Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 31, 2017 at 11:30pm — 12 Comments
उसने सिला गये बेसन को थाली में फैलाकर चूल्हे की गरम राख को थोडा सार कर उस पर रख दिया था ताकि पसीजन से आई बदबू खत्म हो जाए. आज पहली बार रमेश्या ने उसे ढाई सौ ग्राम तेल लाकर दिया था घर में. वरना तो वह अपनी सारी कमाई शराब में ही फूक देता था. वह भी काम से आते वक्त बीबी जी से दो प्याज माँगकर ले आई थी.
बाहर आसमान भी आज उसके घर में खुशी बरसाने के भाव मे था. चाँद का उजाला ना सही इस छोटे से सुख में घुमडते बादलों सा उसका मन झूम-झूम उठा था.
"आज ही तो तू आई थी मेरे जीवन में…
ContinueAdded by नयना(आरती)कानिटकर on July 31, 2017 at 7:45pm — 11 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 31, 2017 at 8:51am — 14 Comments
2122--1122--1122--112
फैसले के लिए सिक्का न उछाला जाए
जान माँगे जो वतन वक़्त न टाला जाए
हाँ मैं हूँ मुल्क़ तुम्हारा न उछालो मिट्टी
नौज़वानों मुझे गड्डे से निकाला जाए
अच्छे अच्छों के किये होश ठिकाने लेकिन
होश में हो जो उसे कैसे सँभाला जाए
आपने कह दिया झट से कि मैं, मैं हूँ ही नहीं
मेरे भीतर मुझे थोड़ा तो खँगाला जाए
ज़ह्र के दाँत उखाड़ो कि कुचल डालो फन
आस्तीनों में यूँ नागों को न पाला जाए
मुफ़लिसी ने मिरी…
Added by khursheed khairadi on July 30, 2017 at 11:00pm — 7 Comments
तू दर्द से मिलें हो ये दौलत कहाँ कहाँ
रहती है प्यार को भी शिकायत कहाँ कहाँ
दुनिया बदल गई कोई हमको बता गया
मिलती है बोल सोच कि वहशत कहाँ कहाँ
जब अब बहा र हो न हमारे नसीब में
फिर और हम बता दो तिजारत कहाँ कहाँ
हम भी तलाश हार गये जो मिला नहीं
पाने को उस करी न इबादत कहाँ…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on July 30, 2017 at 9:50am — 1 Comment
2222 2222 ,2222 222
यह भी खाया वह भी खाया ,कब तक खाता जाएगा
एक दिवस तो उगलेगा सब ,कब तक पेट पचाएगा
अपनी ढपली अपना दुखड़ा ,कब तक राग सुनाएगा
यह करता हूँ वह करता हूँ ,कब तक ढोल बजाएगा
झूठी बातों झूठे वादों ,से कब तक बहलाएगा
परख रही है जनता तुझको,कब तक मूर्ख बनाएगा
शेर खड़े हैं दरवाजे पर,छुपकर तू बैठा चूहे
हिम्मत है तो बाहर आजा,कब तक नाक कटवाएगा
सरहद…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 29, 2017 at 12:00pm — 18 Comments
Added by Janki wahie on July 28, 2017 at 2:40pm — 4 Comments
मापनी 2122 2122 212
दूर से नजरें मिलाते रह गए हम
पास उनके आते’ आते रह गए हम
कान पर जूं तक न रेंगी साहिबों के,
हक़ की खातिर गिड़गिड़ाते रह गए हम
तल्खियाँ हर बात में उनकी रहीं हैं,
प्यार की धुन गुनगुनाते रह गए…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 28, 2017 at 1:25pm — 14 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 28, 2017 at 9:22am — 8 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 27, 2017 at 8:03pm — 7 Comments
Added by Mohammed Arif on July 26, 2017 at 7:44pm — 13 Comments
गजल
2121 1221 1212 122
मेरे रहनुमा ही मुझसे मिले सूरतें बदल के
भला क्या समझता तब मैं छिपे पैंतरे वो छल के।1।
न सितारे बोले उससे मेरा हाल क्या है या रब
न ही चाँद आया मुझ तक कभी एकबार चल के।2।
खता क्या थी अपनी ऐसी अभीतक न समझा हूँ मैं
जो था राज मेरे दिल का खुला आँसुओं में ढल के।3।
कहूँ लाल कह के उसने न गले लगाया क्यों मैं
न लिपट सका था मैं ही कभी उससे यूँ मचल के।4।
बड़ा ख्वाब था खिलाऊँ उसे मोल की भी रोटी
न खरीद…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 26, 2017 at 1:10pm — 18 Comments
मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलात
मापनी २२१/२१२१/१२२१/२१२
करते नहीं हैं’ लोग शिकायत यहाँ हुजूर,
थोड़ी तो’ हो रही है’ मुसीबत यहाँ हुजूर.
बिकने लगे हैं’ राज सरे आम आजकल,
चमकी खबरनबीस की’ किस्मत यहाँ हुजूर.
बिछती कहीं है’ खाट, कहीं टाट हैं बिछे,
हो हर जगह रही है’ सियासत यहाँ हुजूर.
पलते रहे हैं’ देश में जयचंद हर जगह,
पहली नहीं है’ आज ये’…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 26, 2017 at 1:00pm — 6 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on July 26, 2017 at 1:25am — 8 Comments
Added by surender insan on July 25, 2017 at 11:58pm — 7 Comments
बड़े बाबा के जिगरी दोस्त,छोटे चाचा यूँ तो हमारे परिवार की रिश्तेदारी में कुछ नहीं लगते पर रिश्तेदारों से बढ़कर करते हैं |घर पर कोई मौका हो गम का या खुशी का,पिछले चालीस सालों से,वे सदैव उपस्थित रहते हैं|घर के किसी भी सदस्य का जन्मदिन हो या शादी की सालगिरह ,छोटे चाचा गुलाबजामन की हंडिया लेकर आते | ढेरों आशीष तो देते ही थे ,शेरो शायरी सुना कर माहौल को खुशगवार बना देते थे |हम सब भाई बहिन हँसते हुए आपस में कहते “वो आये नहीं ?”या “वो आ गए हैं |” “वो आ रहे हैं|”
आजकल के बच्चों व बहुओं…
ContinueAdded by Manisha Saxena on July 25, 2017 at 11:30am — 5 Comments
एक भारत श्रेष्ठ भारत आइये मिलकर बनाएं
देश का सम्मान गौरव लक्ष्य हासिल कर बढ़ाएं
शांति के हम पथ प्रदर्शक ध्वज अहिंसा ले चलेंगे
विश्व गुरु बन कर पुन: संस्थापना सच की करेंगे
दें नहीं उपदेश अपने आचरण से कर दिखाएं
धर्म पूजा, जाति भाषा, वेश भूषा, बोलियाँ सब
एकता के सूत्र में बंध कर चली है टोलियाँ सब
संगठन में शक्ति है, ऐसी लिखें फिर से कथाएं
रेल का हमको दिखाई दे रहा है पथ समांतर
मूल में इसके छिपा है साथ…
ContinueAdded by Ravi Shukla on July 25, 2017 at 11:00am — 8 Comments
कब किसी से यहाँ मुहब्बत की.
जब भी' की आपने सियासत की.
प्यार पूजा सदा ही हमने तो,
आपने कब इसकी इबादत की
जुल्म धरती ने सह लिए सारे,
आसमां ने मगर बगावत की
आदमी आदमी से जलता है,
कुछ कमी है यहाँ जहानत…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 25, 2017 at 10:10am — 10 Comments
“सुन कमला, सारा काम निपट गया या अभी भी कुछ बाकी है!”
नहीं ‘मेमसाहब’ सब काम पूरा कर दिया है, दाल और सब्जी भी बना के फ्रिज मैं रख दी है, आटा भी गूंथ दिया है, साहब आयेंगे तो आप बना कर दे दीजियेगा !
“अरे बस जरा सा ही काम तो बचा है, कमला,ऐसा कर रोटी भी बना कर हॉट केस मैं रख जा !”
“मेमसाहब मुझे देर हो रही है, घर पर बच्चे भूखे होंगे !”
अरे चल पगली १५ मिनट में मर थोड़ी ही जायेंगे, चल जल्दी से बना दे !
गरीबी चाहे जो न…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on July 25, 2017 at 2:49am — 5 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on July 25, 2017 at 2:30am — 8 Comments
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