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बंद(लघु कथा)



भुइंया लोग विजय-पर्व मना रहे थे।यह उनकी पुरातन परंपरा का हिस्सा था।उनके पूर्वजों ने कभी अपने पूर्वाग्रह ग्रस्त मालिकों को बुरी तरह पराजित किया था। तब से यह दिन भुइंया समुदाय के लिए उत्साह और उत्सव का पर्याय बन गया था। 'जई हो,जई हो',की तुमुल ध्वनि गूँजने लगी।यह उनके उत्सव के उत्कर्ष की स्थिति थी।ढ़ोल, नगाड़े,तुरही सब के बोल चरम पर थे। झंकार ऐसी कि मुर्दे भी स्पंदित हो जायें, नृत्य करने लगें। पर,यह क्या?अचानक भगदड़ -सी होने लगी।किसी के सिर से लहू के फव्वारे निकल पड़े।कहीं से किसी ने पत्थर…

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Added by Manan Kumar singh on January 3, 2018 at 10:00pm — 2 Comments

ईमान(लघु कथा)

  • ईमान

    ---

    -नहीं,वह नहीं आता अब।

    -‎नहीं आतता या मना किया तूने?

    -‎हाँ, मैंने ही मना किया।

    -‎क्यूँ?

    -‎क्या मतलब?

    -‎अरे! आते-जाते रहता तो कुछ भेद पता चलता रहता।

    -‎क्या?

    -‎सत्ता पक्ष से हैं न। अंदर की बातें,और क्या?

    -‎पर मुझे उससे क्या?

    -‎मुझे तो फायदा होता न री करमजली।

    -‎सही कहा तुमने ---करमजली हूँ मैं।

    -‎बात मत पकड़ री छमिया! आजकल कुर्सी सुगबुगा रही है, उलट-फेर की संभावना है।

    -‎तो फिर?

    -‎आने दे मुंडे मौलवी को।राज पता…
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Added by Manan Kumar singh on January 2, 2018 at 10:30pm — 9 Comments

मुश्क़िलों में दिल के भी रिश्ते - सलीम रज़ा

2122 2122 2122 212

.

मुश्किलों में दिल के भी रिश्ते पुराने हो गए

ग़ैर से क्या  हो गिला अपने  बेगाने हो गए

-

चंद दिन के फ़ासले के बा'द हम जब भी मिले

यूँ लगा जैसे  मिले  हमको ज़माने  हो गए

-

पतझड़ों  के साथ मेरे दिन गुज़रते थे कभी

आप के आने से मेरे  दिन  सुहाने हो  गए

-

मुस्कराहट उनकी  कैसे भूल पाएगें  कभी

इक नज़र देखा जिन्हें औ हम दिवाने हो गए

-

आँख में शर्म-ओ-हया, पाबंदियाँ, रुस्वाईयां

उनके न  आने  के  ये…

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Added by SALIM RAZA REWA on January 2, 2018 at 9:00pm — 18 Comments

हाइकू

फिर आ गया

नववर्ष लेकर

नयी उमंग ।

 

नयी सौगात

उम्मीद की किरण

नव वर्ष में ।

 

जन जीवन

चमकें उल्लास में

नव वर्ष में ।

 

यादों का रेला

खामोश समंदर

बहा जो पाता ।

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Neelam Upadhyaya on January 2, 2018 at 2:44pm — 6 Comments

हिस्से की जमीन (लघुकथा)

कमरे में घुसकर उसने रूम हीटर ऑन किया। तभी उसे दोबारा कुतिया के कराहने की आवाज़ सुनाई दी। वह हॉस्पिटल की भागमभाग से बहुत अधिक थका हुआ था जिसके कारण उसकी इच्छा तुरन्त सोने की हो रही थी लेकिन कुतिया की लगातार दर्द औऱ कराहती आवाज उसकी इच्छा पर भारी पड़ी।

सोहन बाहर आकर इधर-उधर देखा। बाहर घना कुहरा था जिसकी वजह से बहुत दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था। स्ट्रीट लाइट का प्रकाश भी कुहरे के प्रभाव से अपना ही मुँह देख रहीं थी। बर्फीली हवा सर्दी की तीव्रता को और बढ़ा रही थी जिससे ठंडी बदन…

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Added by नाथ सोनांचली on January 2, 2018 at 2:30pm — 10 Comments

ग़ज़ल-सुन्दर खुशबू फूलों से ही मोहक मंजर लगता है-कालीपद 'प्रसाद'

नव वर्ष २०१८ के लिए हार्दिक शुभकामनाओं सहित |

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काफिया : अर ;रदीफ़ : लगता है

बहर: २२  २२  २२  २२  २२  २२  २२  २

सुन्दर फूलों की खुशबू मोहक मंजर लगता है |

फागुन आने के पहले ही, होली अवसर लगता है |

मधुमास में’ टेसू चम्पा, और चमेली का है जलवा

श्रृंगार से धरती दुल्हन लगती, गुल जेवर लगता है |

काले बादल बरसे गांवों में, मन का आपा खोकर

जहां भी देखो नीर नीर…

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Added by Kalipad Prasad Mandal on January 2, 2018 at 9:00am — 8 Comments

ग़ज़ल - घाट पर सोया मिलूँगा ये बता देता हूँ मैं

2122 2122 2122 212

आज अपना सारा ईगो ही जला देता हूँ मैं

बर्फ़ रिश्तों पर जमी उसको हटा देता हूँ मैं

मेरे होने की घुटन तुमको न हो महसूस अब

ज़िन्दगी खोने का खुद को हौसला देता हूँ मैं

नाम दूँ बदनामियाँ दूँ, मेरे वश में है नहीं

सो मेरे होठों को चुप रहना सिखा देता हूँ मैं

तेरे चहरे पर शिकन संकोच अब आए नहीं

इसलिए सौगात में अब फ़ासला देता हूँ मैं

कुछ नहीं बस हार इक ला कर चढ़ा…

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Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 2, 2018 at 9:00am — 22 Comments

ग़ज़ल -नये साल में कुछ नया कर दिखायें

बह्र-फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन

अँधेरे से निकलें उजाले में आयें।
नये साल में कुछ नया कर दिखायें।

गमों का लबादा जो ओढ़े हुये हैं,
उसे फेंक कर हम हँसें मुस्करायें।

जो चारो दिशाओं में खुशबू बिखेरे,
बगीचे में ऐसे ही पौधे लगायें।

न झगडें कभी धर्म के नाम पर हम,
किसी का कभी भी लहू ना बहायें।

न नंगा न भूखा न बेघर हो कोई,
चलो हम सभी ऐसी दुनिया बसायें।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Ram Awadh VIshwakarma on January 2, 2018 at 6:48am — 15 Comments

हमारी सोच को लाचार कर देगा - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२



रवैया  हाकिमों  का  देश  को  बीमार  कर देगा

यहाँ मिलजुल के रहना और भी दुश्वार कर देगा।१।



फँसाया जा रहा है यूँ  अविश्वासों में हमको अब

न जाने कब सखा ही झट पलटके वार कर देगा।२।



सियासत तेल छिड़केगी हमारी बस्तियों में फिर

जलाने का बचा जो काम वो अखबार कर देगा।3।



परोसे झूठ सच जैसा बनाकर मीडिया जो नित

किसी दिन ये हमारी सोच को लाचार कर देगा ।४।



अबोला  शक  बढ़ाता है  रखो  सम्वाद  भाई से…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2018 at 8:30pm — 18 Comments

नये साल का स्वागत नये अंदाज में - अवधी के अरधान (बरवें छंद में )

 

जाड़ा है,   हहराती    ठंढी रात

साल आय गा फिर से बन नवजात

 

सोहर गावौ बहिनी   जन्मा लाल

जग के आँगन जगमग उतरा साल

अब तो बजै बधइया   नाचैं नारि

नए साल पर डारैं   दुनियाँ वारि

 

अँगनइया माँ थरिया मधुर बजाव

पानी भरी गगरिया   भौजी लाव

 

नाउन है बिरझानी    माँगे नेग

पायल मातु धरित्री   देहु सवेग

 

वारिन बोलै मैया   जाइ न देब  

नया साल है जन्मा बिछिया लेब

 

तुम काहे…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2018 at 8:21pm — 4 Comments

नव वर्ष पर कुछ कुण्डलिया

कहकर सबको अलविदा, चला गया वो साल

छोड़ गया यादें बहुत, अरु जीवन जंजाल

अरु जीवन जंजाल, रहेंगे उलझे जिसमें

जारी है संघर्ष, मिलेगा सद्फल इसमें

जीवन में सुख हाथ, लगेगा दुख को सहकर

लें हम नव संकल्प, गया गत संवत् कहकर।1।



मन से मन जोड़ें सभी, उत्तम हो सब काज

मंगलमय नव वर्ष की, करूँ कामना आज

करूँ कामना आज, सत्य का उगे सवेरा

हो नित नव निर्माण, मिटे घनघोर अँधेरा

देश प्रेम हो भाव, जुटें सब तन मन धन से

रहे न कोई क्लेश, जुड़ें हम सबसे मन… Continue

Added by नाथ सोनांचली on January 1, 2018 at 2:31pm — 11 Comments

दोहे--नव वर्षाभिनंदन

ख़ुशियों से हो ये भरा,नया हमारा साल ।
मेल जोल सबसे बढ़े, बदले सबकी चाल ।।

घर आँगन में हो ख़ुशी,चले हास-परिहास ।
पीड़ाओं की आँधियाँ, फटकें कभी न पास ।।

साल नया ख़ुश हाल हो,सब हों माला माल ।
जीवन में दुख का कभी,आये नहीं सवाल ।।

नये साल में हम करें,कोई अच्छा काम ।
युग -युग तक जपते रहें,लोग हमारा नाम ।।

माँगूँ रब से ये दुआ,रहें सभी आबाद ।
बीते दिन कोई यहाँ, करे न'आरिफ़' याद ।।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।।

Added by Mohammed Arif on January 1, 2018 at 12:27am — 25 Comments

"नूतन-वर्ष "-कविता /अर्पणा शर्मा

उँगलियों पर रहे थिरकती,  

लेखा-जोखा समय का रखती,  

देखो वो चली, विदा ले चली,  

हाथ हिलाते, हँसते-मुस्काते,  

ये बारह माहों की गिनती,

तीन सौ पैंसठ दिनों का सफर,

खत्म कर पकड़ेगी, इक कोरी-नई ड़गर,

इसके नए पन्नों पर होगी ,

अब लिखी इक इबारत नई,

छोड़ अनेकों पीछे, अनेकों साथ जोड़ते,

देखो वो आई, आ ही चली,

इक नूतन बारह माहों की गिनती,

समय-प्रवाह थपेड़े में ,

जीवनयात्रा के रेले में,

इक वर्ष और…

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Added by Arpana Sharma on December 31, 2017 at 10:22pm — 7 Comments

ग़ज़ल( उठ न जाए क़ियामत नये साल में )

ग़ज़ल( उठ न जाए क़ियामत नये साल में )

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( फाइलुन--फाइलुन--फाइलुन--फाइलुन)

उन पे आई बुलूगत नये साल में |

उठ न जाए क़ियामत नये साल में |

भूल बैठे पुरानी अदावत को वो

देख कर मेरी मिन्नत नये साल में |

बाग़बाने चमन ज़ुल्म से बाज़ आ

वरना होगी बग़ावत नये साल में |

दिल में घर कर नहीं पाएँ शिकवे कभी

डालिए एसी आदत नये साल में |

राह तकता हूँ मुद्दत से…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 31, 2017 at 10:10pm — 22 Comments

ओ बो परिवार को नए साल की मंगल कामना - 'बरवै' छंद में

नया साल है आवा अस संजोग

ओ बी ओ मदिरायित हर्षित लोग

 

हवा भई है ‘बागी’ मन मुस्काय

‘योगराज’ शिव बैठे भस्म रमाय

 

‘प्राची’ ने दिखलाया आज कमाल

नए साल का सूरज निकसा लाल

 

ठहरा सा है मारुत ‘सौरभ’-भार

नवा ओज भरि लाये ‘अरुण कुमार’

‘राणा’–राव महीपति अरु ‘राजेश’

बदले बदले दिखते हैं ‘मिथिलेश’    

 

तना खड़ा है अकडा अब ‘गिरिराज’

हर्ष न देह समाये इसके आज

 

कुहरे में है सूरज अरुणिम…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 31, 2017 at 2:30pm — 7 Comments

ग़ज़ल --- असर होता है // दिनेश कुमार

2122--1122--1122--22

.

एक पत्थर पे भी उल्फ़त का असर होता है

दिल मे जज़्बा हो तो दीवार में दर होता है

.

घुप अँधेरे में उजाले की किरण सा जीवन

जो भी जी जाए, वो दुनिया में अमर होता है

.

उसको हालात की गर्मी की भला क्या चिन्ता

जिसकी दहलीज़ पे अनुभव का शजर होता है

.

आपसी प्यार मकीनों में हो, घर तब होगा

दरो-दीवार का ढांचा तो खँडर होता है

.

वो न सह पायेगा इक पल भी हक़ीक़त की तपिश

जिसके ख़्वाबों का महल मोम का घर होता…

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Added by दिनेश कुमार on December 31, 2017 at 1:33pm — 20 Comments

खुद को भी समझाना होगा (गीत)

नये वर्ष में लगता है अब

खुद को भी समझाना होगा

कर जय पराजय की समीक्षा

क्या कमीं क्या क्या प्रबल है

तूने जो खोया या पाया

तेरे कर्मों का ही फल है

पूर्व की उनसब गलतियों को

फिर से ना दुहराना होगा

खुद को भी समझाना होगा।

अपने मन की करता है बस

क्या तूने सोचा है क्षण भर

अनायास ही भाग रहा है

अब यहाँ वहाँ किस ओर किधर

पहले यह निश्चय करना है

तुमको जिस पथ जाना होगा

खुद को भी…

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Added by ram shiromani pathak on December 31, 2017 at 1:30pm — 8 Comments

" फ़िर ग़ज़ल प्रेम की निशानी की "

बहर - 2122 1212 22 

अपने दुश्मन पे गुलफिशानी की l

आबरू उसकी पानी पानी की ।।

वार मैंने निहत्थों पर न किया

यूँ ...अदा रस्म खानदानी की l

ख़त्म उस ने ही कर दी ऐ - यारो

जिसने शुरू प्यार की कहानी की l

होंठ उनके जब न कह सके सच

फ़िर निग़ाहों ने सच बयानी की l

शख्स वो दोस्तों था पत्थर दिल

खामखाँ उस पे गुलफिशानी की l

सोचा  बेहद  के  क्या रखूँ ता - उम्र

फ़िर ग़ज़ल " प्रेम " की निशानी की…

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Added by पंकजोम " प्रेम " on December 31, 2017 at 1:12pm — 4 Comments

विश्वसनीयता(लघु कथा)

मैं ,मैं हूँ।समझी ,कि नहीं?

-और मैं क्या हूँ,पता है?

-जरूर,पर हवाला मेरा ही दिया जाता है,तेरा नहीं।

-वो बात दीगर है।

-सच है।

-है,पर दिखने और होने में फर्क होता है।

-मतलब?

-तू समझता है।

-अरी, मेरे बिना तो सरकारें तक नहीं चलतीं, हिल जाती हैं।

-वही तो।तू पाला बदलता रहता है,मैं तिलमिलाती रहती हूँ।

-तो तुझे क्यों मलाल होता है?

-क्योंकि तू भौतिकता का कायल हो सकता है,हो भी जाता है।

-और तू?

-मैं तो भाव निरूपित करती हूँ।भाववाचक हूँ',विश्वसनीयता…

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Added by Manan Kumar singh on December 31, 2017 at 12:42pm — 8 Comments

ग़ज़ल इस्लाह के लिए :मनोज अहसास

2122  2122  2122  212

मेरे जीने का भी कोई फलसफा लिख जाइये

आप मेरी चाहतों को हादसा लिख जाइये

आपका जाना ज़रूरी है मुझे मालूम है

हो सके तो मेरी खातिर रास्ता लिख जाइये

नींद मेरी धड़कनों के शोर से बेचैन है

मेरे जीवन मे विरह का रतजगा लिख जाइये

आप अपना नाम लिख लीजै मसीहाओं के बीच

बस हमारे नाम के आगे वफ़ा लिख जाइये

गर जुदा होकर ही खुश हैं आप तो अच्छा ही है

पर हमारी चाहतों को ही खरा लिख…

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Added by मनोज अहसास on December 30, 2017 at 9:09pm — 13 Comments

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