पार हुयी नहिं आसों, बीता साल
बिटिया अबहूँ क्वांरी. माँ बेहाल
विदा भई जनु बिटिया बीता साल
जैसे–तैसे कटिगा जिव जंजाल
बेसह न पायो कम्बर बीता साल
जाड़ु सेराई कैसे नटवरलाल ?
मिली न रोजी-रोटी, बेटवा पस्त
गए साल का अंतिम सूरज अस्त
बारह माह तपस्या, जमे न पाँव
आखिर में मुँह मोड़ा हारा दाँव
शीतल, सुरभित, नूतन आया साल
बधू चांद सी आयी जनु…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 30, 2017 at 2:33pm — 3 Comments
मैं कौन हूँ ?
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कलम हूँ, इसलिए लिखता हूँ ,
कागज हूँ, इसलिए पढ़ा जाता हूँ |
कथा हूँ, इसलिए कहा जाता हूँ,
व्यथा हूँ, इसलिए सुना जाता हूँ |
काव्य हूँ, इसलिए भव्य हूँ
शांत हूँ, इसलिए द्रव्य हूँ |
हार हूँ, इसलिए प्रहार हूँ ,
जीत हूँ, इसलिए त्यौहार हूँ |
मृत हूँ, इसलिए अमृत हूँ,
जीवन हूँ, इसलिए सृष्ट हूँ |
शौर्य हूँ, इसलिए प्रकाश हूँ,
चंद्र हूँ, इसलिए…
Added by K.Kumar on December 30, 2017 at 1:30pm — 2 Comments
Added by नादिर ख़ान on December 29, 2017 at 10:30pm — 4 Comments
प्रिय सुनो तुम्हारी भूल नहीं
अवसाद नहीं रखना मन में
यह मौसम ही अनुकूल नहीं
चुप चुप रहना कुछ न कहना कैसे होगा
जब चीख रहीं होगीं लाखों जिज्ञासाएं
क्यूँ है? कैसे है? और रहेगा कब तक यूँ ?
बस बुरे ख्यालों के बादल घिर घिर छाएँ
अब ऐसा भी तो नहीं
के मेरे दिल में चुभता शूल नहीं
मैं कहीं रहूँ इस दुनिया में रहता तो हूँ
पर सच कहता हूँ मन का रहता ध्यान वहीँ
क्या हुई भूल आखिर क्या ऐसा बोल दिया
करता रहता…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on December 29, 2017 at 6:17pm — 3 Comments
भयभीत परम्परा
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"वो कांप रहे हैं।"
एक उड़ती खबर उनके कानों में पहुँची है ।यहाँ अब एक बड़ा मॉल बनेगा ।
बड़े बड़े शॉपिग…
Added by डॉ संगीता गांधी on December 28, 2017 at 9:11pm — 7 Comments
काफिया :आरे , रदीफ़ दोस्त
२१२२ २१२२ २१२२ २१२ (+१)
जिंदगी में है विरल मेरे निराले न्यारे’ दोस्त
हो गए नाराज़ देखो जो है’ मेरे प्यारे’ दोस्त |
एक जैसे सब नहीं बे-पीर सारी दोस्ती
किन्तु जिसने खाया’ धोखा किसको’ माने प्यारे’ दोस्त |
दोस्ती है नाम के, मैत्री निभाने में नहीं
वक्त मिलते ही शिकायत, और ताने मारे’ दोस्त |
कृष्ण अच्छा था सुदामा से निभाई दोस्ती
ऐसे’ इक आदित्य ज्यो हमको मिले दीदारे’…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 28, 2017 at 4:49pm — 2 Comments
221 2121 1221 212
छुपती कहाँ है आग दहकती जरूर है ।।
यादों में उनकी आंख फड़कती जरूर है ।।
खुशबू तमाम आई है उनके दयार से ।
गुलशन की वो हवा भी महकती जरूर है ।।
बुलबुल की शोखियों की बुलन्दी तो देखिए ।
बुलबुल बहार में तो चहकती जरूर है ।।
हसरत है देखने की तो आशिक मिजाज रख ।
चहरे से हर नकाब सरकती जरूर है ।।
रहना जरा सँभल के मुहब्बत की वस्ल में ।
अक्सर हया नज़र…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 28, 2017 at 3:30pm — 7 Comments
फाइलातून फ़ाइलातुन फाइलुन
दुश्मन-ए-जाँ लरज़ह बर अंदाम है
जब तलक ज़िन्दा हमारा नाम है
सोचने की क़ुव्वतें मफ़लूज हैं
मुल्क में सबको हुआ सरसाम है
चूस लेती है बदन का ये लहू
शाइरी भी कितनी ख़ूँँ आशाम है
उसको छूने से भी मुझको डर लगे
इस क़दर नाज़ुक वो गुल अंदाम है
ये तो दीवानों की बस्ती है "समर"
तुम यहां क्यों आ गए क्या काम…
ContinueAdded by Samar kabeer on December 28, 2017 at 11:12am — 27 Comments
212 1222 212 1222
साथ तुम नहीं होते कुछ मज़ा नहीं होता
मेरे घर में खुशियों का सिलसिला नहीं होता
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राह पर सदाक़त की गर चला नहीं होता
सच हमेशा कहने का हौसला नहीं होता
-
कोशिशों से देता है रास्ता समंदर भी
हौसला रहे क़यिम फिर तो क्या नहीं होता
-
कम खुशी नहीं होती मेरे घर के आँगन में
दिल अगर नहीं बंटता, घर बंटा नहीं होता
-
थोड़े ग़म ख़ुशी थोड़ी,थोड़ी सिसकियाँ भी है
ज़िन्दगी से अब हमको कुछ गिला नहीं होता
-
डूबती नहीं कश्ती पास…
Added by SALIM RAZA REWA on December 27, 2017 at 9:00pm — 20 Comments
सांस भर की ज़िंदगी ...
वक़्त के साथ
हर शै अपना रूप
बदलती है
धूप ढलती है तो
छाया भी बदलती है
वक़्त के साथ
मोहब्बत की चांदी
केश वन में
चमकने लगी
उम्र की पगडंडियां
झुर्रियों में झलकने लगीं
वक़्त के साथ
यौवन का दम्भ
लाठी का मोहताज़ हो गया
दर्पण
आँख से नाराज़ हो गया
अनुराग
दर्द का राग हो गया
हदें
निगाहों से रूठ गयी
नफ़स
छटपटाई बहुत
आखिर
थककर टूट गयी…
Added by Sushil Sarna on December 27, 2017 at 6:37pm — 18 Comments
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा
22 22 22 22 22 22 22 2
अक्सर खुद से खुद ही लड़ कर, खुद से खुद ही हारे हम
और किसी से शिकवा कैसा, अपने हाथ के मारे हम
हम अपनी पर आ जाते तो, दुनिया बदल भी सकते थे
लेकिन थी कोई बात कि जिससे, बन के रहे बेचारे हम
तन्हाई ने कर डाला है, जिस्म को अब मिट्टी का ढेर
साथ तेरे चाहा था मिल कर, छूते चाँद-सितारे …
ContinueAdded by Ajay Tiwari on December 27, 2017 at 2:12pm — 26 Comments
(फाइलातुन -फइलातुन -फइलातुन -फेलुन)
यूँ नहीं मैं ने ज़माने से बग़ावत की है |
मुझ से उस शोख़ ने बे लौस मुहब्बत की है |
दिल ने मजबूर बहुत कर दिया मुझको वर्ना
मैं ने कब मर्ज़ी से उस शोख़ की हसरत की है |
मुझ से उम्मीद वफ़ा की है उसी को यारो
उम्र भर जिसने मेरे साथ अदावत की है |
रहनुमाई के लिए मैं ने चुना था जिसको
हाए उसने भी मेरे साथ सियासत की है |
सोच लेना वो कोई ग़ैर नहीं अपने हैं
तुमने…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 27, 2017 at 2:00pm — 24 Comments
-बस जरा बर्त्तन पटक देती हूँ,वे समझ जाते हैं।
-कि तू गुस्से में है?
-और क्या?
-तू भी न।
-तू भी क्या री?रातभर जगाते हैं।बर्त्तन मेरे,सुबह मेरी।
-पर मेरा काम तो इस तरह पटकने-झटकने से नहीं चलता है न।
-क्यूँ?
-वो सुन नहीं सकते री।
-तो फिर?
-क्या करूँ,मुझे तो बेलन ही भाँजना पड़ता है।
-धत्त तेरी!
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on December 27, 2017 at 10:04am — 12 Comments
बह्र - फाइलातुन मफाइलुन फैलुन
झूठ का इश्तहार खूब चला।
इस तरह कारोबार खूब चला।
कोने कोने में मुल्क के साहब,
आप का ऐतबार खूब चला।
गाँव तो गाँव हैं नगर में भी,
रात भर अंधकार खूब चला।
जो हक़ीक़त से दूर था काफी,
वो भी तो बार बार खूब चला।
नोट में दाग थे बहुत लेकिन,
नोट वो दाग़दार खूब चला।
सबने देखा है किस अदा के साथ,
बेवफा तेरा प्यार खूब चला।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Ram Awadh VIshwakarma on December 26, 2017 at 10:14pm — 20 Comments
अरकान : 2122 2122 2122 212
एक तरफ़ा इश्क़ मेरा बेअसर होने को है
ख़त्म यानी ज़िन्दगी का ये सफ़र होने को है
कहने को तो सर पे सूरज आ गया है दोस्तो
ज़िन्दगी में पर हमारी कब सहर होने को है
हर किसी ने हाथ में पत्थर उठाये देखिये
और फिर उनका निशाना मेरा सर होने को है
आपको चाहा था मैंने बेतहाशा टूट कर
अब यही तकलीफ़ मुझको उम्र भर होने को है
करना है कुछ आपको तो बस दुआएँ कीजिए
अब दवाओं का कहाँ मुझ पे असर होने को…
Added by Mahendra Kumar on December 26, 2017 at 10:00pm — 18 Comments
हिन्दी साहित्य में ‘बरवै’ एक विख्यात छंद है . इस छंद के प्रणेता सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक महाकवि अब्दुर्रहीम खानखाना 'रहीम' माने जाते हैं . कहा जाता है कि रहीम का कोई दास अवकाश लेकर विवाह करने गया. वह जब वापस आया तो उसकी विरहाकुल नवोढा ने उसके मन में अपनी स्मृति बनाये रखने के लिए दो पंक्तियाँ लिखकर उसे दीं-
नेह-छेह का बिरवा चल्यो लगाय I
सींचन की सुधि लीजो मुरझि न जायII
रहीम के साहित्य-प्रेम से तो सभी परिचित थे . अतः उस दास ने ये पंक्तियाँ रहीम…
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 26, 2017 at 9:00pm — 6 Comments
नदी के ऊपर का पुल पुल पर से रात और दिन गाड़ियों की आवाजाही को देख उसके नीचे बहती हुई नदी ने पूछा ," तुमको परेशानी नहीं होती ! दिन भर बजन लदा रहता है तुमपर । " " अरी पागल ! ये भी कोई बात है भला , अब लोग मुझपर से गाडी नहीं ले जायेंगे तो तुझे पार कैसे करेंगे।" पुल की इस बात पर नदी हँस पड़ी। पुल ने पूछा ," इसमें हँसने की क्या बात है। तुम वर्षों से यहाँ से बहती आई हो, तुम्हारा पाट भी विशाल है और प्रवाह भी। पर सच कहूँ तो कभी कभी मुझे डर लगता है तुमसे।" " डर और मुझसे!वो क्यों भला?" " जब बाढ़ की स्थिति…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 26, 2017 at 8:23pm — 3 Comments
"हैलो.., गुड मॉर्निंग मैडम!"
"गुड मॉर्निंग, कौन बोल रहे हैं?"
"मैडम ! हम एस बी आई से बोल रहे हैं।
मैडम ! आपका एटीएम ब्लॉक होने वाला है, यदि आप चाहती हैं कि आपका एटीएम यथावत चालू रहे, तो आप अपने एटीएम का नम्बर वेरिफाई करवाएं।"
"ये आप क्या कह रहे हैं?"
"घबराइए नहीं मैडम ! यदि आप इस असुविधा से बचना चाहिती हैं तो अपना एटीएम नम्बर बतलायें।"
"भाई साहब! नम्बर तो मैं बता दूं, लेकिन थोड़ी देर बाद कॉल कीजियेगा ।पहले जरा इनकी खबर ले लूं इनकी हिम्मत कैसे हुई मेरा…
Added by Rahila on December 26, 2017 at 3:30pm — 11 Comments
अरकान-: 2122 1212 22
ख़ुद से ये शर्मसार सा क्यों है
आदमी बेक़रार सा क्यों है
मेरे दिल ने सवाल ये पूछा,
नेता हर इक गंवार सा क्यों है
आने वाले नहीं हैं अच्छे दिन,
फिर हमें इन्तिज़ार सा क्यों है
मैंने कुछ भी नहीं छुपाया फिर
तुझमें ये इंतिशार सा क्यों है
मैंने जब माँग ली मुआफ़ी,फिर
उनके दिल में ग़ुबार सा क्यों है
उसकी फ़ितरत से ख़ूब वाक़िफ़ हैं,
'फिर हमें एतिबार सा…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on December 26, 2017 at 1:47pm — 21 Comments
2122--2122--212
भाग्य तेरे कर्म का परिणाम है
तुझ पे ही निर्भर तेरा अंजाम है
मेरे हमराही को भी ठोकर लगी
मेरे दिल को अब ज़रा आराम है
सिर्फ़ सच की राह पर चलता हूँ मैं
आबला-पाई मेरा इनआ'म है
उसकी मर्ज़ी है अता कुछ भी करे
बस दुआ करना हमारा काम है
शख़्सियत अपनी निखारो मुफ़्त में
मुस्कुराहट का न कोई दाम है
हम फ़क़ीरों की नज़र से देखिये
जिस्म इक मन्दिर है पावन धाम है
हम यथा सम्भव मदद सब की करें
आदमीयत का यही पैग़ाम…
Added by दिनेश कुमार on December 26, 2017 at 6:46am — 18 Comments
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