चौकीदारी - ( लघुकथा ) –
"तिवारी जी,सुना है आप के तो दौनों बेटे बहुत बडे गज़टैड अफ़सर हैं!आप कैसे आ फ़ंसे यहां बृद्धाश्रम में"!
"सुनील जी, मैं तो यहां स्वेच्छा से आया हूं, बच्चे तो बहुत ज़िद करते हैं अपने साथ रखने की"!
"क्यों मज़ाक करते हो तिवारी जी,दिल बहलाने को सब यही कहते हैं, पर कौन अपना घर परिवार छोड कर यहां आता है"!
"यह मज़ाक नहीं,हक़ीक़त है"!
"फ़िर इसके पीछे कोई विशेष कारण रहा होगा"!
"ठीक सोचा आपने"!
"अगर ऐतराज़ ना हो तो वह कारण भी बता…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on February 14, 2016 at 10:56am — 12 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2016 at 10:01am — 7 Comments
Added by Rahila on February 14, 2016 at 12:03am — 14 Comments
बनारसी गईया चरा के लौटे और उनको चरनी पर बाँध के पीठ सीधा करने के लिए झोलंगी खटिया पर लेट गए। इस बार पानी महीनों से बरस नहीं रहा तो घाँस भी कम हो गयी है सिवान में, गर्मी अलग बढ़ गयी है। गमछी से माथे का पसीना पोंछते हुए मेहरारू को आवाज़ दिए " अरे तनी एक लोटा पानी त पिलाओ रघुआ की महतारी, बहुत गरम है आज"। दरवाज़े पर नज़र दौड़ाये तो साइकिल नहीं दिखी, मतलब रघुआ कहीं निकला है।
" कहाँ गायब हौ तोहार नवाब, खेत बारी से कउनो मतलब त नाहीं हौ, कम से कम गईया के ही चरा दिहल करत", पानी लेते हुए मेहरारू से…
Added by विनय कुमार on February 13, 2016 at 11:48pm — 6 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 13, 2016 at 11:05pm — 3 Comments
बसंत की शोभा बनती
कोयल मीठी बोलती
डाली डाली पर उड़ती
अमृत रस है घोलती
राही से कुछ कहती
नव उमंग से भरती
तन की पीड़ा हरती
मन में खुशियाँ भरती
कड़वाहट को दूर करती
सबका दिल है जीतती
प्यारी सबको लगती
कौवे पर नजर रखती
सदा मेहनत से बचती
घोसले का इंतेजार करती
मौका देख खुद अंडे देती
कौवे के अंडे बाहर करती
उसके संग साजिस करती
बच्चों को नहीं पालती
कोयल कौवे संग…
ContinueAdded by Ram Ashery on February 13, 2016 at 4:30pm — No Comments
मन आंगन की चुनमुन चिड़िया,
चंचल चित्त पर धैर्य सिखाती.
गांव-शहर हर घर-आंगन में
इधर फुदकती उधर मटकती
फिर तुलसी चौरे पर चढ़ कर
चीं चीं स्वर में गीत सुनाती
आस-पास के ज्वलन प्रदूषण
दूर करे इतिहास बुझाती. 1 मन आंगन की चुनमुन चिड़िया..
देह धोंसले घास-पूस के
मिट्टी रंग-रोगन अति सोंधी
आत्मदेव-गुरु हुये कषैले
सिर पर यश की थाली औंधी
बच्चों के डैने जब नभ को
लगे नापने, मां ! हर्षाती. २ मन…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 13, 2016 at 3:00pm — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 13, 2016 at 8:28am — 10 Comments
(1)
आया बसंत
मेरा मन मलंग
रंगों के संग
.
(2)
पीली सरसों
इठलाती खेतों में
मलय संग
(3)
मुदित पुष्प
सज कर रंगों से
भौंरों के संग
.
(4)
अमराई में
कोयल की कुहुकें
जल तरंग
.
(5)
विरह गीत
मंजुल होठों पर
अश्रु के संग
.
(6)
तान सुरीली
दूर उपवन में
राधा के संग
.
(7)
लाल अगन
दहके उपवन
टेसू के…
Added by Arun Kumar Gupta on February 12, 2016 at 4:30pm — No Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 12, 2016 at 3:10pm — 5 Comments
सौ बार जनम दे मां मुझको, सौ बार तुझी पर मरना है,
सौ बार ये तूफां आने दे, बाहों में इसको भरना है,
ख्वाब है मेरा मां तुझपर सौ बार लुटानी हैं सांसे,
सौ बार तेरी गोदी में सोकर फख्र खुदी पर करना है,
जमती अन्तिम सांस ने जब ये शेरों की मानिन्द कहा,
तब वीरों के इस जज्बे को हर दुश्मन ने जय हिंद कहा ll
जो तूफां की सरशैया पर हंसते-हंसते लेटा हो,
हंसकर उसकी मां बोली हर मां का ऐसा बेटा हो,
फख्र है मुझको जाते-जाते सियाचीन की गोद भर गया,
खाली मेरी गोद नहीं…
Added by Er Anand Sagar Pandey on February 12, 2016 at 11:00am — 8 Comments
भवदिव्य भाव मनोरमां,झन झनक झन झनकार दे
जय जयति जय जय ,जयति जय जय जयति जय माँ शारदे
कमलासिनी वरदायिनी माता हमें वरदान दे
जय जयति ........
चरणों में तेरे हैं समर्पित ज्ञान की ले याचना
वेदों का कर दो दान माते कर रहे हम प्रार्थना
माँ हम फसें मझधार में भवतारिणी तू तार दे
जय जयति.......
माँ छेड़ दो वो राग जिससे स्वरमयी धारा बहे
लोकों में तीनो मातु तेरी लोग सब जै जै कहें
स्वरदायनी माँ स्वरस्वती स्वर का हमें अधिकार दे
जय…
Added by Amit Tripathi Azaad on February 12, 2016 at 10:00am — 1 Comment
२१२२/१२१२/२२/
ख़ुशबुओं का सफ़र नहीं आया,
खत लिए नाम:बर नहीं आया.
.
सुब’ह, राहें भटक गया... कोई,
शाम तक उस का घर नहीं आया.
.
देर तुम से न देर मुझ से हुई,
वक़्त ही वक़्त पर नहीं आया.
.
चलते चलते गुज़ार दी सदियाँ,
अब भी मौला का दर नहीं आया.
.
जिस्म की छाँव में रखा जिन को,
उन पे मेरा असर नहीं आया.
.
‘नूर’ ऐसा!! निगाहें क्या उठती,
हश्र पर कुछ नज़र नही आया.
.
मौलिक / अप्रकाशित
निलेश "नूर"
Added by Nilesh Shevgaonkar on February 11, 2016 at 6:40pm — 4 Comments
Added by Manan Kumar singh on February 10, 2016 at 9:00pm — 6 Comments
2122 2122 2122 212
हाय दिल में बस गयी एक गीत गाती सी नज़र ।
कुछ बताती सी नज़र और कुछ छुपाती सी नज़र ।
उसकी आहट से सिहर उठते हैं मेरे जिस्मो-जाँ
बाँचती है मुझको उसकी सनसनाती सी नज़र ।
ज़िन्दगी के फलसफे को पंक्ति दर पंक्ति पढ़ा
क्या गहनता नाप पाती सरसराती सी नज़र ?
आज फिर खामोश सहमा सा कहीं आँगन कोई
सूँघ ली क्या बच्चियों ने बजबजाती सी नज़र ?
कतरा कतरा हो रही है रूह जैसे अजनबी
मुझको मुझसे छीनती है हक़ जताती सी नज़र।…
Added by Dr.Prachi Singh on February 10, 2016 at 4:00pm — 9 Comments
" रॉय जी ! मुझे नायर जी ने बताया कि आप भी शिक्षा के क्षेत्र में बिजनेस करना चाहते हैं।"
" जी हाँ, आप से इसी बारे में बात करनी है।आप दो- दो इंजिनियरिंग कॉलेज और एक मेडिकल कॉलेज चला रहे हैं।आपको काफी अनुभव होगा।"
" रॉय जी ! इंजीनियरिंग कॉलेज खोलना अब घाटे का सौदा है।मेरे ही दोनों कॉलेज में इस साल दो हज़ार सीटें खाली हैं ।समझ नहीं आ रहा लोगों को अब क्या हो गया।पहले तो हर माँ -बाप अपने बेटे को इंजीनियर बनाना चाहते थे। " गुप्ता जी ने दीवार पर लगे गांधी जी की तस्वीर पर एक नज़र डालते…
Added by Janki wahie on February 10, 2016 at 12:00pm — 8 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 9, 2016 at 11:00pm — 13 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on February 9, 2016 at 8:34pm — 11 Comments
वक़्त गुज़रता है गुज़र जाता है
जैसे धूप की सीढ़ियों से दिन
पहाड़ों की रेल पकड़े-पकड़े
हर रोज़ उतर जाता है
जैसे शाम से आगे
रात के अँधेरे में सूरज
किसी अपरास्त सैनिक की मानिंद
भरे-भरे कदमों घर जाता है
बच्चे स्कूल और कॉलेज चले जाते हैं
घर के कुत्ते भी खाना खाकर सो जाते हैं
तोता पिंजरे में टांय टांय करके
झूले से उतर जाता है
और घर के आँगन में
पीपल का…
Added by राज़ नवादवी on February 9, 2016 at 6:00pm — No Comments
हाँ, कुछ महीनों से घर बैठा हूँ
और इसलिए
आजकल कविता ही लिखता हूँ
मगर तुम तो जानती हो
कविता लिखने से काम तो नहीं चलता
बाजारों में कड़कते नोट चलते हैं
और खनकते सिक्के
रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए
शायर का नाम तो नहीं चलता
हाँ, वाहवाहियाँ मिलती हैं
और शाबाशियाँ भी खूब
इरशाद इरशाद कहके चिल्लाते हैं
और देते है तालियाँ भी खूब
लाइक्स भी मिलते हैं और…
Added by राज़ नवादवी on February 9, 2016 at 6:00pm — No Comments
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