घर के मुख्य द्वार पर खाली प्लेट हाथ में लिए मालकिन को काम वाली बाई सन्नो ने आश्चर्य से देखते हुए पूछा:
"सब्ज़ी आज फिर सड़ गई थी क्या?"
"नहीं, पड़ोसी के घर से प्रसाद आया था, हम नहीं खाते उनके धर्म का प्रसाद, सो उस भूखे भिखारी को दे दिया"- मालकिन ने सन्नो से कहा।
सन्नो ने खिड़की से झांककर देखा कि वह भिखारी उसकी प्लेट में परोसा गया वह प्रसाद ज़ल्दी-ज़ल्दी खाने लगा था और कुछ निवाले पास खड़ी मरियल सी कुतिया के पास फेंकता जा रहा था।
"क्यों बाबा कौन से धर्म के हो तुम?" सन्नो ने…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 31, 2016 at 6:00pm — 13 Comments
हे माँ तेरे चरणों की मैं धूल कहाँ से लाऊंगा,
रग रग में तू बसी हुई मैं भूल कहाँ से पाऊंगा।
तिनका तिनका बड़ा हुआ मैं ममता की इन छाँव में,
बात बात पर मुझे सिखाती किताब कहाँ से लाऊंगा।।
सबसे लड़ती मेरी खातिर गली मोहल्ले गांव में,
अब सब बन गए मेरे दुश्मन कैसे मैं बच पाउँगा
याद है एक दिन तूने मुझको यही पाठ सिखलाया था,
भाव सरल और मधुर वचन का सच्चा पाठ पढ़ाया था।।
दीन दुःखी की सेवा कर फिर जग में नाम कमाया था,
बनकर तेरे जैसा मैं अब कुछ…
Added by NEERAJ KHARE on May 31, 2016 at 9:00am — 5 Comments
2122 2122 2122 212
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खो गया है अक्स असली ढूँढता है आईना।
होंठ पर मुस्कान नकली देखता है आईना।।
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इक कहानी है लिखी जो रूप के इस पृष्ठ पर।
किसका हस्ताक्षर जटिल है पूछता है आईना।।
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हाथ की सारी लकीरें जल गयीं तन्दूर में।
क्या पढ़ें किस्मत का लेखा सोचता है आईना।।
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बालपन से ढ़ो रहा वो ईंट सर पर पूज्यवर।
भूख से संघर्ष का कल बाँचता है आईना।।
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मर रहा था अस्थि का ढाँचा जिलानें के लिये।
बिक गयी माता…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 30, 2016 at 11:30pm — 8 Comments
212 2112 2112 222
प्यार में तुम मेरे ऐवों को दिखाया न करो|
आईना बन के कभी सामने आया न करो|
फ़ितनागर लोग ज़माने में बहुत देखें हैं,
हर किसी को कभी अब दोस्त बनाया न करो|
जाग उठाते हैं मेरे मन में सवालात कई,
हर किसी दर पे कभी सर को झुकाया न करो|
जिनकी ताबीर न मुमकिन हो कभी जीवन में,
ऐसे सपने कभी आँखों में सजाया न करो|
एक दिन देखना छिड़केंगे नमक ज़ख्मों पर,
ज़ख्म अपने कभी अपनों को दिखाया…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on May 30, 2016 at 10:30pm — 10 Comments
बादल सा पल फिसल गया
Added by amita tiwari on May 30, 2016 at 10:30pm — 4 Comments
हरे वृक्षों के बीच खडा एक ठूँठ।
खुद पर शर्मिन्दा, पछताता हुआ
अपनी दुर्दशा पर अश्रु बहाता हुआ।
पूछता था उस अनन्त सत्य से
द्रवित, व्यथित और भग्न हृदय से।
अपराध क्या था दुष्कर्म किया था क्या
मेरे भाग में यही दुर्दिन लिखा था क्या?
जो आज अपनों के बीच मैं अपना भी नही
उनके लिए हरापन सच, मेरे लिए सपना भी नही।
हरे कोमल पात उन्हें ढाँप रहे छतरी बनकर
कोई त्रास नहीं ,जो सूरज आज गया फिर आग उगलकर।
अपनी बाँह फैलाए वे जी रहे…
ContinueAdded by Tanuja Upreti on May 30, 2016 at 4:37pm — 5 Comments
२१२२/२१२२/२१२१२
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ज़िन्दगी क़दमों पे थी तब शूल थे गड़े,
जब चले कांधो पे, पीछे... फूल थे पड़े.
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काम तो छोटे ही आये.. वक़्त जब पडा,
लिस्ट में कितने अगरचे नाम थे बड़े.
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एक है अल्लाह ये कह कर गये रसूल,…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 29, 2016 at 7:47pm — 19 Comments
Added by Samar kabeer on May 29, 2016 at 3:00pm — 24 Comments
1222 1222 122
जो भारी ही रहा, बैठा हुआ है
उड़ा वो ही जो कुछ हल्का हुआ है
ग़लत कहते हैं जो कहते हैं तुमसे
यक़ीं मरकर भी क्या ज़िन्दा हुआ है ?
ठहर जा गर्दिशे अय्याम दर पर
ये मंज़र दर्द का देखा हुआ है
फटेगा एक दिन बादल के जैसे
जो आँसू आपने रोका हुआ है
बुढ़ापा फिर न याद आ जाये उसको
जो बच्चों में अभी बच्चा हुआ है
न जाने कौन धोखे बाज निकले
सभी को है यक़ीं , धोखा हुआ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 29, 2016 at 9:30am — 18 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 28, 2016 at 6:30pm — 12 Comments
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 28, 2016 at 3:30pm — 6 Comments
Added by Rajendra kumar dubey on May 28, 2016 at 3:30pm — 10 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 28, 2016 at 10:06am — 2 Comments
Added by Rahila on May 28, 2016 at 7:00am — 4 Comments
Added by Ashok Kumar Raktale on May 27, 2016 at 10:48pm — 7 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on May 27, 2016 at 10:46pm — 8 Comments
Added by रामबली गुप्ता on May 27, 2016 at 3:00pm — 5 Comments
कलाधर छंद............धन्यवाद ज्ञापन
(१)
धन्यवाद ज्ञाप आज आपका विशेष श्लेष वंदना करूं यथा प्रणाम राम-राम है.
दूर - दूर से यहां पधार के पवित्रता सुमित्रता दिया हमें अवाम राम-राम है.
शब्द भाव भक्ति ज्ञान दे रहे सुवृत्ति मान सत्य सूर्य-चंद्र मस्त श्याम राम-राम है.
आपके सुयोग से रचे गये सुपंथ मंत्र भव्य का प्रणाम ब्रह्म- धाम राम-राम है.
(२)
धन्य-धन्य भाग्य है कि धन्य है सुभारती कि धन्य स्थान काल दिव्य आरती…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 27, 2016 at 9:00am — 8 Comments
अपनी क़बा में .....
अहसासों की कभी
हदें नहीं होती
नफ़स और नफ़स के दरमियाँ
ये ज़िंदा रहते हैं
ये तुम्हारा वहम है कि
तुम मुझसे दूर हो
तुम जहां भी हो
मेरी साँसों की हद में हो
तुम कस्तूरी से
मेरी रूह में बसे हो
हर शब मैं तुम्हारी महक से लिपट
परिंदा बन जाती हूँ
तुम से मिलने की
इक अज़ीब सी ज़िद कर जाती हूँ
बंद पलकों में
तुम्हारे ख़्वाबों की दस्तक से
रूह जिस्मानी क़बा से
बाहर आ…
Added by Sushil Sarna on May 26, 2016 at 8:14pm — 2 Comments
ब्रेकिंग समाचार
भैंस ने दूधिये कों मारी लात
दूध देने से किया इनकार
भ्रस्टाचार अब सहन नही
भैंस संघ का पलट वार
भैंस बोली सुनो ओ दूधिये
भ्रष्टाचार से तेरा गहरा नाता
देती मैं तुझको दूध खालिस
तू जी भर उसमे पानी मिलाता
चकित दूधिया पलट कर बोला
ये तों मेरा जन्म सिद्ध अधिकार
जानो वंशागत तेरी मेरी गति
सुन दूध देना तेरा है संस्कार
खालिस दूध कोई हजम न कर पाए
पी भी गया तों शीघ्र डाक्टर बुलवाए
दूधिया बोला सुन तू काली…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 26, 2016 at 12:00pm — 2 Comments
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