बेटियाँ
बेटियों की ज़मीन को सींचो
उग रही पौध को नहीं खींचो
ये हमारे समाज की जड हैं,
इन जडों के शरीर मत भींचो।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सूबे सिंह सुजान on January 15, 2015 at 11:12pm — 4 Comments
कोई पत्थर और कोई आईने ले के
आ रहा हर एक अपने दायरे ले के
यूँ चले हो रात को दीपक बुझे ले के
खुद अँधेरा भी परेशाँ है इसे ले के
बस ठिठुरते रह गए दरवाजे बाहर ख्वाब
ये सुबह आई है कितने रतजगे ले के
जिंदगानी तंग गलियां भी न दे पाई
मौत हाजिर हो गई है हाइवे ले के
आपका आना तो कल ही सुर्ख़ियों में था
आज फिर अख़बार आया हादसे ले के
साकिया यूँ बेरुखी से मार मत हमको
रिन्द जायेगा कहाँ ये प्यास ले ले के
कुछ न कुछ…
Added by भुवन निस्तेज on January 15, 2015 at 7:30pm — 16 Comments
1222 1222 1222 1222
पहन रख पैरहन, उरियानियाँ अच्छी नहीं लगतीं
कि बद को भी, कभी बदनामियाँ अच्छी नहीं लगतीं
फसादी हो अगर, तो बोलियाँ अच्छी नहीं लगतीं
वहीं बेवक़्त की खामोशियाँ अच्छी नहीं लगतीं
खुला आकाश हो सबका ,परों मे ताब हो सबके
कफस अंदर की ये आज़ादियाँ, अच्छी नहीं लगतीं
भरम रख़्ख़ें वे मौसम का , कहे कोई उन्हें जा कर
कभी बे वक़्त छाई बदलियाँ, अच्छी नहीं लगतीं
चला आया है जुगनू…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 15, 2015 at 5:30pm — 23 Comments
ग़म मौत के ......(.एक रचना )
ग़म मौत के कहाँ जिन्दगी भर साथ चलते हैं
चराग़ भी कुछ देर ही किसी के लिए जलते हैं
इतने अपनों में कोई अपना नज़र नहीं आता
अब तो रिश्ते स्वार्थ की कड़वाहट में पलते हैं
दोस्ती राहों की अब राह में ही दम तोड़ देती है
अब किसी के लिए कहाँ दर्द आंसुओं में ढलते हैं
मिट जाते हैं गीली रेत पे मुहब्बत भरे निशाँ
फिर भी क्यूँ लोग गीली रेत पे साथ चलते हैं
सच को छुपा कर लोग…
Added by Sushil Sarna on January 15, 2015 at 4:10pm — 10 Comments
सचमुच,कुछ बदला है क्या?
हाँ ...
बदली हैं सरकारें, लेकर लुभावने वादे,
खाऊँगा न खाने दूंगा,
साफ़ करूंगा, साफ़ रखूंगा,
मेक इन इण्डिया
मेड इन इण्डिया
‘सायनिंग इण्डिया’ का नया…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on January 15, 2015 at 10:39am — 17 Comments
हुई क्यों दूर दिल से मैं मिले फुरसत बता देना
बनाना इक कहानी तुम मुझे फिर वो सुना देना
बनी दुल्हन चली आई सजन मैं साथ में तेरे
करोगे प्यार मुझको तुम यही अरमान थे मेरे
मगर टूटे सभी अरमा जला दिल मैं दिखाऊँ क्या
नजर के पास रह कर भी बढी दूरी बताऊँ क्या
न आना पास अब मेरे सभी सपने जला देना
बनाना इक कहानी तुम मुझे फिर वो सुना देना
हुई क्यों दूर दिल से तुम मिले फुरसत बता देना
मिला है तन तुझे मेरा नहीं क्यों मन लिया तुमने
कभी भी प्यार के इक…
Added by Akhand Gahmari on January 15, 2015 at 10:29am — 8 Comments
नहीं राजी हुआ कोई ,मेरा किरदार करने को
बिना क़श्ती के निकला हूँ ,समन्दर पार करने को
..
कोई सोये कहीं भूख़ा ,ज़लाये मुल्क़ भी कोई
इन्हें बस वोट लेने हैं, मज़े सरक़ार करने को
..
कोई मौजूद था मेरा ,मेरे दुश्मन की महफ़िल में
रची साजि़श उसी ने थी, मुझे गद्दार करने को
..
तुम्हारे इक इशारे पर , मेरी ये ज़ान जानीं है
मग़र ज़िन्दा जो रक़्खा हैं,गुनाह स्वीकार करने को
..
चली आयी तसव्वुर में , तेरी तस्वीर धुँधली सी
मेरी ये जान बाक़ी है ,फ़क़त दीदार…
Added by umesh katara on January 15, 2015 at 8:58am — 18 Comments
मेरा जीवन पी गया, तेरी कैसी प्यास । |
पनघट से पूछे नदी, क्यों तोड़ा विश्वास ।१। |
|
मन में तम सा छा गया, रात करे फिर शोर। |
दिनकर जो अपना नहीं, क्या संध्या क्या भोर ।२।… |
Added by मिथिलेश वामनकर on January 14, 2015 at 10:30pm — 33 Comments
Added by विनोद खनगवाल on January 14, 2015 at 9:33pm — 7 Comments
212 212 22
ज़िन्दगी अपनी छोटी है
बस जरा सी ये खोटी है
हादसों को बुरा मत कह
यार मेरा लंगोटी है
चाँद कहते महल वाले
झोपड़ी कहती रोटी है
इस सियासत की चौपड़ में
स्वार्थ की फैली गोटी है
झूठ की सत्य की देखो /p>
हो गई बोटी बोटी है
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागगढ़ी
Added by gumnaam pithoragarhi on January 14, 2015 at 6:30pm — 10 Comments
दादीसा के भजनों जैसी मीठी दुनिया
पहले जैसी कहाँ रही अब अच्छी दुनिया
प्यार मुहब्बत , भाईचारे ,मानवता की
नहीं समझती बातें सीधी सादी ,दुनिया
दिन सी उजली रातें भी हो जाये यारों
अँधियारे में रहे भला क्यूं आधी दुनिया
घर से ऑफिस ऑफिस से घर फिर कुछ ग़ज़लें
सिमट गई है इतने में ही मेरी दुनिया
नटखट बच्चे घर की खटपट मेरी बाँहें
कितनी छोटी सी है यारों उसकी दुनिया
शहरों में है झूठे दर्पण…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 14, 2015 at 1:26pm — 13 Comments
आपसी ताप से जलती टहनियाँ
************************
आँधियों की छोड़िये
हवा थोड़ी भी तेज़ बहे, स्वाभाविक गति से
टहनियाँ रगड़ खाने लगतीं हैं
एक ही वृक्ष की
आपस में ही
पत्तियाँ और फूल न चाहते हुये भी
कुसमय झड़ जाने के लिये मजबूर हो जाते हैं
टहननियों की अपनी समझ है ,
परिभाषायें हैं खुशियों की ,
गमों की
फूल और पत्तियाँ असहाय
जड़ें हैरान हैं , परेशान हैं
वो जड़ें ,
जिन्होनें सब टहनियों के लिये…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 14, 2015 at 1:16pm — 17 Comments
कुछ माह पहले
पैरों में लिपटते थे सांप
कीचड में सनते थे
पैर और वाहन
पसीने से चुभते थे वपुष में कांटे
धुप में झुलसी जाती थी देह
कुछ माह पहले
नभ से बरसता था
थका-थका मेह
पुरवा से ऐठती थी ठाकुर की देह
क्वार की धूप में हांफता था बैल
कुछ माह पहले
हवा में नमी थी
चलता न वात
पंखा हांकने से सूखता न गात
बरगद के नीचे भी ठंढी…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 14, 2015 at 12:05pm — 13 Comments
2122 2122 212
*********************
बस गया है लाल बाहर क्या करे
हो गया है खेत बंजर क्या करे
***
एक बूढ़ी माँ अकेली रह गई
काटने को दौड़ता घर क्या करे
***
चाँद लौटेगा नहीं अब, है पता
रात भर रोकर भी अम्बर क्या करे
***
ठोकरें खाना खिलाना भाग्य में
राह का टूटा वो पत्थर क्या करे
***
रीत तो थी, जिंदगी भर साथ की
दे गया धोखा जो सहचर क्या करे
***
हाथ आयी करवटों की बेबसी
मखमली…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2015 at 11:26am — 14 Comments
2122- 1212- 1212- 22 /112
कोई सूरत तो हो कि तुझपे ऐ’तबार आये
क्या पता दिलफ़रेब बन के ग़मग़ुसार आये
मैं तुझे भूलने की कोशिशों में हूँ बेचैन
पर मुझे तेरा ही खयाल बार-बार आये
ज़ीस्त गुज़री ख़मोशियों के दरमियान मगर
ये हुआ वक़्ते मर्ग लोग बेशुमार आये
दिल नज़ारा ए रंगो गुल को कब से तरसे है
ऐ खुशी काश तू मिसाले नौबहार आये
कौन सा दह्र है ये कौन सी जगह है जहाँ
दूर तक बस नज़र गुबार ही गुबार…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 14, 2015 at 9:02am — 33 Comments
" आप बस एक बार कह दो कि ये उन लोगों ने किया है , बाक़ी तो हम देख लेंगे " , मोहल्ले के तथाकथित धर्म गुरु काफी आवेश में थे | मौका अच्छा था और तमाम लोग इंतज़ार में थे इसका फायदा उठाने के लिए |
चच्चा सर झुकाये बैठे थे , चेहरा आँसुओं से तराबोर था | उनकी तो दुनिया ही मानो उजड़ गयी थी , जवान बेटे को खो चुके थे | लेकिन धीरे से सर उठा कर बोले " क़ातिल का कोई मज़हब नहीं होता "|
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on January 14, 2015 at 1:40am — 24 Comments
आत्मायें,
बिक चुकीं हैं,
बेचीं जा रहीं हैं,
कुछ असहाय,बिचारीं हैं,
कुछ म्रत्प्रायः,
कुछ मर चुकी हैं !
शरीर,
उन मृत आत्माओं का,
बोझ ढोए जा रहें हैं !
शब्द,
खो चुके अपना अर्थ,
उन अर्थहीन शब्दों से,
अच्छे दिनों के नारे लगा रहें हैं !
पैर,
चलना नहीं चाहते,
उन अनिच्छुक पैरों को ,
अच्छे दिनों की आस में,
कंटक पथों पर जबरन चला रहें हैं !
ईश्वर,
रंगमंच पर विद्यमान…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 14, 2015 at 1:08am — 19 Comments
नाम तुम्हारे दीवारों पे लिख छोड़ा सन्देशा
तुम भी लिखना खत मुझको,जो इसको देखा
अंजान नगर,अंजान डगर तुम बिल्कुल अन्जानी
पर अपने ठोढ़ी के तिल से जाती हो पहचानी
जब हंसती हो गालों पे खिंच जाती है रेखा |
नाम तुम्हारे..........
गोरी कलाई में पहने थी तुम कंगन काला
बालों की लट ऐसे बिखरे जैसे हो मधुबाला
जिससे बोलोगी वो तुम पे जान लुटा ही देगा |
नाम तुम्हारे ..........
खन-खन करती बोली तुम्हारी जैसे चूड़ी…
ContinueAdded by somesh kumar on January 13, 2015 at 11:00pm — 9 Comments
बाउजी, आखिरकार वो “रोडियो वाली फिल्म” ने झंडे गाड़ दिए ,सनसनी पैदा कर दी है, और साहब सुना है की हीरो ने और जिसने फिल्म बनाई है उसने “करोड़ों रूपये अन्दर कर लिए हैं “ !
“हाँ बात तो सही कह रहा है तू .........तूने देखी है वो फिल्म ?”
नहीं साहब पैसे नहीं जुटा पाया, मैं लोगों के जूते सिलता ,पॉलिश करते हुए यहीं लोगों से उसकी कहानी सुनता रहता हूँ !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Hari Prakash Dubey on January 13, 2015 at 10:33pm — 19 Comments
दिये की बाती मैं
धुए में घिर जाती हूं
कुछ पल को घबराती
तो कुछ पल इठलाती हूँ
चीर तिमिर की छाती मैं
भू को ज्योतिर्मय कर जाती हूँ
अनिल तूफानी तेज हुए
भावुक मन और उत्तेजित हुए
ज्योति शिखर पे नर्तन करती
लिपट दिये के अंतस में
क्षण भर को शर्माती
और सहज धीर बढ़ाती हूँ
राग अनोखे गाती मैं
रागिनी को अपना पाती हूँ
आह समेटे... चाह लिए
क्षणभंगुर आतुर जीवन में
खाक हुई... पीर छिपाई
ज़र्रे ज़र्रे को रोशन करती
अपलक रास रचाती…
Added by anand murthy on January 13, 2015 at 8:45pm — 8 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |