For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,140)

एक गजल

दरिया रहा कश्ती रही लेकिन सफर तन्हा रहा

हम भी वहीं तुम भी वहीं झगड़ा मगर चलता रहा

साहिल मिला मंजिल मिली खुशियां मनीं लेकिन अलग

खामोश हम खामोश तुम फिर भी बड़ा जलसा रहा

सोचा तो था हमने, न आयेंगे फरेबे इश्क में

बेइश्क दिल जब तक रहा इस अक्ल पर परदा रहा

शिकवे हुए दिल भी दुखा दूरी हुई दोनों में पर

हर बात में हो जिक्र उसका ये बड़ा चस्का रहा

छाया नशा जब इश्क का 'चर्चित' हुए कु्छ इस कदर

गर ख्वाब में…

Continue

Added by VISHAAL CHARCHCHIT on June 3, 2014 at 2:30pm — 13 Comments

ग़ज़ल -निलेश "नूर"

२१२२, २१२२,२१२२, २१२२  



क्या सुनाऊं दोस्त तुझको ज़िन्दगानी की कहानी,

चार सू तूफ़ान हैं और अपनी कश्ती बादबानी.

***

जब मिले पहले पहल तुम, ख्व़ाब थे रंगीन सारे,

सुर्ख आँखें हैं मेरी उस दौर की ज़िन्दा निशानी.

***

याद की इन आँधियों में दिल बिखर जाता है ऐसे,   

जिल्द फटने पर बिखरती डायरी जैसे पुरानी.

***

देर तक रोता रहा क़ातिल मेरा, मैंने कहा जब, 

जान तू ले ले मेरी तो होगी तेरी मेहरबानी.

***

खो गए है हर्फ़ सारे, बुझ गए…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2014 at 11:00am — 31 Comments

कुछ कुण्डलिया छंद

 

[1] 

पूजनीय हैं  माँ-पिता, सदा करो सम्मान ।

जीवन दाता है यही, खुदा यही भगवान ॥

खुदा यही भगवान, धर्म निज खूब निभाते ।

संतानों को पाल - पोस कर नेह लुटाते ॥

मन से दो तुम मान सदा ये बंदनीय है ।

करें  अहेतुक प्यार  हमारे पूजनीय हैं  ॥

[2]

माया छलना मोहती , धारे रूप अनेक ।

केवल माला फेरता,  कैसे हो तू नेक ॥

कैसे हो तू नेक,  फंसाए तुझको माया ।

जाल बिछा हर ओर उलझती जाती काया ॥

मानो …

Continue

Added by annapurna bajpai on June 2, 2014 at 11:30pm — 14 Comments

मैं मूक बन जाती हूँ …।

मैं मूक बन जाती हूँ …।

नहीं, अब मैं इस गहन तम में नभ को न निहारूंगी

अपनी अभिलाषाओं को तम के गहन गर्भ में दबा दूंगी

दर्द की नमी को पलकों में ही दफना दूंगी

अपने गिले -शिकवों का बवंडर अपने दिल के किसी कोने में छुपा लूंगी

कितना विशवास था

तुम तो मेरे हृदय की टीस को पहचानोगे

यौवन की दहलीज़ पर पाँव रखते ही

हर निशा मैं तुम्हें निहारती थी

शशांक मेरे पागलपन पर मुस्कुराता था

पवन मुझे…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 2, 2014 at 12:39pm — 18 Comments

ज़िन्दगी.......

ना रंग, ना रूप

ना छाया, ना धूप

ना ख्वाहिश, ना सपने

ना पराये, ना अपने

खाली धरती, सूना आसमाँ

ना चाहत कोई, ना अरमाँ

ना ख़ुशी, ना, कोई गम

ना सब, ना तुम, ना हम

चाबी भरा, एक जिन्दा खिलौना

हँसता मुस्कुराता ख्वाब सलोना 

बोझ सी साँसें, बोझिल आँखें

कुछ सुनी, कुछ अनसुनी बातें

हिलत, डुलती, नाचती चमड़ी

जाला बुनती, वक़्त की मकड़ी

चलता सफ़र थकती साँसें

अश्क़ भरी, मुस्कुराती आँखें

फ़र्ज़ के बंधन, रूह…

Continue

Added by RACHNA JAIN on June 2, 2014 at 11:07am — 3 Comments

एक अच्छी शुरुवात है

कुछ नई सी बात है

आज सुरमई  प्रभात है

उम्मीद नहीं विश्वास है

एक अच्छी शुरुवात है

एक पग आगे बढ़ा

कोटि पग भी बढ़ चले

हाथों से हाथ मिले

दिलों के तार जुड़ते चले

ये भी जज्बात है

एक अच्छी शुरुवात है……….

जैसे छिप गया हो तम

अँधेरे की बौछार से

नवल कोंपलें खिल उठीं

बसंत की पुकार से

 प्रकॄति की सौगात है

एक अच्छी शुरुवात है………….

हौसलों की उड़ान भर

उद्धमी मन थकता नहीं

असंभव को संभव…

Continue

Added by Maheshwari Kaneri on June 1, 2014 at 7:49pm — 12 Comments

क्यूँ न हम जुल्फ हुये सोचकर ये खलता है

२१२२ ११२२ १२१२ २२
इश्क की मौज में जब दिल में कुछ उछलता है
चांदनी रात में शोलों सा तन ये जलता है

राहे मंजिल पे यूं तो गुल तमाम थे लेकिन
आँख जब से लड़ी तन बर्फ सा पिघलता है

बंदिशें तोड़ के कह दे तू इस जमाने से
जलने वाला तो बात बात पे ही जलता है

चूम लेती हैं हसीं रुख को जब कभी जुल्फें
क्यूँ न हम जुल्फ हुये सोचकर ये खलता है

जुल्फ की छांव का अहसास तो किया होता
घर के साए से यकीनन ये दिल बहलता है

मौलिक व अप्रकाशित

Added by Dr Ashutosh Mishra on June 1, 2014 at 2:11pm — 19 Comments

आखिर कैसा देश है ये ? --- अरुण श्री

आखिर कैसा देश है ये ?

- कि राजधानी का कवि संसद की ओर पीठ किए बैठा है ,

सोती हुई अदालतों की आँख में कोंच देना चाहता है अपनी कलम !

गैरकानूनी घोषित होने से ठीक पहले असामाजिक हुआ कवि -

कविताओं को खंखार सा मुँह में छुपाए उतर जाता है राजमार्ग की सीढियाँ ,

कि सरकारी सड़कों पर थूकना मना है ,कच्चे रास्तों पर तख्तियां नहीं होतीं !

पर साहित्यिक थूक से कच्ची, अनपढ़ गलियों को कोई फर्क नहीं पड़ता !

एक कवि के लिए गैरकानूनी होने से अधिक पीड़ादायक है गैरजरुरी होना…

Continue

Added by Arun Sri on June 1, 2014 at 1:00pm — 23 Comments

कुहरा धना है गजल तरही गजल

2122 2122 2122

मत कहो आकाश में कुहरा धना है

जाल धुमते बादलो ने बस बुना है



धूप की चादर अभी फैली फिजा में

चाँदनी को चाँद से मिलना मना है



भूल से भी हम न तड़़पाये तुझे थे

दे गवाही आज वो तेरा अना है



फूल भी रोने लगे तब से चमन में

रौद देगा माली ही जब से सुना है



नींद भी तब से नहीं आती किसी को

आदमी शैतान ही जब से बना है



आज ये सुन  शर्म खुद रोने लगा क्‍यों

औरतो ने राह पर  बच्‍चा जना है



मौलिक एवं…

Continue

Added by Akhand Gahmari on June 1, 2014 at 1:00am — 13 Comments

गजल दिल जलाते है

1222   1222   1222  1222

कहाँ से अजनबी दिल के हमारे पास आते है/

हमारे दिल में बस कर वो हमारा दिल चुराते है



हमारी‍ जिन्‍दगी भी तो अमानत होे गई जिनकी

वही अब जिन्‍दगी में आग जाने क्‍यों लगाते है





जहर खाना नहीं जीवन बड़ा अनमोल सुन लो तुम



न खाये हम जहर तो क्‍या करें वो दिल जलाते है





हमारे सपनो को अपना कभी वो समझते ले‍किन

न जाने क्‍यों…

Continue

Added by Akhand Gahmari on May 31, 2014 at 10:00pm — 7 Comments

तुम और मैं

तुम और मैं कितनी सदियों से

हाँ, कितने जन्मों से,

कितने चेहरे और रूप लिये

कभी भूले से, कभी अंजाने से.

एक युग में कभी तृण बन के

अमृत जल से बरसे कहीं,

नभ में तारे बन के चमके कभी

कितनी कहानियाँ सुनी अनसुनी रहीं.

किसका सफ़र था जो हवा बन के

गुज़र रहा था पात पात

एक गुलाब खिला था वन में

कुछ महक थी बसी मकरंद में.

एक एहसास था मन के कोने में

वह ढूँढ़ रहा था एक ठाँव,

कितने बसेरे मिले थे…

Continue

Added by coontee mukerji on May 31, 2014 at 1:00pm — 9 Comments

जिसका वो अंश है ……

जिसका वो अंश है ……

कौन है ज़िंदा ?

वो मैं,जो सांसें लेता है

जिसका प्रतिबिम्ब दर्पण में नज़र आता है

जो झूठे दम्भ के आवरण में जीवन जीता है

या

वो मैं जो अदृश्य हो कर भी सबमें समाया है

न जिसकी कोई काया है

न जिसका कोई साया है

कितना विचित्र विधि का विधान है

एक मैं, नश्वरता से नेह करता है

एक मैं, अमरत्व के लिए मरता है

मैं के परिधान में जो मैं ज़िंदा है

वही प्रभु का सच्चा परिंदा है …

Continue

Added by Sushil Sarna on May 31, 2014 at 12:30pm — 14 Comments

कुंडलिया छंद-लक्ष्मण लडीवाला

महाराणा प्रताप की जयंती पर समर्पित -कुंडलिया छंद

रचते है इतिहास ही,राणा जैसे वीर

माँ वसुधा के लाल ये,ये ही असली पीर 

ये ही असली पीर, युद्ध से जिनका नाता 

दुश्मन को दे…

Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 31, 2014 at 11:00am — 14 Comments

खुद रूठूँ और खुद मन जाऊं ……

खुद रूठूँ और खुद मन जाऊं ……

खुद रूठूँ और खुद मन जाऊं

प्रीतम तुझ को कैसे बुलाऊँ

पल-पल ..तेरी राह निहारूं

एकांत पलों में तुझे पुकारूं

जीने की कोई आस बता दे

किस मूरत से .नेह लगाऊं

खुद रूठूँ और खुद मन जाऊं

प्रीतम तुझ को .कैसे बुलाऊँ

भोर व्यर्थ मेरी .साँझ व्यर्थ है

तुझ बिन मेरी प्यास व्यर्थ है

अंबर के घन .कुछ तो कह तू

कैसे नयन का ...नीर…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 30, 2014 at 3:07pm — 12 Comments

वो बरगद आरियों का निशाना हो गया है

1222  122  1222  122

वो बरगद आरियों का निशाना हो गया है

परिन्दा दर ब दर बेसहारा हो गया है

 

हवस दुनिया की बरबाद कर देती उसे भी

चलो मुफ़लिस की बेटी का रिश्ता हो गया है

 

गरीबी थी कि मजबूरी थी बच्चे की कोई…

Continue

Added by gumnaam pithoragarhi on May 29, 2014 at 8:30pm — 15 Comments

आये अज़ल जिस गोद में ……

आये अजल जिस गोद में  ……

कितने निर्दयी हो तुम

दबे पाँव आते हो

मेरे खामोश लम्हों को

अपनी यादों से झंकृत कर जाते हो

झील की लहरों पे चाँद

लहर लहर मुस्कुराता है

मेरी बेबसी को गुनगुनाता है

सबा मेरे गेसुओं से लिपट

मेरी ख़्वाहिशों को बार बार ज़िंदा कर जाती है

तुम्हारे मुहब्बत में डूबे लम्स

मेरे लबों पे कसमसाते हैं

मगर तड़प के इन अहसासों को तुम न समझोगे

तुम क्यों नहीं समझते

मेरे तमाम…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 29, 2014 at 1:00pm — 20 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
‘’हमारे रिश्ते‘ -अतुकांत (गिरिराज भंडारी)

‘’ हमारे रिश्ते ‘’

*****************

अगर रिश्ते सच में हैं , तो

मीलों की दूरियाँ

कमज़ोर नही करती रिश्तों की मज़बूती

मिलन की प्यास बढाती ज़रूर है

 

रिश्ते , मृग मरीचिका नहीं होते

कि , पास पहुँचें तो नज़र न आयें

भावनायें प्यासी रह जायें

 

रिश्ते

रेत मे लिखे इबारत भी नही होते

कि ,सफल हो जायें, जिसे मिटाने में

समय के समुद्र में उठती गिरती कमज़ोर लहरें भी

रिश्ते

शिला लेख की तरह…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on May 28, 2014 at 9:30pm — 33 Comments

फ़रिश्ता हूँ न कोई देवता हूँ

फ़रिश्ता हूँ न कोई देवता हूँ
खिलौना हूँ मैं मिट्टी से बना हूँ

दग़ा खाने में तू रहता है आगे
दिले-नादान मैं तुझसे ख़फ़ा हूँ

सिला मुझको भलाई का भला दे
ज़ियादा कुछ नहीं मैं माँगता हूँ

मैं जबसे लौटा हूँ दैरो-हरम से
पता सबसे ख़ुदा का पूछता हूँ

मेरा चेहरा किताबे-ज़िन्दगी है
ज़ुबां से मैं कहाँ कुछ बोलता हूँ

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Sushil Thakur on May 28, 2014 at 8:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल - हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

१२१२      ११२२      १२१२     ११२  

हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी

बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर

जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी

कदम कदम पे हिदायत मिली सफर में हमें

कदम कदम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी

नहीं थी कद्र कभी मेरी हसरतों की उसे

ये और बात कि अब वो भी बेकरार लगी

मदद का हाथ नहीं एक भी उठा था मगर

अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार…

Continue

Added by sanju shabdita on May 28, 2014 at 7:14pm — 58 Comments

हर ग़ज़ल अच्छी बनेगी ये जरूरी तो नहीं

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

हर ग़ज़ल अच्छी बनेगी ये जरूरी तो नहीं

दुनिया मुझको ही पढेगी ये जरूरी तो नहीं

फ़ौज सरहद पे खडी हो चाहे दुश्मन की तरह

कोई गोली भी चलेगी ये जरूरी तो नहीं

आज सागर हाथ में माना कि मेरे दोस्तों

प्यास पर मेरी बुझेगी ये जरूरी तो नहीं

इन चिरागों में भरा हो तेल कितना भी भले

रात भर बाती जलेगी ये जरूरी तो नहीं

आज उसकी ही खता है खूब है उसको पता

मांग पर माफी वो लेगी ये जरूरी तो नहीं

जोड़ लो दुनिया की दौलत जीत लो हर जंग…

Continue

Added by Dr Ashutosh Mishra on May 28, 2014 at 12:15pm — 31 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service