशा।



धरती पराई, सताये,

यादे वतन बेतहाशा।



ज़िन्दा अगर हो तो सुन्न क्यों,

ख़ूने बदन बेतहाशा।



मैला बदन कैसे पहनूँ,

उजला क़फन बेतहाशा।



मौसम चुनावी, मिलेंगे,

झूठे वचन बेतहाशा।



नेता न छोड़ेंगे करने,

भारी गबन बेतहाशा।



माज़ी जिगर का बना है,

कोई वज़न बेतहाशा।



मिलने लगे हैं कुछ अपने,

डाले शिकन बेतहाशा।



देखो न अंधा बना… Continue

Added by इमरान खान on April 6, 2014 at 8:30pm — 31 Comments

अब होश करौ .....

अब होश करौ मदहोश न हो,

नहीं तौ फिर से दुख पइहौ।

उप्पर सफेद अंदर करिया,

ई नेता केर स्वरूप आय।

घड़ियाली आंसू ढुरुकि क्यार,

वोटन का लेवैक रूप आय।

जौ जाति धर्म मां बंटि जइहौ,

तौ पांच साल तक पछितइहौ

अब होश करौ मदहोश न हो,

नाहीं तौ फिर से................।

ई प्रजा तंत्र तब बचि पाई,

जब रिश्ता नाता ना देखौ,

टेटे कै पैसा ना लेखौ,

गाड़ी कै बवंडर ना देखौ।

अब होश करौ मदहोश न हो,

नाहीं तौ फिर से................।

ई देश बचावै के खातिर,

गुंडन…

Continue

Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on April 6, 2014 at 7:14pm — 7 Comments

गाँव , मसान एवं गुडगाँव

गाँव की फिजाओं में

अब नहीं गूंजते

बैलों के घूँघरू ,

रहट की आवाज.

नहीं दिखते मक्के के खेत

और ऊँचे मचान .

उल्लास हीन गलियां

सूना दृश्य

मानो उजड़ा मसान.

नहीं गूंजती  गांवों में

ढोलक की थाप पर

चैता की तान

गाँव में नहीं रहते अब

पहले से बांके जवान.

गाँव के युवा गए सूरत, दिल्ली और

गुडगांव

पीछे हैं पड़े

बच्चे , स्त्रियाँ, बेवा व बूढ़े

गाँव के स्कूलों में शिक्षा की जगह

बटती है खिचड़ी.

मास्टर साहब…

Continue

Added by Neeraj Neer on April 6, 2014 at 12:30pm — 26 Comments

मुक्तक // प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा //

मुक्तक

-------

मै भी खुश और तुम भी खुश लेकिन दुखिया सारा संसार

कथनी करनी में भेद रखता कैसे हो सुखी परिवार

आओ मिल हम खुशियां बोयें उन्नत हो सकल संस्कार

टुकड़ों में हम बंटे है फिरते सबका एक जगत आधार

------------------------------------------------------

जिंदगी की भाग दौड़ में रास्ते बदल जाते हैं

लाख रंजिश सही मिलते ही कदम ठहर जाते हैं

आसां नही यूँ ही किसी को इस कदर भुला देना

जख्म इतने सीने में सूखते फिर हरे हो जाते हैं…

Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 5, 2014 at 9:47pm — 21 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
एक सवाल

उसे मजदूरी में जितने रूपये मिले थे उसकी रोटियाँ खरीदी और खाने के बाद दो रोटियाँ बचा ली, उसने सोचा कल पता नहीं काम मिले या नहीं, इतने में उसकी नज़र एक बच्चे पर पड़ी वो उन रोटियो की तरफ कातर दृष्टि से देख रहा था। उसे दया आ गई, उसने रोटियाँ उस बच्चे को दे दी।

 

उधर -  एक आम मध्यमवर्गीय परिवार में शादी थी मेहमानों के चले जाने के बाद काफी खाना बच गया था इतना कि कम से कम 20 भूखे पेट भर सकते थे। मेजबान से पूछा गया इस खाने का क्या करें ? ……………?

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by शिज्जु "शकूर" on April 5, 2014 at 8:30pm — 14 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - कचरों को दबाया जा रहा है ( गिरिराज भन्डारी )

2122     2122     2122     2122

चद्दरों से, सिर्फ़ कचरों को दबाया जा रहा है

साफ सुथरा इस तरह खुद को जताया जा रहा है

 

लूट के लंगोट भी बाज़ार में नंग़ा किये थे

फिर वही लंगोट दे हमको मनाया जा रहा है

 

रोशनी सूरज की सहनी जब हुई…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 5, 2014 at 4:00pm — 31 Comments

(कामरूप छंद) नकल न करें-अकल लगायें -अखिलेशकृष्ण श्रीवास्तव

(1)

अंग्रेजियत का, दंभ भरते, क्या दिये संस्कार।

रावण बनें कुछ, कंस भी हैं, पूतना भरमार ॥

नारी सुरक्षा, देश रक्षा, विफल है सरकार।

हैं बलात्कारी, आततायी,  व्याप्त भ्रष्टाचार ॥

              

(2)

नेता लफंगे, संग चमचे, जब पधारे गाँव।

वो गिड़गिड़ायें, वोट माँगें, पकड़ सब के पाँव॥

जीते अगर तो, भूल से भी, दिखें न बदमाश।

मंत्री बने तो, देश का फिर, करें…

Continue

Added by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 5, 2014 at 11:30am — 17 Comments

समय हमें क्या दिखा रहा है/गज़ल/कल्पना रामानी

1212212122

समय हमें क्या दिखा रहा है।

कहाँ ज़माना ये जा रहा है।

 

कोई बनाता है घर तो कोई,

बने हुए को ढहा रहा है।

 

बुझाए लाखों के दीप जिसने,

वो रोशनी में नहा रहा है।

 

गुलों को माली ही बेदखल कर,

चमन में काँटे उगा रहा है।

 

कुचलता आया जहाँ उसी को,

जो फूल खुशबू लुटा रहा है।

 

जो बीज बोकर उगाता रोटी,

वो भूख से बिलबिला रहा है।

 

हो बाढ़ या सूखा दीन का तो,

सदा…

Continue

Added by कल्पना रामानी on April 5, 2014 at 9:50am — 24 Comments

चेतनाहीन

चेतनाहीन

 

मैं

एक सपेरा हूँ , मदारी हूँ

कश्मीर से कन्या कुमारी , और –

गुजरात से अरुणाचल तक

दिल्ली

मेरी पिटारी है ।

बंद हैं इसमे काले विषधर साँप , बंदर

पर अफसोस –

ये गाँधीवादी नहीं

इनके आँख , कान और मुंह

सभी बंद हैं

क्यूँ कि ये अवसरवादी हैं ।

मैं गाँधी

एक सपेरा , मदारी !

खड़ा बजा रहा हूँ बीन

पर , अफसोस –

ये चेतनाहीन हो गए से लगते हैं ।

-------…

Continue

Added by S. C. Brahmachari on April 4, 2014 at 9:30pm — 5 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
19 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
22 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
22 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
22 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service