२१२२/२१२२/२१२
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जब कि हर इक फ़ैसला मंज़ूर है,
फिर भी वो कहता हमें मगरूर है.
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दोष है फ़ितरत का, ज़ख्मों का नहीं,
ज़ख्म जो प्यारा है वो नासूर है.
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ख़ासियत कुछ भी नहीं उसमे, फ़क़त,
वो मेरा क़ातिल है सो मशहूर है.
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नब्ज़ मेरी थम गयी तो क्या हुआ,
जान मुझ में आज भी भरपूर है.
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जिस्म है बाक़ी हमारे दरमियाँ,
पास है, लेकिन अभी हम दूर है.
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बात अब उनसे मुहब्बत की न कर,
लोग समझेंगे, नशे में चूर है.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on December 20, 2013 at 5:00pm — 27 Comments
(1)
हमारे सपने लेते रहे आकार
बड़े और बड़े
महानगर की इमारतों की तरह
भव्य और विशाल
हमारे सपने
बढ़ते रहे
आगे और…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on December 20, 2013 at 12:30pm — 22 Comments
2122 2122 2122 2122
गुम्बदों से क्यों कबूतर आज कल डरने लगे हैं
दूरियाँ रख कर चलेंगे फैसले करते लगे हैं
पतझड़ों की साजिशों से, अब बहारों में भी देखो
हर शज़र मुरझा गया, पत्ते सभी झड़ने लगे हैं
अपने ख़्वाबों को…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 20, 2013 at 7:30am — 41 Comments
2112 2112 2112 112
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दाग चंदा को लगे हैं, सूरज का क्या गया
ढूँढ लेगा रात को वो, फिर से कोई घर नया
बादलों को थी मनाही , कैसे करते बारिसें
उसके सूखे दामनों पर, आँसुओं ने की दया
कौन बोले, किसको बोले, इस सियासत में बुरा
सब हमामों के चरित्तर, शेष किसमें है हया
बाज के थे सहायक चील , कौवे औ’ उलूक
फिर अकेली बाज से, कब तलक लड़ती बया
सोच…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2013 at 7:00am — 8 Comments
ख्वाबों में मेरे आकर खुद ही तो बताते हो
है मुझसे मोहब्बत ये ज़माने से छुपाते हो
बढ़ जाती है क्यूँ धड़कन कभी दिल से ये पूछा है
रुक जाते हो क्यूँ मिलकर कभी दिल से ये सोचा है
फिर भी मेरा ये इश्क क्यूँ किताबी बताते हो
ये दिल का मसअला है , दिल से ही ये सुलझेगा
ज़ज़्बात की बातों से , ये और भी उलझेगा
उलफत भी है मुझसे और मुझको ही सताते हो
महफ़िल में हज़ारों की , तन्हाई में रहते हो
कहते हो नही फिर भी क्या-क्या…
Added by ajay sharma on December 19, 2013 at 11:24pm — 9 Comments
(1)
आयो मेरे पास आयो
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देश मेरा उजड़ रहा है
आओ मेरे पास आओ
कितने ही दुख भोग रहा है
आओ मेरे पास आओ
एक तरफ चाकू है चलता
दूसरी तरफ नरसंहार है
आतंकवाद है उससे ऊपर
सबसे ऊपर बलात्कार है
कितनों के दिल तोड़े इसने
घर कितनो के उजाड़े हैं
आँख के तारे छीने इसने
माँग के सिंदूर उजाड़े हैं
पाप की नगरी से डर लगता
आकर मुझको गले लगाओ
तुमसे बिछड़ न जाऊँ कहीं मैं
आयो मेरे पास…
Added by NEERAJ KHARE on December 19, 2013 at 9:00pm — 7 Comments
कुण्डलियां-1
कुत्ता प्यारा जीव है, वफादार बलवान।
घर की नित रक्षा करे, रख पौरूष अभिमान।।
रख पौरूष अभिमान, गली का शेर कहाए।
चोर और अंजान, भाग कर जान बचाए।।
द्वार रहे गर श्वान, शान ज्यों माणिक मुक्ता।
पर मानव मक्कार, अहम वश कहता कुत्ता।।
के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on December 19, 2013 at 7:00pm — 23 Comments
दर्द का सावन ……
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दर्द का सावन तोड़ के बंधन
नैन गली से बह निकला
मुंह फेर लिया जब अपनों ने
तो बैगानों से कैसा गिला
जो बन के मसीहा आया था
वो बुत पत्थर का निकला
मैं जिस को हकीकत समझी थी
वो रातों का सपना निकला
है रिश्ता पुराना कश्ती का
सागर के किनारों से लेकिन
जब दुश्मन लहरें बन जाएँ
तो कश्ती से फिर कैसा…
Added by Sushil Sarna on December 19, 2013 at 7:00pm — 18 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
छलकती आँखें हैं साकी हसीं इक जाम हो जाये
बना दो रिंद दुनिया को सुहानी शाम हो जाये
जुदा मजहब के लोगों को मिला दे आज ऐ साकी
तरीका कोई भी हो आज दिलकश काम हो जाये
हमें हिन्दू मुसल्मा कह लड़ाते हैं भिड़ाते हैं
करो कोई जतन ऐसा की हिंदी नाम हो जाये
हजारों फूल गुलशन में जुदा हैं रूप रंगत भी
मगर खुशबू जुदा मिलकर हसीं पैगाम हो जाये
न जाने किसकी साजिश है बहाते हम लहू…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 19, 2013 at 2:30pm — 21 Comments
Added by अजय कुमार सिंह on December 19, 2013 at 12:30pm — 12 Comments
(विजया घनाक्षरी) ८,८,८,८ पर प्रत्येक चरण में यति अंत में लघु गुरू या नगण
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१)
शीत मलयज लिए, बदरी मैं नीर भरी
भरती मैं रूप नए , धरती सी धीर धरी
यत्त पंख चाक हुए , उड़ने से नहीं डरी
गरल के घूँट पिए , पीकर मैं नहीं मरी
अगन संताप दिए, प्रत्यक्ष तस्वीर खरी
बहु किरदार जिए , जगत की पीर हरी
परहित भाव लिए, संकल्प से नहीं टरी
पुष्प गुँफ झर गए, डार कभी नहीं झरी
(२)
जितनी भी बार…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 19, 2013 at 11:30am — 20 Comments
सूरज को पिघलते देखा है
वक्त के साथ रिश्तो को बदलते देखा है ।
दौलत के लिये अपनो को लडते देखा है ॥
लिये आग चढा था जो सुबह आसँमा पे
शाम उस सूरज को पिघलते देखा है ।।
तैरा था जो लहरो के विपरीत हरदम ।
साहिल पे उस जहाज को डूबते देखा है ।।
हुआ करती थी जहाँ संस्कारो की बाते ।
हाँ आज मैने उन घरो को टूटते देखा है ॥
बैठा था कल तक जो किस्मत के भरोसे
उस शख्स को आज हाथ मलते…
ContinueAdded by बसंत नेमा on December 19, 2013 at 11:30am — 15 Comments
हथियार
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क्या नारी ने
सारी शक्तिया
समाहित कर ली हैं
खुद में ही
या इस्तेमाल हो रही हैं
हथियार की तरह
या हथियार बन
उठ खड़ीं हो गयी हैं
खुद ही संघार
करने के लिए
पापियों का
क्या अच्छे लोग भी
फंस रहे हैं इस
मकड़जाल में
खूब की हमने भी
माथा पच्ची पर
भगवान् ना थे हम
कि सुन-समझ-देख पाए
आखिर मांजरा क्या हैं
समझ पाए कि कौन
इस्तेमाल हो रहा हैं
कौन किया जा रहा हैं…
Added by savitamishra on December 19, 2013 at 10:00am — 14 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on December 19, 2013 at 9:30am — 18 Comments
1 2 2 1 2 2 1 2 2 1 2 2
कहा कब कि दुनिया ये ज़न्नत नहीं है
तुम्हे पा सकें ऐसी किस्मत नहीं है //1//
मोहब्बत को ज़ाहिर करें भी तो कैसे
पिघलने की हमको इजाज़त नहीं हैं //2//
तो वादों की जानिब कदम क्यों बढ़ाएं
निभाने की जब कोई सूरत नहीं है. //3//
बहुत सब्र है चाहतों में तुम्हारी
नज़र में ज़रा भी शरारत नहीं है //4//
सुलगती हुई आस हर बुझ गयी, पर
हमें आँधियों से…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on December 19, 2013 at 12:00am — 61 Comments
बस कुछ पल के लिए ,
आँखों में वो प्यार चाहता हूँ
तुम्हारे शब्दों को बेक़रार चाहता हूँ
क्यूँ की मेरे लिए तो बस
पहली बारिश की पानी सी तुम
अमूल्य अमित अनूठी कहानी सी तुम .....
बस कुछ पल के लिए ,
अगम्य मनोभावों में उलझे वो शब्द चाहता हूँ
तुम्हारे मन को मेरे समक्ष चाहता हूँ
क्यूँ की मेरे लिए तो बस
आँखों में बसी परेशानी सी तुम
मेरे प्रेम की अंतिम…
Added by Nishant Chourasia on December 18, 2013 at 11:00pm — 8 Comments
!!! चाल ढार्इ घर चले अब !!!
बन फजल हर पल बढ़े चल,
दासता के देश में अब।
रास्ते के श्वेत पत्थर
मील बन कर ताड़ते हैं
दंग करती नीति पथ की,
चाल ढार्इ घर चले अब।1
भूख पीड़ा सर्द रातें
राह पर अब कष्ट पलते
भ्रूण हत्या पाप ही है
राम के बनवास जैसा
साधु पहने श्वेत चोला
चाल ढार्इ घर चले अब।2
रोजगारी खो गर्इ है
रेत बनकर उड़ चुकी जो
फिर बवन्डर घिर रहा है
घूस खोरी सी सुनामी
दर-बदर अस्मत हुर्इ पर
चाल…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on December 18, 2013 at 7:08pm — 15 Comments
भोर को निशा बना दे, अंधकार ही घना दे।
हो सके तो श्वांस ना दे, आदमी को आदमी।
लोभ के गुणों को जापे, हर्ष के लिए विलापे।
स्वार्थ में कठोर शापे, आदमी को आदमी।
भाग में रहा बदा है, जोड़ता यदा कदा है।
बांटता चला सदा है, आदमी को आदमी।
शर्म ही बचा सकेगा, धर्म ही उठा सकेगा।
कर्म ही बना सकेगा, आदमी को आदमी।
_____मौलिक/अप्रकाशित______
Added by Sanjay Mishra 'Habib' on December 18, 2013 at 6:39pm — 10 Comments
एक रात अचानक पुलिस वाले उसे उग्रवादी बता कर घर से उठा कर ले गए. क्या क्या ज़ुल्म नहीं किये गए थे उस पर. वह चीख चीख कर खुद को बेनुगाह बताता रहा लेकिन सब कुछ सुनते हुए भी सरकारी जल्लाद बहरे बने रहे. यातनाएं सहते सहते तक़रीबन छह महीने बीत गए थे. तभी एक दिन सरकार ने अपनी नई नीति के अनुसार उसे रिहा कर दिया ताकि वह भी राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल हो सके. उसके वापिस लौटने से घर में ख़ुशी का वातावरण था, लेकिन वह जड़वत बैठा न जाने कहाँ खोया रहता. वृद्ध पिता ने एक दिन उसके कंधे पर हाथ रखकर…
ContinueAdded by योगराज प्रभाकर on December 18, 2013 at 3:00pm — 38 Comments
दिन भर के सफर का
थका हुआ सूरज, मानो..
ज़मीं की सेज़ पर,
लहरों के झूले में,
चाँदनी की चादर ओढ़े
सबकुछ भूल के,
सोने जा रहा हो,
लहराते हुये लहरो में,
मानो,
कह रहा है
मेरे दोस्तो
विदा, फिर मिलेंगे सुबह...
मैं चला
होती है रात विश्राम को,
थकान मिटाने को,
चलें सफर में
रात के साथ...
पिछला ग़म भुलाने को
चलो
सुबह एक नई शुरूआत करेंगे
-मौलिक व…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 18, 2013 at 10:30am — 17 Comments
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