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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ८३

२१२२ २१२२ २१२२ २१२



दिल मेरा ख़ाली नहीं ज्यों कस्रते आज़ार से

है फुगाँ मजबूर अपनी फ़ितरते इसरार से //१



लाख समझाऊँ तेरी तब-ए-सितम को प्यार से

तू मुकर जाता है अपने वादा-ए-इक़रार से //२



वस्ल की तश्नालबी बढ़ जाती है दीदार से

कम नहीं फिर दिल ये चाहे सुहबते बिस्यार से //३



आ गए जब तंग हम हर वक़्त की गुफ़्तार से

सीख ली हमने ज़ुबाने ख़ामुशी…

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Added by राज़ नवादवी on December 14, 2018 at 3:51am — 8 Comments

ग़ज़ल: आइना बन सच सदा सबको दिखाता कौन है

2122 2122 2122 212



आइना बन सच सदा सबको दिखाता कौन है

है सभी में दाग दुनिया को बताता कौन है

काम मजहब का हुआ दंगे कराना आजकल

आग दंगों की वतन में अब बुझाता कौन है

आंधियाँ तूफान लाते है तबाही हर जगह

दीप अंधेरी डगर में अब जलाता कौन है

देश में शोषण किसानों का हुआ अब तक बहुत

दाल रोटी दो समय उनको दिलाता कौन है



बात मेठानी सुनो सबकी सदा तुम ध्यान से

भय हमारी जिन्दगी से अब भगाता कौन है

( मौलिक…

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Added by Dayaram Methani on December 12, 2018 at 10:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल- बलराम धाकड़ (चलो धुंआ तो उठा, इस गरीबख़ाने से)

1212,1122,1212,22/112

तमाम ख़्वाब जलाने से, दिल जलाने से।

चलो धुंआ तो उठा, इस गरीबख़ाने से।

हमें अदा न करो हक़, हिसाब ही दे दो,

नदी खड़ी हुई है दूर क्यों मुहाने से।

चराग़ ही के तले क्यों अंधेरा होता है,

ये राज़ खुल न सकेगा कभी ज़माने से।

वो सूखती हुई बेलों को सींचकर देखें,

ख़ुदा मिला है किसे घंटियाँ बजाने से।…

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Added by Balram Dhakar on December 12, 2018 at 9:55pm — 14 Comments

दूरदृष्टि - लघुकथा

'दूरदृष्टि'

"बच्चा ऑपरेशन से ही होगा, और कोई ऑप्शन नहीं है। यही कहा था न आपने! क्या सिर्फ कुछ ज्यादा रुपयों के चक्कर में?" उसकी आवाज में झलकता आवेश सहज ही महसूस हो रहा था। बीती रात ही डॉ. कामना ने नर्सिंग होम में भर्ती हुई कावेरी को उसकी नाजुक हालत के देखते ऑपरेशन की सलाह दी थी। लेकिन किसी आपात स्थिति के चलते उसे ख़ुद अपना चार्ज डॉ.अनु को देकर जाना पड़ा था। और अनु के चार्ज में बिना ऑपरेशन के ही सामान्य डिलीवरी का होना ही उसके आवेश में आने की के लिये पर्याप्त था। "देखिये, ये कोई बड़ी बात…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on December 12, 2018 at 9:29pm — 4 Comments

ग़ज़ल

1212 1122 1212 22

हर एक शख्स को मतलब है बस ख़ज़ाने से ।

गिला करूँ मैं कहाँ तक यहां ज़माने से ।।

कलेजा अम्नो सुकूँ का निकाल लेंगे वो ।।

उन्हें है वक्त कहाँ बस्तियां जलाने से ।।

न पूछ हमसे अभी जिंदगी के अफसाने ।

कटी है उम्र यहां सिसकियां दबाने से ।।

मैं अपने दर्द को बेशक़ छुपा के…

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Added by Naveen Mani Tripathi on December 12, 2018 at 9:08pm — 4 Comments

खामियाजा ( लघु कथा )

‘बाबू जी, ग्यारह महीने हो गए, मगर अब तक मुझे  पेंशन, बीमा, ग्रेच्युटी, अवकाश नकदीकरण कुछ भी नहीं मिला I

‘मिलेगा कैसे अभी स्वीकृत ही कहाँ हुआ ?’

‘पर काहे नहीं हुआ ? हमने तो रिटायर होने के छः माह पहले ही सारे प्रपत्र भर कर दे दिए थे I’

‘ज्यादा भोले मत बनो, तुमने भी साठ साल की उम्र तक नौकरी की है I तुम्हें  नहीं पता सरकारी काम–काज कैसे होता है ?’

‘पता है बाबू जी, इसीलिये मैंने आपको पैसे पहले ही दे दिए थे I ‘

‘हां, तो तुम्हे फंड तो मिल गया न…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 12, 2018 at 8:55pm — 7 Comments

देर तक ....

देर तक ....

तुन्द हवाएँ

करती रही खिलवाड़

हर पात से

हर शाख से

देर तक

रोती रही

बेबस चिड़िया

टूटे अण्डों के पास

देर तक

हो गई शान्त

हवाएँ

प्रकृति से

अपना खिलवाड़ करके

हो गया शान्त

रुदन

चिड़िया का

कुछ न समझ सकी

खेल विधाता का

सृजन से पूर्व संहार

क्या यही है

संसार

बस देखती रही

बिखरे तिनके

टूटे अंडे

स्वप्न के अवशेष

देर तक

सुशील…

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Added by Sushil Sarna on December 12, 2018 at 7:30pm — 6 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ८२

२१२२ २१२२ २१२२ २१२



जह्र बनके काम करती है दवाई देख ली

अच्छे अच्छों की भी हमने रहनुमाई देख ली //१



पीठ पीछे मर्तबा ए बे अदाई देख ली

तेरी भी मेहमाँ नवाज़ी हमने, भाई देख ली //२



आरज़ी थी दो दिनों की जाँ फ़िज़ाई देख ली

इश्क़ की ताबे जुनूने इब्तिदाई देख ली //३



दिन को सोना और शब की रत-जगाई देख ली

मय की जो भी कैफ़ियत थी इंतिहाई देख ली…

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Added by राज़ नवादवी on December 12, 2018 at 6:38pm — 2 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ८१

2122 1122 1122 22/ 112



बज़्मे अग्यार में नासूरे नज़र होने तक

क्यों रुलाता है मुझे दीदा-ए-तर होने तक //१



कितने मुत्ज़ाद हैं आमाल उसके कौलों से

टुकड़े करता है मेरा लख़्ते जिगर होने तक //२



गिर के आमाल की मिट्टी में ये जाना मैंने

तुख़्म को रोज़ ही मरना है शज़र होने तक //३



मौत का ज़ीस्त में मतलब है अबस हो जाना

ज़िंदा हूँ हालते…

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Added by राज़ नवादवी on December 12, 2018 at 2:30pm — 13 Comments

घुटन के इन दयारों में तनिक परिहास बढ़ जाये - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

छलकते देख कर आँसू ग़मों की प्यास बढ़ जाये

कभी ऐसा भी मौसम हो चुभन की आस बढ़ जाये।१।



लगे ठोकर किसी को भी न चाहे घाव खुद को हो

मगर देखें तो दिल में दर्द का अहसास बढ़ जाये।२।



भला कब चाहते  हैं  ये  जिन्हें  हम  शूल कहते हैं

मिटे पतझड़ चमन का साथ ही मधुमास बढ़ जाये।३।



लगाई नफरतों  ने  है  यहाँ  हर सिम्त ही बंदिश

घुटन के इन दयारों में तनिक परिहास बढ़ जाये।४।



रखो ये ज्ञान भी यारो जो चाहत घुड़सवारी की

नहीं घोड़ा सँभलता है अगर जो…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 12, 2018 at 12:36pm — 6 Comments

ग़ज़ल: फिर ज़िंदगी से अपनी पहचान हो न जाए

फिर ज़िंदगी से अपनी पहचान हो न जाए

साँसों का आना जाना आसान हो न जाए



अपनी शनावरी पे इतरा न ऐ शनावर

शोहरत का ये समुंदर दालान हो न जाए



इस बार भी मैं दफ़्तर ताख़ीर से गया तो

डर है कि नौकरी का नुक़सान हो न जाए



मज़लूम पे सितम के तुम ती मत चलाओ

अशकों से रेज़ा रेज़ा चट्टान हो न जाए



अपना समझ के जिस की देहलीज़ चढ़ रहा हूँ

यारों कहीं वो हम से अंजान हो न जाए



"सुरख़ाब"उड़ न जाएें यादों के ये कबूतर

दिल का…

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Added by Surkhab Bashar on December 12, 2018 at 11:00am — 1 Comment

"किसी के साथ भी धोखा नहीं करतें"

 1222 1222 1222


सुकूँ वो उम्र भर पाया नहीं करतें।
बड़ों की बात जो माना नहीं करतें।।

बुजुर्गों की नसीहत ये पुरानी है।
बिना सोचे कभी बोला नहीं करतें।।

सफल होते हमेशा लोग वो ही जो।
किसी की बात सुन बहका नहीं करतें।।

जिन्हें आदत हमेशा जीतने की हो।
वो मैदां छोड़ कर भागा नहीं करतें।।

हमेशा से रहा इक ही उसूल अपना।
किसी के साथ भी धोखा नहीं करतें।।

मौलिक व अप्रकाशित

Added by surender insan on December 11, 2018 at 4:30pm — 14 Comments

जाम से मुक्त, सारे शहर को कर दूँ

अवाक् रह गया, देख जाम को

खड़ा खड़ा मैं सोच रहा

जाम से मुक्त, सारे शहर को कर दूँ

ऐसा उपाय कोई खोज रहा ||

  

बस स्टैंड और प्लेटफॉर्म पर

जीवन, लोगों का बीत रहा

देश के सारे एयरपोर्ट पर

ना, दिन रात का भेद रहा

भगदड़ सी इस जिंदगी में

जैसे, इंसान खो सा गया

खड़ा खड़ा मैं सोच रहा

आश्चर्य से सब देख रहा ||

 

 बस भीड़ से भरी पड़ी

रेलें भी सारी लधी पड़ी

मोटरबाइक की झड़ी लगी

और कार रोड़ पर पार्क…

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Added by PHOOL SINGH on December 11, 2018 at 4:00pm — 3 Comments

ग़ज़ल (प्यार का हर दस्तूर निभाना पड़ता है)

ग़ज़ल (प्यार का हर दस्तूर निभाना पड़ता है)

(फ्अल_फ ऊलन _फ्अल _फ ऊलन _फ़ेलुन _फा)

प्यार का हर दस्तूर निभाना पड़ता है l

यार का हर ग़म हँस के उठाना पड़ता है l

बाज़ कहाँ वो यूँ आता है महफ़िल में

शीशा नुक्ता चीं को दिखाना पड़ता है l

यूँ ही मुसाफ़िर मिटती नहीं है तारीकी

रस्ते में इक दीप जलाना पड़ता है l

उलफत की मंज़िल आसान नहीं इतनी

धोका हर इक मोड़ पे खाना पड़ता है l

रह पाता है कोई सदा कब दुनिया…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 11, 2018 at 11:22am — 9 Comments

छोटी सी प्रेम कहानी ( लघुकथा )

प्रेमी बोला , ' आओ प्यार की कुछ बातें करें .'

' हाँ यह हुई न बात . चलो करो .' प्रेमिका ने सहमति से सिर हिलाया .

' तो फिर रूठो .' प्रेमी ने कहा

" बात तो  प्यार की हुई है , रूठने को क्यों कहा . "  प्रेमिका इठलाई .

" रूठोगी नहीं तो   तो प्यार की बातें करके तुम्हें मनाऊंगा कैसे . "  प्रेमी ने समस्या रखी .

' पर रूठना तो  तो मुझे आता नहीं है .' प्रेमिका इतराई

" तुम दूसरी तरफ मुँह करके बैठ जाओ . मैं जब बुलाऊँ तो मेरी तरफ देखना  मत . "

" ये क्या बात…

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Added by सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा on December 10, 2018 at 8:30pm — 3 Comments

ग़ज़ल (छिपा बैठा चितेरा है)

दिखे हरसूँ अँधेरा है

कहाँ जाने सवेरा है

 

नहीं दिखता कहीं रस्ता

कुहासा है घनेरा है

 

हुनर सीखें नए कैसे

गुरु बिन आज चेरा है

 

चुराता जा रहा साँसें

समय है या लुटेरा है

 

बनाता है जो इंसा को

ये जीवन वो ठठेरा है

 

नहीं शिकवा है साँपों से

डसे जाता सपेरा है

 

नहीं घर रास है मुझको

दिलों में ही बसेरा है

 

तेरा क्या और क्या मेरा

चले माया का फेरा…

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Added by अजय गुप्ता 'अजेय on December 10, 2018 at 7:30pm — 5 Comments

जीवन संगिनी

हार हार का टूट चुका जब

तुमसे ही आश बाँधी है

मैं नहीं तो तुम सही

समर्थ जीवन की ठानी है||

 

मजबूर नहीं मगरूर नहीं मैं 

मोह माया में चूर नहीं मैं

साथ…

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Added by PHOOL SINGH on December 10, 2018 at 4:30pm — 1 Comment

रंगहीन ख़ुतूत ...

रंगहीन ख़ुतूत ...

तन्हाई

रात की दहलीज़ पर

देर तक रुकी रही

चाँद

दस्तक देता रहा

मन

उलझा रहा

किसका दामन थामूँ

अर्श के माहताब का

पलकों के ख्वाब का

या ज़ह्न के सैलाब का

सवाल

गर्म लावे से

उबलते रहे

जवाब

तन्हाई में

सुबकते रहे

मैं ज़ीना-ज़ीना

ज़ह्न के सन्नाटों में

उतरती रही

अपनी ही साये में

बिखरती रही

बस रहे गए हाथ में

अर्थहीन अलफ़ाज़ के

रंगहीन ख़ुतूत…

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Added by Sushil Sarna on December 10, 2018 at 2:00pm — 8 Comments

सबके अपने अपने मठ हैं - नवगीत

व्हाट्सएप्प हो या मुखपोथी*

सबके अपने-अपने मठ हैं

दिखते हैं छत्तीस कहीं पर,

और कहीं पर वे तिरसठ हैं

*फेसबुक 

 

रंग निराले, ढंग अनोखे,

ओढ़े हुए मुखौटे अनगिन…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on December 9, 2018 at 9:30pm — 6 Comments

कुंठा - लघुकथा -

कुंठा - लघुकथा -

आदरणीय मामाजी,

आपने मेरे लिये जो किया वह मैं जीवन भर नहीं भूल सकता। आपने अपना भविष्य दॉव पर लगा दिया| आपकी बी ई की पढ़ाई छूट गयी। वह घटना मेरे जीवन की भयंकर भूल थी।जिसके अपराध बोध से आज तक ग्रसित हूँ।

उस समय मैं केवल  सात साल का था अतःइतना डर गया था कि सच नहीं बोल सका।

इतने साल बाद आज मैं आपको सच बताने का साहस जुटा पाया हूँ|

दिवाली की उस रात  खाने के बाद आप जब पान खाने जाने लगे तो मैं भी जिद करके आपके साथ चल दिया था।

आपने पान वाले को…

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Added by TEJ VEER SINGH on December 8, 2018 at 7:28pm — 6 Comments

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