“आज तो गज़ब की टाई पहनी है अमित, बहुत जम रहे हो यार, कहाँ से ली?”
“नेहरू प्लेस से लाया हूँ साले, 90 रूपये की है, चाहिये तो उतार दूं, बता?”
“अबे भड़क क्यों रहा है?, और सुबह-सुबह सिगरेट पर सिगरेट सूते चले जा रहा है, कोई टेंशन है क्या?”
“सॉरी यार, अभी बॉस ने मेरी तबियत से क्लास ले ली, दिमाग खराब कर दिया साले नेI”
“भाई इतनी गाली क्यों दे रहा है, क्या हो गया?"
“अरे यार, कह रहा है, आज अगर धंधा नहीं आया तो कल से आने की जरूरत नहीं है I”, ”पता नहीं किस…
Added by Hari Prakash Dubey on February 25, 2016 at 11:00am — 6 Comments
1222 1222 1222 1222
धरा है घूर्णन में व्यस्त, नभ विषणन में डूबा है
दशा पर जग की, ये ब्रह्माण्ड ही चिंतन में डूबा है
हर इक शय स्वार्थ में आकंठ इस उपवन में डूबी है
कली सौंदर्य में डूबी, भ्रमर गुंजन में डूबा है
बयां होगी सितम की दास्तां, लेकिन ज़रा ठहरो
सुख़नवर प्रेयसी के रूप के वर्णन में डूबा है
उदर के आग की वो क्या जलन महसूस कर पाए
जो चौबीसों…
Added by जयनित कुमार मेहता on February 24, 2016 at 9:17pm — 18 Comments
चंद शेर आपके लिए
एक।
दर्द मुझसे मिलकर अब मुस्कराता है
जब दर्द को दबा जानकार पिया मैंने
दो.
वक्त की मार सबको सिखाती सबक़ है
ज़िन्दगी चंद सांसों की लगती जुआँ है
तीन.
समय के साथ बहने का मजा कुछ और है यारों
रिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता है
चार.
जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी
बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था
"मौलिक व अप्रकाशित"
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
Added by Madan Mohan saxena on February 24, 2016 at 12:09pm — 3 Comments
1222 1222 1222 1222
न जाने हाथ में किसके है ये पतवार मौसम की
बदल पाया न कोई भी कभी रफ्तार मौसम की /1
सितम इस पार मौसम का दया उस पार मौसम की
समझ चालें न आएँगी कभी अय्यार मौसम की /2
अभी है पक्ष में तो मत करो मनमानियाँ इतनी
न जाने कब बदल जाए तबीयत यार मौसम की /3
उजाड़े जा रहा क्यों तू धरा से रोज ही इनको
दवाई पेड़ पौधे हैं समझ बीमार मौसम की /4
न आए हाथ उतने भी लगाए बीज थे जितने
पड़ी कुछ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2016 at 11:55am — 13 Comments
Added by kanta roy on February 24, 2016 at 11:03am — 9 Comments
212 212 212 212
जीत उसको मिली जो लड़ा ही नहीं
कौन सच में लड़ा ये पता ही नही
साजिशों से अँधेरा किया इस क़दर
कब्र उसकी बनी जो मरा ही नहीं
झूठ के पाँव पर मुद्दआ था खड़ा
पर्त प्याज़ी हठी, कुछ मिला ही नहीं
यूँ बदी अपना खेमा बदलती रही
अब किसी के लिये कुछ बुरा ही नहीं
इन ख़ुदाओं को देखा तो ऐसा लगा
इस जहाँ में कहीं अब ख़ुदा ही नहीं
छोड़ दी जब गली, नक्श भी मिट गये
चाहतें…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 24, 2016 at 10:00am — 26 Comments
आज का मामला बहुत गंभीर था| पूरे थाने को अकेले एक हवलदार के भरोसे छोड़कर बाकी सभी पुलिसकर्मी रात से उसी स्थान के आस-पास उसे तलाश रहे थे| सवेरा होते-होते सभी के चेहरों पर थकान झलकने लगी, सवेरे की पाली के पुलिसकर्मीयों को भी वहीँ बुला लिया गया| लेकिन ऊपर से आदेश होने के कारण रात्रि की पाली वाले भी नहीं जा सकते थे|
इतने में वृत्तनिरीक्षक के पास अधीक्षक का फोन आया, उसने फ़ोन उठाया और कहा, "जय हिन्द हुजूर! ....... अभी तक कोई हलचल नहीं हुई है ......... अच्छा! अभी भी इसी इलाके में होने की…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on February 24, 2016 at 8:30am — 6 Comments
हमने बाँट ली ज़मीन
फिर आसमान
अब बाँट लिए
चाँद सूरज और तारे
फिर बाँटा
देश-वेश, रहन- सहन
रंग-ढंग, जाति- प्रजाति
ख़ुदग़रज़ई
बढ़ती जा रही है.
अब हमने छुपा दिया है
सदभावना को, भाईचारे को
किसी गहरी खाई में.
हम अब नहीं बाँटना चाहते
सहज स्नेह
आमने- सामने..
.
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on February 24, 2016 at 8:00am — 4 Comments
Added by amita tiwari on February 23, 2016 at 11:30pm — 4 Comments
Added by मनोज अहसास on February 23, 2016 at 6:00pm — 6 Comments
Added by Rahila on February 23, 2016 at 6:00pm — 8 Comments
बह्र : १२२ १२२ १२२ १२
सभी पैरहन हम भुला कर चले
तेरे इश्क़ में जब नहा कर चले
न फिर उम्र भर वो अघा कर चले
जो मज़लूम का हक पचा कर चले
गये खर्चने हम मुहब्बत जहाँ
वहीं से मुहब्बत कमा कर चले
अकेले कभी अब से होंगे न हम
वो हमको हमीं से मिला कर चले
न जाने क्या हाथी का घट जाएगा
अगर चींटियों को बचा कर चले
तरस जाएगा एक बोसे को भी
वो पत्थर जिसे तुम ख़ुदा कर…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 23, 2016 at 5:57pm — 10 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on February 23, 2016 at 4:30pm — 18 Comments
गूंगी गुड़िया ....
कितनी प्रसन्न दिख रही हो
सुनहरे बाल
छोटी सी फ्रॉक
छोटे छोटे पांवों में
लाल रंग की बैली
नटखट आँखें
नृत्य मुद्रा में फ़ैली दोनों बाहें
बिन बोले ही तुम
कितने सुंदर ढंग से
अपने भावों का
सम्प्रेषण कर रही हो
तुम पर
किसी मौसम का
कोई असर नहीं होता
सदैव मुस्कुराती हो
गुड़िया हो न !
शीशे की अलमारी में बंद रह के भी
सदा मुस्कुराती हो//
मैं भी बुल्कुल तुम्हारी तरह…
ContinueAdded by Sushil Sarna on February 23, 2016 at 3:38pm — 2 Comments
स्क्रिप्ट के पन्ने पलटते हुए अचानक प्रोड्यूसर के माथे पर त्योरियाँ पड़ गईं, पास बैठे युवा स्क्रिप्ट राइटर की ओर मुड़ते हुए वह भड़का:
"ये तुम्हारी अक्ल को हो क्या गया है?"
"क्या हुआ सर जी, कोई गलती हो गई क्या?" स्क्रिप्ट राइटर ने आश्चर्य से पूछाI
"अरे इनको शराब पीते हुए क्यों दिखा दिया?"
"सर जो आदमी ऐसी पार्टी में जाएगा वो शराब तो पिएगा ही न?"
"अरे नहीं नहीं, बदलो इस सीन कोI"
"मगर ये तो स्क्रिप्ट की डिमांड हैI"
"गोली मारो स्क्रिप्ट कोI यह सीन फिल्म में…
Added by योगराज प्रभाकर on February 23, 2016 at 2:30pm — 27 Comments
"सर, एक छोटा सा प्रार्थना पत्र है, आपकी स्वीकृति चाहिये|" कार्यालय के वरिष्ठ लिपिक ने अपने अधिकारी की तरफ कागज़ और एक कलम बढ़ाते हुए कहा|
अधिकारी ने कलम को छोड़, हाथ से कागज़ लेकर पढ़ना प्रारंभ किया, पढ़ते हुए उसके चेहरे की भंगिमाएं बदल गयीं, आँखों में कुछ तीक्ष्णता भी आ गयी, लेकिन उसने स्वयं को संयत करते हुए कहा, "अभी तीन माह पूर्व ही तो आपके वेतन में असाधारण वृद्धि की थी, अब फिर से...."
"हर संकट में आपका साथ दिया है, इस कुर्सी पर आप बैठे हैं, उसमें कहीं न कहीं मेरा भी तो हाथ…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on February 23, 2016 at 1:00pm — No Comments
2122 2122 2122 212
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प्यार के इस माह की यारो कहानी क्या कहें
बिन किसी के थम गयी है जिंदगानी क्या कहें /1
यूँ कभी खुशियों के मौसम भी छलकती आँख थी
दर्द से हट आँसुओं के अब तो मानी क्या कहें /2
आजकल बैसाखियों पर वक्त जाने क्यों हुआ
थी कभी किससे जवाँ वो इक रवानी क्या कहें /3
आप कहते हो अकेलापन सताता है बहुत
साथ अपने तो सदा यादें पुरानी क्या कहें /4
खुश रहे बस हो …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 23, 2016 at 11:27am — 10 Comments
Added by kanta roy on February 23, 2016 at 7:00am — 8 Comments
Added by Manan Kumar singh on February 23, 2016 at 6:55am — 4 Comments
[१]
प्यार मुहब्बत संग दया समता,करुणाकर ही रखते हैं.
क्रूर कठोर अघोर सभी जन मे, सदबुद्धि वही फलते हैं.
रावण कौरव कंस बली हिरणाक्ष,सभी पल मे क्षरते हैं.
धर्म सधे जनमानस के हित, सत्यम नित्य कहा करते हैं.
[२]
वक्त बली अति सौम्य तुला रख, नीति सुनीति सदा पगता है.
काल अकाल विधी विधना, सबके सब मूक बयां करता है.
मीन - नदी अति व्यग्र रहें, बगुला - तट शांत मजा चखता है.
वक्त समग्र विकास करे, पर मानव सत्य नहीं गहता…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 23, 2016 at 12:00am — 2 Comments
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