आजकल कोई बुलाता भी नहीं।
आजकल मैं भी कहीं जाता नहीं
आजकल हर ओर है बदली फिज़ा
आजकल गायब है चेहरे से गीज़ा॥
आजकल कुछ भी सुहाता ही नहीं।
आजकल मैं गुनगुनाता भी नहीं
आजकल बदले हुए हालात हैं
आजकल मैं मुस्कुराता भी नहीं॥
आजकल बेकार है सब कोशिशें।
आजकल हैं लग रही बस बंदिशें
आजकल अपने ही छलते हैं यहाँ
आजकल हैं सब बहुत बस परेशां॥
आजकल वादों की ही भरमार है।
आजकल गैरों के सर पे हाथ…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on November 30, 2018 at 4:00pm — 2 Comments
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन
गुपचुप उसपर मन आया है
लगता है सावन आया है
महका है हर कोना-कोना
अम्बर से चन्दन आया है
देखो नभ पर छाये बादल
दूल्हा ज्यों बनठन आया है
भीग रही है प्यासी धरती
ज्यों बीता यौवन आया है
रह-रह नाच रही हैं बूँदें
राधा का मोहन आया है
झूला झूल रही हैं सखियाँ
सज रक्षा बंधन आया है
कागज़ की नैया ले आओ
याद मुझे बचपन आया…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on November 30, 2018 at 9:00am — 9 Comments
"हम तो अपनी सरकारी नौकरी से मज़े में हैं! तुम सुनाओ, कैसी चल रही है तुम्हारी प्राइवेट टीचरी?"
"बढ़िया! मेरे ख़्याल से तुमसे भी बेहतर चल रहा है सब कुछ!"
"वो कैसे?"
"तुम्हारी नौकरी में तुम केवल सरकार और जनता को उल्लू बनाते हो या चूना लगाते हो! ... हम तो अपनी नौकरी में मैनेजमेंट को और माता-पिता-पालकों को और छात्रों को भी, क्योंकि वे हमें उल्लू बनाते हैं या चूना लगाते हैं! 'टिट-फॉर-टेट' और 'टेक इट ईज़ी' का ज़माना है न!"
"कुछ समझ में नहीं आया! हमने तो सुना है कि प्राइवेट…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 30, 2018 at 12:30am — No Comments
गर हो सके तो मुल्क पे अहसान कीजिये ।।
अब और न हिन्दू न मुसलमान कीजिये ।।
भगवान को भी बांट रहे आप जात में ।
कितना गिरे हैं सोच के अनुमान कीजिये ।।
मत सेंकिए ये रोटियां नफरत की आग पर ।
अम्नो सुकूँ के वास्ते फ़रमान कीजिये ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on November 29, 2018 at 11:30pm — 5 Comments
2122 2122 2122 212
एक ताज़ा ग़ज़ल
जो भी जग में साथ हैं सब छूट जाने के लिए
क्यों हो तेरा ज़िक्र फिर दिल को दुखाने के लिए
दिल्लगी में शायद तेरी रह गई थी कुछ कमी
भेजा है क़ासिद को मेरा हाल पाने के लिए
इसलिए महसूस तेरी बेरुखी होती नहीं
मुझमें कुछ बाकी नहीं तुझको सुनाने के लिए
रात गहरी कट गई फिर भी न पाई रोशनी
आ गई बरसात मेरा दिल जलाने के लिए
आज कल मायूस होकर घूमता हूं दर बदर
इक खिलौना बन गया हूँ…
Added by मनोज अहसास on November 29, 2018 at 10:24pm — 5 Comments
चौदहवीं की रात I निशीथ का समय I चाँद अपने पूरे शबाब पर I जायस के कजियाना मोहल्ले में एक छोटे से घर की छत पर गोंदरी बिछाए वही लम्बी सी पतली लडकी लेटी थी I उसकी सपनीली आँखों से नींद आज गायब थी I उसकी आँखों के सामने मुहम्मद का भोला किंतु खूबसूरत चेहरा बार-बार घूम जाता I कभी-कभी ऐसी नाटकीय घटनायें हो जाती हैं कि हम बेक़सूर होकर भी दूसरे की निगाहों में कसूरवार हो जाते हैं I उस लड़के ने मुझे उस हंगामे से बचाया I मेरा हाथ थामा I मुझे पानी से निकाला I हाथ थामने के मुहावरे का अर्थ सोचकर उसे उस सन्नाटे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 29, 2018 at 10:02pm — 2 Comments
इस तरह जिन्दगी तमाम करें
लोग आ कर हमें सलाम करें
झूठ का अब न एहतराम करें
इस तरह का भी इंतिजाम करें
तू वना खुद को इस तरह शीशा
देख चेहरा सभी सलाम करें
इस तरह वख्श बन्दगी दाता
सुबह से शाम राम-राम करें
आप के हाथ अब नहीं बाजी
आप अब और कोई काम करें
आज तौफिक दे खुदा सबको
देश पर जां लुटा के नाम करें
देख नफरत उदास है “तन्हा”
आस्तां में कहीं कयाम करें
मुनीश “तन्हा”
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by munish tanha on November 29, 2018 at 9:30pm — 2 Comments
22 22 22 22 22 2
इश्क़ अजब है, तोहमत लेकर आया हूँ।
और लगता है , शुहरत लेकर आया हूँ।
बदहाली में भी सालिम ईमान रहा,
मैं दोज़ख़ से जन्नत लेकर आया हूँ।
मिट्टी, पानी, कूज़ागर की फ़नकारी,
और इक धुंधली सूरत लेकर आया हूँ।
कितने रिश्ते, कितने नुस्ख़े, कितना प्यार,
मैं दादी की वसीयत लेकर आया हूँ।
आज 'गली क़ासिम' से होकर गुज़रा था,
साथ में थोड़ी जन्नत लेकर आया हूँ।…
Added by रोहिताश्व मिश्रा on November 29, 2018 at 4:30pm — 3 Comments
कुछ क्षणिकाएं जीवन पर :
लो
आज मैं बड़ा हो गया
अपनी नेम प्लेट
लगाकर
बूढ़ी नेमप्लेट
हटा कर
.................
ज़िंदगी
हार गयी
ज़िंदगी से
खून से
खून की दरिंदगी से
..............................
असंभव को
संभव कर दिया
ज़िंदगी को
मरघट की
राह बता कर
............................
वृद्धाश्रम में
माँ -बाप को छोड़
बड़ा उपकार किया
संतान ने
दूध का क़र्ज़
उतार…
Added by Sushil Sarna on November 29, 2018 at 3:04pm — 10 Comments
एक नवगीत
समीक्षा का हार्दिक स्वागत
रैली, थैली, भीड़-भड़क्का,
सजी हुई चौपाल
तंदूरी रोटी के सँग है,
तड़के वाली दाल
गली-गली में तवा गर्म है,
लोग पराँठे सेक रहे
जन गण के दरवाजे जाकर,
नेता घुटने टेक रहे
पाँच साल के बाद सियासत,
दिखा रही निज चाल
वादों की तस्वीरें…
Added by बसंत कुमार शर्मा on November 29, 2018 at 1:00pm — 4 Comments
2122 2122 2122 212
बज गई है डुगडुगी बस अब तमाशा देखिये
अब यहाँ फूटेगा बातों का बताशा देखिये//१
संग नेता के कुलाचें भर रही जो भीड़ ये
घर पहुंचकर इसके जीवन की हताशा देखिये //२
हर गली हर मोड़ पे भूखों की लंबी फ़ौज़ है…
ContinueAdded by क़मर जौनपुरी on November 28, 2018 at 8:00pm — 12 Comments
1222 1222 122
न जाने क्या हुई हमसे ख़ता है
हमारा यार जो हमसे खफ़ा है।
यूँ ही बदनाम हाकिम को हैं करते
यहाँ प्यादा भी जब जालिम बड़ा है।
जरा सींचो भरोसा तुम जड़ों में
शज़र रिश्तों का इन पर ही खड़ा है।
उसी ने छू लिया है आसमाँ को
परिंदा जो गिरा, गिर कर उठा है।
नहीं हमदर्द होता आदमी जो
सहारा गलतियों में दे रहा है।
अमा की रात में महताब आया
तुम आये तो हमे ऐसा लगा है।
मौलिक…
ContinueAdded by सतविन्द्र कुमार राणा on November 28, 2018 at 6:30pm — 10 Comments
2122 1212 22/112
जब से हमदम सिपहसलार हुआ
सबसे ज़्यादा हमीं पे वार हुआ//1
मौत से एक बार भागा जो
मौत का रोज़ ही शिकार हुआ //2
दिल के आँगन में चाँद उतरा जब
दिल का आँगन सदाबहार हुआ//3
आज फिर आग में जली दुल्हन
आज फिर हिन्द शर्मसार हुआ//4
मैं तो खुद ही मिटा मुहब्बत में
कौन कहता है मैं शिकार हुआ// 5
दूर इक बर्फ की शिला था मैं
तेरे छूने से आबशार हुआ//6
बेक़रारी भले मिली…
ContinueAdded by क़मर जौनपुरी on November 28, 2018 at 1:00am — 2 Comments
1222 1222 122
खतों का चल रहा जो सिलसिला है ।
मेरी उल्फ़त की शायद इब्तिदा है ।।
यहाँ खामोशियों में शोर जिंदा ।
गमे इज़हार पर पहरा लगा है ।।
छुपा बैठे वो दिल की आग कैसे।
धुंआ घर से जहाँ शब भर उठा है ।।
नही समझा तुझे ऐ जिंदगी मैं ।
तू कोई जश्न है या हादसा है ।।
मिला है बावफा वह शख़्स मुझको ।
कहा जिसको गया था बेवफा है…
Added by Naveen Mani Tripathi on November 27, 2018 at 10:00pm — 4 Comments
चुनौती दे डाली ....
खिड़कियों के पर्दों ने
रोशनी के प्रभुत्व को
चुनौती दे डाली
जुगनुओं की चमक ने
अंधेरों के प्रभुत्व को
चुनौती दे डाली
अंतस की पीड़ा ने
आँखों के सैलाबों को
चुनौती दे डाली,........
विरह के अभयारण्य ने
स्मृतियों के भंडारण को
चुनौती दे डाली
बिस्तर की सलवटों ने
क्षणों की चाल को
चुनौती दे डाली
जीत के आसमान को
हार की ज़मीन ने
चुनौती दे…
Added by Sushil Sarna on November 27, 2018 at 7:28pm — 6 Comments
मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२
द्वार पर जो दिख रही सारी सजावट आप से है
आज अधरों पर हमारे मुस्कुराहट आप से है
आपकी आमद से मौसम हो गया कितना सुहाना
जो हुई महसूस गरमी में तरावट आप से है
यूँ तो मेरी जिन्दगी…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on November 27, 2018 at 9:08am — 9 Comments
ग़ज़ल
इक ठिकाना तलाशता हूँ मैं ।
टूटा पत्ता दरख़्त का हूँ मैं ।।
कुछ तो मुझको पढा करो यारो ।
वक्त का एक फ़लसफ़ा हूँ मैं ।।
हैसियत पूछते हैं क्यूं साहब ।
बेख़ुदी में बहुत लुटा हूँ मैं ।।
इश्क़ की बात आप मत करिए ।
रफ़्ता रफ़्ता सँभल चुका हूँ मैं ।।
चाँद इक दिन उतर के आएगा ।
एक मुद्दत से जागता हूँ मैं ।।
खेलिए मुझसे पर सँभल के जरा।
इक खिलौना सा…
Added by Naveen Mani Tripathi on November 26, 2018 at 11:33pm — 10 Comments
कौए अब अपने पितृ स्थान के लिए
स्कूल के बच्चों के हिस्से में आई
अनुदान राशि को हड़प ले गये ।
और अपनी श्रद्धा प्रकट करने के लिए
राजनीति को यूँ अपनाया
कि विधायक, सरपंच मजबूर हैं
सरकारी सहायता को पितृों तक भेजने के लिए ।
अन्य पक्षियों को छोड़कर
केवल कौओं की वोटो की गिनती
के मायने जियादा हैं ।
शेर भी लाचार हैं
वे अब शिकार नहीं करते
वे शिकार हो जाते हैं ।
शेरों को हमेशा
कौओं ने सरकश में नचवाया…
Added by सूबे सिंह सुजान on November 26, 2018 at 11:00pm — 6 Comments
नया विकल्प ...
हंसी आती है
जब देखता हूँ
रात को दिन कहने वाले लोग
जुगनुओं की तलाश में
भटकते हैं
हंसी आती है
जब लोग नेता और अभिनेता की तासीर को
अलग-अलग मानते हैं
उनकी जीत के बाद
स्वयं हार जाते हैं
हंसी आती है
उन लोगों पर
जो मात्र हाथों में
किसी पार्टी का परचम उठाकर
स्वयं का अस्तित्व भूल जाते हैं
भूल जाते हैं कि वो
मात्र शोर का माध्यम हैं,
और कुछ नहीं
हंसी आती है…
ContinueAdded by Sushil Sarna on November 26, 2018 at 6:45pm — 3 Comments
२१२२ ११२२ ११२२ २२/ १२२
मैं हूँ साजिद, मेरा मस्जूद मगर जाने ना
घर में साकिन हैं कई, सबको तो घर जाने ना //१
ख़ुद ही पोशीदा है तू ख़ल्क़ में तो क्या शिकवा
कोई क्या आए तेरे दर पे अगर जाने ना //२
दोनों टकराती हैं हर रोज़ सरे बामे उफ़ुक़
मोजिज़ा है कि कभी शब को सहर जाने ना //३
ये अलग बात है तू मुझपे नज़र फ़रमा नहीं
वरना क्या बात है जो तेरी नज़र जाने ना //४
तू मुदावा है मेरे गम का तुझे क्या मालूम
बात यूँ है कि…
Added by राज़ नवादवी on November 26, 2018 at 12:04pm — 11 Comments
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