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एक ग़ज़ल इस्लाह के लिए

221    2121     1221     212

माबूद कह दिया कभी मनहूस कह दिया

उसकी निगाहों ने सदा तस्लीम ही कहा

मुझको ये कैसा दिल दिया तूने मेरे खुदा

जिसको खुशी और गम का सलीका नहीं पता

ओझल नजर से हो गई तस्वीर आपकी

बस इतना होने के लिए क्या-क्या नहीं हुआ

जीवन के सारे हादसे आंखो में आ गए

मुरझा के एक फूल जो मिट्टी में जा गिरा

आया है अब की बार इक दूजे ही रंग में

तन्हाइयों से दर्द का रिश्ता नया…

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Added by मनोज अहसास on December 5, 2018 at 10:53pm — 4 Comments

ख़्याल ...

ख़्याल ...

मैं सो गयी
इस ख़्याल से
कि तेरा ख्याल भी
साथ मेरे सो जाएगा
मगर
तेरा ख़्याल
तमाम शब्
मेरी नींदों से
खिलवाड़ करता रहा
मैं उनींदी सी सोयी रही
उसके लम्स
मेरे ज़ह्न को
झिंझोड़ते रहे
अंततः
सौंप दिया स्वयं को
ख़्याल बनके
उस ख़्याल के हवाले

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 5, 2018 at 6:54pm — 3 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७८

१२१२ ११२२ १२१२ २२ 



कभी तो बख्त ये मुझपे भी मेहरबाँ होगा

मेरी ज़मीन के ऊपर भी आस्माँ होगा //१



गवाह भी नहीं उसका न कुछ निशाँ होगा

जो तेरे हुस्न के ख़ंजर से कुश्तगाँ होगा //२



हम एक गुल से परेशाँ हैं उसकी तो सोचो

वो शख्स जिसकी हिफ़ाज़त में गुलसिताँ होगा //३



ये ख़ल्क हुब्बे इशाअत का इक नतीजा है

गुमाँ नहीं था कि होना सुकूंसिताँ होगा…

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Added by राज़ नवादवी on December 5, 2018 at 3:27pm — 6 Comments

ग़ज़ल

221 2121 1221 212

अच्छी लगी है आपकी तिरछी नज़र मुझे ।।

समझा गयी जो प्यार का ज़ेरो ज़बर मुझे ।।1

आये थे आप क्यूँ भला महफ़िल में बेनक़ाब ।

तब से सुकूँ न मिल सका शामो सहर मुझे ।।2

नज़दीकियों के बीच बहुत दूरियां  मिलीं ।

करना पड़ा है उम्र भर लम्बा सफर मुझे ।।3…

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Added by Naveen Mani Tripathi on December 5, 2018 at 12:34am — 10 Comments

गज़ल -14( खुदा की सारी रहमत इश्क के आँचल में रहती है)

1222-1222-1222-1222



अगर दिल को अदब औ शायरी से प्यार हो जाए

तुम्हें भी इश्क की खुशबू का कुछ दीदार हो जाए //१

मचलते दिल की धड़कन में चुभे जब इश्क का कांटा ।

ख़ुदा से रूह का रिश्ता तभी बेदार हो जाये//२

खुदा की सारी रहमत इश्क़ के आँचल में रहती है

छुपा लो सर को आँचल में हसीं संसार हो जाए//३

फ़ना हो जाए दीवाना जुनूने इश्क़ की ख़ातिर

खुशी से चूमे सूली को ख़ुदा का यार हो जाए//४

ये दिल बेजान वीना की तरह खामोश रहता…

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Added by क़मर जौनपुरी on December 5, 2018 at 12:23am — 7 Comments

हौं पंडितन केर पछलगा -उपन्यास का एक अंश

 जायस के ऊसर में खानकाह बने कई माह बीत चुके थे I किछौछा से आये हजरत खवाजा मखदूम जहाँगीर किसी परिचय के मोहताज नही थे I बहुत जल्द ही उनके पास मुरीदों और मन्नतियों की भीड़ आने लगी i मुहम्मद यद्यपि छोटा था पर वह अक्सर वहाँ जाने लगा i वह बुजुर्ग पीर के छोटे-मोटे काम कर देता I पीर तो उसका भविष्य जान ही चुके थे I  वह भी उसे अपने पोते की तरह मानने लगे I

 एक दिन पीर सफ़ेद भेड़ की उन का लम्बा चोगा पहने अपनी पसंदीदा खानकाह में बैठे थे I उनके चेले और कुछ मजहबपरस्त लोग उन्हें घेरे हुए थे…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 4, 2018 at 8:57pm — 5 Comments

ग़ज़ल - 01

२१२२ २१२२ २१२२ २१२२

दुश्मनी को भूल जाऊँ दोस्ती की बात तो हो

नफरतों को छोड़ भी दूँ इश्क़ के हालात तो हो।…

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Added by Ashish Kumar on December 4, 2018 at 1:30pm — 7 Comments

ओढ़े बुढ़ापा  जी  रहा  बचपन कोई न हो - ( गजल)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१ २१२१/२२२/१२१२



घर में किसी के और अब अनबन कोई न हो

सूना  पड़ा  हमेशा   ही  आगन  कोई   न  हो।१।



कुछ  तो  सहारा  दो  उसे  हँसने  जरा लगे

होकर निराश  घुट  रहा  जीवन  कोई न हो।२।



झुकना पड़े तनिक तो खुद झुकना सदा ही तुम

यारो  मिलन  की  राह  में  उलझन  कोई न हो।३।



आओ बनायें आज फिर ऐसा समाज हम

ओढ़े बुढ़ापा  जी  रहा  बचपन कोई न हो।४।



जल जाएँ…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 4, 2018 at 12:22pm — 14 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
लंगडा मज़े में है (हास्य व्यंग ग़ज़ल 'राज')

राजा ये सोचता है कि प्यादा मज़े में है 

प्यादा ये सोचता है कि राजा मज़े में है



लंगड़ा ये सोचता है कि अंधा मज़े  में है 

अंधा ये सोचता है कि लंगड़ा मज़े में है



हर नाज़ नखरे दिल के उठाता है  ज़िस्म ये 

पर दिल ये सोचता है कि गुर्दा मज़े में है 



गुल के बिना वुजूद तो इसका भी कुछ नहीं 

पर सोचता गुलाब कि काँटा मज़े में है 



उस वक्त  चढ़ गई थी  हवाओं…

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Added by rajesh kumari on December 4, 2018 at 11:15am — 12 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७७

2122 2122 2122 212



बाग़पैरा क्या करे गुल ही न माने बात जब

शम्स का रुत्बा नहीं कुछ, हो गई हो रात जब //१



बाँध देना गाँठ में तुम गाँव की आबोहवा

शह्र के नक्शे क़दम पर चल पड़ें देहात जब //२



दोस्त मंसूबा बनाऊं मैं भी तुझसे वस्ल का

तोड़ दें तेरी हया को मेरे इक़दमात जब //३



इक किरन सी फूटने को आ गई बामे उफ़ुक़

रौशनी की जुस्तजू में खो गया…

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Added by राज़ नवादवी on December 3, 2018 at 7:30pm — 7 Comments

३ क्षणिकाएँ ...

३ क्षणिकाएँ ...

छोटी सी बात

साँय-साँय करती रात

स्मृति पटल को दे गई

अमर

स्पर्श

सौग़ात

........................

व्योम

शून्यता के पर्याय के अतिरिक्त

आश्रय स्थल भी है

उन स्मृतियों का

जो जीती हैं

मिट कर भी

अंत से अनंत तक

.....................................

भला घर

खंडहर में

तब्दील कब होते हैं

जब तक

रस मधुरस में एक…
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Added by Sushil Sarna on December 3, 2018 at 7:00pm — 8 Comments

'नव जागृति' (लघुकथा)

ट्रेन की बोगी में वह बालक न तो ख़ुश बैठा हुआ था और न ही दुखी। सजे-धजे किन्नरों से भरी बोगी में, पैसे गिनते हुए एक बुज़ुर्ग किन्नर को वह देख ही रहा था कि एक फेरी वाला मूंगफली बेचता हुआ वहां आया और दो-चार सवारियों को मूंगफलियां बेच कर,पैसे गिन कर उन्हें बाक़ी पैसे लौटाने लगा।

"अरे देखो, यह लंगड़ा और दोनों आंखों से अंधा है, फ़िर भी पैसों का सही हिसाब कर रहा है !" वह बालक बगल में बैठे उस किन्नर से बोल पड़ा, जो उसे समझा-बुझाकर उसके घर से अपने दल में शामिल करने के लिए लाया था उसके…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 3, 2018 at 4:00pm — 5 Comments

एक ग़ज़ल इस्लाह के लिए मनोज अहसास

एक ताज़ा ग़ज़ल

वो खुद ही मजबूर बहुत हैं उनको हाल बताना क्या

जिनके दिल में प्यार नहीं है उन पर प्यार लुटाना क्या

हम तो तेरे नाम के जोगी अपना यार ठिकाना क्या

बिरहा में जलना है हमको महफिल क्या वीराना क्या

टूट गया है उस से नाता जो दुनिया का मालिक है

अब सारी दुनिया को अपने दिल के जख्म दिखाना क्या

सारे जीवन के पछतावे सांसो को झुलसाते हैं

अपनी किस्मत में लिक्खा है तिल तिल कर मिट जाना क्या

जीवन के…

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Added by मनोज अहसास on December 2, 2018 at 11:30pm — 8 Comments

ग़ज़ल

12221222 122



वो भौरे पास हैं जब से कली के ।

हैं बिखरे रंग तब से पाँखुरी के ।।

सुना है चांद आएगा जमी पर ।

बढ़े हैं हौसले अब चांदनी के ।।

जरा कमसिन अदाएं देखिए तो ।

अजब अंदाज़ उनकी बेख़ुदी के ।।

वो बेशक पास मेरे आ रही है ।

लगे हैं स्वर सही कुछ बाँसुरी के ।।

मुहब्बत हो गयी उनसे जो मेरी ।

हुए मशहूर किस्से आशिकी के ।।

तुम्हारा खत मिला जो…

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Added by Naveen Mani Tripathi on December 2, 2018 at 10:30am — 6 Comments

गज़ल -13( फिर भी नादान कलेजे में ज़हर रखता है)

2122 1122 1122 22/112

छोड़ जाएगा यहीं सब ये ख़बर रखता है

फिर भी दौलत पे वो मर मर के नज़र रखता है//१

ज़िन्दगी प्यार के अमरित से ही होती है रवां

फिर भी नादान कलेजे में ज़हर रखता है //२

कितना मज़बूर है वो रोड पे भूखा बच्चा

एक रोटी के लिए कदमों में सर रखता है//३

आदमी कितना अकेला है भरी दुनिया में

कहने को भीड़ भरे शह्र में घर रखता है//४

पहले शैतान से डरने की ख़बर आती थी

आज इंसान ही इंसान से डर रखता…

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Added by क़मर जौनपुरी on December 2, 2018 at 8:17am — 7 Comments

गज़ल -12( जब मुल्क़ में नफ़रत का ये बाजार नहीं था)

221--1221--1221--122

जब मुल्क़ में नफऱत का ये बाज़ार नहीं था

हर शख़्स लहू पीने को तैयार नहीं था //१

अब बाढ़ सी आई है शबे ग़म की नदी में

जब तुम न थे दिल में तो ये बेज़ार नहीं था//२

जो देश की सरहद पे सदा ख़ून बहाए

क्या देेेश की मिट्टी से उन्हें प्यार नहीं था//३

मिट जाएं सभी जंग में हिन्दू व मुसलमाँ

ऐसा तो मेरे हिन्द का त्यौहार नहीं था//४

जब मुल्क़ परेशां था फिरंगी के सितम से

मिल जुुल के लड़े मुल्क ये लाचार नहीं…

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Added by क़मर जौनपुरी on December 2, 2018 at 7:30am — 5 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७६

2121 2121 2121 212



उड़ रहे थे पैरों से ग़ुबार, देखते रहे

वो न लौटे जबकि हम हज़ार देखते रहे //१



ताब उसकी, बू भी उसकी, रंग भी था होशकुन

गुल को कितनी हसरतों से ख़ार देखते रहे //२



हम तो राह देखते थे उनके आने की मगर

वो हमारा सब्रे इन्तेज़ार देखते रहे //३

तोड़ते थे बेदिली से वो मकाने इश्क़, हम 

टूटते मकाँ का इंतेशार देखते रहे //४ …



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Added by राज़ नवादवी on December 2, 2018 at 3:00am — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मुझको मंजूर क़यामत से महब्बत होना (ग़ज़ल "राज")

गर है अंजाम महब्बत का क़यामत होना 

मुझको मंजूर क़यामत से महब्बत होना 



बे-मआनी नहीं ये सब है  महब्ब्त की  ख़ुराक

दरमियाँ  उसके गिले  शिकवे  शिकायत होना



आस्माँ  की ही अना का है नतीज़ा यारो  

उसके ही चाँद सितारों में बगावत होना



बेच दी है मेरे गुलशन की महक गुलचीं ने  

इसको कहते हैं अमानत में ख़यानत होना



ये ही करता है मुकम्मल मेरे…

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Added by rajesh kumari on December 1, 2018 at 4:00pm — 13 Comments

ग़ज़ल-खुदकुशी बेहतर है ऐ दिल बेवफ़ा के साथ से

2122 2122 2122 212

खुदकुशी बेहतर है ऐ दिल बेवफ़ा के साथ से

चाहो मत बढकर किसी को चाह की औकात से।

जिसकी ख़ातिर छोड़ दी दुनिया की सारी दौलतें

रख न पाया मन भी मेरा वो दो मीठी बात से ।

दे रहा है तुहमतें उल्टा मुझे ही बेवफ़ा 

बेहया से क्या कहूँ मैं, क्या कहूँ इस जात से।

मैं समझता था मुहब्बत की सभी को हैं तलब

उसको तो मतलब है लेकिन और कोई बात से।

हैं मुसलसल शिद्दतें कुछ यूँ जुदाई की…

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Added by Rahul Dangi Panchal on December 1, 2018 at 3:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल

2122 2122 2122 2122



हैं जो अफसानें पुराने, सब भुलाना चाहता हूँ

इस धरा को स्वर्ग-जैसा ही बनाना चाहता हूँ

देश में अपने सदा सद्भाव फैलाएँ सभी जन

अब सभी दीवार नफरत की गिराना चाहता हूँ

दिल सभी का हो सदा निर्मल नदी-जैसा धरा पर

अब परस्पर प्यार करना ही सिखाना चाहता हूँ

धन कमाऊँगा मगर धोखा न सीखूँगा किसी से

हर कदम अपना पसीना ही बहाना चाहता हूँ

है ये तेरा, है ये मेरा की लड़ाई खत्म हो अब

और खुशियाँ संग सबके…

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Added by Dayaram Methani on December 1, 2018 at 12:30pm — 6 Comments

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