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February 2019 Blog Posts (72)

अपबे वतन में बेघर

अपने वतन में बेघर का दर्द क्या जानो

जिन्होने लूटा है खसूटा उनको पहचानो

मेहनत मज़दूरी की तो जी गये बच्चे

संस्कार मिले थे बुजुर्गो से हमें भी अच्छे

लुट गये लेकिन हथियार उठाया ना कभी

वतन पे जान देने का है इरादा अब भी…

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Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on February 18, 2019 at 6:00pm — 2 Comments

सुनो..!

जाने हम किसके  मोहताज़ हैं,

जज्बात वो कल ना रहेंगे, जो आज हैं।

इतने मशरूफ़ भी ना रहो मेरे हमदम,

इस उम्र के बड़े लंबे परवाज़ है।

नजर भर कर देखो, हसरतों की बात है,

एक पल का नहीं, उम्र भर का साथ है।

बेरुखी जहर बन जाएगी आहिस्ता-आहिस्ता,

सुनो सरगोशी से ये बात, राज की बात है।

सम्हलने के लिए इबरत ही काफी है,

अंजाम पर तो माफी तलाफ़ी है।

मर जाती है जब सारी ख्वाहिशें तो,

फिर अहसास की सांस भी ना काफी…

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Added by Rahila on February 18, 2019 at 5:00pm — 4 Comments

वतन का राग

व्यर्थ नहीं जाने देंगे हम ,वीरों की कुर्बानी को

चढ़ सीने पर चूर करेंगे,दुश्मन की मनमानी को

माफ नहीं हरगिज करना है, भीतर के गद्दारों को

बनें विभीषण वैरी हित में,बुलन्द करते नारों को ll

अन्न देश का खाने वाले, दुर्जन के गुण गाते हैं

जिस माटी में पले बढ़े हैं, उस पर बज्र गिराते हैं

छिपे हुए कुलघाती जब ये, मिट्टी में मिल जाएंगे

बचे सुधर्मी सरफरोश सब,राग वतन के गाएंगे ll

देश कुकर्मी हठधर्मी को, कर देना बोटी बोटी

उस भुजंग को कुचल मसल…

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Added by डॉ छोटेलाल सिंह on February 18, 2019 at 12:00pm — 2 Comments

उन्हें मालूम नहीं ...

बड़ी खामोशी से वो कर रहें हैं गुफ्तगू

मगर सब सुन रहे हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!

मोहब्बत के खिलें हैं फूल जिनके दर्मियाँ

वो काँटे चुन रहे हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!

यूँ शब भर जागकर सौदाई बन तन्हाई का

गलीचा बुन रहे हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!

किये हैं ज़ब्त, वादों में जो रिश्ते प्यार के

वो रिश्ते घुन रहें हैं ये उन्हें मालूम नहीं !!

वो हमसे पूंछते हैं इश्क करने की वज़ह

मोहब्बत बेवज़ह है ये उन्हें मालूम नहीं…

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Added by रक्षिता सिंह on February 18, 2019 at 9:49am — 2 Comments

भारत माता करे पुकार...

मुझको भारत माँ कहते थे , करते थे मेरी जयकार।

पुलवामा में बेटे मेरे , षडयंत्रों का हुए शिकार।

विकल ह्रदय जननी हूँ मैं , पुत्रों मेरी सुनो पुकार।

विकल्प एक ही है, प्रतिशोध, सत्य यही है करो स्वीकार।

कायरता के कृत्य घिघौने , छद्मयुद्ध की माया को।

चिथड़े-चिथड़े  उड़ते  देखा, मैंने पुत्रों की काया को।

इस छद्मयुद्ध के जख्मों में , टीस  भयानक उठती है।

फ़फ़क-फ़फ़क  कर रोते-रोते  ही, रीस भयानक उठती है।

समय नहीं है अब केवल वक्तव्यों  और…

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Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on February 17, 2019 at 9:00pm — 3 Comments

गज़ल - दिगंबर नासवा -3

१२२२ १२२२ १२२२ १२२ 

तेरी हर शै मुझे भाए, तो क्या वो इश्क़ होगा

मुझे तू देख शरमाए, तो क्या वो इश्क़ होगा

 

कभी हो इश्क़ तो रुन-झुन कहीं महसूस होगी

इशारे कर के समझाए तो क्या वो इश्क़ होगा 

 

पिए ना जो कभी झूठा, मगर मिलने पे अकसर

गटक जाए मेरी चाए, तो क्या वो इश्क़ होगा

 

सभी से हँस के बोले, पीठ पीछे मुंह चिढ़ाए

मेरे नज़दीक इतराए, तो क्या वो इश्क़ होगा

 

हज़ारों बार हाए, बाय, उनको बोलने पर   

पलट के बोल दे…

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Added by दिगंबर नासवा on February 17, 2019 at 2:28pm — 7 Comments

जागो भाग्य विधाताओ

(प्रति चरण 8+8+8+7 वर्णों की रचना)

देखा अजब तमाशा, छायी दिल में निराशा,

चार गीदड़ ले गये, मूँछ तेरी नोच के।

सोये हुए शेर तुम, भूतकाल में हो गुम,

पुरखों पे नाचते हो, नाक नीची सोच के।।

पूर्वजों ने घी था खाया, नाम तूने वो गमाया,

सूंघाने से हाथ अब, कोई नहीं फायदा।

ताव झूठे दिखलाते, गाल खूब हो बजाते,

मुँह से काम हाथ का, होने का ना कायदा।।

हाथ धरे बैठे रहो, आँख मीच सब सहो,

पानी पार सर से हो, मुँह तब फाड़ते।…

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Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 16, 2019 at 5:00pm — 3 Comments

जिस मुल्क में ग़रीब के लब पर हँसी नहीं (२९ )

जिस मुल्क में ग़रीब के लब पर हँसी नहीं 

तो मान कर चलें कि तरक़्क़ी हुई नहीं 

**

जुम्लों के दम पे जीत की आशा न कीजिये 

चलती है बार बार ये बाज़ीगरी नहीं 

**

तहज़ीब क़त्ल-ओ-ख़ून की परवान चढ़ रही 

लगता है आदमी रहा अब आदमी नहीं 

**

उम्मीद रहगुज़र कोई मिलने की मत करें 

मंज़िल के वास्ते है अगर तिश्नगी नहीं 

**

चाहें…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 16, 2019 at 4:30pm — 5 Comments

अनकहा रिश्ता (लघुकथा)

9 फ़रवरी 2019

प्रिय डायरी

आज साईट पर कनक अम्मा की हालत देखकर मन भारी हो गया। तुम तो जानती ही हो, कनक अम्मा बाऊजी के समय से अपनी कम्पनी से जुड़ी है। बाऊजी को यह अन्ना दादा कहती थी। बाऊजी को तो तुमने भी देखा है, नहीँ तुम न थी उस वक़्त मेरे साथ तुम्हारी बड़ी बहन थी, मैं उससे अपनी बातें साझा किया करता था, जैसे मैं आज तुमसे करता हूँ। यह क्या मैं भटक गया... हाँ तो मैं कहाँ था। हाँ, कनक अम्मा की बात बता रहा था न मैं। आज वह रोज़ की तरह सीमेंट की तगाड़ी लेकर सीढ़ियों पर चढ़ रही थी कि वह फिसल…

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Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 16, 2019 at 9:48am — 4 Comments

जब तिरंगे में लिपट गांव वो आया होगा (२८ )

शहीदों को ख़िराजे अक़ीदत 

------------------------------

वो  तिरंगे में लिपट गांव जब आया होगा |

तो हर इक शख़्स ने चुल्हा न जलाया होगा |

******

क्या न गुज़रेगी किसी दिल पे बयाँ हो कैसे 

आख़री फूल तिरे सर पे चढ़ाया होगा |

******

जब गए दोस्त उसे आज सलामी देने 

याद गुज़रा उसे  बचपन भी फिर  आया होगा |…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 15, 2019 at 1:00pm — 5 Comments

(कल पुलवामा हमले में शहीद 42 जवानों को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए) - एक कुण्डलिया छंद-

मारे पाकिस्तान ने, अपने वीर जवान। जिसकी निंदा कर रहा, सारा हिंदुस्तान।। सारा हिंदुस्तान, हुआ है हतप्रभ भारी। धरी रह गयी आज, चौकसी सभी हमारी।। हुए जवान शहीद, बयालिस आज हमारे। जन-जन की यह माँग, पाँच सौ भारत मारे।। (मौलिक व अप्रकाशित) **हरिओम श्रीवास्तव**

Added by Hariom Shrivastava on February 15, 2019 at 10:48am — 4 Comments

एक ग़ज़ल (वैलेंटाइन डे स्पेशल)

एक ग़ज़ल।

**********

बँध गई हैं एक दिन से प्रेम की अनुभूतियाँ

बिक रही रैपर लपेटे प्रेम की अनुभूतियाँ

शाश्वत से हो गई नश्वर विदेशी चाल में

भूल बैठी स्वयं को ऐसे प्रेम की अनुभूतियाँ

प्रेम पथ पर अब विकल्पों के बिना जीवन नहीं

आज मुझ से, कल किसी से, प्रेम की अनुभूतियाँ

पाप से और पुण्य से हो कर पृथक ये सोचिए

लज्जा में लिपटी हैं क्यों ये प्रेम की अनुभूतियाँ

परवरिश बंधन में हो तो दोष किसको दीजिये

कैसे पहचानेंगे…

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Added by अजय गुप्ता 'अजेय on February 14, 2019 at 1:54pm — 4 Comments

जब आपकी नज़र में वफ़ा सुर्ख़रू नहीं (२७ )

(२२१ २१२१ १२२१ २१२ )

जब आपकी नज़र में वफ़ा सुर्ख़रू नहीं 

दिल में हमारे इश्क़ की अब आरजू नहीं 

**

रुसवा किये बिना किसी को हों जुदा जुदा 

गलती से प्यार को करें बे-आबरू नहीं 

**

रिश्तों की सीवनों पे ज़रा ग़ौर कीजिये 

उधड़ीं जो एक बार तो होतीं रफ़ू नहीं 

**

उस मुल्क की अवाम के बढ़ने हैं रंज-ओ-ग़म 

जिस मुल्क में मुहब्बतों की आबजू…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 14, 2019 at 2:00am — 5 Comments

यूँ इश्क का इक सुकून हूँ मैं..

121-22-121-22

नये ज़माने का खून हूँ मैं।।

पुराने स्वेटर का ऊन हूँ मैं।।

मुझे न पढ़ना न पढ़ सकोगे।

मैं अहदे उल्फ़त* जुनून हूँ मैं। time of love

अजब! सिफारिश मेरी करोगे।

अभी भी शक है कि कौन हूं मैं।।

करोगे क्या मेरे ज़ख्म सी कर।

यूँ इश्क का इक सुकून हूँ मैं।।

मकान मेरा नहीं है गुम सा।

पुराने घर से दरून* हूँ मैं।। (दिल,मध्य कोर)

के हिज्र हो या विसाल तेरा।

हूँ दोनों शय में…

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Added by amod shrivastav (bindouri) on February 13, 2019 at 11:52pm — 3 Comments

ग़ज़ल



1212  1122 1212 22/112

क़ज़ा का करके मेरी इंतिज़ाम उतरी है ।

अभी अभी जो मेरे घर मे शाम उतरी है ।।

तमाम  उम्र  का ले तामझाम उतरी है ।

ये जीस्त मौत को करने  सलाम उतरी है ।।

अदाएं देख के उसकी ये लग रहा है मुझे ।

कि लेने  हूर  कोई  इंतिकाम  उतरी है ।।…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on February 13, 2019 at 8:30pm — 4 Comments

अंतिम स्वीकार ....

अंतिम स्वीकार ....

जितना प्रयास किया
आँखों की भाषा को
समझने का
उतना ही डूबता गया
स्मृति की प्राचीर में
रिस रही थी जहाँ से
पीर
आँसूं बनकर
स्मृति की दरारों से
रह गया था शेष
अंतर्मन में सुवासित
अंतिम स्वीकार

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on February 13, 2019 at 7:27pm — 4 Comments

लौट के आये उड़ान से - ग़ज़ल

दिन-भर जो बात करते रहे आस्मान से

सूरज ढला तो लौट के आये उड़ान से

था वक़्त का ख़याल या हारे थकान से

निकले थे घर से सुब्ह जो अपने गुमान से

आसां नहीं बुलन्दी को छूना, ये है फ़लक

गुज़री हर एक राह तो मुश्किल चढ़ान से

टूटे हुए सितारों से हो किसको वास्ता

निस्बत रही सभी को फ़क़त आस्मान से

खामोशियों से करते हैं हालत मेरी बयां

आँखों से बहते अश्क मेरे बेजुबान-से

जब मग़रिबी हवाओं से मुरझा गया…

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Added by Jitendra sharma on February 13, 2019 at 5:30pm — 4 Comments

थम रही हैं क्यों नहीं ये सिसकियाँ (२५ )

थम रही हैं क्यों नहीं ये सिसकियाँ 

क्यों परेशां हैं चमन में तितलियाँ 

***

साल सत्तर से भले आज़ाद हैं 

आज भी सजती बदन की मंडियाँ

***

अब घरों में भी कहाँ महफ़ूज़ हैं 

ख़ौफ़ के साये में रहती बेटियाँ 

***

ये बशर कैसी तेरी मर्दानगी 

मार देता क्यों है नन्ही बच्चियाँ 

***

कहते हैं हम बेटा-बेटी एक से 

फ़र्क़…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 13, 2019 at 12:30am — 4 Comments

करो कुछ याद उनको जो गये हैं- ग़ज़ल

1222 1222 122

ये देखा और' सुना इस फरवरी में

बहकता दिल ज़रा इस फरवरी में।

किसी की कोशिशें कुछ काम आई

कोई जम कर पिटा इस फरवरी में।

दिखावे में ढली है जिंदगी बस

रहे सच से जुदा इस फरवरी में।

मुहब्बत को समेटा है पलों ने

हुआ ये क्या भला इस फरवरी में?

कहीं पर नेह की कोंपल भी फूटी

किसी का दिल जला इस फरवरी में।

करो कुछ याद उनको जो गये हैं

वतन पर जां लुटा इस फरवरी में।

मौलिक…

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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 12, 2019 at 7:30pm — 2 Comments

ग़ज़ल- बलराम धाकड़ (हम अपनी ज़िंदगी भर ज़िंदगी बर्दाश्त करते हैं)

1222 1222 1222 1222
सुबह से शाम तक नाराज़गी बर्दाश्त करते हैं।
हम अपने अफ़सरों की ज़्यादती बर्दाश्त करते हैं।
अज़ल से हम उजाले के रहे हैं मुन्तज़िर लेकिन,
मुक़द्दर ये कि अबतक तीरगी बर्दाश्त करते हैं।
सँभालो लड़खड़ाते अपने क़दमों को, ख़ुदा…
Continue

Added by Balram Dhakar on February 11, 2019 at 10:30pm — 6 Comments

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