सरसी मिलिन्दपाद छन्द ।
१६,११ पदान्त में (२१ गुरु,लघु)अनिवार्य
आज गुरुपूर्णिमा पर आदरणीय ओबीओ मंच को समर्पित ।
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हे जीवन पथ के निर्माता,तुम पे है अभिमान।
तुम ही मात-पिता हो मेरे,तुम ही हो भगवान।
तुम ने दीप ज्ञान का देकर,किया बडा आभार ।
जन्मों जनम तक भी न उतरे,तेरा ये उपकार।
ब्रह्मा,विष्णु,महेश,मुरारी,गुरु चरणों में राम।
तन,मन,धन,सब कुछ अर्पण कर,करूं गुरुवर प्रणाम ।
मौलिक व अप्रकाशित ।
Added by Rahul Dangi Panchal on July 31, 2015 at 10:30pm — 8 Comments
''सुनो बंटी के पापा , काहे इतना विलाप करते हो। ''
''बंटी की माँ .... तुम्हें क्या पता ,पिता के जाने से मेरे जीवन का एक अध्याय ही समाप्त हो गया। ''
'' मैं आपके दुःख को समझ सकती हूँ। मुझे भी पिता जी के जाने का बहुत दुःख है लेकिन धीरज तो रखना पड़ेगा। आप यूँ ही विलाप करते रहेंगे तो उनकी आत्मा को चैन कहाँ मिलेगा। '' धर्मपत्नी ने ढाढस देते हुए कहा।
''वो तो ठीक है बंटी की माँ … लेकिन आज पिता के गुजर जाने से न केवल मेरे सिर से वटवृक्ष की छाया चली गयी बल्कि ऐसा लगता है मेरा जीवन की…
Added by Sushil Sarna on July 31, 2015 at 8:00pm — 6 Comments
२१२ २१२२ २१२२
आग पर आप भी इक दिन चलेंगे
मेरे अहसास जब तुम में उगेंगे
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फूल सा तन महकने ये लगेगा
याद में रातदिन जब दिल जलेंगें
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चाँद सा रूप निखरेगा सुनहरा
इश्क की धूप में गर जो तपेंगें
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आइना बातें भी करने लगेगा
यूँ घड़ी दो घड़ी पे गर सजेंगे
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रातभर रतजगे आँखें करेंगी
सुबहों-शाम आप भी रस्ता…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 31, 2015 at 7:48pm — 6 Comments
लघुकथा - मज़हब –
"मेरी राय में ,हमें उनके प्रस्ताव को स्वीकार करने से पहले पुनः विचार करना चाहिए"!
"यार तू बार बार ऐसी शंका ले कर क्यों बैठ जाता है"!
"देख भाई , वो लोग पांच बडे शहरों में पांच ज़गह बम्ब रखवाना चाहते हैं, और वो ज़गह हैं , स्कूल,अस्पताल,रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और सिनेमा घर"!
"और बदले में हमें दैंगे दस करोड, हम पांचों को दो दो करोड मिलेंगे,समझा"!
"पर यार इन सब ज़गहों पर अपने मज़हब के लोग भी तो होते हैं"!
"अरे यार ये क्या मज़हब की रट लगा रखी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 31, 2015 at 1:00pm — 6 Comments
धरती का नूतन नखशिख सिंगार लिखो
सावन लाया है मोती के हार लिखो
दादुर मोर मयूरी का आभार लिखो
नदियों नालों में जल का विस्तार लिखो
पत्ता पत्ता डाली डाली झूम रही
बूँदे बूँदे चूम रही हैं प्यार लिखो
प्यास बुझाती कुदरत कितने प्यासों की
तिनके तिनके पर उसका उपकार लिखो
खेतों खेतों धान उगाते हैं हाली
भेज रहे बादल जल का उपहार लिखो
सागर नदिया लहरों की रफ़्तार…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 31, 2015 at 10:10am — 9 Comments
पांच दिनों की लगातार बारिश के बाद कल शाम से आसमान साफ़ है और आज सुबह से सूरज खिला है
जॉगर्स पार्क में आज रौनक है I पार्क का योगा हॉल ' हा हा हो हो ' से गूँज रहा है , एक तरफ खुल कर हंसने की और दूसरी तरफ सूर्य नमस्कार की कवायद जारी हैI
बुधवा ने अपनी झुग्गी से बाहर निकल कर आसमान की तरफ देखाऔर चिल्लाया
"अरे अम्मा i सूरज देवता आय गए हैं , परेसान मत हो , आज तो दिहाड़ी मिल ही जाएगी , रासन भी ले आऊँगा और तेरी दवाई भी "
उसका मन किया झुग्गी के बाहर भरे पानी…
ContinueAdded by pratibha pande on July 31, 2015 at 10:00am — 4 Comments
Added by Manan Kumar singh on July 31, 2015 at 12:03am — 2 Comments
बिक जाता है चन्द रूपये की खातिर अख़बारों में।
बहुत तलाशा मिला नहीं पर सच आख़िर अख़बारों में।।
बेंच रहे हैं ज़हर मिलाकर भोजन में बाज़ारों में।
विज्ञापन की बाढ़ आ गयी पैसे से अख़बारों में।।
पेड़ बचाओ करो सफाई ऐसे कैसे संभव है।
भौतिकता का नशा बेंचते रोज़ रोज़ अख़बारों में।।
चोरी और अपराध रुकेगा किस तरहा से कहिये ना।
महंगी वाली कार-मोबाइल दिखते जब अख़बारों में।।
लोभ-मोह का त्याग सिखाते गुरुकुल सारे गायब हैं।
मैकाले की नीति बाँचते विद्यालय…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 30, 2015 at 10:00pm — 4 Comments
दलदली जमीं पर ख्वाबों की बुनियाद
यामिनी हर दिन अपनी बेटी को लोरी सुनती थी ,जो आम लोरी से कुछ हट के होता था .
“मैं कम पढ़ी लिखी ,मजबूर और अकेली थी “.
तुम तन्हा नहीं ,मैं हूँ ना
“मेरे पास धन नहीं सिर्फ तन की दौलत थी “
तुम इतनी कंगाल नहीं होगी कि तुम्हे अपनी दुर्लभ तन बेचनी पड़े .
“संसार में कोई काम छोटा नहीं होता ,मैं भी हमदोनों की पेट की खातिर ही इसे काम समझ करती हूँ .”
तुम इतना सक्षम होगी कि छोटे काम तुम्हे करने ही नहीं…
ContinueAdded by Rita Gupta on July 30, 2015 at 9:50pm — 8 Comments
किसी के अब्दुल थे
किसी के तुम कलाम
दृढ़ थे संकल्प तेरे
वहुआयामी कलाम I
माँ भारती के लाल
तुझ को मेरा सलाम I
होते हुए भी अर्श पर
भूले न जो थे फ़र्श पर
व्याधि वाधा सांझा कर
दी सदा उन्हें संघर्ष पर
लगाओ पंख अग्नि को
न होंगे कभी तुम नाकाम I
जियो मरो देश के लिए
न होंगे कभी तुम गुलाम I
माँ भारती के लाल
तुझ को मेरा सलाम I
विपत्तियों से न डरो
बीच धारा से…
ContinueAdded by कंवर करतार on July 30, 2015 at 9:30pm — 2 Comments
‘पूजा, कितनी बार कहा है तुम्हें कि अपने काम और पढ़ाई-लिखाई से मतलब रखा करो, लड़कों से ज्यादा घुला-मिला, ज्यादा हँसी-मज़ाक मत किया करो, ये सही नहीं है, तुम मेरी बात सुनती क्यों नहीं हो?’
‘मैं कहाँ किसी लड़के से ज्यादा हँसी-मज़ाक करती हूँ या घुलती-मिलती हूँ?’
‘मुझे सब दिखता है, अंधी नहीं हूँ मैं. एक सप्ताह से तुम्हारी पढाई-लिखाई बंद है, खाना-पीना तक ठीक से नहीं कर रही हो. 10 दिनों के लिए प्रवीण आया है हमारे घर और तुम अपना सारा…
Added by Prashant Priyadarshi on July 30, 2015 at 3:48pm — 4 Comments
2212 2212 2212 22
बजता हूँ बन के साज तेरे मंदिरों में अब,
देता तुझे आवाज तेरे मंदिरों में अब |
मांगी थी मैंने उम्र की संजीदगी लेकिन,
क्यों इस तरह मुहताज तेरे मंदिरों में अब |
मन जिसका देखूं दुश्मनी की नीव पे काबिज़,
कैसे करूँ परवाज़ तेरे मंदिरों में अब |
बस रौशनी की खोज में भटका तमाम उम्र
पगला गया, नेवाज तेरे मंदिरों में अब |
ले चल मुझे शमशान, कोई गम जहाँ ना हो,
मेरा गया हमराज, तेरे मंदिरों में अब |…
Added by Harash Mahajan on July 30, 2015 at 11:02am — 37 Comments
Added by Manan Kumar singh on July 30, 2015 at 8:49am — 4 Comments
कभी ऐसे भी दिन थे
होती है सोच हैरानी
बचपन हरा कर
जब जीती थी मासूम जवानी !
याद है जब मैंने
चूमी थी तेरी पेशानी
आज भी भुला नहीं पाता
है मुझ को हैरानी !
वो आंखें मिलाना
तेरा हाथ छूने के
नादान बहाने जुटाना
तेरी नज़र बचा कर
तुझे तकते जाना !
हवा के झोंके से
जब तेरा पल्लू मुझे छू जाना
उफ़ ...तुझ पे इसकदर मर जाना
क्यूँ होता है
दिल ऐसा दीवाना
हैरां हूँ वो भी क्या था ज़माना !
ये बात है इतनी पुरानी
आज…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 30, 2015 at 7:00am — No Comments
Added by babita choubey shakti on July 30, 2015 at 6:49am — 3 Comments
Added by Samar kabeer on July 29, 2015 at 9:38pm — 10 Comments
ये ज़िंदगी ....
ज़िंदगी हर कदम पर रंग बदलती है
कभी लहरों सी मचलती है
कभी गीली रेत पे चलती है
कभी उसके दामन में
कहकहों का शोर होता है
कभी निगाहों से बरसात होती है
संग मौसम के
फ़िज़ाएं भी रंग बदलती हैं
कभी सुख की हवाएँ चलती हैं
कभी हवाएँ दुःख में आहें भरती हैं
बड़ी अजीब है ज़िंदगी की हकीकत
जितना समझते हैं
उतनी उलझती जाती है
अन्ततः थक कर
स्वयं को शून्यता में विलीन कर देती है
न जाने कब
ज़हन में यादों का…
Added by Sushil Sarna on July 29, 2015 at 8:10pm — 2 Comments
बह्र 212 212 212 212
टूट के कर गया आशियां दर ब दर
घूमते फिर रहे हम यहां दर ब दर
आ गये लौट कर अक्ल वाले सभी
पर जुनूं में हुए लामकां दर ब दर
कमसिनी छोड़कर अब महकने लगे
जख्म मेरे हुए बेकरां दर ब दर
खाल में भेड़ की भेडि़ये घुस गये
मर गये मेमने बकरियां दर ब दर
हो सकी क्या हमें खुद हमारी सनद
फिर रहा आदमी बेनिशां दर ब दर
हम कहां से चले थे कहां आ गये
कर…
ContinueAdded by Ravi Shukla on July 29, 2015 at 6:00pm — 10 Comments
आंखों में आंसू हैं, और गीत ख़ुशी के गा रहा हूं!
कुछ नहीं यारों, मैं तो बस दुनियादारी निभा रहा हूं!!
कुछ अपनों ने लूटा हमको,
कुछ गैरों ने सताया..
मौका मिला जिसे भी, उसने
जी-भर हमें रुलाया..
सबपे किया भरोसा, उसकी क़ीमत चुका रहा हूं!
नित सांझ ढले यादों की,
बारात जब आती है..
भर रहे ज़ख्मों को,
फिर से कुरेद जाती है..
मैं दिल के घाव पे तो, मरहम लगा रहा हूं!
उजड़ गया वो…
ContinueAdded by जयनित कुमार मेहता on July 29, 2015 at 12:47pm — 3 Comments
Added by S.S Dipu on July 29, 2015 at 9:20am — 7 Comments
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