Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 16, 2017 at 8:25pm — 27 Comments
22/ 22/ 22/ 22/ 22/ 22/ 22/ 2
.
जैसे धुल कर आईना फ़िर चमकीला हो जाता है,
रो लेता हूँ, रो लेने से मन हल्का हो जाता है.
.
मुश्किल से इक सोच बराबर की दूरी है दोनों में,
लेकिन ख़ुद से मिले हुए को इक अरसा हो जाता है.
.
फोकस पास का हो तो मंज़र दूर का साफ़ नहीं रहता,
मंजिल दुनिया रहती है तो रब धुँधला हो जाता है.
.
मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे में कोई काम नहीं मेरा
अना कुचल लेता हूँ अपनी तो सजदा हो जाता…
Added by Nilesh Shevgaonkar on September 16, 2017 at 2:30pm — 55 Comments
1212 1122 1212 22
नहीं ये ठीक, मैं तन्हा उदास बैठा था
मैं उसकी ताब से खो कर हवास बैठा था
नज़र उठा के तेरी सिम्त कैसे करता मैं
नज़र से चल के कोई दिल के पास बैठा था
कहीं नदी की रवानी थमी थी पत्थर से
कहीं लिये कोई सदियों की प्यास बैठा था
है मोजिज़ा कि ख़ुदा का करम बहा मुझ पर
वो तर बतर हुआ जो मेरे पास बैठा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 16, 2017 at 8:00am — 29 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 16, 2017 at 2:19am — 6 Comments
मापनी २२ २२ २२ २
इतनी ज्यादा बात न कर
वादों की बरसात न कर
टूट न जाए नाजुक दिल,
उससे भीतरघात न कर
ख्यात न हो, कुछ बात नहीं,…
Added by बसंत कुमार शर्मा on September 15, 2017 at 8:30pm — 18 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 15, 2017 at 5:30pm — 16 Comments
राजभाषा हिन्दी के दिवस का
अवसर है पधारा,
14 सितम्बर 1949 के दिन
देवनागरी हिन्दी को
हमने अपनी
राजभाषा स्वीकारा,
यही ऐतिहासिक दिन
हिन्दी दिवस नाम से
जाता है पुकारा,
भारत की अनेकों भाषाओं के बीच
हिन्दी का आकर्षण
सबसे न्यारा,
ज्यों विशाल समुद्र में
मिल…
Added by Arpana Sharma on September 15, 2017 at 3:00pm — 4 Comments
ग़ज़ल (अपनी तक़दीर फिर आज़माएँगे हम )
-----------------------------------------------------
(फ़ाइलुन -फ़ाइलुन -फ़ाइलुन -फ़ाइलुन)
अपनी तक़दीर फिर आज़माएँगे हम |
उनके कुचे से वापस न जाएँगे हम |
ज़ुल्म कितने भी ढा ले सितमगार तू
ग़म के हर दौर में मुस्कराएँगे हम |
आपको तो अज़ीज़ों से फ़ुर्सत नहीं
किस तरह हाल दिल का सुनाएँगे हम |
जब भी मिलता है देता है वो ज़ख़्मे नौ
दस्त उलफत का कब तक मिलाएँगे…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on September 14, 2017 at 10:23pm — 14 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 14, 2017 at 7:54pm — 6 Comments
समीक्षार्थ.........छंद-- तांटक (एक प्रयास)
*******
हिन्दी का घटता रुझान पर , भाषा में गहराई है
हिंदी क्यूँ ऐसे लगती ज्यूँ वृदाश्रम की माई है
.
नव पीढ़ी ने हिंदी में अब, लिखना पढ़ना छोड़ा है
परिवर्तन ऐसा आया दिल ,अंग्रेजी से जोड़ा है
निज भाषा का परचम लहराने का करते हैं दावा
मंचों से ही है चिंतन अंग्रेजी पर बोलें धावा
.
अंग्रेजी स्टेटस सिंबल है, हिंदी दिखती काई है
हिंदी क्यूँ ऐसे लगती ज्यूँ वृदाश्रम की माई है
.…
Added by अलका 'कृष्णांशी' on September 14, 2017 at 7:00pm — 15 Comments
सुंदर से बाग़ के एक कोने में एक अधकटा पेड़ लोगों को आकर्षित तो कर रहा था पर उसकी बदसूरती पर लोग तरह तरह की बातें कर रहे थे |
और क्यों न हो चर्चा उसकी , एक बड़ा सा पेड़ जिसकी छाँव में कभी लोग बैठा करते थे आज उसकी ऐसी हालत ! एक तरफ से लग रहा थे मानो किसीने उसकी टहनियों को तोड़ कर उसकी खूबसूरती को उससे छीन लिया था |" पर ऐसा कोई क्यों करेगा ?" एक राहगीर ने दूसरे से पूछा |
" मुझे लगता है यह काम माली का ही होगा | बड़ा पागल होगा यह माली , पेड़ की कटाई करनी हो तो ढंग से तो करता |" मुँह बिचकाते…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 14, 2017 at 4:30pm — 10 Comments
भाषा बड़ी है प्यारी जग में अनोखी हिन्दी,
चन्दा के जैसे सोहे नभ में निराली हिन्दी।
पहचान हमको देती सबसे अलग ये जग में,
मीठी जगत में सबसे रस की पिटारी हिन्दी।
हर श्वास में ये बसती हर आह से ये निकले,
बन के लहू ये बहती रग में ये प्यारी हिन्दी।
इस देश में है भाषा मजहब अनेकों प्रचलित,
धुन एकता की डाले सब में सुहानी हिन्दी।
शोभा हमारी इससे करते 'नमन' हम इसको,
सबसे रहे ये ऊँची मन में हमारी हिन्दी।
आज हिन्दी दिवस…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on September 14, 2017 at 11:30am — 65 Comments
Added by Manan Kumar singh on September 14, 2017 at 7:56am — 7 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 14, 2017 at 12:05am — 12 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on September 13, 2017 at 5:30pm — 11 Comments
सोने की चमक छोड़ के मिट्टी की तरफ हूं
बेटों से कहीं ज्यादा मैं बेटी की तरफ हूं
तुम लोग तो जालिम के तरफदार हो लेकिन
मैं आज भी इस देश में गांधी की तरफ हूं
जब साथ दिया मैंने किसी अहले सितम का
एहसास हुआ मुझको मैं गलती की तरफ हूं
आंखो को मेरी ख्वाब ना दौलत के दिखाओ
मैं भूख से बेचैन हूं रोटी की तरफ हूं
मैं डूबने दूंगा ना गरीबों का सफीना
तूफां के मुकाबिल हूं मैं मांझी की तरफ हूं
ये शहर का माहौल मुबारक हो आपको
मैं…
Added by Er Kumar Nusrat on September 13, 2017 at 11:00am — 12 Comments
.221 2121 1221 212
..................................
अपने हसीन रुख़ से हटा कर निक़ाब को,
शर्मिन्दा कर रहा है कोई माहताब को
.
कोई गुनाहगार या परहेज़गार हो,
रखता है रब सभी केअमल के हिसाब को
.
उनकी निगाहे नाज़ ने मदहोश कर दिया,
मैं ने छुआ नहीं है क़सम से शराब को
.
दिल चाहता है उनको दुआ से नावाज़ दूँ,
जब देखता हूँ बाग में खिलते गुलाब को
.
ये ज़िन्दगी तिलिस्म के जैसी है…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on September 13, 2017 at 8:00am — 17 Comments
Added by Mahendra Kumar on September 12, 2017 at 6:34pm — 29 Comments
अरकान:'फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा'
दिल ये कैसे बदल गया
यादों से ही बहल गया
देखी जो तस्वीर तेरी
मेरा दिल फिर मचल गया
ज़ालिम हैं सब लोग यहाँ
दिल ये सुनकर दहल गया
डूबा था मैं यादों में
दिन तेज़ी से निकल गया
मेरा क़िस्सा सुनते ही
पत्थर का बुत पिघल गया
#संतोष
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by santosh khirwadkar on September 12, 2017 at 4:30pm — 8 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on September 12, 2017 at 1:58pm — 13 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |