1222 1222 122
हरम में अब समझदारी से बचिए ।
हसीनों की नशातारी से बचिए ।।
अगर ख्वाहिश जरा सी है सुकूँ की ।
रकीबों की वफादारी से बचिए ।।
यहाँ दुश्मन से कब खतरा हुआ है ।
यहाँ अपनों की गद्दारी से बचिए ।।
नियत सबकी बड़ी खोटी दिखी है ।
नगर में आप मुख्तारी से बचिए ।।
रहेगी आपकी भी शान जिंदा ।
जरूरत है कि बेकारी से बचिए ।।
है करके कुछ दिखाने की तमन्ना ।
तो पहले…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 26, 2017 at 2:00am — 8 Comments
‘सर—---सर---‘, उसने हकलाते हुए कहा –‘सर, मेरे पास जवान, सुन्दर और हसीन लड़कियों की कोई कमी नहीं है. आप उनमे से किसी को चुन लें, पर भगवान् के लिए इस लडकी को छोड़ दें’- उसने बॉस से गिडगिडाते हुए कहा .
‘अच्छा !-----मगर इस लडकी में ऐसा क्या है जो तुम इस पर इतना मेहरबान हो ?’
‘दरअसल------दरअसल -----‘ उससे कहते न बना .
‘अरे बिदास कहो. हमसे क्या डरना ?’
‘सर, वह मेरी बेटी है‘ उसका हलक सूख गया . बॉस की आँखों में विस्मय भरी चमक आयी –‘ अरे ! तब तो यह नामुमकिन है कि हम इस जवान…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 25, 2017 at 8:58pm — 7 Comments
पीठ के नीचे ..
बेघरों के
घर भी हुआ करते हैं
वहां सोते हैं
जहां शज़र हुआ करते हैं
पीठ के नीचे
अक्सर
पत्थर हुआ करते हैं
ज़िंदगी के रेंगते सफ़र हुआ करते हैं
बेघरों के भी
घर हुआ करते हैं
भोर
मजदूरी का पैग़ाम लाती हैं
मिल जाती है मजदूरी
तो पेट आराम पाता है
वरना रोज की तरह
एक व्रत और हो जाता है
बहला फुसला के
पेट को मनाते हैं
तारों को गिनते हैं
ख़्वाबों में सो जाते हैं
मज़दूर हैं…
Added by Sushil Sarna on December 25, 2017 at 7:00pm — 6 Comments
इक शाम दे दो ...
तन्हाई के आलम में
न जाने कौन
मेरे अफ़सुर्दा से लम्हों को
अपनी यादों की आंच से
रोशन कर जाता है
लम्हों के कारवाँ
तेरी यादों की तपिश से
लावा बन
आँखों से पिघलने लगते हैं
किसी के लम्स
मेरी रूह को
झिंझोड़ देते हैं
अँधेरे
जुगनुओं के लिए
रस्ते छोड़ देते हैं
तुम अरसे से
मेरे ज़ह्न में पोशीदा
इक ख़्वाब हो
मेरे सुलगते जज़्बात का
जवाब हो
अब सिवा तेरी आहटों के…
Added by Sushil Sarna on December 25, 2017 at 6:30pm — 6 Comments
16,16 पर यति,चार पद, दो-दो पद समतुकांत
बढ़ती जाती है आबादी,रोजगार की मजबूरी है
पैसे की खातिर देख बढ़ी,किस-किस से किसकी दूरी है
उस बड़े शहर में जा बैठे, घर जहाँ बहुत ही छोटे हैं
विचार महीन उन लोगों के, जो दिखते तन के मोटे हैं
पहले गाँवों में बसते थे,घर आँगन मन था खुला-खुला
थोड़े में भी खुश रहते थे,हर इक विपदा को सभी भुला
कोई कठिनाई अड़ी नहीं,मिल उसका नाम मिटाते थे
जो रूखा-सूखा होता था,सब साथ बाँट कर खाते थे
तब धमा चौकड़ी होती…
ContinueAdded by सतविन्द्र कुमार राणा on December 25, 2017 at 2:21pm — 12 Comments
1.
शायद आज बच जाओ
साम दाम दण्ड भेद से
मगर एक कैमरा
नज़र रखे है
हर करतूत पर
बिना साम दाम दण्ड भेद के .....
2.
मत उलझाइये खेल
मत कीजिये घाल-मेल
सीधी है ... सीधी ही रहने दीजिये
जिंदगी की रेल
3.
उठ रहे हैं बच्चे
सूरज के जागने से पहले
ठिठुर रहे हैं बच्चे
पीठ में बोझ लिए
झेल रह हैं बच्चे
भविष्य का दण्ड…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on December 25, 2017 at 1:30pm — 10 Comments
कार्यकर्त्ता:मंत्रीजी से मिलना है।
पीए:नहीं मिल सकते।
कार्यकर्त्ता:क्यूँ?
पीए:माननीय अभी (......से ) बेगुनाही का प्रमाण पत्र खरीदने गये हैं।
का.:क्या?
पीए:अरे विरिधियों ने घोटाले में फँसा दिया है न।
का.:अच्छा्! तो डिग्री का मामला है।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on December 25, 2017 at 12:47pm — 8 Comments
1222, 1222, 1222, 1222
चलो ये मान लेते हैं कि दफ़्तर तक पहुँचती है।
मगर क्या वाकई ये डाक, अफ़सर तक पहुँचती है।
नज़र मेरी सितारों के बराबर तक पहुँचती है।
दिया हूँ, रोशनी मेरी हर इक घर तक पहुँचती है।
वहां कैसा नज़ारा है, चलो देखें, ज़रा सोचें,
नज़र सैयाद की चींटी के अब पर तक पहुँचती है।
शरीफ़ों की हवेली में ये आहें गूँजती तो हैं,
ज़रा धीरे भरो सिसकी, ये बाहर तक पहुँचती है।
किसी से भी पता पूछा नहीं उसने कभी…
ContinueAdded by Balram Dhakar on December 25, 2017 at 11:07am — 18 Comments
आउट ऑफ़ कवरेज़
साथ-साथ बैठे हैं और दूर कहीं इंगेज हैं
4जी के दौर में घर आउट ऑफ़ कवरेज़ है |
लाइक है पॉक है ट्रेल है जोक् है ना कोई रोक है
बैठे-बैठे सारी दुनिया मुट्ठी में कर लेने का क्रेज़ है |
अंधी दौड़ है या भेड़ो का दौर है किसे किसका गौर है
अस्मिता की लड़ाई ना मालूम कौन रियल कौन फ़ेक है |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on December 24, 2017 at 10:15pm — 5 Comments
1.
सच का कहीं दूर तक
नहीं कोई पता है।
हाँ ये सच है
कि बहुत कुछ
झूठ पर टिका है।
2.
रेत मुठ्ठी से जब
फिसल जाती है ,
जिंदगी कुछ कुछ
समझ में आती है।
3.
रोज रोज के तजुर्बे
यूँ बीच बीच में
बांटा न करो ,
ये जिंदगी गर
एक सबक है तो
उसे पूरा तो हो लेने दो
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on December 24, 2017 at 7:52pm — 12 Comments
1222 1222 1222 1222
हक़ीक़त की जुबाँ होकर सदाक़त की सदा होकर
मिला क्या जिंदगी तुझको बता यूँ आइना होकर
उड़ा कर ले गई आँधी सभी अरमाँ सभी सपने
लुटे हम तो ज़माने में मुहब्बत के ख़ुदा होकर
मुहब्बत के चमन में गुल मुक़द्दस खिल नहीं पाये
तगाफ़ुल और रुसवाई मिली बस बावफ़ा होकर
तआरुफ अब मिला जाकर हमें अपनी मुहब्बत का
बनेगी दास्तां सच्ची फ़क़त अब तो फ़ना होकर
हुई सब आम वो बातें जिन्होंने लांघ दी चौखट
तमाशा बन गये आँसू इन…
Added by rajesh kumari on December 24, 2017 at 5:58pm — 20 Comments
2122 2122 212
मैं न कहता था, कि मैं निर्दोष था
दोष मुझ पर किन्तु मैं निर्घोष था |
दोष मढने के लिए था चाहिए
देखना इसमें जो’ भी गुणदोष था |
दोष संस्थापन कभी होता था नहीं
पुष्टि वह कानून का उद्घोष था |
किन्तु उनका दोष भी ज्यादा नहीं
शत्रु का तो दृष्टि का वह दोष था |
जान कर भी दोस्त सब रहते तने
मित्र गण भी बोलते दुर्घोष था |
अब तलक थे मानसिक सब कष्ट…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 24, 2017 at 2:30pm — 4 Comments
बहर - 221 1222 221 1222
ये मेरा नहीं यारो ये बुजुर्गों का मत है ......
माँ बाप के चरणों में दिखती यहाँ ज़न्नत है ......
बस मेरी ये नादानों से एक शिक़ायत है .....
बेटा लगे प्यारा क्यों बेटी से न चाहत है .....
ये ख़्वाब नहीं कोई ये एक हकीक़त है ....
कुछ लोग कहे उल्फ़त उल्फ़त नहीं आफ़त है ......
संसार में इन दोनों में फ़र्क हैं इतना सा
है हाथ अगर बेटा तो बेटी इबादत है .....
कुछ शख्स ही कह…
Added by पंकजोम " प्रेम " on December 24, 2017 at 1:37pm — 7 Comments
2122 1212 22
दफ़अतन जो निकल गए आँसू।
सारे मंज़र बदल गए आँसू।।
लाख की कोशिशें छुपाने की।
राज़ दिल का उगल गए आँसू।।
इक ख़ुशी ने मुझे पुकारा है।
ये ख़बर सुन के जल गए आँसू।।
ख़ुश्क दामन तुझे बताऊँ क्या।
वो सबब जो सँभल गए आँसू।।
इत्तिफ़ाकन ही ख़ुश्क थीं पलकें।
इंतिकामन मचल गए आँसू।।
इक तबस्सुम जो आगया लब पर।
मारे ग़म के पिघल गए आँसू।।
कौन सा पल…
ContinueAdded by Afroz 'sahr' on December 24, 2017 at 11:00am — 11 Comments
2122 /1122 /1122 /22 (112)
.
हँसता चेहरा यूँ तो रुख्सत उसे कर आएगा
दिल पे टूटेंगे सितम..... दर्द से भर आएगा.
.
एक दूजे को जो देखेंगे अगर हम यूँ ही
किसी चेहरे का किसी पर तो असर आएगा.
.
अपनी आँखों से हटा ले ये अना की पट्टी
तुझ को हर शख्स तेरा अक्स नज़र आएगा.
.
सोच के गहरे समुन्दर में लगा ले गोते,
उथले पानी में कहाँ हाथ गुहर आएगा?
.
रूह को अश्क-ए-नदामत से कभी धो कर देख,
हुस्न हस्ती का तेरी और निखर आएगा.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on December 24, 2017 at 8:30am — 24 Comments
सर पे मेरे इश्क का इल्जाम है,
और दिल का टूट जाना आम है।
हुस्न दौलत इश्क सब बेदाम है,
इसके आगे बस खुदा का नाम है।
दफ़्अतन यूँ जा रहे हो छोड़कर,
क्या तुम्हें कोई जरूरी काम है ?
ठहरो भी बैठे रहो आगोश में,
पीने दो आँखों से, ये जो जाम है।
यूँ ना देखो बेरुखी से अब हमें,
दिल ये तेरे इश्क में बदनाम है।
चल दिए यूँ छोड़ कर दामन मेरा,
क्या यही मेरी वफ़ा का दाम है।
हम तो समझे थे जिसे सबसे जुदा…
Added by रक्षिता सिंह on December 23, 2017 at 9:21pm — 4 Comments
सरदी की पहली बारिश- - - -
सरदी की पहली बारिश में
पेड़ इस तरह नहाएँ
जैसे कोई औघड़ नहाकर
गंगा से चला आए |
सरदी की पहली बारिश- - - -
धूल में साधनारत कब से
बैठा था तपस्वी !
साँसों में गरल लेकर
अमृत कलश लुटाए |
सरदी की पहली बारिश- - - -
पत्तों से यूँ गिरता पानी
ज्यों शिव की जटाएँ
पीकर गगन का अमृत
ये धरती मुस्कुराए |
सरदी की पहली बारिश- - -…
ContinueAdded by somesh kumar on December 23, 2017 at 8:11pm — 6 Comments
221 2121 1221 212
एक ग़ज़ल पूरी हुई 14 शेर के साथ ।
मुझको भी उसके पास बुलाया न जाएगा ।
मुमकिन है दौरे इश्क़ बढाया न जाएगा ।।
चेहरे से वो नकाब भी हटती नही है अब।
किसने कहा गुलाब छुपाया न जाएगा ।।
दिल मे ठहर गया है मेरे इस तरह से वो।
उसका वजूद दिल से मिटाया न जाएगा ।।
यूँ ही तमाम उम्र निभाता रहा हूँ मैं ।
अब साथ जिंदगी का निभाया न जाएगा ।।
बन ठन के मेरे दर पे वो आने लगे हैं खूब ।…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 23, 2017 at 3:00pm — 5 Comments
फ़ाइलातून मफ़ाईलुन फेलुन
पहले था अश्क़बार आज भी है
दिल मेरा सोगवार आज भी है
मैं नहीं हूँ किसी भी लायक़ पर
आपको एतिबार आज भी है
जो था पहले वही है रिश्ता-ए-दिल
प्यार वो बे-शुमार आज भी है
इश्क़ आँखें बिछाए बैठा है
आपका इन्तिज़ार आज भी है
लाख दुनियां ने तोड़ना चाहा
दिल से दिल का क़रार आज भी है
#संतोष
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by santosh khirwadkar on December 23, 2017 at 6:04am — 12 Comments
'देख लूँगा स्साले को।'
-अरे क्या हुआ?कुछ बोलोगे भी?
-हम कालाबाजारी वाला केस जीत गये।
-बल्ले-बल्ले रे भइये।इ तो नच बलिये हो गवा।
-बाकिर वकीलवा पेंच फँसा रहल बा नु।
-उ का?
-उहे फ़ीस के लफड़ा।
-उ त सब फरिआइये गइल रहे।सात बरिस के फ़ीस एकमुश्ते देवे के रहे।
-हँ भाई, पूरे अठाईस गो सुनवाई भइल बा।
-त अठाइस हजार रुपिया भइल,आउर का?दियाई उनके।
-ना नु भाई,उ अब अबहीं के हिसाब से फ़ीस जोड़ ता। चार हजार रुपैया फी पेशी।
-बात त हजारे रुपया पेशी के भइल रहे।उ पगलाइल बा…
Added by Manan Kumar singh on December 23, 2017 at 5:52am — 10 Comments
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