गौरैया है कितनी प्यासी
झुलस रहा तन, व्याकुल है मन,
छायी है चहुँ ओर उदासी.
रख दो एक सकोरा पानी,
ताक रही गौरैया प्यासी.
एक घौंसला था छोटा सा,
उड़ गया प्रगति की आँधी में. …
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on September 15, 2018 at 12:30pm — 14 Comments
हिन्दी
भारत माँ के विशद भाल पर
यह जो शोभित बिंदी है
जिसकी आभा से सब जगमग
वह भाषा तो हिन्दी है ll
अपनी गरिमा है हिन्दी से
हिन्दी ही अपनाएंगे
आन बान सम्मान अस्मिता
इसकी सदा बढ़ाएंगे ll
सरस सुगम हृदयंगम भाषा
जन जन की हितकारी है
मोती सा हम गुँथे सूत्र में
हिन्दी की बलिहारी है ll
हमें गर्व है इस हिंदी पर
हिंदी को ना छोड़ेंगे
नित भारत के हर कोने को
हिंदी…
ContinueAdded by डॉ छोटेलाल सिंह on September 14, 2018 at 9:34pm — 2 Comments
भारत माँ के विशद भाल पर
यह जो शोभित बिंदी है
जिसकी आभा से सब जगमग
वह भाषा तो हिन्दी है ll
अपनी गरिमा है हिन्दी से
हिन्दी ही अपनाएंगे
आन बान सम्मान अस्मिता
इसकी सदा बढ़ाएंगे ll
सरस सुगम हृदयंगम भाषा
जन जन की हितकारी है
मोती सा हम गुँथे सूत्र में
हिन्दी की बलिहारी है ll
हमें गर्व है इस हिंदी पर
हिंदी को ना छोड़ेंगे
नित भारत के हर कोने को
हिंदी से हम…
ContinueAdded by डॉ छोटेलाल सिंह on September 14, 2018 at 9:00pm — 7 Comments
परिणाम....
मेरी पलक का स्वप्न
तुमसे नेह का
परिणाम था
मेरी कमीज पर
लगा दाग
तृषा और तृप्ति की
जंग का
परिणाम था
मेरे अधरों पर
छूटा हुआ
असहाय सा स्पर्श
हिय कंदराओं में पलते
भावों का
परिणाम था
ओस की बूँद में
परिलिक्षित होता
सुंदरता का सागर
तुमसे असीम स्नेह का
परिणाम था
क्यूँ तुमने ऐसा किया
अपनी रातों में
मेरी रातों को समाहित कर
मुझसे…
Added by Sushil Sarna on September 14, 2018 at 8:33pm — 4 Comments
"ओये! .. अबकी बारी, मंदिर-मस्जिदों पे भारी!"
"नईं बे! चुनावी पारी की भेंटें 'वारि' ... ! वोटों की यारी, तैयारी जारी!"
"हां .. हां .. तुष्टिकरण जब तक, मज़हबी अतिक्रमण तब तक!"
"नईं बे! सियासी अतिक्रमण जब तक, वोट-बैंक तब तक! ... सियासत तब तक!"
"हां .. हां .. ऐसी 'ख़ुदग़र्ज़' सियासत जब तक, हमारी 'आफ़तें' तब तक!"
"नईं बे! 'ऐसी' जनता जब तक, 'ऐसी' सियासत तब तक और 'ऐसा' जनतंत्र तब तक!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 14, 2018 at 7:00pm — 7 Comments
ग़ज़ल
2122 1122 1122 22
बन के' सूरज सा' जमाने में' निकलते रहिये
हर अँधेरे को' उजाले मे' बदलते रहिये
जिंदगी एक सफर खुशियों' भरा हो अपना
यूँ ही बस आप मेरे साथ तो चलते रहिये
दिल के' मन्दिर में उजाले की' वज़ह आप ही हैं
अब तो इस दिल में' सदा दीप सा' जलते रहिये
मैं जो' हूँ साथ जमाने से' भला डर कैसा
हो के मायूस न यूँ शाम से ढलते रहिये
मेरे' हर गीत-ग़ज़ल-नज़्म-तरानों में' यूँ ही
बन के' नित…
Added by रामबली गुप्ता on September 14, 2018 at 1:39pm — 13 Comments
अंधा कानून - लघुकथा –
"सर, पिछले महिने मैंने आपकी कंपनी में इंटरव्यू दिया था। आपने खुद मुझे बधाई देकर बताया था कि इस पद के लिये मेरा चयन हो गया है। हफ़्ते दस दिन में नियुक्ति पत्र डाक द्वारा मिल जायेगा"।
"हाँ, यह सच है मिस ज्योति लेकिन...."।
"लेकिन क्या सर"?
"मुझे खेद है कि यह पद किसी और को दे दिया गया"।
"सर, क्या किसी मंत्री का फोन आगया था"?
"नहीं मिस ज्योति, हमारे यहाँ सिफ़ारिश नहीं चलती"।
"फिर सर, रातों रात इस परिवर्तन का कोई तो वाजिब…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 14, 2018 at 1:30pm — 10 Comments
बहुत अंधेरा है। सुबह बहुत दूर है अभी। अमेरिका से अभी चली हो शायद...
नींद नहीं आती। आये भी कैसे? पेट खाली नहीं, भविष्य तो खाली है। खाली पेट नींद भले आ जाये; लेकिन भविष्य की सुरक्षा की चिंता कब सोने देती है? माँ बाप के लाखों फूंक कर, रात और दिन की तपस्या से व्यवसायिक डिग्री हासिल करने के बाद भी यह साल दो साल के एग्रीमेंट? इससे तो बेहतर था पकोड़े तलता। लेकिन वहां भी पहले से जमे लोग आपका स्वागत नहीं करते... “यहां नहीं, यहां नहीं। हम इतने बरसों से यहां झक मार रहे हैं क्या?”
“एक तो…
ContinueAdded by Mirza Hafiz Baig on September 14, 2018 at 11:00am — 6 Comments
देश की धड़कन
वाणी का यौवन
संवाद का आँगन
हिंदी है मेरा तन-मन
अपनों से रखती है लगाव
भरती दिलों के घाव
मिटाती है अलगाव
हिंदी में है मेरा झुकाव
सबकी ज़रूरत
दिलों की हसरत
मिटाती नफ़रत
हिंदी है मेरी वकालत
शब्दों का हल
खुशियों का हर पल
सरस कलकल छलछल
हिंदी है मेरा आत्मबल
भारत की है शान
संपर्क की पहचान
सरगम की तान
हिंदी है मेरा स्वाभिमान
भेदभाव भी सहती है
मगर सच को सच कहती है
दिलों में…
Added by Mohammed Arif on September 14, 2018 at 8:00am — 5 Comments
कितनी प्यारी ये मनभावन हिन्दी है
भारत की वैचारिक धड़कन हिन्दी है
जो लिखता हूँ हिन्दी में ही लिखता हूँ
मेरी ख़ुशियों का घर आँगन हिन्दी है
रफ़ी, लता,मन्नाडे को तुम सुन लेना
इन सबकी भाषा और गायन हिन्दी है
भारत में कितनी हैं भाषाएँ लेकिन
सारी भाषाओँ का यौवन हिन्दी है
पहले मैं अक्सर उर्दू में लिखता था
अब तो मेरा सारा लेखन हिन्दी है
मुझको तो लगती है ये भाषा…
ContinueAdded by Samar kabeer on September 13, 2018 at 11:39pm — 33 Comments
बहर
1212-1122-1212-22
मेरे खयाल में अब फासलों से आती है।।
तुम्हारी याद भी अब दूसरों से आती है।।
कदम रुके हैं मुहब्बत की राह में जबसे।
है सच के नींद बड़ी मुश्किलों से आती है।।
की जर्रा जर्रा कही टूट कर है बिखरा यूँ।
सदा ये आज मेरी महफिलों से आती है।।
मसल चुका हुँ सभी कुछ मैं जह्न के भीतर।
अभी भी तेरी कसक , हौसलों से आती है।।
गुजर रही है मुहब्बत की तिश्नगी दे कर।
जो…
Added by amod shrivastav (bindouri) on September 13, 2018 at 9:30pm — 5 Comments
आप आये अब हमें दिल से लगाने के लिए
जब न आँखों में बचे आँसू बहाने के लिए
छाँव जब से कम हुई पीपल अकेला हो गया
अब न जाता पास कोई सिर छुपाने के लिए
तितलियाँ उड़ती रहीं करते रहे गुंजन भ्रमर
पुष्प में मकरंद था जब तक…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on September 13, 2018 at 4:20pm — 12 Comments
सबके लिए है कुछ न कुछ, मुंबई मे ज़रूर ।
एक बार सही मुंबई में बस आइए ज़रूर॥
निर्विघ्न हो जब हाथ है सर पे विघ्नहर्ता का।
श्रद्धा तू रख ये होंगे सिद्ध एक दिन ज़रूर।।
खाली नहीं लौटा है बशर, हाजी-अली…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on September 13, 2018 at 12:00pm — 2 Comments
221 2121 222 1212
हाकिम ही देश लूट के जब यूँ फरार हो
ऐसे में किस पे किस तरह तब ऐतबार हो।१।
रूहों का दर्द बढ़ के जब जिस्मों को आ लगे
बातों से सिर्फ बोलिए किसको करार हो।२।
इनकी तो रोज ऐश में कटती है खूब अब
क्या फर्क इनको रोज ही जनता शिकार हो।३।
हर शख्श जब तलाश में अवसर की लूट के
हालत में देश की भला फिर क्या सुधार हो ।४।
मुट्ठी में सबको चाहिए पलभर में चाँद भी
मंजिल के बास्ते किसे तब इन्तजार हो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 13, 2018 at 4:56am — 13 Comments
"अरे सुखिया! सुन तो मन्ने एक बात सूझी हैं, तू कहे तो बताऊँ।"
"का बात सूझी है दद्दा! बताय ही द्यो। मैं तो परेसान हो गया हूँ, एक तो उ बैंक का मनजेर बाबू आज सुबह ही कह रहे थे कि जो करजवा हम लिये रही उ का ब्याज भरने को पड़ी...।"
"ह्म्म्म हम सुन लिए थे उ वा की बात, तभी तो हम आये हैं, तू एक काम कर, तू कल सरपंच से कछु उधार मांग ले, वो इंकार न करेगा, और उ पैसा से अपन का ब्याज की किश्त चुकाई दिए।"
"होउ , इ हे बात तो हमरी ख़ोपड़िया में आयी ही नही। हम कल ही सरपंच जी से बात करेंगे। पर…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 12, 2018 at 10:30am — 7 Comments
ओस कण ....
ओ भानु !
कितने अनभिज्ञ हो तुम
उन कलियों के रुदन से
जो रोती रही
तुम्हारे वियोग में
रात भर
सन्नाटे की चादर ओढ़े
और बैरी जग ने
दे दिया
उन आँसूओं को
ओस कणों का नाम
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on September 11, 2018 at 7:56pm — 6 Comments
12122 12122 12122 12122
है दूर मन्ज़िल तिमिर घनेरा, अगर कलम की डगर कठिन है
नहीं थकेंगे कदम हमारे हमारा व्रत भी मगर कठिन है
चलो उठाओ तमाम बातें जवाब सारा कलम ही देगी
चले भले ही कदम अभी कम पता है हमको सफर कठिन है
मना ले जश्नां उड़ा मज़ाकाँ ज़माने दूँगा सलाम लाखों
सलाम वापस इधर ही होंगे हालाँकि तुमसे समर कठिन है
न पूछ काहें मैं अक्षरों की ये धार सब पर बिखेरुँ पल पल
है इक हिमालय यहाँ भी ग़म का सो आँसुओं की लहर कठिन…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 11, 2018 at 7:30pm — 9 Comments
मॉरिशस में हिंदी साहित्यिक समारोह
एक एतिहासिक दिन
7 सितम्बर 2018 हिंदी प्रचारिणी सभा मॉरिशस,परिकल्पना संस्था भारत तथा उच्चायोग मॉरिशस के संयुक्त तत्वाधान में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन हिंदी भवन लॉन्गमाउन्टेन पोर्ट लुई मॉरिशस में सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ|
जिसमे भारत के सहभागी ३२ साहित्यकारों को भिन्न भिन्न विधाओं के मद्देनज़र सम्मानित किया गया| मुझे मेरे लघुकथा संग्रह ‘गुल्लक’ हेतु ये सम्मान प्राप्त हुआ|
परिकल्पना संस्था से मेरा जुड़ाव कई वर्षों से है| २०१२ में…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 11, 2018 at 6:09pm — 9 Comments
किसकी सुनता है मन की करता है,
मुँह में रखता ज़बान-ए-गोया है..
हक़ बयानी ही उसका शेवा है,
कब उसे ज़िन्दगी की परवा है..
मौत पर ये जवाब उसका है,
क्या अजब है कि इक तमाशा है..
वो जो हर ग़म में इक मसीहा है,
कौन जाने कहाँ वो रहता है..
क्यूँ ख़्यालों में है अबस मेरे
किस ने ज़ोहेब उसको देखा है..??
मौलिक एवं अप्रकाशित।
Added by Zohaib Ambar on September 11, 2018 at 10:30am — 1 Comment
२२१/ २१२१ /२२२/१२१२
हर शख्स जो भी दूर से भोंदू दिखाई दे
देखूँ करीब से तो वो चालू दिखाई दे।१।
अब तो हवा भी कत्ल का सामान हो रही
लाज़िम नहीं कि हाथ में चाकू दिखाई दे।२।
मालिक वतन के भूख से मरते रहे यहाँ
सेवक की तस्तरी में नित काजू दिखाई दे।३।
सच तो यही कि जग में है मन से फकीर जो
सोना भी उसको दोस्तो बालू दिखाई दे।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2018 at 9:01pm — 6 Comments
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