बेचैनी बढ़ रही धरा की,
पशु-पक्षी बेहाल
सूरज बाबा सजा रहे हैं,
अंगारों का थाल
दिखते नहीं आजकल हमको,
बरगद, पीपल, नीम
आँगन छोड़, घरों में बालक,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on March 31, 2018 at 8:30pm — 10 Comments
विहग निज चोंच में देखो,,,,,,
विहग निज चोंच में देखो, अहा! मछली दबोचे है|
फँसी खग कंठ में मछली, पड़े तन पर खरोंचे हैं ||
विहग औ मीन दोनों इक, सरीखे ही अबोले हैं |
मगर इक हर्ष दूजी भय, सँजोये आँख बोले हैं |१ |
उदर की भूख मिट जाए, यही चाहत विहग पाले |
वहीं पर मीन के देखो, पड़े हैं जान के लाले ||
सलामत जान की अपने, खुदा से चाहती मछली |
निवाला छूट ना जाए, यही मन सोचती बगुली |२ |
मौलिक और अप्रकाशित…
Added by Satyanarayan Singh on March 30, 2018 at 1:30pm — 12 Comments
बह्र -1212-1122-1212-22
बड़ा शह्र है ये अपना पता नहीं मिलता।।
यहाँ बजूद भी हँसता हुआ नहीं मिलता।।
दरख़्त देख के लगता तो आज भी ऐसा ।
के ईदगाह में अब भी खुदा नहीं मिलता।।
समाज ढेरों किताबी वसूल गढ़ता है।
वसूल गढ़ता ,कभी रास्ता नहीं मिलता।।
मैं पढ़ लिया हूँ कुरां,गीता बाइबिल लेकिन ।
किसी भी ग्रन्थ में , नफरत लिखा नहीं मिलता।।
मुझे भी दर्द ओ तन्हाई से गिला है पर।
करें भी क्या कोई हमपर फ़िदा नहीं…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 30, 2018 at 11:11am — 6 Comments
122 122 122 122
मेरी चाहतें सब दहकने से पहले ।।
चले आइये सर पटकने पहले ।।
नहीं भूलती वो सुलगती सी रातें ।
मुहब्बत का सूरज चमकने से पहले ।।
सुना हूँ यहाँ हुस्न वालों की बस्ती।
मगर वो मिले कब भटकने से पहले ।।
है ख्वाहिश यही तुझको जी भर के देखूँ ।
क़ज़ा पर पलक के झपकने से पहले ।।
बहुत कोशिशें गुफ्तगू की हैं उनकी ।
अभी सर से चिलमन सरकने से पहले…
Added by Naveen Mani Tripathi on March 30, 2018 at 3:30am — 7 Comments
“ रात महके तेरे तस्सवुर में
दीद हो जाए तो फिर सहर महके “
“अमित अब बंद भी करो !बोर नहीं होते |कितनी बार सुनोगे वही गजल |” सुनिधि ने चिढ़ते हुए कहा
प्रतिक्रिया में अमित ने ईयरफोन लगाया और आँखें बंद कर लीं |
कुछ देर बाद सुनिधि ने करवट बदली और अपना हाथ अमित की छाती पर रख दिया |पर अमित अपने ही अहसासों में खोया रहा और उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी |
“ऐसा लगता है तुम मुझे प्यार नहीं करते |” सुनिधि ने हाथ हटाते हुए कहा पर अमित अभी भी अपने ख्यालों में खोया…
ContinueAdded by somesh kumar on March 30, 2018 at 12:00am — 2 Comments
२११२/ १२१२ // २११२/ १२१२
.
जिसका मैं मुन्तज़िर रहा पल में वो पल गुज़र गया,
और वो लम्हा बीत कर अपनी ही मौत मर गया.
.
मेरा सफ़र तवील है दूर हैं मंज़िलें मेरी
दुनिया फ़क़त सराय है रात हुई ठहर गया.
.
कोई छुअन थी मलमली कोई महक थी संदली
ख़ुद में जो उस को पा लिया मुझ में जो मैं था मर गया.
.
सारे तिलिस्म तोड़ कर अपनी अना को छोड़ कर
तेरे हवाले हो के मैं अपने ही पार उतर गया.
.
पीठ थी रौशनी की ओर साये को देखते रहे
“नूर” से जब नज़र…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 29, 2018 at 10:04pm — 12 Comments
पानी-पानी ...
ख़ून
ख़ून से ही
कतराता है
मगर
पानी से मिल जाता है
इसीलिये
रिश्ता
ख़ून का
हो जाता है
पानी-पानी
ख़ून के सामने
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on March 29, 2018 at 5:33pm — 12 Comments
अरकान:-
मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन
खुली आँखें हैं,पर सोया हुआ हूँ
तुम्हारी याद में डूबा हुआ हूँ।।
बदन इक दिन छुआ था तुमने मेरा
उसी दिन से बहुत महका हुआ हूँ।।
मुझे पागल समझती है ये दुनिया
तसव्वुर में तेरे खोया हुआ हूँ।।
जहाँ तुम छोड़कर मुझको गये थे
उसी रस्ते पे मैं बैठा हुआ हूँ।।
ख़ुदा का है करम 'संतोष' मुझ पर
हर इक महफ़िल पे मैं छाया हुआ हूँ।।
#संतोष_खिरवड़कर
(मौलिक एवं…
ContinueAdded by santosh khirwadkar on March 29, 2018 at 4:30pm — 12 Comments
कच्ची फसल - लघुकथा –
"माँ, मुझे अभी और पढ़ना है। आप बापू को समझाओ ना। वे इतनी जल्दी क्यों मेरा विवाह करना चाहते हैं"?
"ठीक है बेटी। मैं आज एक बार और कोशिश करके देखती हूँ"।
श्यामा के स्कूल जाते ही, राधा खेत पर मोहन के लिये खाना लेकर पहुँच गयी।
"मैं सोच रही थी कि आज इस गेंहू की फसल को काट लेते हैं। जल्दी से फ़ारिग हो जायेंगे"।
"पगला गयी हो क्या राधा, । फसल पकने में वक्त है अभी।
"क्या फ़र्क पड़ता है, दो चार दिन पहले काट लेंगे तो। मुझे श्यामा को लेकर…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 29, 2018 at 10:51am — 16 Comments
2122 1212 22
आज हद से गुजर गए कुछ लोग ।
फिर नजर से उतर गए कुछ लोग ।।
करके वादा यहां हुकूमत से ।
बेसबब ही मुकर गए कुछ लोग ।।
आशिकी उनके बस की बात कहाँ ।
चोट खाकर सुधर गए कुछ लोग ।।
अब कसौटी पे उनको क्या रखना ।
आजमाते ही डर गए कुछ लोग ।।
हर तरफ जल रही यहां बस्ती ।
कौन जाने किधर गए कुछ लोग ।।
छोड़िये बात अब मुहब्बत की
टूट कर फिर…
Added by Naveen Mani Tripathi on March 29, 2018 at 7:33am — 5 Comments
मानव से इतर
तीतर-बीतर
कौए-कबूतर
शेर-चूहे
सपना-परिकल्पना
कछुआ-खरग़ोश
होश-बेहोश
जड़-चेतन, मूर्त-अमूर्त
भूत प्रेत-एलिअन
जिनके
सजीव-निर्जीव पात्र
मानवीय आचरण में
सज्जन-दुर्जन
मानव-संवाद
तंज/कटाक्ष
यथार्थ सी कल्पना
प्रतीकात्मक
बिम्बात्मक
बोधात्मक
सार्थक सर्जना
व्यंजना-रंजना
कल्पना-लोक-भ्रमण
सार्थक
मानवेतर
कथा या हो लघुकथा सृजन!
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 28, 2018 at 11:12pm — 9 Comments
निर्मोही रिश्ते ...
भावों की ज़मीन को
करते हैं बंजर
बंजारे से
ये
आजकल के
निर्मोही रिश्ते
जीवन को
मृत्यु का
कफ़न पहनाते
ये
आजकल के
निर्मोही रिश्ते
अपनी ही कोख़ से
अनजान बनते
ये
आजकल के
निर्मोही रिश्ते
कितना अजीब लगता है
जब
मृत रिश्तों को
कांधा देते
ले जाते हैं
दुनियावी सड़क से
मरघट तक
ये मृत केंचुली में
स्वांग रचाते
ज़िंदा…
Added by Sushil Sarna on March 28, 2018 at 8:57pm — 10 Comments
*२१२२ २१२२ २१२*
हर जगह रहता है अपनी धाक में।
ख़ासियत देखी ये उस चालाक में।।
चीज कोई मुफ़्त में कैसे मिले।
लोग रहते आजकल इस ताक में।।
आदमी करता गुमाँ किस बात का।
एक दिन मिल जायेगा सब ख़ाक में।।
ख़ुद-ब-ख़ुद सम्मान मिलता आजकल।
आप हो जब कीमती पोशाक में।।
जब न मोबाइल किसी के पास था।
लोग लिखते हाल अपना डाक में।।
डर हमेशा उस ख़ुदा से ही लगे।
मैं नहीं रहता किसी की धाक…
Added by surender insan on March 28, 2018 at 3:00pm — 14 Comments
1222 1222 1222 1222
छुपी हो लाख पर्दों में मुहब्बत देख लेते हैं ।
किसी चहरे पे हम ठहरी नज़ाकत देख लेते हैं ।। 1
.
तेरी आवारगी की हर तरफ चर्चा ही चर्चा है ।
यहां तो लोग तेरी हर हिमाक़त देख लेते हैं ।। 2
.
चले आना कभी दर पे अभी तो मौत बाकी है ।
तेरे जुल्मो सितम से हम कयामत देख लेते हैं ।।3
.
बड़ी मदहोश नजरों से इशारा हो गया उनका ।
दिखा वो तिश्नगी अपनी लियाकत देख लेते हैं ।। 4
.
खबर तुझको नहीं शायद तेरी उल्फत…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on March 28, 2018 at 2:30pm — 8 Comments
"मैं मानती हूँ डॉक्टर, कि ये उन पत्थरबाजों के परिवार का ही हिस्सा हैं जिनका शिकार हमारे फ़ौजी आये दिन होते हैं लेकिन सिर्फ इसी वज़ह से इन्हें अपने 'पढ़ाई-कढ़ाई सेंटर' में न रखना, क्या इनके साथ ज्यादती नहीं होगी?" हजारों मील दूर से घाटी में आकर अशिक्षित और आर्थिक रूप से कमजोर औरतों के लिये 'हेल्प सेंटर' चलाने वाली समायरा, 'आर्मी डॉक्टर' की बात पर अपनी असहमति जता रही थी।
"ये फ़ालतू का आदर्शवाद हैं समायरा, और कुछ नहीं।" डॉक्टर मुस्कराने लगा। "तुमने शायद देखा नहीं हैं पत्थरबाजों की चोट से…
ContinueAdded by VIRENDER VEER MEHTA on March 27, 2018 at 9:04pm — 21 Comments
राहुल ने जैसे ही रात को घर में कदम रखा वैसे ही उसका सामना अपनी धर्मपत्नी ‘कविता’ से हो गया । उसे देखते ही वह बोली “देख रही हूं आजकल, तुम बहुत बदल गए हो, मुझसे आजकल ठीक से बात भी नहीं करते हो ।”
नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, बस जरा काम का बोझ कुछ ज्यादा ही लग रहा है ।”
ये बहाना तो तुम कई दिनों से बना रहे हो, हाय राम ! कहीं तुम मुझसे कुछ छुपा तो नहीं रहे हो, “कौन है वो करमजली?”
यह सुनते ही राहुल का पारा चढ़ गया उसने झुंझुलाते हुए कहा “कविता,…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 27, 2018 at 8:23pm — 18 Comments
बिहार दिवस का उल्लास चहुँ ओर बिखरा पड़ा नजर आ रहा... मैं किसी कार्य से गाँधी मैदान से गुजरते हुए कहीं जा रही थी कि मेरी दृष्टि तरुण वर्मा पर पड़ी जो एक राजनीतिक दल की सभा में भाषण सा दे रहा था। पार्टी का पट्टा भी गले में डाल रखा... तरुण वर्मा को देखकर मैं चौंक उठी... और सोचने लगी यह तो उच्चकोटी का साहित्यकार बनने का सपने सजाता... लेखनी से समाज का दिशा दशा बदल देने का डंका पीटने वाला आज और लगभग हाल के दिनों में ज्यादा राजनीतिक दल की सभा…
ContinueAdded by vibha rani shrivastava on March 27, 2018 at 7:20pm — 6 Comments
एक नवीनतम अतुकांत रचना
मैं तो सदा उसकी ही रहूंगी,
मुझे उसी की रहना है बस
इससे क्या
कि
मेरे जिस्म की मासूमी पर,
उसने दर्द के दाग लिखे हैं ।
मेरी सुर्ख आंखों का काजल ,
उसके जुर्म बह निकला है
और चेहरे की रंगत है
उसके दिए हुए निशान
अंतिम लफ्ज़ से उसके नाम के,
बस मेरी पहचान बची है
मैंने उसकी खातिर अपना,
चेहरा सब से छुपा लिया है
मैं फिर भी उसकी ही हूं
जबकि
वो जब चाहे मुझको अपनी,
जीस्त से रुखसत कर सकता है
वो जब…
Added by मनोज अहसास on March 27, 2018 at 4:21pm — 6 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 27, 2018 at 3:00pm — 4 Comments
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फेलुन
लोग हैरान थे,रिश्ता सर-ए-महफ़िल बाँधा
उसने जब अपनी रग-ए-जाँ से मेरा दिल बाँधा
हर क़दम राह मलाइक ने दिखाई मुझ को
मैंने जब अज़्म-ए-सफ़र जानिब-ए-मंज़िल बाँधा
जितने हमदर्द थे रोने लगे सुनकर देखो
अपने अशआर में जब मैंने ग़म-ए-दिल बाँधा
जल गये जितने सितारे थे फ़लक पर यारो
अपनी ज़ुल्फ़ों में जब उसने मह-ए-कामिल बाँधा
शुक्र तेरा करें किस मुंह से…
ContinueAdded by Samar kabeer on March 27, 2018 at 12:31pm — 35 Comments
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