Added by POOJA AGARWAL on May 18, 2013 at 10:32am — 11 Comments
कोयला खदान की
आँतों सी उलझी सुरंगों में
पसरा रहता अँधेरे का साम्राज्य
अधपचे भोजन से खनिकर्मी
इन सर्पीली आँतों में
भटकते रहते दिन-रात
चिपचिपे पसीने के साथ...
तम्बाकू और चूने को
हथेली पर मलते
एक-दूजे को खैनी खिलाते
सुरंगों में पिच-पिच थूकते
खानिकर्मी जिस भाषा में बात करते हैं
संभ्रांत समाज उस भाषा को
असंसदीय कहता, अश्लील कहता...
खदान का काम खत्म कर
सतह पर आते वक्त
पूछते अगली शिफ्ट के कामगारों से
ऊपर का…
Added by anwar suhail on May 17, 2013 at 9:30pm — 8 Comments
बंज़र होती धरती
किसान बे-हाल है
सोच रहा है इस बार भी पानी मिलेगा
मेरी फसल को या नही
या गुजरे कई सालो जैसा ही
ये साल है .........
सोच रहा है ......
क्या कम होगा .......?????…
Added by Sonam Saini on May 17, 2013 at 4:30pm — 18 Comments
पत्नी बोली अजी सुनते हो
मुनुवा बहुत मिट्टी ख़ाता है
मैने कहा- ये असली राष्ट्र- निर्माता है
क्यूँ घबराती हो डियर
आगे चलकर बनेगा एंजीनियर
आज मिट्टी खा रहा है
कल गिट्टी खाएगा
परसों न जाने कितने पुल सड़क, बाँध और बड़ी- बड़ी परियोजनाओं
को चट कर जाएगा
राष्ट्र की मुख्य धारा मे शामिल हो जाएगा
सच्चे अर्थों मे यही विकास पुरुष कहलाएगा
तुम्हारा सुंदरी करण कराएगा
और मेरी नय्या पार लगाएगा
सच कहता हूँ मैं लड़का बहुत काम आएगा…
Added by aditya chaturvedi on May 17, 2013 at 12:00pm — 16 Comments
जब दर्द गुजरता हो दिल से , वो पल नज़दीक भी होने दो |
जब छोड़ के जाएँ लोग मुझे , अब वो तकलीफ भी होने दो |
तूफ़ान मै सारे सह जाऊं , बहने दो अगर मै बह जाऊं |
अब ये परवाह नही मुझको , मै मिटूँ या बाकी रह जाऊं |
न रोको मेरे इन अश्कों को बीती यादों को धोने दो |
जब दर्द गुजरता हो दिल से.........................|
सब सहकर भी…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on May 17, 2013 at 11:00am — 12 Comments
अब जो तुम ना लोटोगे तो
आओ फिर बटवारा कर लो
तुम अपने दिल से जो चाहो
वो सभी सोगातें रख लो....
हाँ मैं दोषी नहीं फिर भी चलो
मेरी गवाही तुम ले लो
गिनाते थे जो ऐब मुझ को
वो तुम अब लिख के दे दो.....
भर के रखे तुम्हारे लिए
अरमानो के पैमाने जो
जाते हुए उनका अंतिम
संस्कार खुद से कर दो
अब भी कोई बता दो
शर्त रखते हो तो
इस वक़्त उसे भी
आखिरी सलामी दे दो....
सूखे फूलो…
ContinueAdded by Priyanka singh on May 17, 2013 at 2:00am — 27 Comments
कह सकती हूँ अकेले ,
पर बाँट सकती हूँ,तुम्हारे संग |
मुस्करा सकती हूँ अकेले ,
पर हंस सकती हूँ तुम्हारे संग |
आनंद ले सकती हूँ अकेले ,…
Added by Sarita Bhatia on May 17, 2013 at 12:00am — 15 Comments
14 पंक्तियां
पहली, तीसरी व दूसरी, चौथी तुकान्त का क्रम
तेरहवी व चौदहवीं पंक्ति तुकान्त
साढ़े तीन का पद
जब जब सूरज की किरनें पूरब में चमकी
जगत में छाया गहन तिमिर तब तब छंटता
लेकिन अंधियारा…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on May 16, 2013 at 11:30pm — 21 Comments
तूफ़ान जोरों पर था , बादलों की घुमड़ घुम भी शुरू हो चुकी थी , पतझड़ के मौसम में सारी पत्तियां झड़ चुकी थीं , उनका तिनकों से बना घोंसला मुझे साफ़ नज़र आ रहा था , वो हवा में डोलती डालों पर सहमे सहमे बैठे कभी अपने घोंसलों को देखते तो कभी इस तूफानी मंज़र में अपनी नज़र इधर उधर दौड़ाते , एकाएक मै उन परिंदों की भाव वेदना में डूब सा गया , कितने बेसहारा, कितने असुरक्षित , कितना निर्दोष भाव ,कोई शिकायत नही , ये कैसा समर्पण , लगा कि कहर भी परमात्मा ढा रहा हो और उसे झेल भी परमात्मा ही रहा हो , दो…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on May 16, 2013 at 9:34pm — 10 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on May 16, 2013 at 6:31pm — 8 Comments
पिकहा बाबा उवाच ------ मदद- इसकी आदत डालें//कुशवाहा //
पहले के समय में समर्थ व्यक्ति अपनी सम्पत्ति से धर्मशाला, तालाब, कुऐं, शिक्षण पाठशालायें इत्यादि बनवाता था। आज के समय में लोग एक संगठन बना कर धनराशि , सामग्री इत्यादि समाज से लेकर सेवा कर रहे हैं परन्तु सरकार से अनुदान लेना मैं ठीक नही समझता। क्यों कि इस प्रकार से एकत्रित धन से वे अपने आवागमन, कार्यालय की आधुनिक सुख सुविधाओं की भी पूर्ति करते हैं। यद्यपि इस कार्य में कोई बुराई नही है क्यों कि इनके द्वारा की…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 16, 2013 at 1:32pm — 8 Comments
Added by deepti sharma on May 16, 2013 at 9:42am — 5 Comments
मैने देखी है.........
जिंदगी मे मैने बहुत ऊँच नीच देखी है
यहा हर साये मे मैने धूप देखी है ...
कल जो कहता था,मुझ पर कोई एहसान ना करना
चार कंधो पर जाती उसकी सवारी देखी है......
कोई ऐसा ना मिला,माँगा ना हो जिसने आजतक …
ContinueAdded by pawan amba on May 16, 2013 at 5:00am — 12 Comments
दोनों एक सांझा चूल्हे में सुलग रहे थे
नाउम्मीदी की गीली लकड़ी में
पूरी ताकत से फूँक मारी उसने
इश्क धुआं धुंआ हो गया
किसे पता था
इस धुंआ के छंटते ही
कलेजा काठ का और आँखे
पथरीली पगडंडी बन जाएंगी
जो ठीक वहीं आकर ठिठकती है
जहां रिश्ते की ताजी ताजी कब्र बनी है|
गजब के सब्र से उसने
बुझी हुई…
Added by Gul Sarika Thakur on May 15, 2013 at 11:02pm — 14 Comments
"ग़ज़ल "
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कलम का वार कैसा है कोई उनको बताये तो !
सियासत हाथ मलती है कोई दिल से चलाये तो !!
हमारे देश में अब राज चलता है लुटेरों का !
हमें भी साँस मिल जाये कोई इनको हटाये तो !!
किसी नादाँ के ऊपर देश का तुम भार मत ढालो !
बता दो देश से पहले वोह अपना घर चलाये तो !!
हमेशां जिंदगी से जूझता है आम हर बन्दा !
कभी वोह चैन से सोये , कभी इतना कमाये तो…
Added by राज लाली बटाला on May 15, 2013 at 10:30pm — 12 Comments
Added by poonam singh on May 15, 2013 at 8:00pm — 12 Comments
पश्चिमी तूफां से हैं सब दर-ब-दर हम क्या कहें
आदमीयत हो गयी है बेअसर हम क्या कहें
दौर धोखों और फरेबों का चला है इस कदर
रहजनी अब कर रहे हैं राहबर हम क्या कहें
सच बयानी आजकल घाटे का सौदा हो गया
झूठ कहना हो गया है अब हुनर हम क्या कहें
जिंदगी सब जी रहे हैं जिंदगी की खोज में
है यहाँ पर कौन किसका हमसफ़र हम क्या कहें
लूटते शैतान इज़्ज़त चीखती हैं बच्चियां
पत्थरों का शहर है, पत्थर बशर हम क्या…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 15, 2013 at 4:12pm — 6 Comments
घर लौटकर पूत विदेश से
माँ से बोला बड़े प्यार से,
आया मै तुमको लेने माँ
यहाँ अकेली अब न रहना |
इस घर को अब बेच चलेंगे
खाली घर में भूत बसे माँ,
संग में मेरे अब तू रहना
उम्र नहीं यह तन्हा रहना |
उमडा उसपर माँ का प्यार,
बेच दिया सारा घरबार,
पोर्ट पर जाकर माँ से बोला-
माँ तू यहाँ पर बैठे रहना |
माँ बोली क्या बात है बेटा
पूत कहे कुछ बात नहीं है,
सामान की है जांच कराना,
माँ बोली जा, जल्दी आना…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 15, 2013 at 3:00pm — 15 Comments
!!! नवगीत !!!
नयनन के कोर से, ढरकि गये अंसुआं।
खारे जल बिन्दु भी, बन गये मोतियां।।
जीवन के रंग में,
गुलशन बसंत में-
पतझर के ढ़ंग से,
उजड़ गयी बगिया।1...खारे जल..
नयनन के नील में,
सागर सी झील मे-
रेशम की गेंद संग,
डूब गये छलिया।2...खारे जल..
कर्म के सफर में,
काटों के पथ पर,
नागों को मथ कर,
नाचे गउ चरइया।3....खारे जल..
धर्म की जीत को,
सत्यम के रीति को,
गीता के गीत को,…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 15, 2013 at 9:39am — 12 Comments
सुनो ऋतुराज!
मौसम बदलने और ईमान बदलने में फर्क होता है
ईमान बदलने और वक्त बदलने में फर्क होता है
लेकिन धरा के दरकने और ह्र्दय के दरकने में
कोई फर्क नहीं होता ..
क्योकि दोनो में निहित…
ContinueAdded by Gul Sarika Thakur on May 14, 2013 at 7:30pm — 9 Comments
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