३ क्षणिकाएँ ...
छोटी सी बात
साँय-साँय करती रात
स्मृति पटल को दे गई
अमर
स्पर्श
सौग़ात
........................
व्योम
शून्यता के पर्याय के अतिरिक्त
आश्रय स्थल भी है
उन स्मृतियों का
जो जीती हैं
मिट कर भी
अंत से अनंत तक
.....................................
भला घर
खंडहर में
तब्दील कब होते हैं
जब तक
Added by Sushil Sarna on December 3, 2018 at 7:00pm — 8 Comments
ट्रेन की बोगी में वह बालक न तो ख़ुश बैठा हुआ था और न ही दुखी। सजे-धजे किन्नरों से भरी बोगी में, पैसे गिनते हुए एक बुज़ुर्ग किन्नर को वह देख ही रहा था कि एक फेरी वाला मूंगफली बेचता हुआ वहां आया और दो-चार सवारियों को मूंगफलियां बेच कर,पैसे गिन कर उन्हें बाक़ी पैसे लौटाने लगा।
"अरे देखो, यह लंगड़ा और दोनों आंखों से अंधा है, फ़िर भी पैसों का सही हिसाब कर रहा है !" वह बालक बगल में बैठे उस किन्नर से बोल पड़ा, जो उसे समझा-बुझाकर उसके घर से अपने दल में शामिल करने के लिए लाया था उसके…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on December 3, 2018 at 4:00pm — 5 Comments
एक ताज़ा ग़ज़ल
वो खुद ही मजबूर बहुत हैं उनको हाल बताना क्या
जिनके दिल में प्यार नहीं है उन पर प्यार लुटाना क्या
हम तो तेरे नाम के जोगी अपना यार ठिकाना क्या
बिरहा में जलना है हमको महफिल क्या वीराना क्या
टूट गया है उस से नाता जो दुनिया का मालिक है
अब सारी दुनिया को अपने दिल के जख्म दिखाना क्या
सारे जीवन के पछतावे सांसो को झुलसाते हैं
अपनी किस्मत में लिक्खा है तिल तिल कर मिट जाना क्या
जीवन के…
ContinueAdded by मनोज अहसास on December 2, 2018 at 11:30pm — 8 Comments
12221222 122
वो भौरे पास हैं जब से कली के ।
हैं बिखरे रंग तब से पाँखुरी के ।।
सुना है चांद आएगा जमी पर ।
बढ़े हैं हौसले अब चांदनी के ।।
जरा कमसिन अदाएं देखिए तो ।
अजब अंदाज़ उनकी बेख़ुदी के ।।
वो बेशक पास मेरे आ रही है ।
लगे हैं स्वर सही कुछ बाँसुरी के ।।
मुहब्बत हो गयी उनसे जो मेरी ।
हुए मशहूर किस्से आशिकी के ।।
तुम्हारा खत मिला जो…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on December 2, 2018 at 10:30am — 6 Comments
2122 1122 1122 22/112
छोड़ जाएगा यहीं सब ये ख़बर रखता है
फिर भी दौलत पे वो मर मर के नज़र रखता है//१
ज़िन्दगी प्यार के अमरित से ही होती है रवां
फिर भी नादान कलेजे में ज़हर रखता है //२
कितना मज़बूर है वो रोड पे भूखा बच्चा
एक रोटी के लिए कदमों में सर रखता है//३
आदमी कितना अकेला है भरी दुनिया में
कहने को भीड़ भरे शह्र में घर रखता है//४
पहले शैतान से डरने की ख़बर आती थी
आज इंसान ही इंसान से डर रखता…
Added by क़मर जौनपुरी on December 2, 2018 at 8:17am — 7 Comments
221--1221--1221--122
जब मुल्क़ में नफऱत का ये बाज़ार नहीं था
हर शख़्स लहू पीने को तैयार नहीं था //१
अब बाढ़ सी आई है शबे ग़म की नदी में
जब तुम न थे दिल में तो ये बेज़ार नहीं था//२
जो देश की सरहद पे सदा ख़ून बहाए
क्या देेेश की मिट्टी से उन्हें प्यार नहीं था//३
मिट जाएं सभी जंग में हिन्दू व मुसलमाँ
ऐसा तो मेरे हिन्द का त्यौहार नहीं था//४
जब मुल्क़ परेशां था फिरंगी के सितम से
मिल जुुल के लड़े मुल्क ये लाचार नहीं…
Added by क़मर जौनपुरी on December 2, 2018 at 7:30am — 5 Comments
2121 2121 2121 212
उड़ रहे थे पैरों से ग़ुबार, देखते रहे
वो न लौटे जबकि हम हज़ार देखते रहे //१
ताब उसकी, बू भी उसकी, रंग भी था होशकुन
गुल को कितनी हसरतों से ख़ार देखते रहे //२
हम तो राह देखते थे उनके आने की मगर
वो हमारा सब्रे इन्तेज़ार देखते रहे //३
तोड़ते थे बेदिली से वो मकाने इश्क़, हम
टूटते मकाँ का इंतेशार देखते रहे //४ …
Added by राज़ नवादवी on December 2, 2018 at 3:00am — 8 Comments
गर है अंजाम महब्बत का क़यामत होना
मुझको मंजूर क़यामत से महब्बत होना
बे-मआनी नहीं ये सब है महब्ब्त की ख़ुराक
दरमियाँ उसके गिले शिकवे शिकायत होना
आस्माँ की ही अना का है नतीज़ा यारो
उसके ही चाँद सितारों में बगावत होना
बेच दी है मेरे गुलशन की महक गुलचीं ने
इसको कहते हैं अमानत में ख़यानत होना
ये ही करता है मुकम्मल मेरे…
Added by rajesh kumari on December 1, 2018 at 4:00pm — 13 Comments
2122 2122 2122 212
खुदकुशी बेहतर है ऐ दिल बेवफ़ा के साथ से
चाहो मत बढकर किसी को चाह की औकात से।
जिसकी ख़ातिर छोड़ दी दुनिया की सारी दौलतें
रख न पाया मन भी मेरा वो दो मीठी बात से ।
दे रहा है तुहमतें उल्टा मुझे ही बेवफ़ा
बेहया से क्या कहूँ मैं, क्या कहूँ इस जात से।
मैं समझता था मुहब्बत की सभी को हैं तलब
उसको तो मतलब है लेकिन और कोई बात से।
हैं मुसलसल शिद्दतें कुछ यूँ जुदाई की…
ContinueAdded by Rahul Dangi Panchal on December 1, 2018 at 3:30pm — 6 Comments
2122 2122 2122 2122
हैं जो अफसानें पुराने, सब भुलाना चाहता हूँ
इस धरा को स्वर्ग-जैसा ही बनाना चाहता हूँ
देश में अपने सदा सद्भाव फैलाएँ सभी जन
अब सभी दीवार नफरत की गिराना चाहता हूँ
दिल सभी का हो सदा निर्मल नदी-जैसा धरा पर
अब परस्पर प्यार करना ही सिखाना चाहता हूँ
धन कमाऊँगा मगर धोखा न सीखूँगा किसी से
हर कदम अपना पसीना ही बहाना चाहता हूँ
है ये तेरा, है ये मेरा की लड़ाई खत्म हो अब
और खुशियाँ संग सबके…
Added by Dayaram Methani on December 1, 2018 at 12:30pm — 6 Comments
2122 1122 1212 22/ 112
उसका बदला हुआ तर्ज़े करम सताता था
यार बेज़ार था कुछ यूँ कि कम सताता था //१
होके कुछ यूँ वो ब मिज़गाने नम सताता था
कब मैं समझा कि वो अबरू-ए-ख़म सताता था //२
दूर रहने पे तेरी क़ुरबतों की याद आई
पास रहने पे जुदाई का ग़म सताता था //३
जिनको इफ़रात थी रिज़्को ग़िज़ा की जीने में
ऐसे लोगों को भी कर्बे शिकम…
Added by राज़ नवादवी on December 1, 2018 at 11:30am — 8 Comments
आजकल कोई बुलाता भी नहीं।
आजकल मैं भी कहीं जाता नहीं
आजकल हर ओर है बदली फिज़ा
आजकल गायब है चेहरे से गीज़ा॥
आजकल कुछ भी सुहाता ही नहीं।
आजकल मैं गुनगुनाता भी नहीं
आजकल बदले हुए हालात हैं
आजकल मैं मुस्कुराता भी नहीं॥
आजकल बेकार है सब कोशिशें।
आजकल हैं लग रही बस बंदिशें
आजकल अपने ही छलते हैं यहाँ
आजकल हैं सब बहुत बस परेशां॥
आजकल वादों की ही भरमार है।
आजकल गैरों के सर पे हाथ…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on November 30, 2018 at 4:00pm — 2 Comments
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन
गुपचुप उसपर मन आया है
लगता है सावन आया है
महका है हर कोना-कोना
अम्बर से चन्दन आया है
देखो नभ पर छाये बादल
दूल्हा ज्यों बनठन आया है
भीग रही है प्यासी धरती
ज्यों बीता यौवन आया है
रह-रह नाच रही हैं बूँदें
राधा का मोहन आया है
झूला झूल रही हैं सखियाँ
सज रक्षा बंधन आया है
कागज़ की नैया ले आओ
याद मुझे बचपन आया…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on November 30, 2018 at 9:00am — 9 Comments
"हम तो अपनी सरकारी नौकरी से मज़े में हैं! तुम सुनाओ, कैसी चल रही है तुम्हारी प्राइवेट टीचरी?"
"बढ़िया! मेरे ख़्याल से तुमसे भी बेहतर चल रहा है सब कुछ!"
"वो कैसे?"
"तुम्हारी नौकरी में तुम केवल सरकार और जनता को उल्लू बनाते हो या चूना लगाते हो! ... हम तो अपनी नौकरी में मैनेजमेंट को और माता-पिता-पालकों को और छात्रों को भी, क्योंकि वे हमें उल्लू बनाते हैं या चूना लगाते हैं! 'टिट-फॉर-टेट' और 'टेक इट ईज़ी' का ज़माना है न!"
"कुछ समझ में नहीं आया! हमने तो सुना है कि प्राइवेट…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 30, 2018 at 12:30am — No Comments
गर हो सके तो मुल्क पे अहसान कीजिये ।।
अब और न हिन्दू न मुसलमान कीजिये ।।
भगवान को भी बांट रहे आप जात में ।
कितना गिरे हैं सोच के अनुमान कीजिये ।।
मत सेंकिए ये रोटियां नफरत की आग पर ।
अम्नो सुकूँ के वास्ते फ़रमान कीजिये ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on November 29, 2018 at 11:30pm — 5 Comments
2122 2122 2122 212
एक ताज़ा ग़ज़ल
जो भी जग में साथ हैं सब छूट जाने के लिए
क्यों हो तेरा ज़िक्र फिर दिल को दुखाने के लिए
दिल्लगी में शायद तेरी रह गई थी कुछ कमी
भेजा है क़ासिद को मेरा हाल पाने के लिए
इसलिए महसूस तेरी बेरुखी होती नहीं
मुझमें कुछ बाकी नहीं तुझको सुनाने के लिए
रात गहरी कट गई फिर भी न पाई रोशनी
आ गई बरसात मेरा दिल जलाने के लिए
आज कल मायूस होकर घूमता हूं दर बदर
इक खिलौना बन गया हूँ…
Added by मनोज अहसास on November 29, 2018 at 10:24pm — 5 Comments
चौदहवीं की रात I निशीथ का समय I चाँद अपने पूरे शबाब पर I जायस के कजियाना मोहल्ले में एक छोटे से घर की छत पर गोंदरी बिछाए वही लम्बी सी पतली लडकी लेटी थी I उसकी सपनीली आँखों से नींद आज गायब थी I उसकी आँखों के सामने मुहम्मद का भोला किंतु खूबसूरत चेहरा बार-बार घूम जाता I कभी-कभी ऐसी नाटकीय घटनायें हो जाती हैं कि हम बेक़सूर होकर भी दूसरे की निगाहों में कसूरवार हो जाते हैं I उस लड़के ने मुझे उस हंगामे से बचाया I मेरा हाथ थामा I मुझे पानी से निकाला I हाथ थामने के मुहावरे का अर्थ सोचकर उसे उस सन्नाटे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 29, 2018 at 10:02pm — 2 Comments
इस तरह जिन्दगी तमाम करें
लोग आ कर हमें सलाम करें
झूठ का अब न एहतराम करें
इस तरह का भी इंतिजाम करें
तू वना खुद को इस तरह शीशा
देख चेहरा सभी सलाम करें
इस तरह वख्श बन्दगी दाता
सुबह से शाम राम-राम करें
आप के हाथ अब नहीं बाजी
आप अब और कोई काम करें
आज तौफिक दे खुदा सबको
देश पर जां लुटा के नाम करें
देख नफरत उदास है “तन्हा”
आस्तां में कहीं कयाम करें
मुनीश “तन्हा”
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by munish tanha on November 29, 2018 at 9:30pm — 2 Comments
22 22 22 22 22 2
इश्क़ अजब है, तोहमत लेकर आया हूँ।
और लगता है , शुहरत लेकर आया हूँ।
बदहाली में भी सालिम ईमान रहा,
मैं दोज़ख़ से जन्नत लेकर आया हूँ।
मिट्टी, पानी, कूज़ागर की फ़नकारी,
और इक धुंधली सूरत लेकर आया हूँ।
कितने रिश्ते, कितने नुस्ख़े, कितना प्यार,
मैं दादी की वसीयत लेकर आया हूँ।
आज 'गली क़ासिम' से होकर गुज़रा था,
साथ में थोड़ी जन्नत लेकर आया हूँ।…
Added by रोहिताश्व मिश्रा on November 29, 2018 at 4:30pm — 3 Comments
कुछ क्षणिकाएं जीवन पर :
लो
आज मैं बड़ा हो गया
अपनी नेम प्लेट
लगाकर
बूढ़ी नेमप्लेट
हटा कर
.................
ज़िंदगी
हार गयी
ज़िंदगी से
खून से
खून की दरिंदगी से
..............................
असंभव को
संभव कर दिया
ज़िंदगी को
मरघट की
राह बता कर
............................
वृद्धाश्रम में
माँ -बाप को छोड़
बड़ा उपकार किया
संतान ने
दूध का क़र्ज़
उतार…
Added by Sushil Sarna on November 29, 2018 at 3:04pm — 10 Comments
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