For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,998)

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ८६

मिर्ज़ा ग़ालिब की ज़मीन पे लिखी ग़ज़ल 

 

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२



न हो जब दिल में कोई ग़म तो फिर लब पे फुगाँ क्यों हो

जो चलता बिन कहे ही काम तो मुँह में ज़बाँ क्यों हो //१



जहाँ से लाख तू रह ले निगाहे नाज़ परदे में

तसव्वुर में तुझे देखूँ तो चिलमन दरमियाँ क्यों हो //२




यही इक बात पूछेंगे तुझे सब मेरे मरने पे

कि तेरे देख भर लेने से कोई कुश्तगाँ क्यों हो…

Continue

Added by राज़ नवादवी on December 21, 2018 at 11:30am — 19 Comments

रगों में बहता खून  (लघुकथा )

 कैदी ! तुझसे कोई  मिलने आया है I’ –जेल के सिपाही ने सूचना दी  I अगले ही पल काले कोट में एक वकील प्रकट हुआ I

‘आपकी पत्नी ने मुझे आपका वकील एपॉइंट किया है I आप मुझे सच-सच बताइए कि आपने मैरिज-कोर्ट में अपने बेटे की हत्या क्यों की ? क्या आपकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी ?’

     कैदी कुछ नहीं बोला I उसने मुँह फेर लिया I वकील असमंजस में पड़ गया I कुछ देर चुप रहकर वह बोला –‘ देखिये अगर आप ही सहयोग नहीं करेंगे तो मैं आपकी मदद कैसे कर पाऊंगा ?’

‘वकील साहब, आप अपना समय बर्बाद कर रहे…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 20, 2018 at 6:24pm — 4 Comments

दिले बेक़रार को थोड़ा करार मिल जाए

दिले बेक़रार को थोड़ा करार मिल जाए,

गुलशने वीरां को राहे बहार मिल जाए।

हट जाए ये फ़सुर्दगी मेरे दीदा-ए-मजहूर से,…

Continue

Added by Ashish Kumar on December 20, 2018 at 5:14pm — 3 Comments

कुण्डलियाँ

1

माना होता है समय, भाई रे बलवान

लेकिन उसको साध कर, बनते कई महान

बनते कई महान, विचारें इसकी महता

यह नदिया की धार, न जीवन उनका बहता

सतविंदर कह भाग्य, समय को ही क्यों जाना

नहीं सही भगवान, तुल्य यदि इसको माना।

2

होते तीन सही नकद, तेरह नहीं उधार

लेकिन साच्चा हो हृदय, पक्का हो व्यवहार

पक्का हो व्यवहार, तभी है दुनिया दारी

कभी पड़े जब भीड़, चले है तभी उधारी

सतविंदर छल पाल, व्यक्ति रिश्तों को खोते

उनका चलता कार्य, खरे जो मन के…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 19, 2018 at 3:30pm — 4 Comments

गज़ल -16 ( सिर्फ़ माँ की दुआ चाहिए)

बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम

फ़ाइलुन, फ़ाइलुन, फ़ाइलुन

पूछते हो जो क्या चाहिए

सिर्फ माँ की दुआ चाहिए//१

ख़्वाब मुरझा गए हैं अगर

ख़्वाब की ही दवा चाहिए//२

ज़िन्दगी अब मुकम्मल हुई

तुम मिले और क्या चाहिए//३

आ गए हैं सितारे मगर

चाँद का आसरा चाहिए//४

क़ैद में ही रहीं तितलियां

अब उन्हें भी हवा चाहिए//५

शाइरी का गुमाँ मत करो

खूब ही तज्रिबा चाहिए//६

ज़ुल्म क्यों ख़त्म…

Continue

Added by क़मर जौनपुरी on December 19, 2018 at 11:30am — 5 Comments

ग़ज़ल - ०२

२१२  २१२  २१२  २१२

क्या पता चाँद रोशन रहे ना रहे

कल ये’ चूड़ी ये’ कंगन रहे ना रहे।

 …

Continue

Added by Ashish Kumar on December 18, 2018 at 5:30pm — 4 Comments

ग़ज़ल- बलराम धाकड़ (जीवन सरोज खिल के भी सुरभित नहीं हुआ।)

221, 2121, 1221, 212

आरोप ये गलत है कि पुष्पित नहीं हुआ।

जीवन सरोज खिल के हाँ सुरभित नहीं हुआ।

छल, साम, दाम, दण्ड, कुटिलता चरम पे थी,

ऐसे ही कर्ण रण में पराजित नहीं हुआ।

कैसा ये इन्क़लाब है, बदलाव कुछ नहीं,

अम्बर अभी तो रक्त से रंजित नहीं हुआ।

गिरकर संभल रहे हैं, गिरे जितनी बार हम, 

साहस हमारा आज भी खण्डित नहीं…

Continue

Added by Balram Dhakar on December 18, 2018 at 4:00pm — 14 Comments

गज़ल नफरत

गज़ल
फेलुन x 4 (16 मात्रा)


नफरत की आग लगाना है
मजहब तो एक बहाना है

खूब लाभ का है ये धंधा
बस इक अफवाह उड़ाना है

हर तरफ खून की है बातें
लाशों का ही नजराना है

धर्म नाम के है दीवाने
जुनून बस खून बहाना है

जला रहे जो अपना ही घर
दर्पण उनको दिखलाना है

शुभ आस करो कुछ ‘‘मेठानी’’
अब नई सुबह को लाना है।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
- दयाराम मेठानी

Added by Dayaram Methani on December 18, 2018 at 1:51pm — 5 Comments

जिनके दिल मे कभी मेरा घर था

2122 1212 22

बाद मुद्दत खुला मुक़द्दर था ।

मेरी महफ़िल में चाँद शब भर था ।।

देख दरिया के वस्ल की चाहत ।।

कितना प्यासा कोई समंदर था ।।

जीत कर ले गया जो मेरा दिल।

हौसला वह कहाँ से कमतर था ।।

दर्द को जब छुपा लिया मैने ।

कितना हैराँ मेरा सितमगर था ।।

अश्क़ आंखों में देखकर उनके ।

सूना सूना सा आज मंजर था ।।

जंग इंसाफ के लिए थी वो ।

कब…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on December 18, 2018 at 1:00pm — 7 Comments

कौन कितना है मदारी जानते हो

2122 2122 2122



खेल क्या तुम भी सियासी जानते हो ।

कौन कितना है मदारी जानते हो ।।

फैसला ही जब पलट कर चल दिये तुम।।

फिर मिली कैसी निशानी जानते हो।।



हो रहा  है देश का सौदा कहीं  पर ।

खा  रहे  कितने  दलाली  जानते  हो।।

मसअले पर था ज़रूरी मशविरा भी ।

तुम  हमारी  शादमानी  जानते हो।।…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on December 17, 2018 at 10:07pm — 8 Comments

ग़ज़ल-बेहयाई दफ़्न कर देगी किसी की शायरी।

2122 2122 2122 212



काँच के टुकडों में दे दे ज्यों कोई बच्चा मणी

आधुनिकता में कहीं खोया तो है कुछ कीमती।

हुस्न की हर सू नुमाइश़ चल रही है जिस तरह

बेहयाई दफ़्न कर देगी किसी की शायरी।

ताश, कन्चें, गुड्डा, गुड़िया छीन के घर मिट्टी के

लाद दी हैं मासुमों पर रद्दियों की टोकरी।

अब कहाँ हैं गाँव में वें पेड़ मीठे आम के

वे बया के घोसलें, वे जुगनुओं की रौशनी।

ले गयी सारी हया पश्चिम से आती ये हवा…

Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on December 17, 2018 at 9:00pm — 6 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ८५

२२१२ १२१२ २२१२ १२



हस्ती का मरहला सभी इक इक गुज़र गया

मैं भी तमाशा बीन था, अपने ही घर गया //१



इश्वागरी के खेल से मैं यूँ अफ़र गया

सारा जुनूने आशिक़ी सर से उतर गया //२



खोया न मैं हवास को आई जो नफ़्से मौत

ज़िंदा हुआ मशामे जाँ, मैं जबकि मर गया //३



हैराँ हूँ अपने शौक़ की तब्दीलियों पे मैं

नश्शा था तेरे हुस्न का, कैसे उतर गया //४…

Continue

Added by राज़ नवादवी on December 17, 2018 at 7:41pm — 8 Comments

शरद ऋतू

मैं इठलाती,

मैं बलखाती,

मंद चाल से,

बढ़ती हूँ

शरद ऋतु जब,

वर्ष में आये

अपना जाल,

बिछाती हूँ||

 

कहीं थपेड़े,

पवन दिलाती

कहीं,

बर्फ पिघलाती हूँ

कहीं,

तरसते धूप

को सब जन

कहीं कपकपी,

खूब दिलाती हूँ

वर्षा ऋतू,

के बाद में आयी,

शरद ऋतू,

कहलाती हूँ||

 

कोई निकाले,

कम्बल अपने,

कोई,

रजाई खोज रहा

कोई जला…

Continue

Added by PHOOL SINGH on December 17, 2018 at 3:00pm — 8 Comments

हर ख़ुशी का इक ज़रीआ चाहिये- ग़ज़ल

2122 2122 212

हर ख़ुशी का इक ज़रीआ चाहिए

ठीक हो वह ध्यान पूरा चाहिए।

दर्द को भी झेलता है खेल में

दिल भी होना एक बच्चा चाहिए।

जान लेना राह को हाँ ठीक है

पर इरादा भी तो पक्का चाहिये।

टूट कर शीशा  जुड़ा है क्या कभी

टूट जाए तो न रोना चाहिए।

झूठ की बुनियाद पर है जो टिका

वो महल हमको तो कचरा चाहिए।

 विष वमन कर जो हवा दूषित करे

उस जुबाँ पर ठोस ताला चाहिए।

मौलिक एवं…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 17, 2018 at 6:30am — 10 Comments

ग़ज़ल -प्यार के बिन प्यार अपने आप घटता सा गया।

2122 2122 2122 212



रोज के झगड़े, कलह से दिल अब उकता सा गया।

प्यार के बिन प्यार अपने आप घटता सा गया।



दफ़्न कर दी हर तमन्ना, हर दफ़ा,जब भी उठी

बारहा इस हादसे में रब्त पिसता सा गया।



रोज ही झगड़े किये, रोज ही तौब़ा किया

रफ़्ता रफ़्ता हमसे वो ऐसे बिछड़ता सा गया।

चाहकर भी कुछ न कर पाये अना के सामने

हाथ से दोनों ही के रिश्ता फिसलता सा गया।



छोडकर टेशन सनम को लब तो मुस्काते रहें

प्यार का मारा हमारा दिल तड़पता…

Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on December 16, 2018 at 8:30pm — 4 Comments

गज़ल -16 ( पत्थर जिगर को प्यार का दरिया बना दिए)

बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊलु, फ़ाइलातु, मुफ़ाईलु, फ़ाइलुन

221, 2121, 1221, 212

ग़ज़ल

*****

उनकी नज़र ने मेरे सभी ग़म भुला दिए

पत्थर जिगर को प्यार का दरिया बना दिए//१



जैसे छुआ हो अब्र ने तपती ज़मीन को

छू कर वो मेरी रूह को शीतल बना दिए//२

ख़ुशबू उठी है क़ल्ब में सोंधी सी इश्क़ की

यादों ने उनके प्यार के छींटे गिरा दिए//३

हल्की सी बस ख़बर थी कि निकलेगा चाँद कल

स्वागत में उसके मैंने सितारे…

Continue

Added by क़मर जौनपुरी on December 15, 2018 at 11:00pm — 3 Comments

एक गीत मार्गदर्शन के निवेदन सहित: मनोज अहसास

आज मन मुरझा गया है

मर गई सब याचनाएं
धूमिल हुई योजनाएं
एक बड़ा ठहराव जैसे ज़िन्दगी को खा गया है
आज मन मुरझा गया है

खुरदरी सी हर सतह है
आंसुओ से भी विरह है
वेदना का तेज़ झोंका मेरा पथ बिसरा गया है
आज मन मुरझा गया है

किसलिये बाकी ये जीवन
किसलिये सांसों का बंधन
भावना ,विश्वास पर जब घुप अंधेरा छा गया है
आज मन मुरझा गया है

मौलिक और अप्रकाशित

Added by मनोज अहसास on December 15, 2018 at 9:20pm — 5 Comments

दोहा संकलन :

दोहा संकलन :

नैन करें अठखेलियाँ, स्पर्श करें संवाद।

बाहुबंध में हो गए, अंतस के अनुवाद।१ ।

नैन शरों के घाव का ,अधर करें उपचार।

श्वास-श्वास में खो गयी,स्पर्श हुए साकार।२ ।

नैन विरह में प्रीत के ,बरसे सारी रात।

गूँगे स्वर करते रहे, मौन पलों से बात।३ ।

अद्भुत पहले प्यार का, होता है आनंद।

देह-देह में रागिनीं , श्वास -श्वास मकरंद।४ ।

केशों में जूही सजे , महके हरसिंगार।

नैनों की हाला करे,…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 15, 2018 at 5:12pm — 10 Comments

फिर लौट कर ना आनी है

बुलबुले सी होती जिंदगी

मिट्टी में मिल जानी है

जो भी करना आज ही कर ले

फिर लौट कर ना आनी है||

 

पंख लगा के अरमानों के

नभ में उड़ान तो भर

निर्भय होके बढ़ता चल

जो भी करना आज ही कर ले

कल की किसने जानी है||

 

कहीं किसी ने, बात बड़ी

इंतज़ार में तेरे, मौत खड़ी

इच्छा अपनी पूरी कर ले

ये, वक्त देने वाली है

बुलबुले सी होती जिंदगी

मिट्टी में मिल जानी है…

Continue

Added by PHOOL SINGH on December 14, 2018 at 3:30pm — 3 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ८४

2212 1212 2212 12



अच्छे बुरे का बार है सबके ज़मीर पे

ख़ुद को जवाब देना है नफ़्से अख़ीर पे //१



रख ले मुझे तू चाहे जितना नोके तीर पे

मरने का ख़ौफ़ हो भी क्या दिल के असीर पे //२



कुछ रह्म तो दिखा मेरे शौक़े कसीर पे

पाबंदियाँ लगा न दीदे ना-गुज़ीर पे //३



यकता है इस जहान में क़ुदरत की हर मिसाल

तामीरे ख़ल्क़ मुन्हसिर है कब नज़ीर पे…

Continue

Added by राज़ नवादवी on December 14, 2018 at 4:00am — 10 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
3 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"बदलते लोग  - लघुकथा -  घासी राम गाँव से दस साल की उम्र में  शहर अपने चाचा के पास…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"श्रवण भये चंगाराम? (लघुकथा): गंगाराम कुछ दिन से चिंतित नज़र आ रहे थे। तोताराम उनके आसपास मंडराता…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई जैफ जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद।"
16 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ेफ जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
20 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"//जिस्म जलने पर राख रह जाती है// शुक्रिया अमित जी, मुझे ये जानकारी नहीं थी। "
20 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी, आपकी टिप्पणी से सीखने को मिला। इसके लिए हार्दिक आभार। भविष्य में भी मार्ग दर्शन…"
20 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"शुक्रिया ज़ैफ़ जी, टिप्पणी में गिरह का शे'र भी डाल देंगे तो उम्मीद करता हूँ कि ग़ज़ल मान्य हो…"
20 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। आ. अमित जी की इस्लाह महत्वपूर्ण है।"
20 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. अमित, ग़ज़ल पर आपकी बेहतरीन इस्लाह व हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
20 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service