मापनी २२ २२ २२ २२
सुबह के’ मंजर से उजले हो,
दिल को लगते बहुत भले हो.
एक नजर देखा है जब से,
सपने जैसा दिल में’ पले हो.
सारी दुनिया जान गयी है,
तुम तो नहले पर दहले हो…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 31, 2017 at 7:08pm — 17 Comments
भोर होने से पहले ...
वाह
कितनी अज़ीब
बात है
सौदा हो गया
महक का
गुल खिलने से
पहले
सज गयी सेजें
सौदागरों की आँखों में
शब् घिरने से
पहले
बट गया
जिस्म
टुकड़ों में
हैवानियत की
चौख़ट पर
भर गए ख़ार
गुलशन के दामन में
बहार आने से
पहले
वाह
इंसानियत के लिबास में
हैवानियत
कहकहे लगाती है
ज़िंदगी
दलालों की मंडी में
रोज मरती है
जीने…
Added by Sushil Sarna on August 31, 2017 at 4:30pm — 12 Comments
२२१ – २१२२ -१२२१ -२१२
इस प्यार को सदा ही निभाते रहेंगे हम
दुश्वार रास्ता हो भले पर चलेंगे हम
सच बोलने के साथ में हिम्मत अगर रही
फिर फूल की तरह ही सदा वस खिलेंगे हम
जब सांस थी तो कर्म न अच्छा कभी किया
इक आग जुर्म की है जिसे अब सहेंगे हम
तरकीब जिन्दगी में अगर काम आ गई
मुंह आईने में देख के परदे सिलेंगे हम
है चैन जिन्दगी में कहाँ ढूँढ़ते फिरें
दिन रात के हिसाब में उलझे मिलेंगे हम
मैली करो न सोच खुदा से जरा डरो
टेढ़ी नजर हुई तो…
Added by munish tanha on August 31, 2017 at 3:30pm — 6 Comments
Added by khursheed khairadi on August 31, 2017 at 11:45am — 5 Comments
जब से तूने ..
जब से तूने
मुझे
अपनी दुआओं में
शामिल कर लिया
मैं किसी
खुदा के घर नहीं गया
जब् से तूने
अपने लबों पे
मेरा नाम
रख लिया
मैं
तिश्नगी भूल गया
जब से तूने
मेरी आँखों को
अपने अक्स से
सँवारा हे'
मेरे लबों ने
हर लम्हा
तुझे पुकारा है
जब से तूने
निगाह फेरी है
लम्स-ए-मर्ग का
अहसास होता है
वो शख़्स
जो तुझमें कहीं
सोता था
आज
दहलीज़े…
Added by Sushil Sarna on August 30, 2017 at 3:30pm — 8 Comments
सिहरन ....
ये किसके आरिज़ों ने चिलमन में आग लगाई है।
ये किसकी पलकों ने फिर ली आज अंगड़ाई है।
होने लगी सिहरन सी अचानक से इस ज़िस्म में -
ये किसकी हया को छूकर नसीमे सहर आई है।
............................................................
ज़न्नत ...
वो उनके शहर की हवाओं के मौसम l
कर देते हैं यादों से आँखों को पुरनम l
तमाम शब रहती है ख़्वाबों में ज़न्नत -
पर्दों से हया के छलकती .है शबनम l
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on August 30, 2017 at 2:52pm — 6 Comments
221 2121 1221 212
नफरत कहाँ कहाँ है मुहब्बत कहाँ कहाँ
मैं जानता हूँ होगी बग़ावत कहाँ कहाँ
गर है यक़ीं तो बात मेरी सुन के मान लें
लिखता रहूँगा मैं ये इबारत कहाँ कहाँ
धो लीजिये न शक़्ल मुआफ़ी के आब से
मुँह को छिपाये घूमेंगे हज़रत कहाँ कहाँ
कल रेगज़ार आशियाँ, अब दश्त में क़याम
ले जायेगी मुझे मेरी फित्रत कहाँ कहाँ
कर दफ़्न आ गया हूँ शराफत मैं आज ही
सहता मैं शराफत की नदामत कहाँ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 30, 2017 at 9:00am — 29 Comments
बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़: फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
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देख लो यारो नज़र भर अब नया मंज़र मेरा
आ गया हूँ मैं सड़क पर रास्ता है घर मेरा
लड़खड़ाने से लगे हैं अब तो बूढ़े पैर भी
है ख़ुदी का पीठ पर भारी बहुत पत्थर मेरा
जानता हूँ दिल है काहिल नफ़्स की तासीर में
बात मेरी मानता है कब मगर नौकर मेरा
आसमाँ से आएगा कोई हबीब-ए-शाम-ए-ग़म
यूँ नज़र भर देखता है…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on August 29, 2017 at 4:30pm — 6 Comments
" यार ,वहां जो चर्चा चल रही है , उसके बारे में कोई जानता है क्या ?" कैंटीन में बैठे हुए करण ने अपने साथियों से पूछा |"
" , क्या वही चर्चा जिसमें इतिहास की बातें चल रही हैं ? सुना है वहां भारत में पहले कौन आया इस विषय पर चर्चा हो रही है |" साथी मित्र ने उत्तर दिया |
दूसरा बोला , ", मुझे तो बचपन से लगता रहा है कि, उफ्फ् कितनी सारी तारीखें , कितने देश और उनके साथ जुड़ा उनका इतिहास | "
" जो भी हो पर यह है तो बड़ा दिलचस्प , समय बदला तारीखें बदली , राजा महाराजा बदले , राज करने…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 29, 2017 at 3:00pm — 7 Comments
कोई भी लगता नहीं अपना , तेरे जाने के बाद
हो गया ऐसा भी क्या , इक तेरे जाने के बाद १
ढूँढता रहता हूँ , हर इक सूरत में
खो गया मेरा भला क्या , इक तेरे जाने के बाद २
न महफिलें कल थी , ना है दोस्त आज भी कोई
अब मगर तन्हा बहुत हूँ , इक तेरे जाने के बाद ३
बिन बुलाए ख़ामोशी , तन्हाई , बे -परवाहपन
टिक गये हैं घर में मेरे , इक तेरे जाने के बाद ४
पूँछते हैं सब दरोदिवार मेरे , पहचान मेरी
अब तलक लौटा नहीं घर , इक तेरे जाने के बाद ५
तोड़ कर सब रख दिए मैंने ,…
Added by ajay sharma on August 28, 2017 at 11:46pm — 3 Comments
Added by sunanda jha on August 28, 2017 at 7:41pm — 10 Comments
Added by नाथ सोनांचली on August 28, 2017 at 5:29pm — 8 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़:
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
क्या फ़सादात-ए-शिकस्ता प्यार से आगे लिखूँ
मुद्दआ है क्या दिल-ए-ग़मख़्वार से आगे लिखूँ
आरज़ूएं, दिल बिरिश्ता, ज़ख्म या हैरानियाँ
क्या लिखूं गर मैं विसाल-ए-यार से आगे लिखूं
दर्द टूटे फूल का तो बाग़वाँ ही जानता
सोज़िश-ए-गुल रौनक-ए-गुलज़ार से आगे लिखूँ
हक़ बयानी ऐ ज़माँ दे हौसला बातिल न हो
जो लिखूँ मैं ख़ारिजी इज़हार…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on August 28, 2017 at 1:30pm — 12 Comments
1222 1222 1222 1222
रगों को छेदते दुर्भाग्य के नश्तर गये होते
दुआयें साथ हैं माँ की नहीं तो मर गये होते
वजह बेदारियों की पूछ मत ये मीत हमसे तू
हमें भी नींद आ जाती अगर हम घर गये होते
नज़र के सामने जो है वही सच हो नहीं मुमकिन
हो ख्वाहिशमंद सच के तो पसे मंज़र गये होते
अगर होती फ़ज़ाओं में कहीं आमद ख़िज़ाओं की
हवायें गर्म होतीं और पत्ते झर गये होते
शिकायत भी नहीं रहती गमे फ़ुर्क़त भी होता कम
न होती आँख 'ब्रज' शबनम अगर कह कर गये…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 28, 2017 at 11:00am — 18 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on August 28, 2017 at 12:18am — 9 Comments
गीत
आधार छंद-आल्हा/वीर छंद
जयति जयति जय मात भारती, शत-शत तुझको करुँ प्रणाम।
जननी जन्मभूमि वंदन है, प्रथम तुम्हारी सेवा काम।
जयति जयति जय........
जन्म लिया तेरी माटी में, खेला गोद तुम्हारी मात!
लोट तुम्हारे रज में तन को, मिला वीर्य-बल का सौगात।।
तुझसे उपजा अन्न ग्रहण कर, पीकर तेरे तन का नीर।
ऋणी हुआ शोणित का कण-कण, ऋणी हुआ यह सकल शरीर।।
अब तो यह अभिलाषा कर दूँ, अर्पित सब कुछ तेरे नाम।
जननी जन्मभूमि वन्दन है प्रथम…
Added by रामबली गुप्ता on August 27, 2017 at 10:50pm — 26 Comments
Added by Manan Kumar singh on August 27, 2017 at 11:27am — 16 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 27, 2017 at 8:00am — 11 Comments
अँधियारे गद्दी पर बैठा,
सूरज सन्यास लिए फिरता
नैतिकता सच्चाई हमने,
टाँगी कोने में खूँटी पर.
लगा रहे हैं आग घरों में,
जाति धर्म के प्रेत घूमकर.
सत्ता की गलियों में जाकर,
खेल रही खो-खो अस्थिरता.
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 26, 2017 at 7:16pm — 17 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 26, 2017 at 7:00pm — 5 Comments
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