मिर्ज़ा ग़ालिब की ज़मीन पे लिखी ग़ज़ल
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
न हो जब दिल में कोई ग़म तो फिर लब पे फुगाँ क्यों हो
जो चलता बिन कहे ही काम तो मुँह में ज़बाँ क्यों हो //१
जहाँ से लाख तू रह ले निगाहे नाज़ परदे में
तसव्वुर में तुझे देखूँ तो चिलमन दरमियाँ क्यों हो //२
यही इक बात पूछेंगे तुझे सब मेरे मरने पे
कि तेरे देख भर लेने से कोई कुश्तगाँ क्यों हो…
Added by राज़ नवादवी on December 21, 2018 at 11:30am — 19 Comments
कैदी ! तुझसे कोई मिलने आया है I’ –जेल के सिपाही ने सूचना दी I अगले ही पल काले कोट में एक वकील प्रकट हुआ I
‘आपकी पत्नी ने मुझे आपका वकील एपॉइंट किया है I आप मुझे सच-सच बताइए कि आपने मैरिज-कोर्ट में अपने बेटे की हत्या क्यों की ? क्या आपकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी ?’
कैदी कुछ नहीं बोला I उसने मुँह फेर लिया I वकील असमंजस में पड़ गया I कुछ देर चुप रहकर वह बोला –‘ देखिये अगर आप ही सहयोग नहीं करेंगे तो मैं आपकी मदद कैसे कर पाऊंगा ?’
‘वकील साहब, आप अपना समय बर्बाद कर रहे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 20, 2018 at 6:24pm — 4 Comments
दिले बेक़रार को थोड़ा करार मिल जाए,
गुलशने वीरां को राहे बहार मिल जाए।
हट जाए ये फ़सुर्दगी मेरे दीदा-ए-मजहूर से,…
ContinueAdded by Ashish Kumar on December 20, 2018 at 5:14pm — 3 Comments
1
माना होता है समय, भाई रे बलवान
लेकिन उसको साध कर, बनते कई महान
बनते कई महान, विचारें इसकी महता
यह नदिया की धार, न जीवन उनका बहता
सतविंदर कह भाग्य, समय को ही क्यों जाना
नहीं सही भगवान, तुल्य यदि इसको माना।
2
होते तीन सही नकद, तेरह नहीं उधार
लेकिन साच्चा हो हृदय, पक्का हो व्यवहार
पक्का हो व्यवहार, तभी है दुनिया दारी
कभी पड़े जब भीड़, चले है तभी उधारी
सतविंदर छल पाल, व्यक्ति रिश्तों को खोते
उनका चलता कार्य, खरे जो मन के…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 19, 2018 at 3:30pm — 4 Comments
बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम
फ़ाइलुन, फ़ाइलुन, फ़ाइलुन
पूछते हो जो क्या चाहिए
सिर्फ माँ की दुआ चाहिए//१
ख़्वाब मुरझा गए हैं अगर
ख़्वाब की ही दवा चाहिए//२
ज़िन्दगी अब मुकम्मल हुई
तुम मिले और क्या चाहिए//३
आ गए हैं सितारे मगर
चाँद का आसरा चाहिए//४
क़ैद में ही रहीं तितलियां
अब उन्हें भी हवा चाहिए//५
शाइरी का गुमाँ मत करो
खूब ही तज्रिबा चाहिए//६
ज़ुल्म क्यों ख़त्म…
ContinueAdded by क़मर जौनपुरी on December 19, 2018 at 11:30am — 5 Comments
Added by Ashish Kumar on December 18, 2018 at 5:30pm — 4 Comments
221, 2121, 1221, 212
आरोप ये गलत है कि पुष्पित नहीं हुआ।
जीवन सरोज खिल के हाँ सुरभित नहीं हुआ।
छल, साम, दाम, दण्ड, कुटिलता चरम पे थी,
ऐसे ही कर्ण रण में पराजित नहीं हुआ।
कैसा ये इन्क़लाब है, बदलाव कुछ नहीं,
अम्बर अभी तो रक्त से रंजित नहीं हुआ।
गिरकर संभल रहे हैं, गिरे जितनी बार हम,
साहस हमारा आज भी खण्डित नहीं…
Added by Balram Dhakar on December 18, 2018 at 4:00pm — 14 Comments
गज़ल
फेलुन x 4 (16 मात्रा)
नफरत की आग लगाना है
मजहब तो एक बहाना है
खूब लाभ का है ये धंधा
बस इक अफवाह उड़ाना है
हर तरफ खून की है बातें
लाशों का ही नजराना है
धर्म नाम के है दीवाने
जुनून बस खून बहाना है
जला रहे जो अपना ही घर
दर्पण उनको दिखलाना है
शुभ आस करो कुछ ‘‘मेठानी’’
अब नई सुबह को लाना है।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
- दयाराम मेठानी
Added by Dayaram Methani on December 18, 2018 at 1:51pm — 5 Comments
2122 1212 22
बाद मुद्दत खुला मुक़द्दर था ।
मेरी महफ़िल में चाँद शब भर था ।।
देख दरिया के वस्ल की चाहत ।।
कितना प्यासा कोई समंदर था ।।
जीत कर ले गया जो मेरा दिल।
हौसला वह कहाँ से कमतर था ।।
दर्द को जब छुपा लिया मैने ।
कितना हैराँ मेरा सितमगर था ।।
अश्क़ आंखों में देखकर उनके ।
सूना सूना सा आज मंजर था ।।
जंग इंसाफ के लिए थी वो ।
कब…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 18, 2018 at 1:00pm — 7 Comments
खेल क्या तुम भी सियासी जानते हो ।
कौन कितना है मदारी जानते हो ।।
फैसला ही जब पलट कर चल दिये तुम।।
फिर मिली कैसी निशानी जानते हो।।
हो रहा है देश का सौदा कहीं पर ।
खा रहे कितने दलाली जानते हो।।
मसअले पर था ज़रूरी मशविरा भी ।
तुम हमारी शादमानी जानते हो।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 17, 2018 at 10:07pm — 8 Comments
2122 2122 2122 212
काँच के टुकडों में दे दे ज्यों कोई बच्चा मणी
आधुनिकता में कहीं खोया तो है कुछ कीमती।
हुस्न की हर सू नुमाइश़ चल रही है जिस तरह
बेहयाई दफ़्न कर देगी किसी की शायरी।
ताश, कन्चें, गुड्डा, गुड़िया छीन के घर मिट्टी के
लाद दी हैं मासुमों पर रद्दियों की टोकरी।
अब कहाँ हैं गाँव में वें पेड़ मीठे आम के
वे बया के घोसलें, वे जुगनुओं की रौशनी।
ले गयी सारी हया पश्चिम से आती ये हवा…
Added by Rahul Dangi Panchal on December 17, 2018 at 9:00pm — 6 Comments
२२१२ १२१२ २२१२ १२
हस्ती का मरहला सभी इक इक गुज़र गया
मैं भी तमाशा बीन था, अपने ही घर गया //१
इश्वागरी के खेल से मैं यूँ अफ़र गया
सारा जुनूने आशिक़ी सर से उतर गया //२
खोया न मैं हवास को आई जो नफ़्से मौत
ज़िंदा हुआ मशामे जाँ, मैं जबकि मर गया //३
हैराँ हूँ अपने शौक़ की तब्दीलियों पे मैं
नश्शा था तेरे हुस्न का, कैसे उतर गया //४…
Added by राज़ नवादवी on December 17, 2018 at 7:41pm — 8 Comments
मैं इठलाती,
मैं बलखाती,
मंद चाल से,
बढ़ती हूँ
शरद ऋतु जब,
वर्ष में आये
अपना जाल,
बिछाती हूँ||
कहीं थपेड़े,
पवन दिलाती
कहीं,
बर्फ पिघलाती हूँ
कहीं,
तरसते धूप
को सब जन
कहीं कपकपी,
खूब दिलाती हूँ
वर्षा ऋतू,
के बाद में आयी,
शरद ऋतू,
कहलाती हूँ||
कोई निकाले,
कम्बल अपने,
कोई,
रजाई खोज रहा
कोई जला…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 17, 2018 at 3:00pm — 8 Comments
2122 2122 212
हर ख़ुशी का इक ज़रीआ चाहिए
ठीक हो वह ध्यान पूरा चाहिए।
दर्द को भी झेलता है खेल में
दिल भी होना एक बच्चा चाहिए।
जान लेना राह को हाँ ठीक है
पर इरादा भी तो पक्का चाहिये।
टूट कर शीशा जुड़ा है क्या कभी
टूट जाए तो न रोना चाहिए।
झूठ की बुनियाद पर है जो टिका
वो महल हमको तो कचरा चाहिए।
विष वमन कर जो हवा दूषित करे
उस जुबाँ पर ठोस ताला चाहिए।
मौलिक एवं…
ContinueAdded by सतविन्द्र कुमार राणा on December 17, 2018 at 6:30am — 10 Comments
2122 2122 2122 212
रोज के झगड़े, कलह से दिल अब उकता सा गया।
प्यार के बिन प्यार अपने आप घटता सा गया।
दफ़्न कर दी हर तमन्ना, हर दफ़ा,जब भी उठी
बारहा इस हादसे में रब्त पिसता सा गया।
रोज ही झगड़े किये, रोज ही तौब़ा किया
रफ़्ता रफ़्ता हमसे वो ऐसे बिछड़ता सा गया।
चाहकर भी कुछ न कर पाये अना के सामने
हाथ से दोनों ही के रिश्ता फिसलता सा गया।
छोडकर टेशन सनम को लब तो मुस्काते रहें
प्यार का मारा हमारा दिल तड़पता…
Added by Rahul Dangi Panchal on December 16, 2018 at 8:30pm — 4 Comments
बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु, फ़ाइलातु, मुफ़ाईलु, फ़ाइलुन
221, 2121, 1221, 212
ग़ज़ल
*****
उनकी नज़र ने मेरे सभी ग़म भुला दिए
पत्थर जिगर को प्यार का दरिया बना दिए//१
जैसे छुआ हो अब्र ने तपती ज़मीन को
छू कर वो मेरी रूह को शीतल बना दिए//२
ख़ुशबू उठी है क़ल्ब में सोंधी सी इश्क़ की
यादों ने उनके प्यार के छींटे गिरा दिए//३
हल्की सी बस ख़बर थी कि निकलेगा चाँद कल
स्वागत में उसके मैंने सितारे…
Added by क़मर जौनपुरी on December 15, 2018 at 11:00pm — 3 Comments
आज मन मुरझा गया है
मर गई सब याचनाएं
धूमिल हुई योजनाएं
एक बड़ा ठहराव जैसे ज़िन्दगी को खा गया है
आज मन मुरझा गया है
खुरदरी सी हर सतह है
आंसुओ से भी विरह है
वेदना का तेज़ झोंका मेरा पथ बिसरा गया है
आज मन मुरझा गया है
किसलिये बाकी ये जीवन
किसलिये सांसों का बंधन
भावना ,विश्वास पर जब घुप अंधेरा छा गया है
आज मन मुरझा गया है
मौलिक और अप्रकाशित
Added by मनोज अहसास on December 15, 2018 at 9:20pm — 5 Comments
दोहा संकलन :
नैन करें अठखेलियाँ, स्पर्श करें संवाद।
बाहुबंध में हो गए, अंतस के अनुवाद।१ ।
नैन शरों के घाव का ,अधर करें उपचार।
श्वास-श्वास में खो गयी,स्पर्श हुए साकार।२ ।
नैन विरह में प्रीत के ,बरसे सारी रात।
गूँगे स्वर करते रहे, मौन पलों से बात।३ ।
अद्भुत पहले प्यार का, होता है आनंद।
देह-देह में रागिनीं , श्वास -श्वास मकरंद।४ ।
केशों में जूही सजे , महके हरसिंगार।
नैनों की हाला करे,…
Added by Sushil Sarna on December 15, 2018 at 5:12pm — 10 Comments
बुलबुले सी होती जिंदगी
मिट्टी में मिल जानी है
जो भी करना आज ही कर ले
फिर लौट कर ना आनी है||
पंख लगा के अरमानों के
नभ में उड़ान तो भर
निर्भय होके बढ़ता चल
जो भी करना आज ही कर ले
कल की किसने जानी है||
कहीं किसी ने, बात बड़ी
इंतज़ार में तेरे, मौत खड़ी
इच्छा अपनी पूरी कर ले
ये, वक्त देने वाली है
बुलबुले सी होती जिंदगी
मिट्टी में मिल जानी है…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 14, 2018 at 3:30pm — 3 Comments
2212 1212 2212 12
अच्छे बुरे का बार है सबके ज़मीर पे
ख़ुद को जवाब देना है नफ़्से अख़ीर पे //१
रख ले मुझे तू चाहे जितना नोके तीर पे
मरने का ख़ौफ़ हो भी क्या दिल के असीर पे //२
कुछ रह्म तो दिखा मेरे शौक़े कसीर पे
पाबंदियाँ लगा न दीदे ना-गुज़ीर पे //३
यकता है इस जहान में क़ुदरत की हर मिसाल
तामीरे ख़ल्क़ मुन्हसिर है कब नज़ीर पे…
Added by राज़ नवादवी on December 14, 2018 at 4:00am — 10 Comments
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