कई रोज से खाली पेट थी
संभाल न सकी भूख
पसीज कर
दया करूणा ने
दो रोटी दस रूपये में
इतना भरा उसका पेट
फिर नौ माह
फूला रहा
वो कुत्ता बिल्ली नहीं थी
बिना किसी एवज
भूख मिटा दी जाती
विक्षिप्त थी तो क्या
थी तो स्त्री…
Added by asha pandey ojha on January 13, 2015 at 8:30pm — 30 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on January 13, 2015 at 3:00pm — 44 Comments
आप मेरे पाँव के आबलों को देखिये
फिर मेरी तै की हुई दूरियों को देखिये
गोद में वादी लिए हो कोई खरगोश ज्यूं
घाटियों में आप इन बादलों को देखिये
रो रहा है फूटकर आसमां किस बात पर
आँसुओं की है झड़ी बारिशों को देखिये
दुश्मनों की चाल से बाख़बर हरदम रहे
दोस्तों की भी ज़रा साज़िशों को देखिये
रहजनों से रास्ता पूछते हैं बारहा
मंज़िलों से बेख़बर रहबरों को देखिये
आपके सर पर चलो एक छत है तो…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 13, 2015 at 9:30am — 18 Comments
आदित्य ,
तुम जीवन दाई हो
तुम्हारे ताप से जीवन चलता है
प्रेम भरा स्नेह मिलता है ,
समस्त धरा को ,
तूम दिनकर हो
रजनी को विदा करते हो
अनंत काल से ,
जीवन की मुस्कराहट आती है
तुम्हारे आगमन से ,
प्रभा आती है हरियाली में जिसके
ऊष्मीय स्नेह से प्रभाकर .,
दिन के नरेश , तुम्हारी सत्ता
धरती माँ को आभा देती है ,
खिलखाते है पुष्प .
फिर सोना उगले हरियाली ,
तुम्हारे ही तेज से ,भास्कर !
तुम समस्त जीवन…
ContinueAdded by aman kumar on January 12, 2015 at 5:00pm — 13 Comments
2122 1221 2212
************************
चाँद आशिक तो सूरज दीवाना हुआ
कम मगर क्यों खुशी का खजाना हुआ
****
बोलने जब लगी रात खामोशियाँ
अश्क अम्बर को मुश्किल बहाना हुआ
****
मिल भॅवर से स्वयं किश्तियाँ तोड़ दी
बीच मझधार में यूँ नहाना हुआ
****
जब पिघलने लगे ठूँठ बरसात में
घाव अपना भी ताजा पुराना हुआ
****
देख खुशियाँ किसी की न आँसू बहे
दर्द अपना भी शायद सयाना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 12, 2015 at 12:30pm — 23 Comments
२१२२ १२१२ २२ /११२
फिर से उगता हुआ जो पर देखा
तो बहुत झूम झूम कर देखा
धूप में झुलसा हर बशर देखा
तन पसीने से तर ब तर देखा
जल सके आग, कोशिशें देखीं
दिल में सुलगा हुआ शरर देखा
कारवाँ साथ था चला लेकिन
खुद को ही खुद का हम सफ़र देखा
सर परस्ती रही सियासत की
ज़ुर्म कर जो झुका न सर देखा
हद के बाहर दुआ में हाथ उठे
हर ,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 12, 2015 at 10:42am — 25 Comments
२१२२--२१२२--२१२
आपके किरदार को समझा चलो
नाग की फुफकार को समझा चलो
हार कर संसार से हर दौड़ में
वक़्त की रफ़्तार को समझा चलो
मोल कुछ पाया नहीं अख़्लाक़ का
ख़ुद ग़रज़ बाज़ार को समझा चलो
कहता है कोई शिफ़ा मेरी नहीं
वो मेरे आज़ार को समझा चलो
सर गँवा कर भी बचा ली आबरू
क़ीमती दस्तार को समझा चलो
दोस्त था लेकिन अदू से जा मिला
मैं भी इक अय्यार को समझा चलो
ख़ामोशी…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 11, 2015 at 7:47pm — 15 Comments
तेरा कुछ भी मुझ पर बक़ाया नहीं है
मुझे मार कर क़्यों ज़लाया नहीं है
..
सज़ा बे-बज़ह ही मिली है क़सम से
क़िसी को भी मैंने सताया नहीं है
..
गया तू नज़र से,मेरी ज़ान लेक़र
मग़र जहर क्यों कर पिलाया नहीं है
..
मोहब्बत में कर दूँ ज़रा भी मिलावट
व़फा ने ये मुझको सिख़ाया नहीं है
..
मुझे कह रही हैं मुसलसल ये हिचकी
अभी तक भी तूने भुलाया नहीं है
मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा
Added by umesh katara on January 11, 2015 at 7:30pm — 27 Comments
लग गयी हमारे-तुम्हारे प्यार को,
कुछ हवा शायद जो नज़र होती है !
और नज़र उतारती थी जो अम्मा,
अब कौन जानता किधर सोती है !
मुस्कराते थे पनघट, जो हम पर ,
उनकी हँसी अब उन्हीं पर रोती है !
लगे हमारे तुम्हारे मिलन पर पहरे,
दीवार हर बात- बात पर रोती है !
मिल नहीं पाता मैं अब तुमसे ,
तुमसे ख्वाबों में मुलाकात होती है !
दिन नहीं होता धरती पर अब ,
अब धरती पर सिर्फ रात होती…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 11, 2015 at 4:30pm — 19 Comments
" बहुत बहुत बधाई जन्मदिन की, आज तो पार्टी बनती है " , ऑफिस पहुँचते ही सहकर्मियों ने घेर लिया शर्माजी को | एक बारगी तो वो सोच ही नहीं पाये कि कैसे प्रतिक्रिया दें इस पर , उनसठवां जन्मदिन था उनका | अगले साल सेवानिवृत्त हो जायेंगे और घर में बेरोज़गार पुत्र एवम शादी के योग्य पुत्री |
चेहरे पे फीकी मुस्कान लाते हुए सबका आभार व्यक्त करने लगे और आवाज लगायी " सबके लिए नाश्ते का इंतज़ाम आज मेरी तरफ से कर देना भोला " | सब प्रसन्न थे पर उनके मन में यही चल रहा था कि ऐसा जन्मदिन किसी का न हो | …
Added by विनय कुमार on January 11, 2015 at 2:14pm — 17 Comments
२२२१
ये अखबार
सच बीमार
कैसा धर्म
गो,तलवार
सच की राह
है दुश्वार
मरघट देगा
रिश्तेदार
आ ऐ मौत
कर उद्धार
जग गुमनाम
किसका यार
मौलिक व अप्रकाशित
आपकी समालोचना की प्रतीक्षा है
Added by gumnaam pithoragarhi on January 11, 2015 at 11:53am — 12 Comments
1 2 2 |
|
भला क्या ? |
बुरा क्या ? |
|
खुदी से |
मिला क्या… |
Added by मिथिलेश वामनकर on January 11, 2015 at 4:26am — 13 Comments
भूमिका(कविता)
अश्रु-पूरित चन्दन से भी
अगर टीकूँ|
है असम्भव अब तुम्हारा
लौट आना||
मैं इस मंच पर अभी कुछ
और खेलूँगा|
तुमकों जो अभिनय जँचे
तो मुस्काना ||
था टिका सम्बन्ध जिस पर
घुना वो आलम्ब|
हो सके तो उसपे कुछ
रेह लगाना||
हो सघन तिमिर जब कोई
राह ना सूझे|
तुम करना मेरा पथ-प्रशस्त
टिमटिमाना |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by somesh kumar on January 11, 2015 at 1:23am — 6 Comments
नयन सखा डरे डरे, प्रमाद से भरे भरे......
सबा चले हजार सू फिज़ा सिहर सिहर उठे
भरी भरी हरित लता खिले खिले सुमन हँसे
चिनार में कनेर में खजूर और ताड़ में
अड़े खड़े पहाड़ पे घने वनों की आड़ में
उदास वन हृदय हुआ उदीप्त मन निशा हरे.............
शज़र शज़र खड़े बड़े करें अजीब मस्तियाँ
विचित्र चाल से चले बड़ी विशेष पंक्तियाँ
सदा कही नहीं मगर दिलो-दिमाग कांपता
मधुर मधुर मृदुल मृदुल प्रियंवदा विचिन्तिता
विचारशील कामना प्रसंग से…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on January 10, 2015 at 11:30pm — 34 Comments
नहीं वे जानते मुझको, दुश्मनी करके बैठे हैं ,
मेरे कुछ मिलने वाले भी, उन्हीं से मिलके बैठे हैं ,
समझकर वे मुझे कायर, बहुत खुश हो रहे नादाँ
क़त्ल करने मुझे देखो , कब्र में घुस के बैठे हैं .
गिला वे कर रहे आकर , हमारे गुमसुम रहने का ,
गुलूबंद को जो कानों से , लपेटे अपने बैठे हैं .
हमें गुस्ताख़ कहते हैं , गुनाह ऊँगली पे गिनवाएं ,
सवेरे से जो रातों तक , गालियाँ दे के बैठे हैं .
नतीजा उनसे मिलने का , आज है सामने आया ,
पड़े हम…
Added by shalini kaushik on January 10, 2015 at 11:00pm — 7 Comments
कैसे लिखूं कि कविता ;
एक कविता सी लगे ,
बहते हुए भावों की ;
एक सरिता सी लगे !
चंचल किशोरी सम जो ;
खिलखिलाए खुलकर ,
बांध ले ह्रदय को ;
नयनों के तीर चलकर ,
ऐसी रचूँ कि कुमकुम सी
मांग में सजे !
कैसे लिखूं कि कविता ;
एक कविता सी लगे !
हो मर्म भरी ऐसी ;
जो चीर दे उरों को ,
एक खलबली मचा दे ;
पिघला दे पत्थरों को ,
निर्मल ह्रदय जो कर दे ;
वो सुर लिए सधे !
कैसे लिखूं कि कविता ;
एक कविता सी लगे…
Added by shikha kaushik on January 10, 2015 at 9:00pm — 11 Comments
‘पता चला है सेठ से तुम्हारे पुराने सम्बन्ध थे ?’- इंस्पेक्टर ने कड़क कर पूंछा I
‘जी हाँ ----I’
‘कैसे सम्बन्ध थे ?’
‘एक समय मै रखैल थी उसकी I’
‘तब तूने उसकी हत्या क्यों की ?’
‘क्योंकि वह मनुष्य नहीं राक्षस था I वह मेरी बेटी को भी अपनी हवस का शिकार बनाने जा रहा था I मैंने साले को वही चाकू से गोद दिया I’
‘तो तेरी बेटी क्या सती सावित्री थी ?’
‘नहीं साहिब , हम जैसे लोग पेट के लिए देह बेचते है I सती -सावित्री होना हमारे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 10, 2015 at 7:30pm — 31 Comments
भले ही दर्द हो कितना नहीं उसको भुलाना है
मुझे अब गम जमाने को नहीं अपना दिखाना है
मिटाये से नहीं मिटती न जाने याद क्यों उसकी
बनी तस्वीर है प्यारी जिगर में आज भी जिसकी
न हो जब पास वो मेरे लगे ये जिन्दगी वैसे
सजी हो चॉंद की महफिल न हो पर चॉंदनी जैसे
बता यह बात दुनिया को नही मुझको हँसाना है
मुझे अब गम जमाने को नहीं अपना दिखाना है
भले ही दर्द हो कितना नहीं उसको भुलाना है
बना कर नाँव कागज की चला मैं ढूढ़ने…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on January 10, 2015 at 7:09pm — 12 Comments
Added by विनोद खनगवाल on January 10, 2015 at 6:40pm — 14 Comments
** ग़ज़ल : वक़्त भी लाचार है.
2122,2122,212
आदमी क्या वक़्त भी लाचार है.
हर फ़रिश्ता लग रहा बेजार है.
आज फिर विस्फोट से कांपा शहर.
भूख पर बारूद का अधिकार है.
क्यों हुआ मजबूर फटने के लिए.
लानतें उस जन्म को धिक्कार है.
औरतों की आबरू खतरे पड़ी,
मारता मासूम को मक्कार है.
कर रहे हैं क़त्ल जिसके नाम पर,
क्या यही अल्लाह को स्वीकार है.
कौम में पैदा हुआ शैतान जो,
बन…
ContinueAdded by harivallabh sharma on January 10, 2015 at 3:47pm — 21 Comments
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